साबरमती संवाद में ‘अमूल’ के प्रबंध निदेशक जयेन मेहता से कंपनी की विकास-यात्रा और उपलब्धियों आदि के बारे में पाञ्चजन्य के संपादक हितेश शंकर ने बातचीत की। प्रस्तुत हैं उस वार्ता के प्रमुख अंश-
लाखों जिंदगियों को संवारने वाली अमूल ने एक लंबी यात्रा तय की है। यह यात्रा कैसी रही, क्या-क्या चुनौतियां आई?
1946 में केवल 250 लीटर दूध के साथ अमूल की स्थापना हुई थी। आज अमूल का विस्तार गुजरात के 18,600 गांवों तक हो गया है। इसके साथ 36,00,000 किसान परिवार जुड़े हैं। प्रतिदिन लगभग 300 लाख लीटर दूध और साल में 1,000 करोड़ लीटर दूध आता है। 9 अरब डॉलर का वार्षिक कारोबार होता है। इसके बावजूद हम मानते हैं कि आज भी अमूल एक ‘स्टार्टअप’ है। हम इससे ज्यादा से ज्यादा लोगों को जोड़कर रोजगार देने का काम कर रहे हैं।
अमूल का कौन-सा सिद्धांत है जिससे लोग जुड़ते जाते हैं?
अमूल अपने साथ जुड़े लोगों के हितों के साथ-साथ अपने उपभोक्ताओं का भी ध्यान रखती है। अक्सर व्यापारी अपने लाभ के लिए काम करते हैं, बाकी की चिंता नहीं करते। पर अमूल का सिद्धांत है उपभोक्ता के साथ-साथ किसान की भी भलाई हो। यही मुख्य कारण है सफलता का।
आज अमूल की पहचान वैश्विक हो गई है। कितने देशों में अमूल के उत्पाद जाते हैं?
अमूल का जो उत्पाद आप यहां खरीदते हैं, उसे आप 50 अन्य देशों में भी खरीद सकते हैं। अमूल ने गांव के किसानों को जोड़कर देश को आत्मनिर्भर बनाने का काम किया है। इस ‘मॉडल’ को दुनिया के कई देश अपनाने के लिए आतुर हैं। अभी जी-20 में आपने सुना होगा कि जिस समस्या का समाधान कहीं नहीं है, उसका समाधान भारत में है। वही चीज भारत में अमूल करने जा रही है। हम कई देशों के साथ इस ‘मॉडल’ पर काम कर रहे हैं। आगे 5-10 साल में देखेंगे कि यही ‘मॉडल’ दुनिया को विकसित करने में अहम भूमिका निभाएगा।]
दुनिया में एक तिहाई दूध का उत्पादन अकेले भारत में हो रहा है। इस उत्पादन के पीछे 10 करोड़ परिवार लगे हैं। यदि विश्व बाजार में इसका अच्छा भाव मिलता है, तो इससे किसान की आमदनी दुगुनी करने का सपना साकार हो सकता है। साथ ही दूध के जो विविध उत्पाद हैं, उन्हें हम देश-विदेश में भेज सकते हैं। सरकार की मदद से तीन अंतरराष्ट्रीय सहकारिता समितियों का गठन हुआ है, जिसमें एक है निर्यात के लिए है।
अमूल के पीछे इस देश की सहकारिता की भावना है। अमूल के मूल में लक्ष्मणराव इनामदार जी, जिन्हें प्रधानमंत्री भी अपना गुरु मानते हैं, की कल्पना भी मानी जाती है। इस सहकारिता के भाव पर क्या कहेंगे?
सहकारिता की भावना से काम करने से ही दुनिया में एक तिहाई दूध का उत्पादन अकेले भारत में हो रहा है। इस उत्पादन के पीछे 10 करोड़ परिवार लगे हैं। यदि विश्व बाजार में इसका अच्छा भाव मिलता है, तो इससे किसान की आमदनी दुगुनी करने का सपना साकार हो सकता है। साथ ही दूध के जो विविध उत्पाद हैं, उन्हें हम देश-विदेश में भेज सकते हैं। सरकार की मदद से तीन अंतरराष्ट्रीय सहकारिता समितियों का गठन हुआ है, जिसमें एक है निर्यात के लिए है। सहकारी संस्था के उत्पादन को विश्व बाजार में ले जाने के लिए इस संस्था का गठन हुआ है और इसका प्रमोटर अमूल है। यह देश के सहकारी संस्थानों से जुड़े किसानों के लिए एक बहुत बड़ा बाजार होगा।
गत वर्ष कर्नाटक चुनाव के समय कुछ नेताओं ने अमूल के साथ भी राजनीति करने की कोशिश की थी। वह मामला सुलझ गया या अभी भी चल रहा है?
देखिए, अमूल और नंदनी दोनों सहकारी संस्थाएं हैं। दोनों अपने-अपने राज्यों के एक्ट से बनी हैं। हम दोनों एक-दूसरे के सहयोग से काम करते हैं। अमूल की तीन प्रकार की आईसक्रीम पिछले तीन साल से नंदनी के संयंत्र में बन रही हैं। दोनों में विवाद जैसी कोई बात नहीं है। कोई कुछ भी कहे, परंतु गुजरात और कर्नाटक के किसान मिलकर काम कर रहे हैं।
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