इस्राएली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतान्याहू ने राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में कसम खायी है कि इस्राएल अब हमास को पूरी तरह नेस्तनाबूद करेगा। उन्होंने कहा कि हमास ने युद्ध शुरू किया है, और हम अपनी शर्तों पर इसे खत्म करेंगे और इस्राएल इस खतरे को हमेशा के लिए खत्म करने के लिए पूरी ताकत झोंक देगा। हमास के खिलाफ कार्रवाई के लिए अमेरिका और भारत समेत 84 देशों ने इस्राएल का समर्थन किया है, जबकि ईरान और पाकिस्तान समेत 14 मुस्लिम देश हमास के समर्थन में हैं।
फिलिस्तीनी आतंकी संगठन ‘हरकत अल मुकवाना इस्लामिया’ (हमास) की सैनिक विंग लज्ज दीन अल कसम ने 7 अक्तूबर को गाजा पट्टी स्थित गुप्त ठिकानों से इस्राएल के कई शहरों पर 3000 से अधिक रॉकेटों से हमला किया। इन रॉकेटों ने इस्राएल द्वारा निर्मित आयरन डोम वायु सुरक्षा छतरी को नाकाम कर दिया। साथ ही, 40-50 के समूहों में करीब 1500 हमास आतंकवादियों ने विभिन्न तरीके अपनाते हुए कई जगहों पर गाजा पट्टी पर सीमा की मजबूत बाड़ तोड़ दी। उत्तरी फिलिस्तीन से हमास के छोटे-छोटे गुट सुरंगों के जरिए इस्राएल में घुसे, बाइक/एसयूवी से अंदर गये और नागरिकों को बंधक बना लिया। दक्षिण में हमास के आतंकियों ने मोटराइज्ड पैरा हैंड ग्लाइडर/स्पीडबोड का इस्तेमाल किया और मरुस्थल महोत्सव संगीत कार्यक्रम पर हमला करते हुए लगभग 220 लोगों को मार डाला।
हमले के दिन 6 अक्तूबर को योम किप्पूर और 7 अक्तूबर को सब्बाथ का दिन था, जो यहूदियों के सबसे महत्वपूर्ण पांथिक महोत्सव हैं।
इस्राएल ने गाजा में हमास द्वारा कम से कम 1200 लोगों के मारे जाने और 100 लोगों को बंधक बनाये जाने की पुष्टि की है। प्रधानमंत्री एम. बेंजामिन नेतान्याहू ने इस्राएली रक्षा बलों के लामबंद होने और जवाबी कार्रवाई करने का आदेश दिया। युद्धक विमानों ने हमास के मुख्यालय, शिविरों, एंटी एयर बैटरियों, रॉकेट लॉन्च पैड व सुरंग नेटवर्क पर बमबारी की। फिलिस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास ने 2000 मौतों, 4000 घायलों और आवासीय परिसरों समेत भवनों के बड़े पैमाने पर विनाश की पुष्टि की है।
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान नाजी जर्मनी द्वारा नरसंहार के दौरान दुनिया भर के सताये गये यहूदियों का भारी संख्या में इस क्षेत्र की ओर प्रवास हुआ। हालांकि अंग्रेजों के संरक्षण में यहूदियों का आगमन अरब मूल के कबीलों के साथ संघर्ष में बदल गया। संयुक्त राष्ट्र ने 29 नवंबर, 1947 को फिलिस्तीन के अलग-अलग यहूदी और अरब राज्यों में विभाजन की योजना बनायी, लेकिन अरबों ने इसे अस्वीकार कर दिया। इस्राएल ने 14 मई, 1948 को देश का दर्जा हासिल किया।
एक नया राष्ट्र जन्मा लेकिन शत्रु अरब पड़ोसियों के साथ। 2005 में इस्राएल के तत्कालीन प्रधानमंत्री एरियल शेरोन ने गाजा पट्टी से हटने का एकतरफा फैसला किया। सुरक्षा कारणों से यहूदी निवासियों को प्रतिरोध के बावजूद अपने घर छोड़ने को मजबूर किया गया। धीरे-धीरे फिलिस्तीनियों को अपने मामलों के लिए स्वायत्तता देने की दिशा में सद्भावना कदम के रूप में आईडीएफ के सभी प्रतिष्ठानों को वहां से हटा लिया गया। अरब बिरादरी समेत पूरी दुनिया ने इसका स्वागत किया।
हमास के खिलाफ कार्रवाई के लिए अमेरिका, भारत समेत 84 देशों ने इस्राएल का समर्थन किया है। वहीं, ईरान, पाकिस्तान समेत 14 मुस्लिम देशों ने हमास का। तुर्किये, सऊदी अरब, यूएई तटस्थ रहे।
इस्राएल के दक्षिणी-पश्चिमी कोने पर स्थित लगभग 10 लाख की आबादी वाली गाजा पट्टी लगभग 363 किलोमीटर लंबी है। इसे 1993/94 में फिलिस्तीन लिबरेशन आॅर्गनाइजेशन (पीएलओ) को सौंप दिया गया और संयुक्त राष्ट्र के तहत शांति समझौते के हिस्से के रूप में स्वशासन की अनुमति दी गयी। इसी प्रकार पश्चिमी तट (5900 वर्ग किमी. क्षेत्र) में भी स्थायी शांति के उद्देश्य से आंशिक स्वशासन शुरू किया गया। 1969 से 2004 तक फिलिस्तीन लिबरेशन आगेर्नाइजेशन (पीएलओ) के संस्थापक अध्यक्ष रहे यासिर अराफात ने फिलिस्तीन की स्थापना की और रमल्ला को इसकी राजधानी घोषित किया। फिलिस्तीनी विधायी परिषद का गठन किया गया।
