टी.टी. इंडस्ट्रीज। हममें से शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा, जिसने टी.टी. कंपनी के वस्त्र न पहने हों। अधिकतर लोग टी.टी. को अंडर गारमेंट्स (अधोवस्त्र) के लिए जानते हैं,
भारत में वस्त्र निर्माण करने वाली एक बड़ी कंपनी है-टी.टी. इंडस्ट्रीज। हममें से शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा, जिसने टी.टी. कंपनी के वस्त्र न पहने हों। अधिकतर लोग टी.टी. को अंडर गारमेंट्स (अधोवस्त्र) के लिए जानते हैं, लेकिन यह कंपनी पुरुषों, महिलाओं और बच्चों के लिए हर प्रकार के परिधान तैयार करती है। गर्मी के लिए कमीज, टीशर्ट, हाफ पैंट आदि।
सर्दी के लिए स्वेटर, जैकेट, कम्बल और अन्य वस्त्रों का निर्माण करती है। कंपनी के संस्थापक डॉ. रिखबचंद जैन बताते हैं, ‘‘इस समय कंपनी 625 प्रकार के वस्त्रों का निर्माण कर 55 देशों में निर्यात कर रही है।’’ कंपनी की उत्पादन इकाइयां कोलकाता, दिल्ली, त्रिपुरा और गजरौला में हैं। इन सभी इकाइयों में लगभग 2,000 लोग काम करते हैं। कार्यालयीन कार्यों के लिए 100 कर्मचारी अलग से हैं। डॉ. जैन कहते हैं, ‘‘एक समय भ्रष्टाचार का ऐसा बोलबाला था कि कारोबार करने में बहुत ही मुश्किल होती थी। एक बहुत ही कटु अनुभव है। मैंने लघु उद्योग का लाइसेंस पाने के लिए आवेदन किया। इसके बाद मुझसे घूस मांगी जाने लगी, लेकिन मैंने घूस देने से मना कर दिया। इस कारण 20 वर्ष तक मुझे लाइसेंस नहीं मिला।’’
‘‘एक समय भ्रष्टाचार का ऐसा बोलबाला था कि कारोबार करने में बहुत ही मुश्किल होती थी। एक बहुत ही कटु अनुभव है। मैंने लघु उद्योग का लाइसेंस पाने के लिए आवेदन किया। इसके बाद मुझसे घूस मांगी जाने लगी, लेकिन मैंने घूस देने से मना कर दिया। इस कारण 20 वर्ष तक मुझे लाइसेंस नहीं मिला।’’ -डॉ. जैन
कंपनी यहां तक पहुंची है, उसके पीछे दशकों की मेहनत है। डॉ. जैन कहते हैं कि कोई भी व्यापार कड़ी मेहनत मांगता है। इसके साथ ही ईमानदारी बहुत ही आवश्यक है, क्योंकि इसके बिना कारोबारी लंबे समय तक बाजार में टिका नहीं रह सकता। कंपनी में कार्य करने वाले हर व्यक्ति को उसका हिस्सा मिलना चाहिए। यानी कर्मचारी को सही वेतन, उसके भविष्य की चिंता करते हुए पीएफ में सहयोग करना ही चाहिए। टी.टी. कंपनी ने उपरोक्त तीनों मंत्रों को माना और आज उसी का परिणाम है कि कंपनी विश्वभर में फैल चुकी है।
कोरोना से पहले कंपनी का वार्षिक कारोबार 800 करोड़ रु. था। इसके बाद कंपनी का कामकाज कुछ बाधित हुआ। यूक्रेन युद्ध के कारण भी कंपनी का कारोबार मंदा हुआ है। कई देशों में उत्पादों का निर्यात नहीं हो पा रहा है। इस कारण इस समय सालाना कारोबार 300 करोड़ रु. है। अपने शुरुआती दिनों को याद करते हुए डॉ. जैन बताते हैं, ‘‘1947 में मेरे बड़े भाई भंवरलाल जी ने कोलकाता में कपड़ों का काम शुरू किया था। 1960 में राजस्थान से हाई स्कूल पास करके मैं कोलकाता पढ़ने गया। एम.बी.ए. करने के बाद नौकरी करने का दबाव डाला गया, लेकिन चूंकि व्यवसाय रक्त में ही समाया हुआ है। इसलिए मैंने भी व्यवसाय करने का निर्णय लिया। 1970 में दिल्ली आकर टी.टी. इंडस्ट्रीज की स्थापना की और गाजियाबाद में फैक्ट्री लगाई।’’
इसके बाद उन्होंने कई उतार-चढ़ाव देखे। सबसे बड़ी समस्या भ्रष्टाचार है। डॉ. जैन कहते हैं, ‘‘एक समय भ्रष्टाचार का ऐसा बोलबाला था कि कारोबार करने में बहुत ही मुश्किल होती थी। एक बहुत ही कटु अनुभव है। मैंने लघु उद्योग का लाइसेंस पाने के लिए आवेदन किया। इसके बाद मुझसे घूस मांगी जाने लगी, लेकिन मैंने घूस देने से मना कर दिया। इस कारण 20 वर्ष तक मुझे लाइसेंस नहीं मिला।’’ डॉ. जैन जितने अच्छे कारोबारी हैं, उतने ही अच्छे लेखक और समाजसेवी भी हैं। इन्होंने अनेक पुस्तकों की रचना की है। वे अनेक संस्थाओं के संस्थापक और संचालक भी हैं। इस कारण इन्हें ‘गोल्डन मैन आफ होजरी इंडस्ट्री’, ‘राजस्थान गौरव’, ‘राजस्थान विभूषण’ जैसे अनेक सम्मान मिले हैं।
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