बिहार सरकार पूरी तरह मुस्लिम तुष्टीकरण में लगी है। इसलिए लोग कहते हैं कि बिहार सरकार के लिए मुस्लिम तुष्टीकरण ही सेकुलरवाद है। 25 सितंबर को बिहार मंत्रिमंडल ने अल्पसंख्यकों (कह सकते हैं कि केवल मुसलमानों) को स्वरोजगार देने के नाम पर एक नई योजना को स्वीकृत किया है।
अपने को सेकुलर कहने वाली बिहार सरकार पूरी तरह मुस्लिम तुष्टीकरण में लगी है। इसलिए लोग कहते हैं कि बिहार सरकार के लिए मुस्लिम तुष्टीकरण ही सेकुलरवाद है। 25 सितंबर को बिहार मंत्रिमंडल ने अल्पसंख्यकों (कह सकते हैं कि केवल मुसलमानों) को स्वरोजगार देने के नाम पर एक नई योजना को स्वीकृत किया है। इस योजना का नाम है-‘मुख्यमंत्री अल्पसंख्यक उद्यमी योजना।’ इसके अंतर्गत किसी भी कथित अल्पसंख्यक व्यक्ति को 10,00,000 रु. का ऋण मिलेगा। इसमें से केवल 5,00,000 रु. वापस करने होंगे और वह भी किश्तों में। शेष 5,00,000 रु. बिहार सरकार अनुदान के तौर पर देगी।
इसका सीधा मतलब यह है कि कर्ज में से 5,00,000 रु. राज्य सरकार माफ कर देगी। बिहार सरकार के अपर मुख्य सचिव (कैबिनेट सचिवालय) एस. सिद्धार्थ ने इस योजना के बारे में कहा है कि राज्य में औद्योगिक विकास की गति को तेज करने और अल्पसंख्यक समुदाय के पुरुषों, महिलाओं के बीच बेरोजगारी कम करने और उन्हें स्वरोजगार की तरफ बढ़ाने के लिए यह योजना शुरू की गई है। इस योजना का लाभ उठाने के लिए अल्पसंख्यक कल्याण विभाग से संपर्क करना होगा। अल्पसंख्यक कल्याण विभाग की अनुशंसा पर उद्योग विभाग यह ऋण प्रदान करेगा।
विश्व हिंदू परिषद के संयुक्त महामंत्री डॉ. सुरेंद्र कुमार जैन ने इस योजना पर कड़ी आपत्ति करते हुए कहा है, ‘‘इससे कन्वर्जन करने वाले मजहबी तत्वों को बढ़ावा मिलेगा।’’ उन्होंने यह भी कहा, ‘‘इन्हीं नीतियों से भारत विभाजन की नींव पड़ी थी। बिहार और उत्तर प्रदेश में पाकिस्तान की मांग सबसे अधिक हुई थी। इसके बावजूद बिहार में देशतोड़क नीतियां बन रही हैं। विहिप इस मामले को लेकर न्यायालय से लेकर सड़क तक लड़ेगी।’’ इससे पहले भी बिहार में मुसलमानों के लिए ऐसी योजनाएं चल रही हैं, जो एक तरह से समाज को विभाजित कर रही हैं।
मुस्लिम तलाकशुदा महिला सहायता योजना
इसी साल जुलाई में बिहार सरकार ने तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को एकमुश्त 25,000 रु. मदद के रूप देने की घोषणा की थी। इसका उद्देश्य है मुस्लिम तलाकशुदा महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना। इस योजना का लाभ वैसी महिलाओं को मिलता है जिसकी वार्षिक आय 4,00,000 रु. से कम हो। पति ने उसे तलाक दे दिया हो या दो वर्ष से अधिक की अवधि से उसके पति ने उसका परित्याग कर दिया हो या फिर उसका पति मानसिक रूप से पूर्णत: अपंग हो। ऐसी महिला की आयु 18 से 50 साल तक होनी चाहिए।
