पहले डीएमके के उदयनिधि, दयानिधि, फिर कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे के पुत्र और अब हमास का जिहादी नेता… हिंदू धर्म पर निशाना साधने में इन तीनों में कोई अंतर नहीं है। कम्युनिस्ट शासन ने कैसे दी हमास के हमदर्दों को रैली निकालने की अनुमति
विगत दिनों केरल के मलप्पुरम् में ‘फिलिस्तीनियों के समर्थन’ में एक रैली निकाली गई। इस रैली का आयोजन जमात-ए-इस्लामी हिंद की युवा शाखा ‘सॉलिडेरिटी यूथ मूवमेंट’ (एसवाईएम) ने किया था, जिसे आतंकी संगठन हमास के नेता खालिद माशेल ने वीडियो के माध्यम से संबोधित किया। महत्वपूर्ण बात यह है कि इस रैली की टैगलाइन थी, ‘‘बुलडोजर हिंदुत्व और नस्लवादी यहूदियों को उखाड़ फेंको।’’ हालांकि आयोजकों ने घोषणा की थी कि हमास का एक अन्य नेता इस्माइल हानियेह भी वर्चुअल माध्यम से रैली को संबोधित करेगा, लेकिन किसी कारण ऐसा नहीं हुआ। खालिद माशेल आतंकी संगठन हमास का पूर्व प्रमुख है। 2004 में निर्वासन के दौरान वह आतंकी संगठन हमास का राजनीतिक नेता बन गया। हालांकि वह कभी गाजा में नहीं रहा। वह जॉर्डन, सीरिया, कतर और मिस्र से ही हमास के लिए काम करता था। इस्राएल के विदेश मंत्रालय के अनुसार, अब माशेल कतर में रह रहा है।
केरल ही क्यों?
यमन में युद्ध चल रहा है, सीरिया में युद्ध चल रहा है, सूडान में युद्ध चल रहा है, लीबिया में युद्ध चल रहा है। इन सभी युद्धों में मुसलमान ही मुसलमानों को मार रहे हैं। हजारों मुसलमान पीड़ित हैं। लेकिन न तो जमात-ए-इस्लामी कभी इन मरने वाले मुसलमानों से हमदर्दी जताती नजर आई, न उनके लिए न्यूयॉर्क, लंदन, बर्लिन में कभी कोई विरोध प्रदर्शन हुआ। न कभी कांग्रेस और आईएनडीआई अलायंस ने इन देशों के दूतावासों में जाकर उनसे हमदर्दी जताने की कोशिश की। क्यों?
कम्युनिस्टों और इस्लामिस्टों का तर्क है कि हमास भारत में आतंकी संगठन के रूप में प्रतिबंधित नहीं है। ठीक है। लेकिन इसका अर्थ यह कहां हो जाता है कि उसे हिंदुओं और यहूदियों के खिलाफ खुलकर अभियान चलाने की भी छूट है? भारतीय कानून इसकी इजाजत तो नहीं देता है। उससे भी बड़ा प्रश्न- क्या वह स्थिति आ चुकी है कि ऐसे खुले और दुष्टतापूर्ण अभियानों से हिंदुओं की रक्षा कानूनों पर निर्भर हो चुकी है।
चाहे हमास हो, जमात-ए-इस्लामी हो या इस्लामिस्टों के साथ खड़े होने के लिए उत्सुक कांग्रेस और उसका ‘इंडी’ गठबंधन हो, वास्तव में इनमें से किसी को भी पीड़ितों की चिंता नहीं है, उन्हें सिर्फ इस बात की चिंता है कि मुसलमान किसे अपना दुश्मन मानते हैं। शशि थरूर ने जरूर कांग्रेस में रहते हुए पार्टी लाइन से अलग मात्र 25 सेकंड के लिए अपनी राय व्यक्त करने की कोशिश की थी। लेकिन चंद मिनट के भीतर ही उनकी राय को न केवल कांग्रेस और मुस्लिम लीग ने, बल्कि कम्युनिस्टों तक ने चकनाचूर कर दिया। ऐसा भी नहीं है कि उन 25 सेकंड के लिए थरूर को बधाई का पात्र माना जा सकता हो। कोझिकोड की वह रैली, जिसमें थरूर का भाषण हुआ था, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) ने आयोजित की थी। मुस्लिम लीग कांग्रेस का सहयोगी दल है और कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सदस्य और सांसद शशि थरूर इस रैली में मुख्य अतिथि थे।
