इस्राएल पर 7 अक्तूबर को हुए हमास के हमले जैसी घटनाएं पूरे विश्व को प्रभावित करने की क्षमता रखती हैं। हम चाहे इसे पसंद करें अथवा न करें, स्वीकार करें या न करें। यूक्रेन युद्ध के आरंभ से 20 महीने से भी कम समय के भीतर होने वाला यह दूसरा बड़ा युद्ध प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हर देश को प्रभावित करने में सक्षम है। हो सकता है यह प्रभाव सीमित रहे, लेकिन उसके विस्तार से इनकार भी नहीं किया जा सकता है।
वैश्वीकरण के उस अर्थ की परिकल्पना शायद ही किसी को कभी रही हो, जिस अर्थ को देखना-समझना अब आवश्यक हो चुका है। जब विश्व के तमाम देश और लोग परस्पर जुड़े हुए होते हैं, तो इन अंतर्संबंधों के साथ-साथ उनकी एक-दूसरे तक पहुंच भी हो जाती है। विश्व के एक छोर पर उपस्थित कोई तत्व विश्व के दूसरे छोर पर घटी किसी घटना में सक्रिय या संलिप्त हो सकता है। यह कार्य कोई राज्य भी कर सकता है और गैर-राज्य खिलाड़ी भी। ऐसे में इस्राएल पर हुए हमले के विश्वव्यापी अर्थ को समझना अनिवार्य हो जाता है।
वास्तव में इस्राएल पर 7 अक्तूबर को हुए हमास के हमले जैसी घटनाएं पूरे विश्व को प्रभावित करने की क्षमता रखती हैं। हम चाहे इसे पसंद करें अथवा न करें, स्वीकार करें या न करें। यूक्रेन युद्ध के आरंभ से 20 महीने से भी कम समय के भीतर होने वाला यह दूसरा बड़ा युद्ध प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हर देश को प्रभावित करने में सक्षम है। हो सकता है यह प्रभाव सीमित रहे, लेकिन उसके विस्तार से इनकार भी नहीं किया जा सकता है। रूस-यूक्रेन युद्ध का असर आज भी कम से कम पूरा यूरोप महसूस कर रहा है। जैसे-जैसे शीत ऋतु नजदीक आती जाएगी, यह युद्ध यूरोप में तबाही का कारण बनने की पूरी संभावना रखता है। इस्राएल और गाजा स्थित हमास के युद्ध को सदियों पुरानी मजहबी शत्रुता से जोड़कर देखा जाना अपरिहार्य है। यह उन पुराने सभ्यतागत युद्धों की शृंखला में नवीनतम कड़ी ही है, जिनमें कट्टरपंथी इस्लामिस्टों ने एक सभ्यता (यहूदियों) पर हमला किया है। इस्राएल जितनी भी भूमि पर बसा हुआ है, स्पष्ट तौर पर हमास उसे वहां से बेदखल करने का प्रयास कर रहा है। हमास के युद्ध का लक्ष्य क्या है- इस बात को रेखांकित करना कि इस्राएल के अस्तित्व की कोई आवश्यकता ही नहीं है।
प्रथम दृष्टि में हमास एक छोटा खिलाड़ी नजर आता है। कितने आतंकवादी थे? कुछ सौ। लेकिन मामला यह नहीं है कि गाजा में छतों से कुछ दर्जन रॉकेट दागे गए। यह गंभीरतापूर्वक रचे गए नेटवर्क से किया गया योजनाबद्ध भीषण भयंकर हमला है।
अगर हम 1973 में योम किप्पुर युद्ध या ज्यादा उपयुक्त तौर पर 1967 में हुए छह दिवसीय युद्ध पर नजर डालें, तो संक्षेप में, 1967 में एक तरफ जॉर्डन, सीरिया, मिस्र (और उनके सहयोगी) थे, जिन्होंने एक संयुक्त और समन्वित हमला किया था और दूसरी तरफ अकेला इस्राएल था। इस युद्ध में इस्राएल ने 6 दिनों (5-10 जून) में उन सभी को हरा दिया। मिस्र के सिनाई और गाजा पट्टी क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया, सीरिया की गोलान पहाड़ियों और वेस्ट बैंक सहित पूर्वी यरुशलम का क्षेत्र जॉर्डन से छीन लिया। बाद में इस्राएल ने सद्भावना संकेत के रूप में सिनाई और गाजा पट्टी को खाली कर दिया, गोलान पहाड़ियों को अपने क्षेत्र में मिला लिया और वेस्ट बैंक पर कब्जा जारी रखा। दूसरा बिंदु, हमास का अर्थ फिलिस्तीन नहीं होता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हमास के हमले को आतंकवादी कार्रवाई बताया है। कारण यह कि हमास एक आतंकवादी संगठन है, भले ही इसने किसी इलाके पर कब्जा कर रखा हो, लेकिन किसी ने उसे निर्वाचित नहीं किया है, बल्कि वह बंदूक के बल पर जनता पर शासन करता रहा है। मोदी जी की टिप्पणी हमास पर है, फिलिस्तीन के बारे में उन्होंने कुछ नहीं कहा है।
