दुनिया के 500 शहरों में हमारे दफ्तर हैं। 2,558 फ्रेंचाइची आफिस हैं। आज यह कंपनी बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज में भी सूचीबद्ध है।’’
भारत में विविध वित्तीय सेवाएं देने वाली कंपनियों में से एक है- एसएमसी ग्लोबल सिक्योरिटीज लिमिटेड। इसके अनेक काम हैं, लेकिन मुख्य रूप से यह कंपनी शेयर बाजार के लिए जानी जाती है। इसके संस्थापक हैं दो सहपाठी-सुभाष चंद अग्रवाल और महेश चंद गुप्ता। इन्हीं दोनों के नाम पर इस कंपनी का नामकरण हुआ है-एसएमसी यानी सुभाष-महेश कंपनी।
दोनों ने 1976 में स्नातक की पढ़ाई पूरी की। फिर 1980 में दोनों ने एक साथ चार्टर्ड अकाउंटेंट की डिग्री ली और चार्टर्ड अकाउंटेंसी का काम शुरू कर दिया। इसमें कमाई अच्छी होने के कारण दोनों का मनोबल बढ़ा और वे शेयर बाजार में उतर गए। 1991 में एक करोड़ रु. में दिल्ली स्टॉक एक्सचेंज की सदस्यता ली। सुभाष चंद अग्रवाल बताते हैं, ‘‘उन दिनों हमारे पास इतने पैसे नहीं थे। इसके बावजूद जोखिम उठाया। बाद में बड़ी कठिनाई होने लगी। वह ऐसा दौर था, जब शेयर बाजार में कंप्यूटर का प्रवेश नहीं हुआ था। स्टॉक एक्सचेंज के अंदर खड़े होकर बोली लगाई जाती थी। इससे कई तरह की समस्याएं आती थीं।’’
‘‘परिवर्तन का यह काल 2001 तक रहा। इसके बाद काम पूरी तरह आनलाइन हो गया। इससे काम आसान हो गया। सब कुछ दफ्तर में बैठे-बैठे होने लगा। इसी बीच कंपनी को बड़ा झटका लगा। 2000 में कोलकाता स्टॉक एक्सचेंज में कुछ गड़बड़ी हुई और हमारे ग्राहकों का पैसा फंस गया। हालांकि नियमानुसार इससे कंपनी का कोई लेना-देना नहीं था। इसके बावजूद हमने निर्णय लिया कि ग्राहकों का नुकसान नहीं होने दिया जाएगा और धीरे-धीरे सभी का पैसा वापस कर दिया। इससे ग्राहकों का ऐसा भरोसा जमा कि कंपनी चल पड़ी। -सुभाष चंद अग्रवाल
महेश चंद कहते हैं, ‘‘दिल्ली स्टॉक एक्सचेंज के अंदर सैकड़ों लोग खड़े होकर लेन-देन के लिए चिल्लाते थे। जिसकी जितनी ऊंची आवाज होती थी, उसकी बोली सुनी जाती थी। गर्मियों में बड़ी दिक्कत होती थी। कई बार निराशा होती थी कि अच्छा-भला काम छोड़कर यह क्या कर लिया, लेकिन कहते हैं कि मेहनत कभी बेकार नहीं जाती। हम दोनों के साथ भी ऐसा ही हुआ। मेहनत करते रहे और सफलता भी मिलती रही। 1995 में नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) की भी सदस्यता मिल गई।’’
इसके बाद काम बढ़ने लगा। 1995-96 के दौर में कुछ काम कंप्यूटर से तो कुछ हाथ से होने लगा। सुभाष चंद अग्रवाल बताते हैं, ‘‘परिवर्तन का यह काल 2001 तक रहा। इसके बाद काम पूरी तरह आनलाइन हो गया। इससे काम आसान हो गया। सब कुछ दफ्तर में बैठे-बैठे होने लगा। इसी बीच कंपनी को बड़ा झटका लगा। 2000 में कोलकाता स्टॉक एक्सचेंज में कुछ गड़बड़ी हुई और हमारे ग्राहकों का पैसा फंस गया। हालांकि नियमानुसार इससे कंपनी का कोई लेना-देना नहीं था। इसके बावजूद हमने निर्णय लिया कि ग्राहकों का नुकसान नहीं होने दिया जाएगा और धीरे-धीरे सभी का पैसा वापस कर दिया। इससे ग्राहकों का ऐसा भरोसा जमा कि कंपनी चल पड़ी। आज कंपनी वैश्विक हो चुकी है। इसमें प्रत्यक्ष रूप से 4,050 लोग काम करते हैं और अप्रत्यक्ष रूप से लगभग 15,000 लोगों को रोजगार मिल रहा है। दुनिया के 500 शहरों में हमारे दफ्तर हैं। 2,558 फ्रेंचाइची आफिस हैं। आज यह कंपनी बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज में भी सूचीबद्ध है।’’
सुभाष चंद अग्रवाल और महेश चंद गुप्ता जितने सफल कारोबारी हैं, उतने ही सामाजिक भी हैं। दोनों अनेक सामाजिक संगठनों से जुड़े हैं और उनकी सहायता भी करते हैं। दो साथियों की इस संघर्षमय कहानी से यही शिक्षा मिलती है कि मेहनत करिए, सफलता अपने आप आएगी। ल्ल
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