सिमरिया में अर्धकुंभ का ध्वजारोहण, समुद्र मंथन के बाद यहां हुआ था अमृत वितरण

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WEB DESK

बिहार के बेगूसराय स्थित सिमरियाधाम में 12 साल बाद फिर से अर्धकुंभ का ध्वजारोहण हुआ। पावन गंगा नदी के तट पर संत-महात्माओं की उपस्थिति में कुंभ पुनर्जागरण के प्रेरणा पुरुष करपात्री अग्निहोत्री परमहंस स्वामी चिदात्मन जी महाराज ने अर्धकुंभ का ध्वजारोहण किया‌। गंगा तट पर कुंभ ध्वज, इंद्र ध्वज, हनुमंत ध्वज और राष्ट्रीय ध्वज की विधि-विधान से मंत्रोच्चार के बीच स्थापना की गई। इसके साथ ही अर्धकुंभ की शास्त्रीय विधि से शुरुआत हो गई। अर्धकुंभ कार्तिक पूर्णिमा तक चलेगा। इस बीच तीन पर्व (शाही) स्नान और तीन परिक्रमा का विधान है।

12 वर्ष पूर्व सिमरिया में अर्धकुंभ का आयोजन हुआ था। 12 वर्ष का अंतराल पूर्ण होने पर फिर से अर्धकुंभ का आयोजन किया गया है।कुंभ को भारतीय संस्कृति का सबसे बड़ा प्रारूप मानते हैं। कुंभ का प्रादुर्भाव समुद्र मंथन से जुड़ा है। समुद्र मंथन का उल्लेख लगभग सभी पुराणों में मिलता है। समुद्र को मथने के लिए देवताओं और दानवों ने जिस वासुकी नाग को रस्सी और जिस मंदार पर्वत को मथनी बनाया था वो सिमरिया से 200-250 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। साक्ष्यों और प्रमाणों से सिद्ध हुआ कि मिथिलांचल की भूमि ही ऐतिहासिक समुद्र मंथन की केन्द्रीय भूमि रही। सिमरिया ही वह स्थान था, जहां भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप लेकर अमृत का वितरण किया था। इस रूप में सिमरिया की आदिकुंभस्थली के रूप में पुनर्प्रतिष्ठा हुई।

मिथिला पंचांग, विश्वविद्यालय पंचांग (दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय), वैदेही पंचांग और अन्य पंचांगों में सिमरिया कुंभ का उल्लेख हुआ है। 2011 में अर्धकुंभ में सिमरिया में एक अनुमान के अनुसार 90 लाख लोगों ने स्नान किया। 2017 में सिमरिया में महाकुंभ का उद्घाटन बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने किया। महाकुंभ में एक अनुमान के अनुसार एक करोड़ तीस लाख लोगों ने स्नान किया।‌

बिहार की धरती ऐतिहासिक रही है‌। यहां तीन बार स्वयं शक्ति ने अवतरण लिया। माता सीता के रूप में, माता अहिल्या के रूप में और समुद्र मंथन से लक्ष्मी जी का अवतरण हुआ। वेदों की व्याख्या में लिखे गए षडदर्शन में से चार के प्रवर्तक बिहार की धरती से हुए।‌ विश्व को लोकतंत्र का पाठ पढ़ाने वाली धरती भी यही रही। भगवान श्रीराम को रामत्व देने का काम भी इसी धरती ने किया। नालंदा विश्वविद्यालय के रूप में विश्व को ज्ञान का आलोक और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को आंदोलन की भूमि देने का काम भी इसी धरती ने किया।

सिमरिया की आदिकुंभस्थली के रूप में पुनर्प्रतिष्ठा देश के आध्यात्मिक, धार्मिक और सांस्कृतिक पुनर्जागरण की एक ऐसी ही कड़ी है। कुंभ का पर्व सांस्कृतिक आदान-प्रदान, राष्ट्रीय सुरक्षा, विचार-मंथन, वाणिज्य-व्यापार और सनातन परंपरा की रक्षा का सबसे सुदृढ़ स्तंभ है। सिमरिया अर्धकुंभ के तहत पहला पर्व (शाही ) स्नान 25 अक्टूबर, दूसरा 9 नवंबर और तीसरा पर्व स्नान 23 नवंबर को होना तय हुआ है। इसके साथ ही 31 अक्टूबर, 8 नवंबर और 16 नवंबर को कुंभ पर्व के बीच होने वाली परिक्रमा निश्चित है। अनुमान है कि सिमरिया अर्धकुंभ में लाखों की संख्या में श्रद्धालु स्नान के लिए आएंगे।

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