अब मुद्दे की बात। भले ही मध्य पूर्व के मामलों का हमारी संस्कृति या देश से सीधा संबंध न हो, फिर भी इनमें शामिल मुद्दों और इसकी भू-राजनीति को जानना प्रत्येक भारतीय के लिए इस दौर में आवश्यक है। विशेष रूप से इस कारण कि इस समय वहां जो कुछ भी हो रहा है, न केवल उसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं, बल्कि भारत के लिए भी उसके गहरे अर्थ हो सकते हैं। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हाइब्रिड युद्ध के इस युग में युद्ध सिर्फ वहीं नहीं लड़ा जा रहा होता है, जहां विस्फोट हो रहे हों, बल्कि सूचना और नैरेटिव के निर्माण के जरिए, जनमानस के ब्रेनवॉश के जरिए और हवाई मिसाइलों के जरिए वह किसी दूरस्थान पर भी लड़ा जा रहा होता है।
योजना और योजनाकार, क्या और कौन!
युद्ध के संभावित कारणों या इसके पीछे के योजनाकारों के बारे में अनुमान लगाना अपने आप में एक युद्ध है, जिसमें दो पक्ष होंगे या कई पक्ष हो सकते हैं। जिस वैश्विक संपर्कशीलता की चर्चा हमने ऊपर की है, उसके बूते कई बड़े खिलाड़ियों को छोटे खिलाड़ियों के पीछे छिपने का भी अवसर मिल जाता है। प्रथम दृष्टि में हमास एक छोटा खिलाड़ी नजर आता है। कितने आतंकवादी थे? कुछ सौ। लेकिन मामला यह नहीं है कि गाजा में छतों से कुछ दर्जन रॉकेट दागे गए हों। यह बहुत गंभीरतापूर्वक रचे गए नेटवर्क से किया गया योजनाबद्ध भयंकर हमला है।
इस स्तर के हमले के लिए भारी मात्रा में धन, सामग्री खुफिया जानकारी, बहुत सारे बहुत प्रशिक्षित लोग और अत्यधिक सक्षम उपकरणों की आवश्यकता होगी। इसकी योजना अगर अधिक नहीं तो कम से कम कई महीनों में बनाई गई होगी। क्या यह सब एक बार में जुटा सकना अकेले हमास के वश की बात माना जा सकता है? साधारण तौर पर हमास का मतलब ईरान मान लिया जाता है। लेकिन अगर बात बढ़ी, तो क्या ईरान इसके परिणामों को संभाल सकता है? यह सवाल अभी धुंध के उस ओर है।
फिर यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि हमास ने इस्राएल पर हमला क्यों किया? निश्चित रूप से वह जो कुछ कह रहे हैं- अल-अक्सा वगैरह, वह सिर्फ दुनिया भर में सड़कों पर घूमते उन पैदल प्यादों के लिए है, जो खुद को हमास का समर्थक जताने के लिए बहुत उतावले हैं। असली बात कुछ और है। क्या है? यह सवाल भी धुंध के उस ओर है। धुंध के उस ओर की एक झलक हमास की प्रचार मशीनरी से लगती है, लेकिन फिर और गहरी धुंध में चली जाती है।
एक धारणा, जो तेजी से लोकप्रिय हुई है, वह यह है कि चीन के हित इस युद्ध से सीधे जुड़ते हैं। एक कारण है सऊदी अरब-इस्राएल की प्रस्तावित दोस्ती। इसमें अरब जगत में स्थायी शांति और प्रगति के युग की शुरुआत करने की पूरी गुंजाइश है।
प्रचार किसी भी युद्ध का सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य है, उपकरण भी और हथियार भी। हमास की ओर से, हमास से मित्रता रखने वाले और उसे हीरो मानने वाले मीडिया की ओर से जो वीडियो जारी किए गए हैं, उनमें हमास को इस्राएली सेना के अधिकारियों को पकड़ते हुए, आतंकवादियों द्वारा आसानी से बाड़ तोड़ते हुए, ग्लाइडरों से उड़कर घुसपैठ करते हुए, आईडीएफ सैन्य वाहनों को खदेड़ते हुए दिखाया गया। जब इस्राएली हवाई हमले शुरू हुए, तो सारी बहादुरी धरी रह गई और हमास का प्रचार तंत्र विक्टिम कार्ड पर शिफ्ट हो गया। प्रथम दृष्टि में तो हमास का लक्ष्य वही पैदल प्यादे नजर आते हैं, जिन्हें अल-अक्सा की घुट्टी पिलाई गई है। क्या कोई उन तक पहुंचना या बड़ी भर्ती के लिए इच्छुक लोगों को जुटाना चाहता है? खास तौर पर विश्व भर में लाखों मुस्लिम बच्चों के मन में बचपन से ही विक्टिम होने और नफरत से सराबोर होने की भावना भरकर भविष्य के इस्लामिस्टों की नई खेप तैयार करना!
