हिमालय क्षेत्र में बर्फ के पहाड़ पिघल रहे हैं। साल दर साल तेज होती जा रही गर्मी अपना दुष्प्रभाव दिखा रही है। दुनिया खतरे की कगार पर खड़ी है। जलवायु परिवर्तन हमारी ग्लेयिशरों को नुकसान पहुंचा कर उन्हें खत्म करता जा रहा है। सागरों का जलस्तर बढ़ रहा है। किनारे बसे इलाकों के डूबे का खतरा बढ़ रहा है। ऐसे में हिमालय क्षेत्र के भारत और चीन सहित आठ देशों ने दुनिया को सावधान किया है कि संभल जाओ, वरना सब मुसीबत में फंसेंगे।
बर्फ के पहाड़ों का पिघलना यूं तो सामान्य प्रक्रिया है लेकिन बहुत तेजी से पिघलना संकट की पदचाप भी है। इसलिए हिंदुकुश-हिमालय से लगते आठ देशों के समूह ने ग्लेशियरों की रक्षा करने के लिए दुनिया का आह्वान किया है कि बिना देर किए जलवायु परिवर्तन की रफ्तार थामने की ओर कदम बढ़ाएं। इन देशों का कहना है कि इसमें देर की गई तो दुनिया में हर तरफ पहाड़ी ग्लेशियरों को नुकसान पहुंचेगा। ग्लेशियरों का पिघलना इधर पिछले दस साल में बहुत तेज हुआ है।
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इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट संस्था के महानिदेशक पेमा ग्यात्सो का कहना है कि विश्व के दो अरब लोग अपने खाने और जल सुरक्षा के लिए इन पहाड़ों के पानी पर आश्रित हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण आर्कटिक और अंटार्कटिक में ग्लेशियारों के पिघलने के भयंकर नतीजों को लेकर दुनिया को सावधान हो जाना चाहिए।
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पर्यावरण विशेषज्ञों के साथ ही नीतियां बनाने वालों ने इस साल ग्लेशियरों को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचने के दुनिया पर पड़े भयंकर प्रभाव को लेकर होशियार किया है कि हिमनदों को बचा लो, अभी भी वक्त है। यह बात इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट तथा नेपाल के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की ओर से पिछले दिनों काठमांडू में आयोजित एक शिखर सम्मेलन में सामने आई है। इसमें हिंदुकुश हिमालय क्षेत्र के आठ देशों के मंत्रियों, कूटनीतिकों और नीति बनाने वालों के साथ ही इस क्षेत्र के विशेषज्ञों ने मिलकर चिंतन किया।
हिंदुकुश-हिमालय क्षेत्र के वे आठ देश हैं—अफगानिस्तान, भूटान, बांग्लादेश, भारत, चीन, नेपाल, म्यांमार तथा पाकिस्तान। ‘इंटरनेशनल क्रायोस्फीयर क्लाइमेट इनिशिएटिव’ के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार जेम्स किर्खम का कहना है, ”यदि इस बारे में फौरन कदम नहीं उठाए जाते तो दुनिया में पहाड़ी हिमनदों का क्षरण कोई रोक नहीं पाएगा।”
संस्था इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट ने जो बयान जारी किया है, उसमें साफ लिखा है, ”हमें अब धरती को इन सूरतों में पहुंचने से पहले सुधार की ओर बढ़ना होगा, नहीं तो दुनिया में जीवन पर संकट खड़ा हो जाएगा।” इस संस्था के महानिदेशक पेमा ग्यात्सो का कहना है कि विश्व के दो अरब लोग अपने खाने और जल सुरक्षा के लिए इन पहाड़ों के पानी पर आश्रित हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण आर्कटिक और अंटार्कटिक में ग्लेशियारों के पिघलने के भयंकर नतीजों को लेकर दुनिया को सावधान हो जाना चाहिए।
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि हिमनद इसी रफ्तार से पिघलते रहे तो ढाका, कराची, शंघाई तथा मुंबई के बड़े इलाकों हित कई अन्य क्षेत्र 2050 तक डूबने की कगार पर पहुंच सकते हैं। महानिदेशक किर्खम कहते हैं,”इससे वह जलवायु प्रणाली अस्थिर हो जाएगी जिसने धरती पर लाखों साल से जीने के लायक बनाया हुआ है। यदि कार्बन उत्सर्जन इसी तरह बढ़ता रहा तो नतीजा यह होगा कि सागर किनारे बसे ढाका, मुंबई, कराची तथा शंघाई महानगरों के बड़े क्षेत्र डूब जाएंगे।”
पर्यावरण विशेषज्ञ किर्खम के अनुसार, 2050 तक समुद्र के स्तर में बढ़ोतरी की वजह से अकेले बांग्लादेश में ही 1.8 करोड़ लोग शरणार्थी बन जाएंगे। पर्यावरणविदों ने कहा है कि हिंदुकुश हिमालयी क्षेत्र के बर्फ ढकी जगहों का तत्काल गहन अध्ययन करने की जरूरत है। अगर ये हिमनद पिघलते रहे तो फिर भूस्खलन जैसी अनेक भयंकर आपदाओं का खतरा बढ़ता जाएगा।
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