राजस्थान में विधानसभा चुनाव के लिए भले ही अभी घोषणा पत्रों का इंतजार हो, लेकिन चुनाव के मुद्दे तय हो चुके हैं। पिछले 5 वर्ष में कांग्रेस सरकार के भ्रष्टाचार और प्रदेश में हुई महिला उत्पीड़न की घटनाओं को लेकर जनता में रोष है और अभी तक सत्तारूढ़ पार्टी इसका कोई उत्तर खोज पाने में विफल रही है। यहां बदलाव निश्चित नजर आ रहा है
राजस्थान विधानसभा चुनाव के लिए सभी दल कमर कसकर मैदान में उतर चुके हैं। यहां 25 नवंबर को मतदान होना है। इसलिए प्रदेश में चुनावी चौसर पर सभी योद्धा पूरी तैयारी के साथ जुटे हुए हैं। जहां कांग्रेस यहां पिछले अनेक वर्ष से चली आ रही ‘एक बार कांग्रेस, एक बार भाजपा’ परिपाटी को तोड़ने की पूरी कोशिश कर रही है, वहीं मुख्य विपक्षी पार्टी भारतीय जनता पार्टी का निशाना विधानसभा चुनाव जीतकर 2024 के लोकसभा चुनाव के लक्ष्य को साधना दिखाई देता है। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा ने उक्त परिपाटी को तोड़ने का प्रयास किया था, लेकिन असफल रही थी। हालांकि कांग्रेस भी तब बहुमत से एक सीट पीछे थी।
2018 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो अंतिम परिणाम में कांग्रेस 100 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी, लेकिन बहुमत से एक सीट पीछे थी। भाजपा ने तब 73 सीटें जीती थीं, जो उससे पहले के चुनावों (2013) की तुलना में बहुत कम थीं, जिनमें उसने 163 सीटों पर सीटों पर विजय प्राप्त की थी। इस बार भी मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच ही दिख रहा है। पर, तीसरे मोर्चे के नातें कई छोटे दल भी मैदान में हैं।
ताजा चुनाव के संदर्भ में राजस्थान के राजनीतिक विश्लेषक दिनेश गोरसिया कहते हैं-‘‘राजस्थान में पिछले चुनाव नतीजों से पता चलता है कि सीधे मुकाबले वाली पार्टियां ही मतदाताओं की पहली पसंद रही हैं। इसी के चलते राजस्थान में तीसरे मोर्चे के लिए विशेष स्थान नहीं बन पाया है।’’ राज्य में प्रमुख रूप से आम आदमी पार्टी, बसपा, आजाद समाज पार्टी, भारतीय ट्राइबल पार्टी, एआईएमआईएम, राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी और जननायक पार्टी समेत कई अन्य छोटे दलों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। 2018 के विधानसभा चुनाव में करीब 86 छोटे दलों ने भाजपा और कांग्रेस के वोटों में सेंध लगाते हुए करीब 12 प्रतिशत वोट हासिल किए थे। वहीं निर्दलीय उम्मीदवारों को भी 9.47 प्रतिशत वोट हासिल हुए थे, 13 निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव जीते थे। कांग्रेस ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की अगुआई में बसपा और निर्दलीय विधायकों को साथ लेकर सरकार बनाई। सत्ता सीमेंट के बूते कांग्रेस में गुटबाजी चरम पर होने के बावजूद गहलोत पांच साल सरकार चलाने में सफल रहे!