फिलिस्तीन के वर्तमान चेयरमैन और राष्ट्रपति महमूद अब्बास हैं। 2006 में हमास ने विधायी चुनावों में विजय हासिल की और गाजा पट्टी पर नियंत्रण कर लिया। इस समूह ने पीएलओ को समाप्त प्राय: कर दिया और कथित स्वतंत्रता संग्राम को जारी रखने की भूमिका संभाल ली। इस्राएल ने हमास के खतरे को बेअसर करने के लिए 2008 से कई अभियान चलाये। 2008, 2012, 2014, 2021 के खूनी दौर के बाद अब 2023 में भी गाजा की कभी खत्म न होने वाली कहानी जारी है।
इस्राएली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतान्याहू ने राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में कसम खायी है कि इस्राएल अब हमास को पूरी तरह नेस्तनाबूद करेगा। उन्होंने कहा कि हमास ने युद्ध शुरू किया है, और हम अपनी शर्तों पर इसे खत्म करेंगे और इस्राएल इस खतरे को हमेशा के लिए खत्म करने के लिए पूरी ताकत झोंक देगा। हमास के खिलाफ कार्रवाई के लिए अमेरिका और भारत समेत 84 देशों ने इस्राएल का समर्थन किया है, जबकि ईरान और पाकिस्तान समेत 14 मुस्लिम देश हमास के समर्थन में हैं।
तीन देश तुर्किये, सऊदी अरब और यूएई तटस्थ रहे। भारत में वीर सावरकर ने नैतिक और राजनीतिक, दोनों आधारों पर इस्राएल के गठन का समर्थन किया था और संयुक्त राष्ट्र में इस्राएल के विरुद्ध भारत के मतदान करने की निंदा की थी। रा.स्व.संघ के द्वितीय सरसंघचालक गुरुजी यहूदी राष्ट्रवाद की प्रशंसा करते थे और मानते थे कि फिलिस्तीन यहूदियों का स्वाभाविक क्षेत्र है और राष्ट्रीयता की उनकी आकांक्षा को पूरा करने के लिए अनिवार्य है।
भारत ने 17 नवंबर, 1950 को इस्राएल को आधिकारिक तौर पर मान्यता दी और उसे 1953 में मुंबई में महावाणिज्य दूतावास खोलने की अनुमति दी। फिर भी यह संबंध 1992 तक अनौपचारिक प्रकृति का रहा। 1992 में औपचारिक संबंध स्थापित होने के बाद, रक्षा और व्यापार संबंधों में तेजी आयी और जल्द ही इस्राएल भारत का दूसरा सबसे बड़ा रक्षा भागीदार बन गया। हालांकि, दोनों देशों के बीच अब भी घनिष्ठ संबंध नहीं थे। एरियल शेरोन 2003 में भारत का दौरा करने वाले इस्राएल के पहले प्रधानमंत्री बने। उन्हें भारतीय जनता, विशेष रूप से भारत के मुस्लिमों का व्यापक विरोध झेलना पड़ा।
‘‘इस्राएल में आतंकी हमलों की खबरों से गहरा झटका लगा है। हमारी संवेदनाएं और प्रार्थनाएं निर्दोष पीड़ितों और उनकी परिवारों के साथ हैं। हम इस कठिन समय में इस्राएल के साथ एकजुटता से खड़े हैं।’’ – प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र में भाजपा नीत राजग सरकार बनने के बाद भारत व इस्राएल के बीच रिश्ते दोस्ताना मोड़ लेने लगे। 2015 और 2016 में, भारत संयुक्त राष्ट्र में उस मतदान में शामिल होने से विरत रहा जिसमें इस बात पर चर्चा की गयी कि क्या 2014 के गाजा संकट के दौरान कथित युद्ध अपराधों के लिए इस्राएल को अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय के सामने लाया जाना चाहिए। 2017 में नरेंद्र मोदी इस्राएल का दौरान करने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री बने।
आज यह संबंध पर्यटन लेकर रक्षा तक व्यापक दायरे में फैला हुआ है। इस्राएल को मान्यता न देने से लेकर दोस्त बनने और अब विभिन्न देशों के साथ संबंधों को संतुलित करने तक भारत ने सत्य और न्याय के सिद्धांतों का पालन किया है। सार्वजनिक और सैद्धांतिक तौर पर, भारत अब भी फिलिस्तीन का समर्थन करता है और 2018 में नयी दिल्ली ने राष्ट्रपति महमूद अब्बास की मेजबानी भी की है।
यह पूरी तरह स्पष्ट है कि हमास का हमला अकारण और बर्बर प्रकृति का है। एक सैद्धांतिक प्रतिक्रिया के रूप में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट किया, ‘‘इस्राएल में आतंकी हमलों की खबरों से गहरा झटका लगा है। हमारी संवेदनाएं और प्रार्थनाएं निर्दोष पीड़ितों और उनकी परिवारों के साथ हैं। हम इस कठिन समय में इस्राएल के साथ एकजुटता से खड़े हैं।’’ प्रधानमंत्री मोदी द्वारा हमास के आतंकवादी हमले की निंदा और इस्राएल को समर्थन की पेशकश को सभ्य दुनिया सही दिशा में एक कदम के रूप में देख रही है।
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