हमास के प्रति सहानुभूति रखने वाले दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर अचिन वनाइक के आईआईटी बॉम्बे में प्रस्तावित लेक्चर को निरस्त कर दिया गया है। जानकारी के अनुसार आईआईटी के विद्यार्थियों के एक ग्रुप ने इस आयोजन का विरोध किया था। संस्थान की ओर से इस कार्यक्रम की अनुमति नहीं दी गयी है। आयोजन सोमवार को प्रस्तावित था और उसे आईआईटी अधिकारियों द्वारा मंगलवार तक के लिए टाल दिया गया था। परन्तु बाद में आयोजकों के पास इस आयोजन के रद्द होने का ईमेल आया।
आयोजन “इजरायल-फिलिस्तीन: एतिहासिक परिप्रेक्ष्य” के नाम से किया जाने वाला था। शायद यह आयोजन उसी विवाद के चलते रद्द कर दिया गया है जो हाल ही में इन्हीं प्रोफ़ेसर द्वारा ओपी जिंदल यूनिवर्सिटी में इसी विषय पर हमास के हमले का समर्थन करने को लेकर आरम्भ हुआ था। आईआईटी के मानविकी एवं सामाजिक विज्ञान विभाग द्वारा इस कार्यक्रम का आयोजन करना प्रस्तावित था, जिसके निरस्त करने की सूचना उन्हें ईमेल के माध्यम से भेजी गयी, जिसका स्क्रीनशॉट सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है। इसमें लिखा है कि, “कुछ अनापेक्षित परिस्थितियों के कारण, हमें प्रोफ़ेसर वनाइक का लेक्चर स्थगित करना पड़ रहा है। किसी भी प्रकार की असुविधा के लिए हमें खेद है!”
हालांकि इसे लेकर मानविकी के विद्यार्थियों का कहना है कि उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन हो रहा है। वहीं इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार मानविकी के विद्यार्थियों का कहना है कि उनके कार्यों में सरकार के नीतिगत निर्णयों की आलोचना करना सम्मिलित रहता है। विद्यार्थियों ने एक पत्र लिखा है, जिसमें कहा गया है कि “हम भारतीय समाज की कई कमियों जैसे जाति, वर्ग और लिंग आधारित भेदभाव पर बात करते हैं, जिन्हें अभी समझा जाना आवश्यक है और साथ ही हम अंतर्राष्ट्रीय संबंधों पर भी बात करते हैं, जो संस्थान में कुछ लोगों को आलोचना लग सकती है वह हमारे लिए हमारे शोध एवं अकादमिक प्रक्रियाओं का हिस्सा हो सकती है।” उनका कहना है कि विभाग के स्थानों के प्रयोग को उन सभी फिल्मों, पुस्तक चर्चा आदि के लिए प्रतिबंधित कर दिया है जो इतिहास, समाजशास्त्र, साहित्य या उस दर्शन की बात करती हैं, जो सरकार की आलोचना के रूप में देखी जाती है।
वहीं सोशल मीडिया पर इसे लेकर एक बार फिर से यूजर्स में बहस छिड़ी हुई है कि जहां ओपी जिंदल यूनिवर्सिटी में इस प्रकार देशविरोधी कट्टरपंथी मार्क्सवादी को आमंत्रित किया जा सकता है, क्योंकि वह निजी यूनिवर्सिटी है, मगर आईआईटी जैसे सरकारी संस्थानों में सरकार विरोधी आयोजन होना, क्योंकि ओपी जिंदल यूनिवर्सिटी में भारत सरकार एवं सेना के कई क़दमों की भी आलोचना प्रोफ़ेसर अचिन द्वारा की गयी थी, बहुत ही खतरनाक है और हैरान करने वाला है।
अभी तक ओपी जिंदल में प्रोफ़ेसर अचिन द्वारा दिए गए वीडियो वायरल हैं, जिनमें वह खुलकर हिंसा आदि की अवधारणा पर बात कर रहे हैं। वह खुलकर आत्मघाती हमलावर को यह कहते हुए निर्दोष सा प्रमाणित कर रहे हैं कि दरअसल वह मारना नहीं चाहता, बस वह खुद मरना चाहता है। यह भी ध्यान दिया जाए कि उस आयोजन के बाद कथित रूप से फिलिस्तीन के पक्ष में एक कैंडल मार्च भी निकाला गया था और उसमें भी एक छात्रा को कश्मीर आदि पर बात करने की जरूरत पर जोर देते हुए देखा जा गया था!
आईआईटी बी फॉर भारत नामक संगठन ने 7 नवम्बर को x पर एक पोस्ट किया था, जिसमें आईआईटी बॉम्बे की प्रोफ़ेसर शर्मिष्ठा साहा (मानविकी एवं सामाजिक विज्ञान विभाग) ने डॉक्यूमेंट्री की आड़ में कट्टरपंथी वामपंथी सुधनव देशपांडे को फिलीस्तीनी उग्रवादियों जकारिया जुबैदी, घासन कानाफनी की प्रशंसा करने के लिए आमंत्रित किया था।
@iitbombay Prof Sharmishtha Saha(Dept HSS)invited radical leftist Sudhanv Deshpande 2 eulogize Palestinian militants Zakaria Zubeidi, Ghassan Kanafani in the guise of the documentary when @VPIndia visited @iitbombay & cautioned students 2 not to fall prey 2 anti-Bharat narrative.… pic.twitter.com/a5HkgJqDdq
— IIT B for Bharat (@IITBforBharat) November 7, 2023
सहयाद्री राइट्स फोरम की ओर से X पर पोस्ट किया गया कि आईआईटी के विद्यार्थियों ने बॉम्बे पुलिस के पास शर्मिष्ठा साहा के विरुद्ध हमास के एजेंडा को फैलाने के लिए शिकायत दर्ज कराई थी
Students of #IITB hav written to #MumbaiPolice against Prof Sarmishtha Saha for inviting and propagating #HAMAS by Sudhanva Deshpande on #IITB campus.
We expect @MumbaiPolice to file FIR u/s. 121, 121A, 511, 120B, 505(2) & 34 immediately against Prof Saha & Ors. pic.twitter.com/yxABdsNYcj— Sahyadri Rights Forum (@ForumSahyadri) November 8, 2023
इस आयोजन के रद्द होने के बाद जहां मानविकी और सामाजिक विज्ञान के विद्यार्थियों ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रश्न एक बार फिर उठाया है तो वहीं सोशल मीडिया पर लोग पूछ रहे हैं कि सरकारी संस्थानों में ऐसी वार्ता का आयोजन कितना खतरनाक हो सकता है!
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