दो कांग्रेसी मंत्री काट गए कन्नी
कांग्रेस के दो मंत्री हेमाराम चौधरी और लालचंद कटारिया चुनाव न लड़ने की मंशा जाहिर कर चुके हैं। वन एवं पर्यावरण मंत्री हेमाराम चौधरी बाड़मेर जिले के गुड़ामालानी से विधायक हैं। हेमाराम को सचिन पायलट खेमे का माना जाता है। पिछले दिनों चौधरी ने कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे से अपनी जगह किसी युवा नेता को टिकट देने की अपील की है। उन्होंने खड़गे को लिखा है-‘पार्टी ने मुझे छह बार मौका दिया। अब मैं जीवन के ऐसे पड़ाव पर हूं, जहां मैं सक्रिय राजनीति में हिस्सा नहीं ले पाऊंगा। वरिष्ठ नेता का कर्तव्य है कि वह युवाओं को राजनीति में आने के लिए स्थान दे’।
इसी तरह गहलोत सरकार में कृषि मंत्री लालचंद कटारिया ने भी चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया। कटारिया जयपुर के झोटवाड़ा विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं। यहां से भाजपा ने इस बार पूर्व केन्द्रीय मंत्री व जयपुर ग्रामीण सांसद राज्यवर्धन सिंह राठौड़ को मैदान में उतारा है। कटारिया की ओर से कहा गया है कि उन्होंने चुनाव न लड़ने के अपने इरादे के बारे में दो साल पहले ही आलाकमान को बता दिया था। अब वह अध्यात्म पर ध्यान दे रहे हैं।
राज्य के इन दो मंत्रियों के अलावा कांग्रेस के पूर्व मंत्री भरत सिंह पहले ही गहलोत सरकार से नाराज होकर चुनाव लड़ने से इनकार कर चुके हैं। उन्होंने कथित भ्रष्टाचार और कार्यकर्ताओं की सुनवाई नहीं होने के मामलों को लेकर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को कई पत्र लिखे हैं।
तीन दशक से बनी है परिपाटी
राजस्थान में चुनावी इतिहास पर नजर डालें तो 1993 में भाजपा सत्ता में आई थी। इसके बाद से प्रदेश ने एक बार कांग्रेस तो एक बार भाजपा को सत्ता सौंपने की परंपरा जैसी बना ली है। यानी कोई भी पार्टी लगातार दो बार सत्ता में नहीं आई। इस परम्परा के अनुसार तो इस बार सत्ता में भाजपा आने वाली है। हालांकि पिछले चुनाव में भाजपा ने इस परिपाटी को तोड़ने का पूरा प्रयास किया था, लेकिन कामयाब नहीं हुई। परिणाम यह रहा कि भाजपा सत्ता में वापसी नहीं कर पाई। राजस्थान में पिछले चुनावों (2018) में मत प्रतिशत में अंतर बहुत कम था। कांग्रेस को कुल मतों के 39.06 प्रतिशत मत मिले थे जबकि भाजपा को 38.56 प्रतिशत मत प्राप्त हुए थे। केवल 0.50 प्रतिशत के अंतर से भाजपा को लगभग 90 सीटों पर हार मिली थी। भाजपा ने 2013 के विधानसभा चुनाव में 45.17 प्रतिशत मत प्राप्त कर 163 सीटों पर जीत हासिल की थी, लेकिन उसके बाद के चुनाव में भाजपा 53 सीटों पर ही सिमट गई थी।
कांग्रेस का गारंटी झांसा
