चीन ने तिब्बत को लेकर ऐसा श्वेत पत्र जारी किया है जो न सिर्फ वर्तमान दलाई लामा के बारे में दुष्प्रचार करता है, बल्कि उस क्षेत्र पर कसते कम्युनिस्ट शिकंजे का काला चिट्ठा ही है। ड्रैगन ने इसमें कहा कि ‘दलाई लामा कोई धार्मिक विभूति नहीं है, वे तो बस राजनीतिक रूप से निर्वासित व्यक्ति हैं’। आगे चीन कहता है कि, ‘दलाई लामा लंबे वक्त से चीन के विरुद्ध अलगाववादी गतिविधियों में सम्मिलित रहे हैं, वे तिब्बत को चीन से अलग करने की कोशिश कर रहे हैं’।
बीजिंग की कम्युनिस्ट सत्ता द्वारा कल जारी किया गया यह श्वेत पत्र भारत की सीमा से सटे तिब्बत के महत्वपूर्ण रणनीतिक क्षेत्र में ‘आधारभूत ढांचे का तेज विकास’ करने पर भी बल देता है। आगे दलाई लामा के उत्तराधिकारी के संदर्भ में चीन का कहना है कि वह ‘देश’ के अंदर से कोई हो सकता है और वह भी ऐसा कोई जिसे चीन दलाई लामा के उत्तराधिकारी के तौर पर स्वीकरेगा। यहां बता दें कि भारत में धर्मशाला में रह रहे वर्तमान दलाई लामा 88 वर्ष के हो चले हैं।
#HeadlineNews A white paper on #Xizang says the region has seen sustainable, sound and rapid development. https://t.co/EW6qF7U84E
— CGTN Radio (@CGTNRadio) November 10, 2023
कम्युनिस्टों द्वारा तैयार और जारी किए गए इस श्वेत पत्र का कहना है कि दलाई लामा तथा पंचेन रिनपोचे सहित पुनर्जन्म लेने वाले सभी तिब्बती जीवित बुद्धों की खोज देश के अंदर ही की जाए। यह फैसला भी सोने के कलश से लॉटरी निकालने वाली प्रथा के माध्यम से हो, जिसे चीनी सत्ता का अनुमोदन मिलना जरूरी है।
चीन तिब्बत को जिज्यांग क्षेत्र बताता है। उसे कुल चिंता इस बात की है कि वर्तमान दलाई लामा जल्दी ही अपना उत्तराधिकारी तय कर सकते हैं, वे जिस भी व्यक्ति को इस पद पर तय करेंगे उसका हिमालयी क्षेत्र में आध्यात्मिक असर पड़ सकता है। लामा जी की बात को तिब्बती सिर—माथे रखेंगे और चीन कुछ न कर पाएगा। इसलिए कम्युनिस्टों को दलाई लामा के निर्धारण में भी अपना दखल चाहिए।
श्वेत पत्र में तिब्बतियों को आक्रोश में लाने वाली बातों की भरमार के बीच यह बात सबसे ज्यादा चुभने वाली है कि ‘वर्तमान दलाई लामा कोई धार्मिक व्यक्ति नहीं, अपितु एक राजनीतिक तौर पर निर्वासित व्यक्ति हैं’। तिब्बती दलाई लामा जी को बुद्ध का अवतारी मानकर पूजते हैं और उनके दिशानिर्देशों को जीवन की साध मानते हैं। उनकी आस्था को चीन इस प्रकार चोट पहुंचाता ही आ रहा है। भारत में ही नहीं, तिब्बत में भी चीन के दमन को झेल रहे तिब्बतियों में भी दलाई लामा के प्रति अगाध निष्ठा है।
चीन ने इस श्वेत पत्र—’नए दौर के जिजांग की सत्ता में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की नीतियां: नजरिया व उपलब्धियां’ नाम दिया गया है। चीन की भाषा में कहें तो यह ‘तिब्बत में अलगाववाद का प्रतिकार करने की कार्रवाई’ की बात करता है। इसमें लिखा है कि ‘घुसपैठ, उपद्रव तथा अलगाव के विरुद्ध लड़ाई चल रही है। जिजांग अलगाववाद का मुकाबला करने के लिए पूरा प्रयास कर रहा है।’
इसी श्वेत पत्र में कहा है कि दलाई लामा को मानने वाले ‘प्रतिक्रियावादी’ हैं, जिसकी ‘भर्त्सना’ की गई है। आगे कहा गया है कि, ‘इस इलाके में रहने वालों के मन में अब यह बात अंदर तक पहुंच चुकी है कि एकजुटता तथा स्थिरता एक ‘ब्लेसिंग’ है, जबकि बांटने की प्रवृत्ति तथा और अशांति मुसीबत की वजह बनती हैं। यहां के लोग देश की एकता, संप्रभुता तथा जातिगत एकजुटता को बचाने के लिए पहले से ज्यादा दृढ़ता से खड़े हैं।’