यहां कांग्रेस वर्किंग कमेटी का संक्षिप्त उल्लेख करना जरूरी है। कांग्रेस वर्किंग कमेटी ने 9 अक्तूबर को एक प्रस्ताव पारित करके फिलिस्तीन को अपने समर्थन की घोषणा की थी। लेकिन इसमें हमास द्वारा इस्राएल पर 7 अक्तूबर को किए गए हमलों का उल्लेख नहीं किया गया था। कांग्रेस के अर्धसत्य पर आधारित इस सेक्युलरिज्म से मुस्लिम लीग को लगा होगा कि कांग्रेस नेता थरूर को अपनी रैली में मुख्य वक्ता बनाया जाए। वास्तव में इस्लामिस्ट और सेक्युलरिस्ट कांग्रेस के लिए भी उसी तरह पर्यायवाची शब्द हैं, जैसे मुस्लिम लीग के लिए। यही कारण है कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने मुस्लिम लीग को सेक्युलर घोषित कर दिया था।
कांग्रेस और मुस्लिम लीग के लिए केरल में फिलिस्तीन का समर्थन करना सिर्फ बहाना था। केरल इस्लामिस्टों की पनाहगाह ही नहीं, चरागाह, शिकारगाह और भर्ती करने का मैदान तक बना हुआ है। वस्तुत: ‘फिलिस्तीन बचाओ’ की आड़ में आतंकी संगठन हमास और उसके नेताओं को ‘योद्धा’ के रूप में महिमामंडित करने का प्रयास किया गया और यहूदियों से बैर की आड़ में हिंदुओं से बैर को रेखांकित किया गया। कांग्रेस और कम्युनिस्टों की सरपरस्ती में केरल आज हमास, आईएसआईएस, अल-कायदा और सिमी जैसे आतंकी संगठनों का भारत का सबसे बड़ा समर्थक राज्य है। केरल आईएसआईएस और खाड़ी के अन्य आतंकी संगठनों को इस्लामी आतंकियों का एक बड़ा निर्यातक रहा है। केरल में कम्युनिस्टों ने कभी एक आतंकी समूह के तौर पर हमास की निंदा नहीं की। आज इस्राएल में केरल मूल के लगभग एक लाख यहूदी हैं, लेकिन केरल में बमुश्किल 100 यहूदी बचे हैं।
‘‘(सीएम) पिनराई विजयन की पुलिस कहां है? ‘फिलिस्तीन बचाओ’ की आड़ में वह एक आतंकी संगठन हमास और उसके नेताओं को ‘योद्धा’ के रूप में महिमामंडित कर रहे हैं। यह अस्वीकार्य है।’’ – सुरेंद्रन
भाजपा ने प्रश्न किया है कि ‘आतंकवादियों के इस खतरनाक महिमामंडन’ की वामपंथी शासित राज्य ने अनुमति कैसे दी? लेकिन आयोजकों को केरल में मिले सरकारी संरक्षण का पूरा विश्वास है। इसी कारण उन्होंने एक प्रेस नोट जारी करके फिर कहा कि हमास एक ‘प्रतिरोध आंदोलन’ है और खालिद माशेल एक ‘स्वतंत्रता सेनानी’ है।
यह रैली स्पष्ट तौर पर हिंदुओं और यहूदियों के विरुद्ध थी। केरल सरकार इस पर मूक दर्शक इसलिए भी बनी रही, क्योंकि वह खुले तौर पर हिंदुत्व की विरोधी है। कम्युनिस्टों और इस्लामिस्टों का तर्क है कि हमास भारत में आतंकी संगठन के रूप में प्रतिबंधित नहीं है। ठीक है। लेकिन इसका अर्थ यह कहां हो जाता है कि उसे हिंदुओं और यहूदियों के खिलाफ खुलकर अभियान चलाने की भी छूट है? भारतीय कानून इसकी इजाजत तो नहीं देता है। उससे भी बड़ा प्रश्न- क्या वह स्थिति आ चुकी है कि ऐसे खुले और दुष्टतापूर्ण अभियानों से हिंदुओं की रक्षा कानूनों पर निर्भर हो चुकी है।
प्रदेश भाजपा अध्यक्ष के. सुरेंद्रन ने इस घटना को ‘खतरनाक’ बताया है। उन्होंने माशेल की वर्चुअल फोटो साझा करते हुए एक्स पर लिखा, ‘‘(सीएम) पिनराई विजयन की पुलिस कहां है? ‘फिलिस्तीन बचाओ’ की आड़ में वह एक आतंकी संगठन हमास और उसके नेताओं को ‘योद्धा’ के रूप में महिमामंडित कर रहे हैं। यह अस्वीकार्य है।’’
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