प्रदेश की सत्ता में वापसी के लिए कांग्रेस सरकार ने लोकलुभावन वादों और गारंटी योजनाओं की झड़ी लगा दी है। कांग्रेस ने सात बिंदुओं पर गारंटी दी है। जैसे, हर परिवार की महिला मुखिया को सालाना दस हजार रु. देने की गारंटी वाली गृह लक्ष्मी योजना, 1.05 करोड़ परिवारों को 500 रु. में गैस सिलेंडर की गारंटी, गोधन योजना में किसानों से दो रुपये किलो गोबर खरीदने की गारंटी, छात्रों को फ्री लेपटॉप-टेबलेट देने की गारंटी, प्राकृतिक आपदा राहत गारंटी, अंग्रेजी शिक्षा गारंटी और ओपीएस गारंटी, जिसके लिए सरकार बिल लाएगी। जबकि भाजपा ने इस चुनाव में भ्रष्टाचार, तुष्टीकरण, महिला सुरक्षा और अपराध, पेपर लीक, बेरोजगारी, किसान कर्ज माफी और जमीन नीलामी को मुद्दा बनाया है।
मुख्यमंत्री गहलोत ने दावा किया है कि यदि कांग्रेस की सत्ता में वापसी होती है तो इन गारंटियों को धरातल पर उतारा जाएगा। कांग्रेस अब गांव-गांव, ढाणी-ढाणी ‘गारंटी यात्रा’ निकाल रही है। हालांकि कांग्रेस का चुनावी घोषणा पत्र अभी जारी होगा। मुख्यमंत्री गहलोत कहते हैं कि गारंटियों के बावजूद घोषणा पत्र की महत्ता बनी रहेगी। कांग्रेस के मीडिया विभाग प्रमुख पवन खेड़ा कहते हैं कि ‘कांग्रेस ने अपना प्रचार अभियान गारंटी शब्द से ही शुरू किया है। प्रदेश की जनता समझदार है, वह मुख्यमंत्री गहलोत की गारंटी और कामों के आधार पर वोट देगी।’
‘‘राजस्थान की कांग्रेस सरकार ने अपने पूरे कार्यकाल के दौरान भ्रष्टाचार पर प्रहार करने वाली एसीबी को कमजोर करने का पाप किया है। सरकार ने भ्रष्टाचार के आरोप में रिश्वत लेते रंगे हाथों पकडे गए 600 से अधिक भ्रष्ट कार्मिकों पर अभियोजन की स्वीकृति रोककर उनके हौसले बढ़ाने का काम किया है। 2019-मार्च 2023 के बीच एसीबी ने राज्य सरकार के पास 2475 प्रकरण अभियोजन स्वीकृति के लिए भेजे थे, इसमें से सरकार ने 636 प्रकरणों में स्वीकृति तक नहीं दी है।’’ – पंकज मीणा, भाजपा प्रदेश प्रवक्ता
तुष्टीकरण, कानून व्यवस्था पर घेरे में सरकार
इस बार चुनाव में कांग्रेस की सत्ता की राह आसान नहीं है। मुख्यमंत्री गहलोत की सरकार पांच चली जरूर है, लेकिन अधिकांश समय जोड़-तोड़ करके सरकार बचाने की कसरत ही हुई है। लिहाजा कानून व्यवस्था, भ्रष्टाचार, पेपर लीक, किसान कर्ज माफी, साम्प्रदायिक तनाव, पूर्व राजस्थान नहर परियोजना, पुरानी पेंशन योजना, महिला अत्याचार जैसे बड़े मुद्दों का संतोषजनक हल नहीं निकला। भाजपा मुख्यमंत्री पर तुष्टीकरण की राजनीति करने के आरोप लगाती आई है।
प्रदेश में महिला उत्पीड़न की घटनाएं विगत पांच साल में बेतहाशा बढ़ी हैं। भाजपा महिला मोर्चा की प्रदेश उपाध्यक्ष डॉ. अपूर्वा सिंह कहती हैं-‘‘एक महिला के नाते यह कहते हुए मन उद्वेलित है कि जिस राजस्थान में महिलाएं जौहर किया करती थीं, महिलाओं के सम्मान के लिए युद्ध लड़े जाते थे, उस राजस्थान में आज महिलाओं को सरेआम निर्वस्त्र घुमाया जाता है। महिलाओं को बेचा जाता है और दुधमुंही बच्चियों के साथ दुष्कर्म करके उनकी हत्या कर दी जाती है! देश के चर्चित नैना साहनी तंदूर कांड, भंवरी कांड और भीलवाड़ा का कोटड़ी कांड जैसे वीभत्स कांड कांग्रेस सरकारों के समय में हुए हैं। कांग्रेस की नेता प्रियंका वाड्रा पर्यटन के लिए तो राजस्थान आती हैं, लेकिन दुष्कर्म पीड़िताओं से मिलने का उनके पास समय नहीं है।’’
