पिछले कई दिनों से देखा जा रहा है कि कांग्रेस की तरफ से मीडिया पर ताबड़तोड़ हमले किए जा रहे हैं। राहुल गांधी अपनी कम से कम तीन प्रेस कांफ्रेंस में मीडिया की निष्पक्षता पर सवाल उठा चुके हैं। एक प्रेस कांफ्रेंस में टेढ़ा सवाल पूछने पर उन्होंने एक पत्रकार को भाजपा का एजेंट बता दिया था। इतना ही नहीं, बल्कि उस प्रेस कांफ्रेंस में उन्होंने तीन पत्रकारों को भाजपा का एजेंट कहा था क्योंकि उन्होंने भाजपा पर सवाल पूछे थे। इतना ही नहीं बाद में उन्होंने पत्रकार पर कटाक्ष करते हुए यह भी कहा कि उनके जवाब से पत्रकार की हवा निकल गई। अभी हाल ही में मिजोरम में जब उनसे परिवारवाद की राजनीति पर सवाल पूछा गया, तब भी वह सवाल पूछने वाले पत्रकार पर भड़क गए।
राहुल गांधी अपनी कम से कम तीन प्रेस कांफ्रेंसों में मीडिया की निष्पक्षता पर सवाल उठा चुके हैं, उसके बाद कांग्रेस के प्रवक्ताओं ने भी मीडिया को कटघरे में खड़ा करना शुरू कर दिया है। कैग रिपोर्ट के बाद कैग के कुछ अधिकारियों के तबादलों पर टिप्पणी करते हुए कांग्रेस के प्रवक्ता पवन खेड़ा ने कहा कि जब यूपीए राज के समय 2-जी और कोयला खदान आबंटन पर कैग रिपोर्ट आई थी, तो देश का लगभग सारा मीडिया उस समय अन्ना और केजरीवाल के साथ खड़ा था, लेकिन अब जब मोदी सरकार के कम से कम 12 विभागों पर कैग की रिपोर्ट आई है, तो मीडिया चुप्पी साधकर बैठा है।
कांग्रेस में मीडिया के प्रति इतना रोष क्यों है, इसे जानने के लिए जरा पीछे जाना पड़ेगा। नौ साल पहले भाजपा के चुनाव जीतने से हताश मीडिया के वर्ग ने ही दूसरे वर्ग को गोदी मीडिया लिखना शुरू किया था, जिससे मीडिया के भीतर विभाजन रेखा साफ़ दिखाई देने लगी थी। हालांकि स्वतंत्र पत्रकारों में किसी के हारने या जीतने का असर नहीं होना चाहिए, लेकिन कुछ पत्रकारों की हताशा खुल कर सामने आने लगी थी, जिससे उनकी पूर्व की पत्रकारिता पर भी सवाल खड़े होते हैं, कि उनकी पत्रकारिता कितनी निष्पक्ष और जन भावनाओं के साथ जुड़ी थी और कितनी उनकी व्यक्तिगत विचारधारा से।
एक तरफ वे लोग थे, अब भी हैं, जो राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, भारतीय जनता पार्टी और मोदी विरोधी हैं। उनकी विचारधारा का असर उनकी पत्रकारिता में भी साफ झलकता रहा है|।वे मोदी के प्रधानमंत्री बनने से पहले भी भाजपा और मोदी विरोध की पत्रकारिता करते थे, लेकिन तब उन्हें चैक करने या उन पर ऊंगली उठाने वाला कोई नहीं था। दूसरी तरफ वे लोग थे, जो 2014 के चुनावों से पहले देश में आ रहे बदलाव को जनता के सामने रख रहे थे। चुनावों के बाद मोदी सरकार बनने से हताश मोदी और भाजपा विरोध की पत्रकारिता करने वालों ने सकारात्मक पत्रकारिता करने वालों को गोदी मीडिया कहना शुरू किया था।
