वैश्विक संस्थाएं और विनाशकारी ‘खेल’

जब सारे विश्व को एक स्वर में यह कहने के लिए एकजुट करने की आवश्यकता है कि आतंकवाद को कहीं से कोई समर्थन नहीं दिया जाएगा, तब कथित विश्व मंच के नेता जिहादियों की भाषा में बात कर रहे हैं।

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हितेश शंकर

आतंकवाद का खुलकर समर्थन करने की दबी-छिपी प्रवृत्ति को अब खुली छूट और मान्यता मिलने वाली बात है। क्या गुटेरेस को अनुमान है कि उनकी नासमझी ने विश्व के लिए राजनयिक चुनौती किस सीमा तक बढ़ा दी है?

यह विडंबना है कि जब सारे विश्व को एक स्वर में यह कहने के लिए एकजुट करने की आवश्यकता है कि आतंकवाद को कहीं से कोई समर्थन नहीं दिया जाएगा, तब कथित विश्व मंच के नेता जिहादियों की भाषा में बात कर रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस आज तक कोई भी युद्ध, तनाव या टकराव रोक तो नहीं सके हैं, लेकिन उन्होंने यह कह कर आग में घी जरूर डाल दिया है कि ‘यह पहचानना महत्वपूर्ण है कि हमास द्वारा किए गए हमले शून्य में नहीं हुए’, क्योंकि फिलिस्तीनी ‘56 वर्ष के दम घुटने वाले कब्जे के अधीन हैं।’ इससे एक विश्व संस्था के रूप में संयुक्त राष्ट्र की उपयोगिता संदिग्ध हो गई है। गुटेरेस जैसे व्यक्ति के संयुक्त राष्ट्र संघ का प्रमुख बने रहने से इसकी अवशेषप्राय: गरिमा भी समाप्त हो जाएगी।

एक अपाहिज संस्था के शीर्ष पदाधिकारी भी अगर समझ की दृष्टि से अपाहिज हों, तो ऐसी संस्था विश्व परिस्थिति के लिए पूर्णत: अप्रासंगिक सिद्ध हो जाती है। संयुक्त राष्ट्र पहले ही उधार का जीवन जी रहा है और अब वह यहां भी दीवालिया होता नजर आ रहा है। वास्तव में 21वीं सदी को अलग और सार्थक वैश्विक संगठन की आवश्यकता है। गुटेरेस का प्रकरण इस दिशा में आगे बढ़ने का एक ठोस आधार और अवसर होना चाहिए। वास्तव में अधिकांश विश्व मंच सिर्फ सैर-सपाटे और राजनीति के अड्डे बन चुके हैं, लगभग सभी का उद्देश्य संदिग्ध हो चुका है और कोई भी किसी के भी प्रति जिम्मेदार नहीं है।

उदाहरण के लिए, कोविड महामारी के दौरान संयुक्त राष्ट्र संघ ही नहीं, विश्व स्वास्थ्य संगठन भी बुरी तरह विफल रहा है। जिसे विश्व स्वास्थ्य के लिए जिम्मेदार माना जाता है, वह इस महामारी के दौरान लगातार चीन का बचाव करता रहा। इसके मुखिया ट्रेडोस ए. गेब्रेयेसस ने तो कोरोना के मनुष्य से मनुष्य में नहीं फैलने जैसा बयान भी दिया था, जिसे पूरी दुनिया ने देखा है।

रूस-यूक्रेन तो छोड़िए, मध्य पूर्व के सभी युद्धों में संयुक्त राष्ट्र विफल रहा है। लेकिन हमास-इस्राएल युद्ध की स्थिति को गुटेरेस के बयान ने व्यापक संदेहों की ओर खतरनाक ढंग से धकेल दिया है। जो खतरनाक वायरस का राजनीतिक स्वार्थ की दृष्टि से बचाव कर सकता है, वह भविष्य में जैविक शस्त्रों का भी बचाव कर सकता है। जो निर्दोष नागरिकों पर हमास के भयानक आतंकवादी हमले को उचित ठहरा सकता है, वह पाकिस्तानी इस्लामी आतंकवादियों का भी बचाव कर सकता है। ऐसी संस्था तो विश्व शांति और मानवता के लिए एक अभिशाप है।