नि:शुल्क कोचिंग योजना
मुस्लिम विद्यार्थियों को प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कराने के लिए बिहार सरकार नि:शुल्क कोचिंग चलाती है। मौलाना मजहरुल हक अरबी और फारसी विश्वविद्यालय इसकी नोडल एजेंसी है। सिविल सेवाओं और पुलिस विभाग की विभिन्न बहालियों के लिए हज भवन में प्रशिक्षण दिया जाता है। अन्य परीक्षाओं यथा- एसएससी, बैंकिंग, रेलवे, यूजीसी नेट इत्यादि परीक्षाओं के लिए राज्य के अलग-अलग जिलों में नि:शुल्क कोचिंग की सुविधा मिलती है। मुख्यमंत्री श्रमशक्ति कौशल विकास योजना में अल्पसंख्यक छात्रों को प्रतिष्ठित प्रशिक्षण संस्थानों के माध्यम से नि:शुल्क व्यावसायिक प्रशिक्षण दिया जाता है।
मुख्यमंत्री विद्यार्थी प्रोत्साहन योजना
इस योजना का लाभ मैट्रिक और इंटर पास मुस्लिम विद्यार्थियों को मिलता है। इसके अंतर्गत बिहार विद्यालय परीक्षा समिति या बिहार मदरसा शिक्षा बोर्ड से मैट्रिक या फोकानिया में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण विद्यार्थियों को 10,000 रुपए की प्रोत्साहन राशि मिलती है। अगर कोई मुस्लिम छात्रा प्रथम श्रेणी से इंटर या मौलवी की परीक्षा प्रथम श्रेणी से पास करती है तो उसे 15,000 रु. मिलते हैं।
अल्पसंख्यक आवासीय विद्यालय योजना
अल्पसंख्यक समुदाय के विद्यार्थियों के विकास के लिए ये विद्यालय चलाए जाते हैं। इनमें कक्षा 9 से 12वीं तक की मुफ्त पढ़ाई के साथ-साथ मुफ्त वस्त्र और दैनिक उपयोग की वस्तुएं प्रदान की जाती हैं। ये विद्यालय सह शिक्षा प्रणाली पर आधारित हैं। 50 प्रतिशत सीट बालिकाओं और 75 प्रतिशत सीट ग्रामीण क्षेत्र के विद्यार्थियों के लिए आरक्षित है। तीन एकड़ में स्थापित ऐसे विद्यालयों में विशेष कोचिंग और व्यावसायिक प्रशिक्षण की भी व्यवस्था है। राज्य सरकार की ऐसी योजनाओं के लिए सामान्यत: सरकार के नाम से भूमि हस्तांतरित करनी पड़ती है, लेकिन वक्फ और मदरसा द्वारा प्रदान की गई भूमि को इस बाध्यता से मुक्त रखा गया है।
अल्पसंख्यक छात्रावास योजना
अल्पसंख्यक छात्र और छात्राओं के लिए जिला मुख्यालयों में ऐसे छात्रावास चलाए जाते हैं। वर्तमान में 32 जिलों में छात्रावास चल रहे हैं। इसमें 28 बालक और 4 बालिका छात्रावास हैं। इसमें प्रति विद्यार्थी राज्य सरकार 1,000 रुपए का अनुदान देती है। इसके अलावा 9 किलो गेहूं और 6 किलो चावल प्रति छात्र प्रतिमाह मिलता है।
मदरसा सुदृढ़ीकरण योजना
बिहार राज्य मदरसा बोर्ड से मान्यता प्राप्त मदरसों तथा अन्य सरकारी मदरसों में मूलभूत सुविधाएं, आधारभूत संरचना तथा शैक्षणिक सुधार के लिए यह योजना चलाई जा रही है।
बिहार राज्य वक्फ विकास योजना