पत्रकारिता से जुड़े संगठन, चाहे वह एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया हो या प्रेस क्लब आफ इंडिया हो, उन पर एजेंडाधारी पत्रकारों का कब्जा बना हुआ है। हाल ही में जब एक वामपंथी के न्यूज पोर्टल न्यूज क्लिक को चीन से पैसा मिलने के सबूत मिलने पर उसके मालिक को गिरफ्तार किया गया, तो प्रेस क्लब में प्रदर्शन हुआ। इस तरह के प्रदर्शन जांच एजेंसियों पर दबाव बनाने के लिए किए जाते हैं। कहा गया कि यह मीडिया को डराने के लिए किया गया, जबकि न्यूज क्लिक के मालिक का पत्रकारिता का कोई इतिहास नहीं था। न्यूज क्लिक एक एजेंडाधारी वेबसाईट है। सवाल खड़ा होता है कि क्या चीन से फंडिग के सबूत मिलने के बाद सरकार को चुप्पी साध कर बैठ जाना चाहिए था। यह भी देखना होगा कि ऐसे प्रदर्शनों में कौन लोग शामिल होते हैं। इस प्रदर्शन में राम चन्द्र गुहा, अरुंधती राय, प्रोफेसर अपूर्वानन्द, प्रशांत भूषण और मनोज झा शामिल हुए।
पिछले दिनों एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के चार वरिष्ठ पत्रकारों की एक टीम ने मणिपुर जाकर ग्राउंड रिपोर्ट तैयार की थी। इस टीम में सीमा मुस्तफा, संजय कपूर, सीमा गुहा और भारत भूषण। सीमा मुस्तफा कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़ी रही हैं, बाद में वीपी सिंह के प्रधानमंत्री रहते हुए वह जनता दल से जुडी थीं। उन्होंने एक बार विधानसभा और दो बार लोकसभा चुनाव भी लड़ा है। दोनों बार उसकी जमानत जब्त हुई थी। वह अमेरिका से न्यूक्लियर डील के खिलाफ मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की एक समिति की सदस्य थी। एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया की अध्यक्ष सीमा मुस्तफा की इस रिपोर्ट में एक मैतई का घर जलाने को कुकी का घर जलाना बताया गया था, यह रिपोर्ट मणिपुर के स्थानीय मीडिया पर सवाल उठाती है और दोनों समुदायों में हिंसा भड़काने वाली है। दिल्ली से गए पत्रकारों की इस रिपोर्ट से स्थानीय मीडिया में भारी रोष व्याप्त था, इसलिए जब मणिपुर सरकार ने टीम के सदस्यों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की, तो दिल्ली के प्रेस क्लब में प्रदर्शन हुआ। भारत तेरे टुकड़े होंगे के नारे लगाने वालों को प्रेस क्लब में आमंत्रित करके उनका महिमा मंडित किया जाता है। 2016 में प्रेस क्लब में एसआर गिलानी की प्रेस कांफ्रेंस से अफजल गुरु के समर्थन में नारे लगते हैं।
मेन स्ट्रीम मीडिया एक तरफा रिपोर्टिंग के चलते अपनी विश्वसनीयता खुद खो चुका है। नौ साल पहले मोदी सरकार बनने के बाद जिन्होंने पत्रकारों को गोदी मीडिया कहना शुरू कर दिया था, उनकी खुद की विश्वसनीयता नहीं रही, क्योंकि गोदी मीडिया का यह जूमला अपनी मौत खुद मर गया है, तो प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस खुद ही खुल कर सामने आ गया है। राहुल गांधी ने जिस तरह जातीय जनगणना का बीड़ा उठाया है, आने वाले दिनों में वह मीडिया में भी आरक्षण की मांग करते दिखेंगे, तो आश्चर्य नहीं होगा। 9 अक्टूबर को कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक के बाद राहुल गांधी ने ओबीसी वर्ग के पत्रकारों को हाथ खड़े करने को कह दिया था। उन्होंने कहा था कि मीडिया पर भी ऊंची जातियों का कब्जा है। वहां ओबीसी वर्ग के अनेक पत्रकार बैठे थे, लेकिन किसी ने हाथ खड़ा नहीं किया, क्योंकि पत्रकारों में कभी ऐसा भेदभाव रहा ही नहीं। पत्रकार खुद भी एक-दूसरे की जाति नहीं पूछते।
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