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होम भारत

प्राकृतिक संसाधनों का सम्मान आवश्यक

‘साबरमती संवाद’ में एक सत्र था- ‘पर्यावरण, पाञ्चजन्य की पहल और पंचमहाभूत।’ इसे दीनदयाल शोध संस्थान के महासचिव अतुल जैन ने संबोधित किया

by WEB DESK
Oct 24, 2023, 05:56 pm IST
in भारत, धर्म-संस्कृति, गुजरात
कार्यक्रम में विचार रखते अतुल जैन

कार्यक्रम में विचार रखते अतुल जैन

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जन, जल, जंगल, जमीन और जानवर। समग्रता में प्रकृति इन्हीं के मेल से बनी है। पंच ‘ज’ को हम अपने जीवन में प्रतिदिन सामने साकार होते देखते हैं।

पर्यावरण की जब भी बात आती है, तो सबसे पहले मेरे ध्यान में पंच ‘ज’ आते हैं। यानी जन, जल, जंगल, जमीन और जानवर। समग्रता में प्रकृति इन्हीं के मेल से बनी है। पंच ‘ज’ को हम अपने जीवन में प्रतिदिन सामने साकार होते देखते हैं। आज पश्चिमी सभ्यता के प्रभाव में आकर हम पंच ‘ज’ के बीच के संतुलन को भुला बैठे हैं। यह एक चक्र है जिसमें ये सभी एक-दूसरे के लिए उपयोगी भूमिका निभाते हैं। इसमें हमारी संस्कृति का भी बहुत बड़ा हाथ है। यह समष्टि मेंं एक अनुशासन भी पैदा करती है।

जल संवर्द्धन में किस तरह से हमारी संस्कृति हमें राह दिखाती है, उसे हम एक पीढ़ी से दूसरी को सौंपते हैं। पं. दीनदयाल जी का एक महत्वपूर्ण सूत्र है एकात्म मानववाद का दर्शन, जो भारत को विश्वगुरु बना सकता है। जब हम अपनी जरूरतों को कम करके अपने काम में प्रभावोत्पादकता लाएंगे तो यह हर चीज में परिलक्षित होगी। गांधीजी ने कहा था कि देश का हर गांव अपने में एक ट्रस्टी जैसा है। नानाजी ने तो यहां तक कहा कि हर गांव में प्राकृतिक संपदा है। इसका मतलब यही है कि हमें अपनी प्राकृतिक संपदा को सुरक्षित रखना है। इस दृष्टि से हमें प्रयास करना होगा।

हमारा प्राचीन ज्ञान बहुत सटीक और पर्यावरण के अनुकूल था। इसका एक उदाहारण नरसिंहपुर का देखा जा सकता है। यहां एक पांचवीं कक्षा पास किसान था। उसे बैलगाड़ी बनाने में दक्षता हासिल थी। उससे किसी ने पूछा कि बैलगाड़ी बनवानी हो तो कैसे बन सकती है? उसने कहा कि बैलगाड़ी बनाना कोई आसान काम नहीं है, क्योंकि इसमें 17 हिस्से होते हैं। उसने यह भी बताया कि इन हिस्सों को बनाने में कौन-सी लकड़ी का इस्तेमाल होता है और क्यों होता है?

कार्यक्रम में विचार रखते अतुल जैन

हमारा प्राचीन ज्ञान बहुत सटीक और पर्यावरण के अनुकूल था। इसका एक उदाहारण नरसिंहपुर का देखा जा सकता है। यहां एक पांचवीं कक्षा पास किसान था। उसे बैलगाड़ी बनाने में दक्षता हासिल थी। उससे किसी ने पूछा कि बैलगाड़ी बनवानी हो तो कैसे बन सकती है? उसने कहा कि बैलगाड़ी बनाना कोई आसान काम नहीं है, क्योंकि इसमें 17 हिस्से होते हैं। उसने यह भी बताया कि इन हिस्सों को बनाने में कौन-सी लकड़ी का इस्तेमाल होता है और क्यों होता है?

लकड़ी को किस अवस्था में और किस मौसम में काटा जाना चाहिए। ये सारी बातें उस किसान ने बहुत सुंदर तरीके से बताईं। फिर उसने कहा कि लेकिन आज यह संभव नहीं है, क्योंकि हमने उस किस्म के पेड़ उगाने बंद कर दिए हैं। उस किसान जैसे लोग अपने प्राकृतिक संसाधनों के साथ एकाकार होते थे, उनका मोल समझते थे। इसलिए उसे सहेज के रखते थे। आज हमें उस ज्ञान का पुन: स्मरण करने की आवश्यकता है।

Topics: waterland and animalsजलnatural resourcesपर्यावरणEnvironmentहमारी संस्कृतिpeopleOur Cultureजंगलजनजमीन और जानवरforestsप्राकृतिक संपदा
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