एक विकसित राष्ट्र बनने और विश्व की शीर्ष तीन अर्थव्यवस्थाओं में से एक बनने की हमारी राह में महत्वपूर्ण खनिजों के मोर्चे पर कुछ चुनौतियां हैं।
राष्ट्रीय सुरक्षा के स्तर को निर्धारित करने वाले अनिवार्य पक्षों में से एक है खनिज सुरक्षा। राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए जरूरी है कि आवश्यकता पड़ने पर पर्याप्त मात्रा में महत्वपूर्ण (या निर्णायक) खनिजों की उपलब्धता बनी रहे। ये महत्वपूर्ण खनिज किसी अर्थव्यवस्था के निर्माण के लिए भी अनिवार्य होते हैं। एक विकसित राष्ट्र बनने और विश्व की शीर्ष तीन अर्थव्यवस्थाओं में से एक बनने की हमारी राह में महत्वपूर्ण खनिजों के मोर्चे पर कुछ चुनौतियां हैं।
उदाहरण के लिए लिथियम, कोबाल्ट, निकल, ग्रेफाइट, टिन और तांबा जैसे खनिज नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं, इलेक्ट्रिक वाहनों और सेमी-कंडक्टरों के मूलभूत अंग हैं। इनके बिना आप स्वच्छ ऊर्जा की दिशा में आगे नहीं बढ़ सकते। जून 2023 में भारत सरकार ने 30 महत्वपूर्ण खनिजों को चिह्नित किया था। लिथियम, निकल और कोबाल्ट के लिए भारत पूरी तरह आयात पर निर्भर है, जबकि तांबे का आयात 93 प्रतिशत तक है।
इन महत्वपूर्ण खनिजों तक हमारी पहुंच में एक बड़ी समस्या है जटिल वैश्विक आपूर्ति शृंखला, जिसमें आपूर्ति जोखिम भी बहुत होता है। चीन दुनिया के 60 प्रतिशत दुर्लभ मृदा तत्वों (आरईई) का उत्पादन करता है और विश्व भर की कोबाल्ट (65 प्रतिशत) और लिथियम (58 प्रतिशत) आपूर्ति के प्रसंस्करण में उसकी हिस्सेदारी आधे से अधिक है। विश्व स्तर पर जलवायु कार्रवाई लक्ष्यों को पूरा करने के लिए लगभग हर देश स्वच्छ ऊर्जा प्रणाली की ओर स्थानांतरित हो रहा है। इससे इन खनिजों की मांग में भारी वृद्धि हो गई है। विश्व बैंक के अनुसार, स्वच्छ ऊर्जा प्रणाली की ओर स्थानांतरित होने की मांगों को पूरा करने के लिए प्रमुख खनिजों की वर्तमान वैश्विक उत्पादन क्षमता को 2050 तक 500 प्रतिशत बढ़ाने की आवश्यकता होगी।
हमने 2030 तक नवीकरणीय स्रोतों के माध्यम से ऊर्जा की आधी जरूरतों को पूरा करने का लक्ष्य रखा है। ऐसे में इस ऊर्जा को ग्रिड से जोड़ने और ग्रिड को स्थिर रखने के लिए सौर व पवन ऊर्जा के लिए बैटरी भंडारण की आवश्यकता अत्यन्त महत्वपूर्ण हो जाती है। यही कारण है कि औद्योगिक देशों में और भारत जैसी उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं में इन महत्वपूर्ण खनिजों की आपूर्ति को सुरक्षित करने की होड़ है। ये सभी बैटरी आपूर्ति शृंखला बनाने और इसके लिए निवेश आकर्षित करने का प्रयास कर रहे हैं। सबका यही प्रयास है कि इनका उत्पादन और प्रसंस्करण उनके निकट ही हो और वे ‘खनिज सुरक्षा’ प्राप्त कर सकें।
चीन ने बढ़ाए निर्यात प्रतिबंध
आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन महत्वपूर्ण खनिजों पर निर्यात प्रतिबंधों का विस्तार कर रहा है, जिससे इनकी उपलब्धता सीमित हो रही है और कीमत बढ़ रही है। चीन 2020 के अंत तक 13,000 से अधिक निर्यात प्रतिबंध लागू कर चुका था। इस प्रकार, उसने एक दशक से अधिक की अवधि में प्रतिबंधों में पांच गुना वृद्धि की है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2020 के बाद से और भी अधिक प्रतिबंध लगाए गए हैं। रिपोर्ट के निष्कर्ष इस बात को रेखांकित करते हैं कि वैश्विक अर्थव्यवस्था को इस प्रकार विखंडित किए जाने से स्वच्छ ऊर्जा की दिशा में आगे बढ़ने पर लागत बढ़ सकती है।
यह काम सिर्फ चीन ही नहीं कर रहा है, रिपोर्ट में कहा गया है कि 2009 से 2020 के दौरान महत्वपूर्ण खनिजों पर निर्यात प्रतिबंध लगाने वाले शीर्ष पांच देशों में चीन के बाद अर्जेंटीना, रूस, विएतनाम और कजाकिस्तान भी शामिल हैं। रिपोर्ट में स्पष्ट चेतावनी दी गई है कि ये निर्यात प्रतिबंध, जिनमें से एक तिहाई से अधिक निर्यात करों के रूप में हैं, स्थिति को और खराब कर सकते हैं। समस्या यह भी है कि विश्व व्यापार संगठन के नियमों के तहत ऐसे प्रतिबंधों की अनुमति है।
अमेरिका और यूरोपीय संघ का प्रत्युत्तर
लिथियम और आरईई प्रसंस्करण पर चीन के नियंत्रण को खत्म करने में मदद के लिए अमेरिका अन्य देशों में परियोजनाओं का वित्त पोषण कर रहा है। इससे यह अर्थ निकाला जा रहा है कि अमेरिका के बाइडन प्रशासन के समक्ष अत्यावश्यक स्थितियां पैदा हो रही हैं, क्योंकि अमेरिका को स्वच्छ ऊर्जा और व्यापक अर्थव्यवस्था के लिए जिन खनिजों की आवश्यकता है, उसमें उसे चीन से अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरे का सामना करना पड़ रहा है। मार्च 2023 में अमेरिका ने 1950 के रक्षा उत्पादन अधिनियम (डीपीए) का उपयोग करते हुए अपने रक्षा विभाग को खनिकों और खोजकर्ताओं को लिथियम, निकल, कोबाल्ट, ग्रेफाइट और मैंगनीज जैसे बैटरी खनिजों की आपूर्ति सुरक्षित करने में मदद करने के लिए बढ़ी हुई शक्तियां दे दी हैं।
उधर, यूरोपीय संघ मार्च 2023 में क्रिटिकल रॉ मटेरियल एक्ट ले आया है। इस एक्ट का उद्देश्य घरेलू स्तर पर अधिक सामग्रियों का खनन और प्रसंस्करण करना और यहां तक कि यूरोपीय ब्लॉक के बाहर भी रणनीतिक महत्व की परियोजनाओं को वित्तपोषित करके अपनी आपूर्ति शृंखलाओं को अधिक सुनिश्चित बनाना है।
विश्व स्तर पर जलवायु कार्रवाई लक्ष्यों को पूरा करने के लिए लगभग हर देश स्वच्छ ऊर्जा प्रणाली की ओर स्थानांतरित हो रहा है। इससे इन खनिजों की मांग में भारी वृद्धि हो गई है। विश्व बैंक के अनुसार, स्वच्छ ऊर्जा प्रणाली की ओर स्थानांतरित होने की मांगों को पूरा करने के लिए प्रमुख खनिजों की वर्तमान वैश्विक उत्पादन क्षमता को 2050 तक 500 प्रतिशत बढ़ाने की आवश्यकता होगी।
खनिज सुरक्षा साझेदारी