इस्राएल को क्या हुआ?
असली विक्टिम इस्राइल है। खास तौर पर नव वामपंथ का विक्टिम। इस्राएल लंबे समय से शांत था, क्षेत्र पर उसका प्रभुत्व और दबदबा था और वह लगभग एक नरम राज्य जैसा हो गया था। वामपंथी-उदारपंथी इस्राएल में अच्छी भीड़ जुटा लेते थे। वामपंथी झुकाव वाले नेता चुनाव जीत रहे थे, वर्तमान कंजरवेटिव सरकार के खिलाफ जमकर प्रदर्शन हो रहे थे, इस्राइल की न्यायपालिका लगभग बेकाबू हो रही थी और उसे नियंत्रित करने के सरकारी प्रयासों का सड़कों पर विरोध हो रहा था। इस्राएल के लिए वापस अपनी वास्तविक स्थितियों के अनुरूप हो सकना बहुत कठिन हो रहा था।
किसका फायदा!
युद्ध सिर्फ विनाश का, शवों, घायलों और आंसुओं का सौदा नहीं होता। कोई न कोई उससे लाभान्वित भी होता है। कौन हो सकता है? एक धारणा, जो तेजी से लोकप्रिय हुई है, वह यह है कि चीन के हित इस युद्ध से सीधे जुड़ते हैं। एक कारण है सऊदी अरब-इस्राएल की प्रस्तावित दोस्ती। इसमें अरब जगत में स्थायी शांति और प्रगति के युग की शुरुआत करने की पूरी गुंजाइश है। लेकिन इससे वे चीनी हस्तक्षेप पर भी कम निर्भर हो जाएंगे। दूसरा कारण है, मध्य पूर्वी गलियारा (एमई ट्रेड कॉरिडोर), जिससे बीआरआई का महत्व अपने आप कम हो जाता है। यही बात रूस के लिए भी कही जा सकती है, क्योंकि बीआरआई की ही तरह आईएनएसटीसी का महत्व भी मध्य पूर्वी गलियारे से प्रभावित होता है। आईएनएसटीसी के सदस्य देशों में भारत, ईरान, रूस, अजरबैजान, कजाकिस्तान, आर्मेनिया, बेलारूस, ताजिकिस्तान, किर्गिस्तान, ओमान, सीरिया, तुर्किये और यूक्रेन शामिल हैं, जबकि बुल्गारिया पर्यवेक्षक राज्य है। इसी प्रकार, तीसरी धारणा है कि तुर्किये भी भी किसी तरह एमई ट्रेड कॉरिडोर में अड़ंगा लगाना चाह सकता है इत्यादि।
व्यापार मार्गों से आगे देखें। सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात तेजी से आधुनिकीकरण की ओर बढ़ रहे हैं। इससे किसे परेशानी होगी? एक तो ईरान को। अगर अरब दुनिया का आधुनिकीकरण हो गया, तो इससे ईरान पिछड़ा देश नजर आने लगेगा। इससे ईरान में विद्रोह भड़क सकता है और ईरान पर इस्लामिस्टों की पकड़ कमजोर हो सकती है। यही तर्क कुछ उन अरब देशों पर लागू होता है, जिनके पास भारी धन है, लेकिन वे आधुनिक होना नहीं चाहते हैं। धुंध के उस पार वास्तव में क्या है? यह तब पता चल्ां सकेगा, जब धुंध छंट जाएगी। इसमें कई दशक भी लग सकते हैं।
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