बिहार राज्य सुन्नी वक्फ बोर्ड और बिहार राज्य शिया वक्फ बोर्ड से निबंधित संपत्ति के विकास के लिए राज्य सरकार सहायता प्रदान करती है। इसका उद्देश्य है आय का सृजन करना जैसे बहुद्देशीय भवन, मुसाफिरखाना, विवाह भवन, वक्फ कार्यालय भवन, व्यावसायिक भवन, दुकान, मार्केटिंग कांप्लेक्स इत्यादि के निर्माण के लिए कोष देना है। इसके अलावा राज्य सरकार ऐसी परिसंपत्तियों के रख-रखाव, सुरक्षा और संवर्धन के लिए भी तैयार रहती है। पटना के अंजुमन इस्लामिया हॉल को इस योजना के तहत 51 करोड़ रुपए दिए गए हैं।
मुख्यमंत्री अल्पसंख्यक उद्यमी योजना के अंतर्गत किसी भी कथित अल्पसंख्यक व्यक्ति को 10,00,000 रु. का ऋण मिलेगा। इसमें से केवल 5,00,000 रु. वापस करने होंगे और वह भी किश्तों में। शेष 5,00,000 रु. बिहार सरकार अनुदान के तौर पर देगी। इसका सीधा मतलब यह है कि कर्ज में से 5,00,000 रु. राज्य सरकार माफ कर देगी।
यही नहीं, नीतीश सरकार ने गत 26 जुलाई को राज्य में अल्पसंख्यक आयोग, महादलित आयोग, अनुसूचित जाति आयोग, अनुसूचित जनजाति आयोग और महिला आयोग का गठन किया है। अल्पसंख्यक आयोग में अध्यक्ष समेत कुल 9 लोगों को शामिल किया गया है। सबसे विशेष बात है कि 9 में से 8 मुसलमान हैं। केवल एक सदस्य जैन समाज से है। अल्पसंख्यक आयोग का अध्यक्ष पूर्व विधायक रियाजुल हक उर्फ राजू को बनाया गया है, जबकि पूर्व मंत्री नौशाद आलम को उपाध्यक्ष मनोनीत किया गया है।
मुजफ्फरपुर हुसैन राही, महताब आलम उर्फ काबुल अहमद, इफ्तेकार खान उर्फ मुन्ना त्यागी, डॉ. इकबाल समी, अफरोज खातून और मुर्तजा अली कैसर को सदस्य बनाया गया है। गैर-मुस्लिम बिरादरी से सिर्फ मुकेश जैन को सदस्य मनोनीत किया गया है। जानकार बताते हैं कि अल्पसंख्यक आयोग में सभी अल्पसंख्यक समुदायों का प्रतिनिधित्व होना अनिवार्य है। लेकिन बिहार सरकार ने नियमावली और परंपरा को दरकिनार करते हुए अल्पसंख्यक आयोग में मुसलमानों को ही सम्मिलित किया है। जबकि यहां ईसाइयों की भी आधिकारिक जनसंख्या 20,00,000 से अधिक बताई जाती है।
मुसलमानों को मुआवजा
बिहार सरकार का मुस्लिम प्रेम किस सीमा तक है, इसे एक उदाहरण से समझा जा सकता है। रामनवमी शोभायात्रा पर हमले के बाद मुख्यमंत्री के गृह जिले नालंदा के बिहारशरीफ में हिंसा भड़की थी। 77 पीड़ितों को राज्य सरकार की ओर से मुआवजा दिया गया। इनमें से 60 मुस्लिम और सिर्फ 17 हिंदू थे। जुलूस पर हमला मुस्लिम समुदाय ने किया था, लेकिन ज्यादातर मुकदमे हिंदुओं पर दर्ज हुए और मुआवजा भी अधिकांश मुसलमानों को ही मिला। कह सकते हैं कि नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव चुनाव जीतने के लिए हर अल्पसंख्यक बेरोजगार युवा को 5,00,000 रु. की रिश्वत दे रहे हैं।
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