भारत भी मूक दर्शक नहीं है। इस वर्ष की शुरुआत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का एक प्रमुख रणनीतिक कदम अमेरिकी नेतृत्व वाली खनिज सुरक्षा साझेदारी (एमएसपी) में शामिल होना रहा है, जिसकी मुख्य धारा मीडिया में कम ही चर्चा हुई है। अक्तूबर 2023 में ब्रिटेन ने लंदन में एमएसपी के प्रमुख नेताओं की बैठक आयोजित की थी। इसका मुख्य ध्यान महत्वपूर्ण खनिज आपूर्ति शृंखलाओं में जिम्मेदार निवेश और टिकाऊ वित्त को बढ़ावा देने पर केंद्रित था। एमएसपी 14 साझेदारों का एक समूह है, जो वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद के 50 प्रतिशत से अधिक का प्रतिनिधित्व करता है। इसका उद्देश्य वैश्विक स्तर पर जिम्मेदार महत्वपूर्ण खनिज आपूर्ति शृंखलाओं में सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के निवेश को प्रेरित करना है। बैठक में यह चर्चा की गई थी कि 2040 तक दुनिया को आज की तुलना में चार गुना अधिक महत्वपूर्ण खनिजों की आवश्यकता होगी।
एमएसपी के भागीदार देशों में आस्ट्रेलिया, कनाडा, फिनलैंड, फ्रांस, जर्मनी, जापान, भारत, इटली, कोरिया गणराज्य, नॉर्वे, स्वीडन, ब्रिटेन, अमेरिका और यूरोपीय संघ (यूरोपीय आयोग द्वारा प्रतिनिधित्व) शामिल हैं। इस बैठक में ब्राजील, इंडोनेशिया, कजाकिस्तान, मंगोलिया, दक्षिण अफ्रीका और जाम्बिया सहित अतिरिक्त खनिज उत्पादक देशों के एक चुनिंदा समूह ने भी हिस्सा लिया था। बैठक में साझेदार देशों ने पुष्टि की कि वे कई परियोजनाओं को आगे बढ़ा रहे हैं, जो जिम्मेदारीपूर्ण महत्वपूर्ण खनिज आपूर्ति शृंखला विकसित करने में मदद करेंगी। इस बैठक में पर्यावरण, सामाजिक और शासकीय उच्च मानकों को बढ़ावा देते हुए महत्वपूर्ण खनिज मूल्य शृंखला में अधिक अयस्क निकालने, उनका प्रसंस्करण और पुनर्चक्रण करने वाली परियोजनाओं में तेजी लाने के लिए एमएसपी भागीदारों, मौजूदा और उभरती खनिज अर्थव्यवस्थाओं की सरकारों तथा निजी क्षेत्र के बीच सहयोग को सक्षम बनाने की सहमति की भी पुष्टि की गई।
भारत के विकल्प
भारत के लिए महत्वपूर्ण खनिज क्षेत्र में सुरक्षा प्राप्त करने के लिए एक बहु-आयामी रणनीति अनिवार्य हो चुकी है। स्वाभाविक रूप से सबसे पहले हमें अंतर्मुखी होकर अपने क्षेत्र की ओर देखना होगा। इस दिशा में खनन मंत्रालय सोना, चांदी, तांबा, जस्ता, सीसा, निकल, कोबाल्ट, प्लैटिनम समूह के खनिज, हीरे, आदि जैसे गहराई में मिलने वाले और महत्वपूर्ण खनिजों के लिए अधिनियम में अन्वेषण लाइसेंस की नीलामी शुरू करने के लिए खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957 में संशोधन करने की दिशा में आगे बढ़ा है। लिथियम युक्त खनिज सहित कुछ खनिजों को परमाणु खनिजों की सूची से हटाने से निजी क्षेत्र द्वारा भी इन खनिजों की खोज और खनन का रास्ता खुल जाएगा। हालांकि यह कार्य सरल नहीं है, क्योंकि महत्वपूर्ण खनिजों का खनन एक उलझन भरी व्यावसायिक गतिविधि है। भले ही स्वच्छ ऊर्जा की ओर जाने से पर्यावरणीय प्रभावों में कमी आने की उम्मीद है, लेकिन खनन, प्रसंस्करण और परिवहन से भी पर्यावरणीय विषय जुड़ते हैं।
भारत को स्वदेशी प्रक्रियाओं को गति देने के लिए केंद्रीय और स्थानीय स्तर पर कदम तेज करने होंगे। 2010 से 2019 तक उत्पादन शुरू करने वाली नई प्रमुख खदानों के अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी द्वारा किए गए विश्लेषण के अनुसार, खोज करने से लेकर उत्पादन शुरू करने तक परियोजनाओं को विकसित करने में औसतन 16 वर्ष से अधिक का समय लगा। हालांकि सटीक अवधि खनिज, स्थान और खदान के प्रकार के अनुसार भिन्न होती है। इसलिए हमें ऐसा दृष्टिकोण अपनाना होगा, जो हमारे लिए अत्यधिक सुविधाजनक हो।
