इस्राएल और हमास के बीच छिड़े घमासान युद्ध के बीच कुछ आंकड़े जारी हुए हैं जो चौंकाने वाले हैं। इन आंकड़ों से पता चलता है कि इस्लामी देशों में यहूदियों के प्रति ऐसा अमानवीय व्यवहार किया जाता रहा है कि यहूदी उन देशों से पलायन को मजबूर हो गए। उदाहरण के लिए इराक का देखा जा सकता है। उस शिया बहुल देश में कभी डेढ़ लाख के करीब यहूदी बसे थे, लेकिन धीरे धीरे यह संख्या सिकड़ती ही गई और आज हालत यह है कि कुल 10 यहूदी ही वहां गुमनाम सी जिंदगी जीने को विवश हैं।
इसी तरह इस्राएल के कट्टर विरोधी माने जाने वाले मुस्लिम देश ईरान में भी यहूदियों की हालत कभी अच्छी नहीं रही है। आंकड़ा बताता है कि 1948 के आसपास वह दौर था जब शिया देश ईरान में लगभग यहूदी जनसंख्या करीब एक लाख हुआ करती थी, मगर आज के वक्त में यह आंकड़ा लगभग 9000 ही रह गया है।
ये हैरान करने वाले आंकड़े बताते हैं कि इस्लामी देशों की नीतियों और बर्ताव की वजह से वहां यहूदी आबादी घटती ही गई है। दुनिया भर के इस्लामी देश आज हमास की बर्बरता और युद्ध शुरू करने की गलती को अनदेखा करते हुए इस्राएल को कठघरे में तो खड़ा कर रहे हैं लेकिन ये देश कभी अपने गिरेबां में नहीं झांकते। इस्लामी जिहादी संगठन हमास पर इस्राएल के ताबड़तोड़ हमलों के बीच ये आंकड़ा इस्लामी देशों को उनका कड़वा सच दिखाते हैं।
इधर इस्राएल की जबरदस्त जवाबी कार्रवाई में गाजा पट्टी का हाल बेहाल हो चुका है। जगह जगह बर्बादी का मंजर पसरा हुआ है। इस्रएल की वायुसेना की बमबारी में हमास के कई ठिकाने नेस्तोनाबूद हो चुके हैं। गाजा पर इस्राएल के हवाई हमले लगातार जारी हैं, क्योंकि प्रधानमंत्री नेत्यनाहू ने हमास को जड़ से खत्म करने की कसमें खाई हुई हैं। इस्राएल के लोग अपने नेता के हर फैसले में साथ दे रहे हैं।
इस्राएल और फिलिस्तीन और दूसरे इस्लामी राष्ट्रों के बीच तनाव वर्षों से बना रहा है। फिलिस्तीन में जब यहूदी लोग बसने लगे थे, उसके बाद तो यह तनाव घटने के बजाय बढ़ता ही गया है। दोनों पक्ष एक दूसरे पर रत्ती भर भरोसा नहीं करते। विश्व के अन्य इस्लामी देश भी सही—गलत की परवाह किए बिना मजहब के आधार पर फिलिस्तीन के पाले में खड़े होते रहे हैं। ताजा तनाव के बीच भी लगभग वही स्थिति देखने में आ रही है।
इस्लामी देशों में यहूदियों की संख्या में लगातार गिरावट की कलई खोलते ये आंकड़े ‘वर्ल्ड ऑफ स्टेटिक्स’ नामक संस्था की तरफ से सामने रखे हैं। सोशल मीडिया पर अपनी एक पोस्ट में इस संस्था ने ये आंकड़े साझा करके एक तरह से यहूदियों के प्रति इस्लामी देशों के ऐतिहासिक रूप से रहे व्यवहार को बेपर्दा किया है। आंकड़े बताते हैं कि अनेक इस्लामी देश ऐसे हैं जहां यहूदियों की आबादी समाप्ति के कगार पर है। और कई इस्लामी देशों में तो यहूदियों को कोई नाम लेने वाला तक नहीं बचा है।
