10 नवम्बर 1659, इसी दिन छत्रपति शिवाजी महाराज ने अफजल खान के धोखे का जबाव उसी अंदाज में दिया था, जिस अंदाज में अफजल उनको मारना चाहता था। धोखेबाज अफजल खान का वध छत्रपति शिवाजी महाराज ने किया। इस वध के पीछे कहीं न कहीं उन 64 महिलाओं की आह भी रही होगी, जिसे वह इस कारण डुबोकर मारकर आ रहा था, क्योंकि उसे मौलवी ने यह बताया था कि वह अपनी ज़िन्दगी की अंतिम लड़ाई पर जा रहा है और जिंदा वापस नहीं आएगा। कर्नाटक के बीजापुर से लगभग 5 किलोमीटर दूर एक उजाड़ जगह पर साठ कब्र के नाम से प्रख्यात स्थान पर साठ कब्रें वह कहानी खुद सुनाती हैं, जो इतिहास के पन्नों में दफन हैं। वह कहानी है अफजल खान की उस क्रूरता के साथ औरतों को अपनी जागीर समझने की मानसिकता की, जिसका शिकार अभी तक अफगानिस्तान आदि की महिलाएं हो रही हैं। आखिर क्या थी यह कहानी और ये साठ कब्रें क्यों हैं? और क्यों यह कहानी अभी तक विमर्श का हिस्सा नहीं है?
वर्तमान में कर्नाटक में उपेक्षित पड़ी ये 60 कब्रें दरअसल उन अभागी औरतों की हैं जिन्हें बीजापुर के सेनापति अफजल खान ने अपने हरम में अपने शरीर की भूख शांत करने के लिए रखा था और उन्हें वह अपनी जागीर समझता था। हिन्द स्वराज का सपना लिए छत्रपति शिवाजी महाराज बीजापुर को टक्कर दे रहे थे। बेगम बड़ी साहिबा शिवाजी महाराज की बढ़ती ताकत को बर्दाश्त नहीं कर पा रही थीं। सर यदुनाथ सरकार अपनी पुस्तक शिवाजी एंड हिज़ टाइम्स में लिखते हैं कि बड़ी बेगम चाहती थीं कि शाहजी अपने बागी पुत्र को दण्डित करें। मगर शाहजी ने अपने पुत्र के विषय में निर्णय लेने के लिए बड़ी बेगम को खुला हाथ दे दिया। बीजापुर सल्तनत का कोई भी सरदार शिवाजी की वीरता और ताकत के सामने नहीं टिक सकता था। अंत में क्रूर अफजल खान पर तलाश समाप्त हुई।
अफजल खान बीजापुर में प्रथम श्रेणी का सेनापति था और वह मुगलों के खिलाफ युद्ध लड़ चुका था। उसके पास विशाल सेना थी और फिर उसे शिवाजी के साथ युद्ध करने का आदेश बीजापुर की बेगम बड़ी साहिबा द्वारा प्राप्त हुआ। यह कार्य सरल नहीं था। इसलिए वह मस्जिद में दुआ के लिए गया।
शिवाजी द ग्रांड रेबेल में डेनिस किनकैड इस घटना के विषय में लिखते हैं कि एक मुस्लिम इतिहासकार के अनुसार अफजल खान के सामने मौत का पैगाम आ गया था। रिवाज के अनुसार जब अफजल मस्जिद में दुआ मांगने गया तो दुआ करने वाले मौलाना ने उसे इस सच्चाई के बारे में बता दिया। जब अफजल खान को सच्चाई के बारे में पता चला तो वह अपने महल आया और उसने अपने हरम की सभी 64 महिलाओं को बुलाया और उसने उन सभी से कहा कि वह तालाब में कूद जाएं, जिससे वह किसी और के साथ निकाह न कर सकें।
63 महिलाओं ने कुछ भी नहीं कहा और उन्होंने तालाब में कूदकर अपनी जीवनलीला समाप्त कर दी मगर एक महिला का दिल इतना मजबूत नहीं था तो उसने डूबने से इंकार किया और भागने का प्रयास किया। मगर उस अभागी को यह नहीं पता होगा कि हरम में आना तो निश्चित होता था, मगर वहां से बाहर केवल अर्थी ही जाती थी। उसके टुकड़े-टुकड़े कर दिए गए।
डेनिस किनकैड ब्रिटिश शासनकाल के दौरान 1905 से 1937 तक एक अधिकारी थे, और उनकी रुचि भारतीय इतिहास में थी। उन्होंने छत्रपति शिवाजी पर कार्य करना इसलिए चुना था क्योंकि वह शिवाजी की जीवन गाथा से बहुत प्रभावित थे। वह ऐसी शक्ति के विषय में लिखना चाहते थे जिसने भारत में मुग़ल साम्राज्य को नष्ट किया और साथ ही अंग्रेजों एवं फ्रांसीसी शक्तियों दोनों के साथ एक साथ लोहा लिया।
वह लिखते हैं कि यह पुस्तक मराठा राज्य के संस्थापक का अध्ययन है, जिनकी स्मृति मात्र ने ही आधुनिक हिन्दू राष्ट्रवाद के उदय को प्रेरित किया है। डेनिस किनकैड उस समय जो अपनी पुस्तक में लिखते हैं कि उन अभागी 63 कब्रें तो एक स्थान पर हैं, मगर 64वीं कब्र कुछ दूर पर है, जिसने इंकार कर दिया था। प्रश्न यह भी उठता है कि जो प्रमाणों में है और जो डेनिस किनकैड जैसे लेखकों ने देखा उन्हें आज तक कथित फेमिनिज्म का विमर्श गढने वालों ने क्यों नहीं देखा क्योंकि यह मामला पूरी तरह से महिलाओं का मामला है। यह उनकी उस हत्या का मामला है जो केवल इसलिए कर दी गयी क्योंकि वह किसी एक आदमी के शरीर की प्यास बुझाने के लिए थीं और उसके अतिरिक्त उनका कोई कार्य या स्थान था ही नहीं। इसलिए उन्हें केवल इसलिए खुद ही मरने के लिए मजबूर कर दिया गया जिससे वह अपनी ज़िन्दगी में दूसरा निकाह न कर सकें। वह परदे में रहें और परदे में ही मर जाएं। उनका अस्तित्व ही समाप्त कर दिया जाए, और विमर्श में वह उसी प्रकार गायब हैं, जैसे अफगानिस्तान में आज दिनोंदिन सार्वजनिक स्थानों से गायब होती महिलाएं। उनके जीवन का अधिकार आज तक विमर्श का मुद्दा नहीं बन सका है।
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