दूसरी बात यह है कि अभी महत्वपूर्ण खनिजों के प्रसंस्करण और शोधन के लिए स्वदेशी क्षमता और योग्यता को भी हर तरह से मजबूत करने की आवश्यकता है। दक्षिण कोरिया ने प्रसंस्करण और रिफाइनिंग उद्योग में भारी निवेश किया है। यहां भारत दक्षिण कोरिया के साथ अपनी सॉफ्ट पावर का लाभ उठा सकता है। इसी प्रकार, भारत के पास बहुत निम्न श्रेणी के अयस्कों के प्रसंस्करण और शोधन पर ध्यान केंद्रित करने का विकल्प भी खुला हुआ है।
आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने वाले यह दो उपाय कर लेने से भारत को इस रणनीति में मददगार महत्वपूर्ण विदेशी प्रत्यक्ष निवेश मिल सकता है। इसके अलावा, भारत के पास उत्पादन से जुड़ी पहल (पीएलआई) जैसे उपायों को महत्वपूर्ण खनिजों की खोज, खनन, प्रसंस्करण और शोधन की दिशा में लक्षित करने का विकल्प भी उपलब्ध है। हालांकि भारत को विदेशों में महत्वपूर्ण खनिज संपत्ति प्राप्त करने में पर्याप्त सफलता नहीं मिली है, लेकिन नाल्को, एचसीएल और एमईसीएल की संयुक्त उद्यम कंपनी खनिज बिदेश इंडिया लिमिटेड (KABIL) के और अधिक आक्रामक प्रयासों से किसी परिणाम तक पहुंचा जा सकता है।
चूंकि चीन इस क्षेत्र में वर्षों आगे निकल चुका है और वह अधिक कुशल तरीकों से निर्माण, अन्वेषण, खनन, शोधन और निर्यात करने में सक्षम है, इसलिए भारत को भी महत्वपूर्ण खनिज आपूर्ति शृंखलाओं के साथ साझेदारी को बढ़ावा देना होगा। इस दिशा में कार्य जारी है। द्विपक्षीय स्तर पर हम आस्ट्रेलिया, अर्जेंटीना, बोल्विया और चिली जैसे देशों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। भारत और आस्ट्रेलिया ने आॅस्ट्रेलिया में नई आपूर्ति शृंखलाओं के निर्माण और महत्वपूर्ण खनिज प्रसंस्करण के लिए क्रिटिकल मिनरल्स इन्वेस्टमेंट पार्टनरशिप पर हस्ताक्षर भी किए हैं।
भारत को स्वदेशी प्रक्रियाओं को गति देने के लिए केंद्रीय और स्थानीय स्तर पर कदम तेज करने होंगे। 2010 से 2019 तक उत्पादन शुरू करने वाली नई प्रमुख खदानों के अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी द्वारा किए गए विश्लेषण के अनुसार, खोज करने से लेकर उत्पादन शुरू करने तक परियोजनाओं को विकसित करने में औसतन 16 वर्ष से अधिक का समय लगा। हालांकि सटीक अवधि खनिज, स्थान और खदान के प्रकार के अनुसार भिन्न होती है। इसलिए हमें ऐसा दृष्टिकोण अपनाना होगा, जो हमारे लिए अत्यधिक सुविधाजनक हो। चीन द्वारा खड़ी की गई चुनौती को देखते हुए हमें विभिन्न प्रकार के महत्वपूर्ण कच्चे माल का उत्पादन करने की अपनी क्षमता निर्मित करनी होगी और उसे बढ़ाना भी होगा।
(लेखक जम्मू-कश्मीर कैडर के सेवानिवृत्त आईएएस हैं। लेख में प्रकाशित विचार उनके व्यक्तिगत विचार हैं।)
टिप्पणियाँ