ईरान में 1948 में लगभग एक लाख यहूदी बसे थे, पर 2016 तक आकर उनमें से सिर्फ 9800 ही बचे थे। इस्लाम बहुल ट्यूनीशिया की बात करें तो 1948 में यहूदी नागरिकों की संख्या एक लाख से बढ़कर थी, लेकिन 2017 तक आकर उनकी संख्या महज 1,700 ही बची। अफ्रीकी देश लीबिया में एक भी यहूदी नहीं बचा है।
उल्लेखनीय है कि ‘वर्ल्ड ऑफ स्टेटिक्स’ के आंकड़े 1948 से अब तक की हालत बयां करते हैं। इनमें दिखाया गया है कि कैसे 1948 से अब तक के फासले में अनेक इस्लामी देशों में यहूदी धीमे धीमे खत्म होते गए हैं। कुछ देशों में तो आने वाले चार—छह साल में यहूदी बिल्कुल समाप्त हो जाएंगे। आंकड़े दिखाते हैं कि 1948 में अफगानिस्तान में यहूदियों की संख्या लगभग 5 हजार हुआ करती थी। लेकिन 2019 की बात करें तो अब बस एक इकलौता यहूदी ही उस देश में बचा था। शिया देश इराक में 1948 में जहां लगभग 1.5 लाख यहूदी बसते थे, 2017 तक आकर उस देश में उनकी संख्या सिर्फ दस रह गई थी।
Decline of Jewish population:
🇦🇫 Afghanistan
1948: 5,000
2019: 1
🇮🇷 Iran
1948: 100,000
2016: ~9,800
🇮🇶 Iraq
1948: 150,000
2017: 10
🇹🇳 Tunisia
1948: 105,000
2017: 1,700
🇩🇿 Algeria
1948: 140,000
2017: ~50
🇱🇾 Libya
1948: 38,000
2019: 0
🇱🇧 Lebanon
1948: 24,000
2017: 100
🇪🇬…
— World of Statistics (@stats_feed) October 12, 2023
इसी तरह ईरान में 1948 में लगभग एक लाख यहूदी बसे थे, पर 2016 तक आकर उनमें से सिर्फ 9800 ही बचे थे। इस्लाम बहुल ट्यूनीशिया की बात करें तो 1948 में यहूदी नागरिकों की संख्या एक लाख से बढ़कर थी, लेकिन 2017 तक आकर उनकी संख्या महज 1,700 ही बची। अफ्रीकी देश लीबिया में एक भी यहूदी नहीं बचा है। यहूदियों ने वहां के बर्ताव से खिन्न होकर उस देश से निकलने में ही अपनी गनीमत समझी। इसी तरह लेबनान में 2017 के आंकड़े महज 100 यहूदी दिखाते थे आज की ताजा हालत समझना मुश्किल नहीं है। उधर मिस्त्र या ईजिप्ट में भी यहूदी 20 ही बचे थे। सीरिया, मोरक्को, बहरीन, यमन और पाकिस्तान की हालत भी यहूदियों की आबादी के मामले में कोई संतोषजनक नहीं है। पाकिस्तान में तो 2019 आते आते यहूदियों के सिर्फ 745 परिवार ही रह रहे थे।
सवाल है कि 1948 से ही यहूदी आबादी की गणना क्यों की गई? वह इसलिए क्योंकि 1948 के मई माह में संयुक्त राष्ट्र महासभा में यहूदियों का एक अलग देश बसाने का प्रस्ताव प्रस्तुत हुआ था। संस्था ‘वर्ल्ड ऑफ स्टेटिक्स’ ने इसलिए उस साल को आधारबिन्दु की तरह मानते हुए ये हैरतअंगेज आंकड़े निकाले हैं। दुनिया के सभ्य समाज के वासी इन आंकड़ों से अंदाजा लगा सकते हैं कि ‘हमास पर जुर्म’ का राग अलापते हुए जो इस्लामी देश मजहब के झंडे के नीचे इकट्ठे होने को कुलबुला रहे हैं, ‘जुर्म’ करने के मामले में उनका अपना रिकार्ड क्या है!
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