भ्रष्टाचार भी प्रदेश में चरम पर रहा है। विशेषकर ऊंचे ओहदों पर बैठे अधिकारियों के खिलाफ गहलोत सरकार अभियोजन की स्वीकृति देने में काफी पीछे रही है। केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुनराम मेघवाल कहते हैं-‘‘इंडियन स्टेट्स एंड इंडेक्स रिपोर्ट के अनुसार भ्रष्टाचार के मामलों में राजस्थान नंबर एक पर रहा है। यहां 78 प्रतिशत लोगों का मानना है कि भ्रष्टाचार या घूसखोरी के बिना कार्य करवा पाना असंभव सा हो गया है। एंटी करप्शन ब्यूरो के अनुसार राजस्थान में भ्रष्टाचार के 2022 में 511 और 2023 में 281 मामले दर्ज हुए हैं। राजस्थान में बेरोजगारी दर 28.03 प्रतिशत हो चुकी है।’’
भाजपा प्रदेश प्रवक्ता पंकज मीणा कहते हैं-‘‘राजस्थान की कांग्रेस सरकार ने अपने पूरे कार्यकाल के दौरान भ्रष्टाचार पर प्रहार करने वाली एसीबी को कमजोर करने का पाप किया है। सरकार ने भ्रष्टाचार के आरोप में रिश्वत लेते रंगे हाथों पकडे गए 600 से अधिक भ्रष्ट कार्मिकों पर अभियोजन की स्वीकृति रोककर उनके हौसले बढ़ाने का काम किया है। 2019-मार्च 2023 के बीच एसीबी ने राज्य सरकार के पास 2475 प्रकरण अभियोजन स्वीकृति के लिए भेजे थे, इसमें से सरकार ने 636 प्रकरणों में स्वीकृति तक नहीं दी है।’’
दो कांग्रेसी मंत्री काट गए कन्नी
कांग्रेस के दो मंत्री हेमाराम चौधरी और लालचंद कटारिया चुनाव न लड़ने की मंशा जाहिर कर चुके हैं। वन एवं पर्यावरण मंत्री हेमाराम चौधरी बाड़मेर जिले के गुड़ामालानी से विधायक हैं। हेमाराम को सचिन पायलट खेमे का माना जाता है। पिछले दिनों चौधरी ने कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे से अपनी जगह किसी युवा नेता को टिकट देने की अपील की है। उन्होंने खड़गे को लिखा है-‘पार्टी ने मुझे छह बार मौका दिया। अब मैं जीवन के ऐसे पड़ाव पर हूं, जहां मैं सक्रिय राजनीति में हिस्सा नहीं ले पाऊंगा। वरिष्ठ नेता का कर्तव्य है कि वह युवाओं को राजनीति में आने के लिए स्थान दे’।
इसी तरह गहलोत सरकार में कृषि मंत्री लालचंद कटारिया ने भी चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया। कटारिया जयपुर के झोटवाड़ा विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं। यहां से भाजपा ने इस बार पूर्व केन्द्रीय मंत्री व जयपुर ग्रामीण सांसद राज्यवर्धन सिंह राठौड़ को मैदान में उतारा है। कटारिया की ओर से कहा गया है कि उन्होंने चुनाव न लड़ने के अपने इरादे के बारे में दो साल पहले ही आलाकमान को बता दिया था। अब वह अध्यात्म पर ध्यान दे रहे हैं।
राज्य के इन दो मंत्रियों के अलावा कांग्रेस के पूर्व मंत्री भरत सिंह पहले ही गहलोत सरकार से नाराज होकर चुनाव लड़ने से इनकार कर चुके हैं। उन्होंने कथित भ्रष्टाचार और कार्यकर्ताओं की सुनवाई नहीं होने के मामलों को लेकर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को कई पत्र लिखे हैं।
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