ध्यान रहे, श्वेत पत्र जारी करने वाले इसी चीन ने तिब्बत के संबंध में जितने विषय हैं उनके लिए विशेष समन्वयक तय करने के अमेरिका के फैसले का पुरजोर विरोध करते हुए कहा है कि अमेरिका को दलाई लामा के उत्तराधिकारी को तय करने के बीजिंग के अधिकारों में आड़े नहीं आना चाहिए।
श्वेत पत्र में तिब्बतियों को आक्रोश में लाने वाली बातों की भरमार के बीच यह बात सबसे ज्यादा चुभने वाली है कि ‘वर्तमान दलाई लामा कोई धार्मिक व्यक्ति नहीं, अपितु एक राजनीतिक तौर पर निर्वासित व्यक्ति हैं’। तिब्बती दलाई लामा जी को बुद्ध का अवतारी मानकर पूजते हैं और उनके दिशानिर्देशों को जीवन की साध मानते हैं। उनकी आस्था को चीन इस प्रकार चोट पहुंचाता ही आ रहा है। भारत में ही नहीं, तिब्बत में भी चीन के दमन को झेल रहे तिब्बतियों में भी दलाई लामा के प्रति अगाध निष्ठा है। हालांकि वे इस बारे में चीन की प्रताड़ना से घबराकर मुंह नहीं खोलते।
यही वजह है कि चीन ने वहां हान जाति के चीनियों को बसाकर इलाके की जनसांख्यिकी को बदलने की कोशिश एक लंबे समय से चला रखी है। चीन लगातार आरोप लगाता रहा है कि ‘दलाई लामा तिब्बत में चीन विरोधी अलगाववादी गतिविधियों में सम्मिलित रहे हैं’। इतना ही नहीं, अनिश्वरवादी कम्युनिस्ट यह भी कहते रहे हैं कि ‘दलाई लामा तिब्बत को चीन से अलग करने की कोशिशों में लगे हैं’।
धूर्त चीनी नीतिकार यह दुष्प्रचार भी करते हैं कि तिब्बत में बौद्धों पर किसी भी तरह की जोर-जबरदस्ती नहीं की जाती और कि चीन धार्मिक आस्था की आजादी की पूरी गारंटी देता रहा है, तिब्बती भाषा के विकास की चिंता करता रहा है।
श्वेत पत्र एक और सफेद झूठ बोलता है कि चीन सरकार धार्मिक गतिविधियों को सुनियोजित तरीके से करने को प्रोत्साहित करती है। तिब्बत क्षेत्र में तिब्बत के बौद्ध धर्म के कार्यक्रमों के लिए 17 सौ से ज्यादा जगहें तय हैं, करीब 46 हजार बौद्ध भिक्षु और भिक्षुणियां हैं, चार मस्जिदें हैं, लगभग 12 हजार मूल मुस्लिम हैं तथा 700 से ज्यादा ईसाई मतावलंबी हैं और एक कैथोलिक चर्च भी है।
श्वेत पत्र तिब्बत के साथ ही अरुणाचल प्रदेश के सरहदी इलाकों में आधारभूत ढांचे की भी चर्चा करता है। भारत के अरुणाचल प्रदेश को ‘दक्षिणी तिब्बत’ बोलने वाले धूर्त चीन का उस क्षेत्र पर दावा जताने की शरारतें रह—रहकर सामने आती रही हैं। और हर बार भारत ने सप्रमाण उसे उजागर किया है।
श्वेत पत्र तिब्बत के साथ ही अरुणाचल प्रदेश के सरहदी इलाकों में आधारभूत ढांचे की भी चर्चा करता है। भारत के अरुणाचल प्रदेश को ‘दक्षिणी तिब्बत’ बोलने वाले धूर्त चीन का उस क्षेत्र पर दावा जताने की शरारतें रह—रहकर सामने आती रही हैं। और हर बार भारत ने सप्रमाण उसे उजागर किया है।
रणनीतिक तौर पर महत्वपूर्ण तिब्बत में चीन ने न सिर्फ सैन्य गतिविधियां तेज की हैं बल्कि वह वहां सड़कों और तेज रफ्तार रेल मार्गों का निर्माण करता रहा है। ये सब भारत की सीमा का छूटे हुए गुजर रहे हैं। वह कह भी चुका है कि ऐसा उसके सैनिकों की आवाजाही को तेज करने के लिए किया जा रहा है।
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