ब्रिटेन से एक बड़ी दिलचस्प खबर मिली है कि भारत के सेकुलरों के चहीते मैसूर के टीपू को कोई कोड़ी के भाव नहीं पूछ रहा। इस टीपू की एक तलवार की इंग्लैंड में नीलामी बोली लगाई गई थी लेकिन एक भी खरीदार सामने नहीं आया। नीलामी कंपनी की करोड़ों रुपए कमाने की लालसा धरी की धरी रह गई, टीपू के नाम पर बेइज्जत होना पड़ा सो अलग।
ब्रिटेन की एक बड़ी प्रसिद्ध नीलामी कंपनी ‘बेशकीमती’ चीजों को खरीदकर उनको जनता के बीच नीलाम करती है। इसी ने लंदन में टीपू की तलवार भी नीलामी पर रखी थी। बोली लगाने की मांग की गई लेकिन एक भी खरीदार ने टीपू के उस शस्त्र में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है। शुरुआती बोली से आगे किसी ने आवाज नहीं लगाई। कंपनी को तो उम्मीद थी कि इस तलवार से उसे 15 से 20 करोड़ रुपए तो यूं ही मिल जाएंगे, लेकिन ऐसी बेइज्जती होगी, इसकी कल्पना नहीं थी।
कहते हैं कि 1805 में कार्नवालिस फिर से भारत में बुलाया गया और पद पर बैठाया गया था। परन्तु पद पर रहते हुए अभी दो महीने ही हुए थे कि मर गया। इसलिए भी तलवार अशुभ मानी गई है। इधर इस्राएल हमास को बुरी तरह रौंद रहा है, पैसे की किल्लत चल रही है, ब्याज की दरें बढ़ गई हैं इसलिए किसी को नहीं लगा कि इस अशुभ तलवार पर पैसा लगाया जाए।
अंग्रेजों के राज में मैसूर का राजा रहा बर्बर टीपू ने मैसूर में अंग्रेजों से लड़ाई तो लड़ी थी लेकिन था वह भी मजहबी उन्मादी। उसने बड़ी संख्या में हिन्दुओं की नृशंस हत्या की थी। इतिहास बताता है कि उसे हिन्दुओं को मारने में विशेष आनंद आता था। उसी बेरहम हत्यारे शासक की तलवार आज धूल फांक रही है तो इसमें कोई आश्चय्र नहीं है।
इस आतताई टीपू की तलवार की नीलामी करने वाली कंपनी क्रिस्टी के अधिकारी इस स्थिति को लेकर खुद भौंचक्के रह गए। नीलामी बोली की शुरुआत के लिए तलवार का जो बेस मूल्य रखा गया था, बात उससे आगे बढ़ी ही नहीं। उस मोल पर भी कोई खरीदार इसे लेने को तैयार नहीं था।
इस बाबत मीडिया में आईं रिपोर्ट बताती हैं कि यह तलवार तत्कालीन ब्रिटिश गवर्नर जनरल लार्ड कार्नवालिस को भेंट किया गया था। टीपू 1799 में अंग्रेजों के हाथों हार गया था। उसके कवच में दो तलवारें हुआ करती थीं। इसी में से एक तलवार चार्ल्स मार्क्वेस प्रथम तथा दूसरी उस वक्त के गवर्नर जनरल अर्ल कार्नवालिस को उपहार में मिल गईं। असल में इस कार्नवालिस को अंग्रेज हुकूमत ने 1786 में ही ब्रिटिश भारत में गवर्नर जनरल तथा सेनाधिपति बनाया था। तीसरी एंग्लो-मैसूर लड़ाई में वही अंग्रेज सेना का सेनापति था।
जैसा पहले बताया, टीपू की तलवार की कीमत 15 करोड़ से 20 करोड़ रुपए सोची गई थी। लेकिन वहां नीलामी कार्यक्रम में उपस्थित किसी खरीदार को यह मोल रास नहीं आया। सबकी नजर में मोल कुछ ज्यादा ही रखा गया था। इसी लिए किसी ने आवाज नहीं लगाई, कीमत नहीं बोली, न कोई दिलचस्पी दिखाई। हालांकि क्रिस्टी कंपनी को लगता था कि मध्य एशिया का एक संग्रहालय इस तलवार को खरीद लेगा, लेकिन कहीं से कोई मांग या इच्छा होने का संकेत तक नहीं मिला।
अब सवाल है कि लोगों में बर्बर हत्यारे की इस तलवार को खरीदने की इच्छा क्यों नहीं हुई? असल में बताया जाता है कि टीपू की यह तलवार कार्नवालिस के सोने के कमरे में रखी हुई थी। कार्निवालिस के परिवार ने इस तलवार को बेचने की इच्छा जताई और क्रिस्टी को दिया। लेकिन क्रिस्टी कंपनी भी इसे बेच नहीं पाई।
कहने वाले कहते हैं कि 1805 में कार्नवालिस फिर से भारत में बुलाया गया और पद पर बैठाया गया था। परन्तु पद पर रहते हुए अभी दो महीने ही हुए थे कि मर गया। इसलिए भी तलवार अशुभ मानी गई है। इधर इस्राएल हमास को बुरी तरह रौंद रहा है, पैसे की किल्लत चल रही है, ब्याज की दरें बढ़ गई हैं इसलिए किसी को नहीं लगा कि इस अशुभ तलवार पर पैसा लगाया जाए। इसलिए नीलामी तो हुई लेकिन बोली नहीं लगी और यह तलवार वापस क्रिस्टी के बक्से में बंद हो गई।
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