‘गुजरात मॉडल-अनूठी कहानी’ सत्र में अमदाबाद स्थित किडनी रोग संस्थान एवं अनुसंधान केंद्र के निदेशक डॉ. विनीत वी. मिश्रा ने राज्य के चिकित्सा मॉडल से अवगत कराया
अमदाबाद के सिविल अस्पताल परिसर में पद्मश्री एच.एल. त्रिवेदी ने 1986 में एक छोटे से कमरे में किडनी रोगियों के लिए एक अस्पताल खोला था, जो अब विश्वस्तरीय किडनी रोग संस्थान एवं अनुसंधान केंद्र में बदल चुका है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात सरकार के सहयोग से बने 850 बिस्तरों वाले इस 11 मंजिला अस्पताल का उद्घाटन पिछले वर्ष किया था। यह देश का सबसे बड़ा अंग प्रत्यारोपण अस्पताल है, जिसमें 22 अत्याधुनिक आपरेशन थियेटर हैं। यहां आयुष्मान भारत योजना के तहत मुफ्त डायलिसिस और किडनी प्रत्यारोपण किए जाते हैं। प्रदेश भर में अस्पताल के 272 डायलिसिस केंद्र हैं। इस अस्पताल में गुजरात ही नहीं, राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र सहित देश के दूसरे राज्यों से भी हजारों लोग इलाज के लिए आते हैं। लेकिन पैसे के अभाव में किसी का इलाज नहीं रुका है।
राज्य के प्रत्येक वनवासी क्षेत्र में डायलिसिस केंद्र खुलने से न केवल मरीजों को मुफ्त इलाज मिल रहा है, बल्कि उन्हें 300 रुपये भी दिए जाते हैं। यही नहीं, डायलिसिस के दौरान मरीजों को पौष्टिक आहार मिले, इसकी भी व्यवस्था की गई है। सरकार के प्रयासों का ही परिणाम है कि वनवासी और तटीय इलाकों में डायलिसिस ड्रॉपआउट की दर शून्य हो गई है।
सरकार का उद्देश्य है कि किडनी प्रत्यारोपण के लिए मरीज को प्रतीक्षा न करनी पड़े। अस्पताल द्वारा बड़ी संख्या में डायलिसिस केंद्र संचालित करने के पीछे उद्देश्य मरीज को 15-20 किलोमीटर के दायरे में उत्कृष्ट सुविधाएं उपलब्ध कराना है। इन केंद्रों की नियमित निगरानी की जाती है, ताकि मरीजों को बेहतर उपचार सुनिश्चित कराया जा सके। अस्पताल में एक डेटा केंद्र भी है। मरीजों से संबंधित डेटा क्लाउड पर होने के कारण कभी भी इसका उपयोग किया जा सकता है। राज्य के किसी भी कोने से डायलिसिस के लिए व्यक्ति अस्पताल के हेल्प लाइन नंबर पर फोन कर मदद मांग सकता है। यहां सभी का एक समान इलाज किया जाता है।
राज्य की अधिकांश जनजातीय आबादी स्वास्थ्य के प्रति जागरूक नहीं है। दूसरे, इन्हें समय पर इलाज भी नहीं मिलता था। यदि इलाज मिलता भी था, तो गरीब होने के कारण वे इलाज का खर्च नहीं उठा पाते थे।राज्य के प्रत्येक वनवासी क्षेत्र में डायलिसिस केंद्र खुलने से न केवल मरीजों को मुफ्त इलाज मिल रहा है, बल्कि उन्हें 300 रुपये भी दिए जाते हैं। यही नहीं, डायलिसिस के दौरान मरीजों को पौष्टिक आहार मिले, इसकी भी व्यवस्था की गई है। सरकार के प्रयासों का ही परिणाम है कि वनवासी और तटीय इलाकों में डायलिसिस ड्रॉपआउट की दर शून्य हो गई है।
मरीजों को समय पर और नजदीक में ही अंतरराष्ट्रीय स्तर की डायलिसिस सुविधा मिल रही है। राज्य सरकार डायलिसिस के लिए प्रतीक्षा सूची को खत्म करना चाहती है। इसलिए एक पहल शुरू की गई है। तालुका स्तर पर डायलिसिस केंद्र खोलने के बाद अस्पताल अब इन केंद्रों पर टेली मेडिसीन और टेली मेंटरिंग के जरिये हर जिले में किडनी विशेषज्ञ डॉक्टर उपलब्ध करा रहा है। यानी मरीजों को अब अमदाबाद आने की भी जरूरत नहीं पड़ेगी, उन्हें घर पर ही इलाज मिल जाएगा।
खास बात यह है कि इन केंद्रों से किडनी के अलावा हर रोग के विशेषज्ञ और सुपर स्पेशलिस्ट डॉक्टर भी उपलब्ध कराए जाएंगे। यही नहीं, मरीजों को बेहतर सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए डायलिसिस केंद्रों पर कार्यरत तकनीशियनों और अन्य मेडिकल और पैरा-मेडिकल स्टाफ को टेली-क्लासरूम के माध्यम से प्रशिक्षित किया जाएगा। यह कार्यक्रम गुजरात के स्वास्थ्य ढांचे में बड़ी क्रांति लाएगा।
कोरोनाकाल में जब मरीजों के डायलिसिस पर संकट आया, तो दूसरे अस्पतालों और होम क्वारंटाइन मरीजों के लिए पहिये वाले डायलिसिस केंद्र बनाया गया। इस तरह, उस कठिन दौर में कुल 8,500 से अधिक डायलिसिस किए गए और किसी भी मरीज की मौत किडनी फेल होने से नहीं हुई।
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