अरब राजनयिकों के समूह ने गुटेरेस के प्रति जिस प्रकार समर्थन व्यक्त किया है, उसे ध्रुवीकरण तीव्र होने की सामान्य घटना के रूप में नहीं देखा जा सकता है। यह आतंकवाद का खुलकर समर्थन करने की दबी-छिपी प्रवृत्ति को अब खुली छूट और मान्यता मिलने वाली बात है। क्या गुटेरेस को अनुमान है कि उनकी नासमझी ने विश्व के लिए राजनयिक चुनौती किस सीमा तक बढ़ा दी है? यह बिगड़े राजनयिक हालात किसी भी क्षण तनाव पैदा कराने वाले सिद्ध हो सकते हैं।

क्या एंटोनियो गुटेरेस को अनुमान है कि युद्ध, आतंकवाद, आम नागरिकों का नरसंहार आदि क्या होता है? क्या 56 वर्ष की बात करने वाले गुटेरेस जानते हैं कि हमास क्या है? क्या अब संयुक्त राष्ट्र संघ ऐसे भ्रष्ट निजी सैन्य गिरोहों की सत्ता को मान्यता देने के प्रति गंभीर है? अगर गुटेरेस इससे भी अंजान हैं, तो यह और बड़ी विडंबना है, क्योंकि खुद हमास ने इस तथ्य को छिपाने का कभी प्रयास नहीं किया है कि इस्माइल हनीयेह सहित उसके अन्य शीर्ष नेता हमेशा कतर के शानदार पांच सितारा होटलों में रहते हैं और वे न फिलीस्तीन के नेता हैं, न गाजा पट्टी के।

हमास को किसी ईमानदारी का या नेता होने का दिखावा करने की भी परवाह नहीं है। हमास ने जनता के नाम पर मिले दान के पैसों का इस्तेमाल अपने ऐशोआराम और आतंकवाद का सामान जुटाने में किया है। क्या एंटोनियो गुटेरेस को अनुमान है कि उन्होंने क्या किया है? उन्होंने न केवल आम नागरिकों की हत्याओं को उचित ठहराया है, बल्कि नागरिकों का प्रयोग हथियार के रूप में करने को भी जायज ठहराया है।

इसके अलावा, आतंकवाद के पक्ष में एक उल्लेखनीय बयान उपलब्ध करा कर उन्होंने इसे कभी न खत्म होने वाली कहानी में भी बदल दिया है। गुटेरेस ने अपना बयान वापस नहीं लिया है। मात्र यह कहा है, ‘मेरे कहने का मतलब ये नहीं था कि मैं हमास के हमलों को सही ठहरा रहा हूं..।’ इससे नुकसान की भरपाई नहीं होती, बल्कि यह विश्व शांति के लिए बड़ा खतरा और संघर्षों के एक नए दौर की शुरुआत है।

अरब राजनयिकों के समूह ने गुटेरेस के प्रति जिस प्रकार समर्थन व्यक्त किया है, उसे ध्रुवीकरण तीव्र होने की सामान्य घटना के रूप में नहीं देखा जा सकता है। यह आतंकवाद का खुलकर समर्थन करने की दबी-छिपी प्रवृत्ति को अब खुली छूट और मान्यता मिलने वाली बात है। क्या गुटेरेस को अनुमान है कि उनकी नासमझी ने विश्व के लिए राजनयिक चुनौती किस सीमा तक बढ़ा दी है? यह बिगड़े राजनयिक हालात किसी भी क्षण तनाव पैदा कराने वाले सिद्ध हो सकते हैं।
@hiteshshankar

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