ज्ञान डेयरी के 30,000 संग्रह केंद्र, 180 डिस्ट्रीब्यूटर, 50 दुग्ध केंद्र हैं। 1.65 लाख किसान जुड़े हैं कंपनी से
लगभग दो दशक पहले तक पूर्वी उत्तर प्रदेश में डेयरी का बाजार खाली पड़ा था। दिल्ली, एनसीआर और पंजाब को ही डेयरी का सशक्त बाजार माना जाता था। ऐसी स्थिति में जय अग्रवाल ने लखनऊ में बंद पड़े ज्ञान डेयरी प्रोजेक्ट को खरीदा और दूध का कारोबार शुरू किया। आज उनकी कंपनी का वार्षिक कारोबार 1,000 करोड़ रुपये है। कंपनी में प्रत्यक्ष 1800 और अप्रत्यक्ष रूप से 2500 कर्मचारी हैं। हाल ही उन्होंने गोरखपुर में 5 एकड़ में रोजाना 5 लाख लीटर क्षमता वाली दूध इकाई शुरू की है। इसका उद्घाटन मुख्यमंत्री योगी आदित्यानाथ ने किया था।
2001 में पुणे से इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करके जय अग्रवाल अपने पैतृक जिले फर्रुखाबाद आए। यहां उनका तंबाकू का व्यवसाय है, जिसे पिता संभालते हैं। यहां जय को अपनी उपयोगिता नहीं दिखी। 2005 में उन्होंने बंद पड़ी ज्ञान डेयरी को खरीद कर रियल एस्टेट में व्यवसाय करने का फैसला किया। बाद में मन बदला और डेयरी शुरू करने का विचार आया। पूर्वी उत्तर प्रदेश में तब न कोई डेयरी प्लांट था और न ही इसका कोई इको-सिस्टम। कारण, अतीत में कुछ लोगों ने डेयरी का काम किया, पर किसानों को ठीक से भुगतान नहीं किया। इसलिए किसानों को डेयरी कंपनियों पर विश्वास नहीं था। जय के सामने ढेरों चुनौतियां थीं।
2014 तक कंपनी का कारोबार 500 करोड़ रुपये और 2019-20 में 1,000 करोड़ रुपये हो गया। इसके बाद कोरोना आ गया तो बाजार में दूध-दही की मांग कम हो गई। कंपनी को कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, पर मैंने न तो कर्मचारियों की छंटनी की और न वेतन में कटौती। कर्मचारियों ने भी संक्रमण काल में घर-घर दूध पहुंचाया। इस बीच, कंपनी ने किसानों से लगातार दूध खरीदा और उनका भुगतान भी किया। आज उनकी कंपनी डेयरी क्षेत्र में उत्तर प्रदेश की शीर्ष 5 कंपनियों में से एक है।
स्थानीय स्तर पर भी कुछ उपलब्ध नहीं था। कोई मार्गदर्शक भी नहीं था। फिर भी वे दृढ़ इरादे के साथ 2007 में डेयरी कारोबार में उतरे। पहले वर्ष ही उन्हें अच्छा लाभ हुआ। कुछ समय बाद छोटे भाई भी उनके साथ आ गए। पहले वे बिचौलिये के माध्यम से दूध लेते थे, लेकिन 2010 से सीधे किसानों से दूध खरीदने का निर्णय लिया। जय अग्रवाल बताते हैं, ‘‘कई लोगों ने यह कह कर हतोत्साहित किया कि किसानों से दूध खरीदने पर बहुत समस्याएं आएंगी। किसान बहुत परेशान करेंगे। लेकिन पिताजी का कहना था कि फर्रुखाबाद जनपद के किसानों से दूध खरीदना चाहिए। बहरहाल, यह प्रयोग बहुत सफल रहा। बिचौलियों के हटने से कंपनी और किसानों को भी लाभ हुआ।’’ हालांकि अभी तक कंपनी किसानों से दूध खरीद कर पाउडर और घी ही बना रही थी, लेकिन 2011 से कंपनी ने दूध पैकेट में बेचने का फैसला किया।
जय कहते हैं कि पूर्वी उत्तर प्रदेश के बाजार में काफी संभावनाएं थीं, इसलिए हमें जल्दी सफलता मिली। 2014 तक कंपनी का कारोबार 500 करोड़ रुपये और 2019-20 में 1,000 करोड़ रुपये हो गया। इसके बाद कोरोना आ गया तो बाजार में दूध-दही की मांग कम हो गई। कंपनी को कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, पर मैंने न तो कर्मचारियों की छंटनी की और न वेतन में कटौती। कर्मचारियों ने भी संक्रमण काल में घर-घर दूध पहुंचाया। इस बीच, कंपनी ने किसानों से लगातार दूध खरीदा और उनका भुगतान भी किया। आज उनकी कंपनी डेयरी क्षेत्र में उत्तर प्रदेश की शीर्ष 5 कंपनियों में से एक है। वे नई तकनीक अपना रहे हैं और इसी कड़ी में उन्होंने लखनऊ में विश्व का सबसे बड़ा स्वचालित खोया उत्पादन इकाई स्थापित किया है।
टिप्पणियाँ