लक्ष्मी का प्राकट्य सागर से भी है और अग्नि और पाताल से भी। अगर इसे व्यावहारिक संदर्भ में देखा जाए, तो इसका अर्थ यही होता है कि लक्ष्मी जीवंत प्रयासों से प्राप्त होती है, उद्यम से प्राप्त होती है, ज्ञान और श्रम से प्राप्त होती है। भाग्यवश मिला धन दूसरों पर आश्रित होता है और संभवत: ऐसे ही धन के लिए कहा गया है कि लक्ष्मी चंचला होती है।
ज्योति पर्व तमस से प्रकाश की ओर गमन का पर्व है। तमस सिर्फ वह नहीं होता, जिसे हम अंधकार के रूप में जानते हैं। असत्य भी तमस है, अभाव भी तमस है, अज्ञान भी तमस है और अशक्तता भी। ज्योति पर्व हमें हर तरह के तमस से बाहर निकलने का संदेश देता है। यह शक्ति का भी पर्व है, लक्ष्मी के आह्वान का भी, सरस्वती की कृपा का भी और बाधाओं से पार पाने के संकल्प का भी।
रोचक बात यह है कि लक्ष्मी का प्राकट्य सागर से भी है और अग्नि और पाताल से भी। अगर इसे व्यावहारिक संदर्भ में देखा जाए, तो इसका अर्थ यही होता है कि लक्ष्मी जीवंत प्रयासों से प्राप्त होती है, उद्यम से प्राप्त होती है, ज्ञान और श्रम से प्राप्त होती है। भाग्यवश मिला धन दूसरों पर आश्रित होता है और संभवत: ऐसे ही धन के लिए कहा गया है कि लक्ष्मी चंचला होती है।
मानवदेहधारी भगवान श्रीराम ने लक्ष्मी स्वरूपा माता सीता को अग्नि की संरक्षा में सौंपा था और फिर अग्नि से ही उनका आह्वान किया था। अग्नि से लक्ष्मी आह्वान करने का व्यावहारिक अर्थ यही है कि उद्यम से धन अर्जित किया जाए। यही कारण है कि मानव के लिए लक्ष्मी साधना श्रम के मार्ग से होकर जाती है।
निश्चित रूप से ज्ञान का भी उसमें योगदान होता है और व्यक्ति के अपने संस्कारों का भी। संस्कार युक्त समझदार व्यक्ति जब श्रम और साहस का मार्ग अपनाते हैं, तो उन्हें लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण तौर पर उस कृपा के लिए वह किसी और पर आश्रित नहीं होते। उनका अपना श्रम ही उनकी लक्ष्मी का स्रोत होता है और वह समाज के लिए भी एक अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत करते हैं।
पाञ्चजन्य की इस विशेष प्रस्तुति में हमने कुछ ऐसे चित्र प्रस्तुत करने का प्रयास किया है, जो साहस, उद्यम, उद्यमिता, ज्ञान और श्रम के सहयोग से पराश्रित हुए बिना लक्ष्मी अर्जित करने की दिशा दिखाते हैं। ऐसे लोग और भी हैं, आपके इर्द-गिर्द भी हैं और उनमें से कुछ लोगों को आप जानते भी होंगे।
इस अंक में इनमें से कुछ को प्रस्तुत करने का उद्देश्य यही है कि हम उनके जीवन से सफलता की प्रेरणा को समग्र रूप में ग्रहण कर सकें और अपने उस श्रम और साहस का आह्वान कर सकें, जीवन को अभावों के तमस से वैभव के प्रकाश की ओर ले जाने में समर्थ हों। तमसो मा ज्योतिर्गमय।
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