भारतीय चिप उपभोक्ता अभी तक इसके लिए विदेशों पर निर्भर थे। 2022 में भारतीय सेमीकंडक्टर उद्योग ने 90 प्रतिशत से अधिक आयात किया था।
भारत ने सेमीकंडक्टर इकोसिस्टम में काफी प्रगति की है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को सेमीकंडक्टर प्रौद्योगिकी में सिरमौर बनाने के लिए दिसंबर 2021 में ‘सेमीकंडक्टर मिशन’ शुरू किया था। 18 महीने बाद ही इसमें बड़ी सफलता मिली। प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिका यात्रा के बाद विश्व की प्रमुख सेमीकंडक्टर निर्माता कंपनी माइक्रोन ने गुजरात में 82.5 करोड़ डॉलर के निवेश की घोषणा की। माइक्रोन टेक्नोलॉजी की विशाल भारत-विशिष्ट निवेश योजना ने यह संकेत दिया कि भारत सेमीकंडक्टर निर्माताओं के लिए अगला महत्वपूर्ण ठिकाना है।
भारतीय चिप उपभोक्ता अभी तक इसके लिए विदेशों पर निर्भर थे। 2022 में भारतीय सेमीकंडक्टर उद्योग ने 90 प्रतिशत से अधिक आयात किया था। एक अनुमान के अनुसार, देश में सेमीकंडक्टर की खपत के 2026 में 80 अरब डॉलर और 2030 में 110 अरब डॉलर होने की उम्मीद है। माइक्रोन द्वारा अगले वर्ष से सेमीकंडक्टर का निर्माण शुरू करने के बाद आयात पर निर्भरता कम हो जाएगी। साथ ही, अमेरिकी कंपनी की घोषणा से भारत में स्टार्टअप को बढ़ावा देने में भी मदद मिलेगी। माइक्रोन के निवेश से अगले कुछ वर्षों में 5,000 प्रत्यक्ष और 15,000 सामुदायिक नौकरियां सृजित होंगी, जिसमें 500 नई हाई-एंड इंजीनियरिंग नौकरियां भी शामिल हैं।
बड़े लक्ष्य की ओर कदम
सेमीकंडक्टर का उपयोग स्मार्टफोन, क्लाउड सर्वर के साथ आधुनिक कारों, औद्योगिक स्वचालन, महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे और रक्षा प्रणालियों में होता है। इस कारण विश्व में इसकी बहुत मांग है। यह एक क्रिस्टलीय पदार्थ होता है, जो सिलिकॉन, टिन, सेलेनियम, जर्मेनियम, गैलियम और अन्य तत्वों से बना होता है। सेमीकंडक्टर मूल रूप से इन्सुलेटर और कंडक्टर के बीच विद्युत चालकता प्रदान करता है। आज सेमीकंडक्टर सभी क्षेत्रों का एक अभिन्न हिस्सा बन गया है। खास तौर से सभी इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के लिए यह एक आवश्यक घटक है। अभी तक विश्व के कुछ ही देशों को सेमीकंडक्टर के निर्माण में महारत हासिल है। ताइवान में ताइवान सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग कंपनी (टीएसएमसी) और दक्षिण कोरियाई कंपनी सैमसंग विश्व के 70 प्रतिशत सेमीकंडक्टर का उत्पादन करती हैं।
हालिया वर्षों में भारत ने सेमीकंडक्टर उद्योग में उल्लेखनीय प्रगति की है और सेमीकंडक्टर डिजाइन इंजीनियरों के अत्यधिक कुशल पूल के साथ अग्रणी देशों में से एक बन गया है। विश्व के सेमीकंडक्टर डिजाइन कार्यबल में भारतीय इंजीनियरों की हिस्सेदारी लगभग 20 प्रतिशत है। इनमें एक लाख से अधिक वीएलएसआई डिजाइन इंजीनियर वैश्विक सेमीकंडक्टर कंपनियों और घरेलू डिजाइन सेवा कंपनियों में काम करते हैं और वैश्विक टीमों के हिस्से के रूप में और स्वतंत्र रूप से अत्याधुनिक चिप विकास में योगदान करते हैं। हालांकि अभी तक देश में सेमीकंडक्टर का निर्माण नहीं होता। भारत सरकार ने 20 वर्षीय योजना पर काम शुरू कर दिया है। इसके तहत वैश्विक स्तर पर सेमीकंडक्टर की आपूर्ति शृंखला का बड़ा हिस्सा बनने के लिए एक इकोसिस्टम तैयार किया जा रहा है।
सरकार का लक्ष्य अगले 5 वर्ष में देश को विश्व का सबसे बड़ा सेमीकंडटक्टर निर्माता और 2030 तक सेमीकंडक्टर बाजार को एक ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचाना है। सरकार समग्र सेमीकंडक्टर पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण पर जोर देने के साथ यह भी सुनिश्चित कर रही है कि यह बदले में भारत के तेजी से बढ़ते इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण और नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र को उत्प्रेरित करे। इलेक्ट्रॉनिक्स और सेमीकंडक्टर में आत्मनिर्भरता के इस दृष्टिकोण को प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में हुई एक बैठक मेंकेंद्रीय मंत्रिमंडल ने देश में सेमीकंडक्टर और डिस्प्ले विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र के विकास के लिए 76,000 करोड़ रुपये की लागत से ‘सेमीकॉन इंडिया कार्यक्रम’ को मंजूरी देकर इसे गति प्रदान की है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य सेमीकंडक्टर का निर्माण और डिजाइन पारिस्थितिकी तंत्र में निवेश करने वाली कंपनियों को वित्तीय सहायता प्रदान करना है। इसके अतिरिक्त, देश में सेमीकंडक्टर निर्माण के लिए जरूरी कार्यबल भी तैयार किया जा रहा है। इसके लिए 100 से अधिक विश्वविद्यालयों में सेमीकंडक्टर निर्माण से जुड़ी पढ़ाई शुरू की जाएगी। सरकार ने क्षमता निर्माण, शोध और विकास के लिए अमेरिका के पर्ड्यू विवि और पिछले वर्ष सितंबर में गांधीनगर में वेदांता-फॉक्सकॉन के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए थे।
बढ़ता निवेश और बाजार
2022 में भारत का सेमीकंडक्टर बाजार 27.66 अरब डॉलर था। 2023-29 तक इसके 27.2 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि से बढ़ने का अनुमान है। एक अनुमान के अनुसार, भारत का सेमीकंडक्टर बाजार 2026 तक 80 अरब डॉलर से अधिक का हो जाएगा। इस वर्ष बाजार के राजस्व के 7.76 अरब डॉलर पर पहुंचने का अनुमान है, जो 2016 में 5.63 अरब डॉलर था। 2023-27 तक राजस्व में 8.31% की वार्षिक वृद्धि का अनुमान है। इस लिहाज से 2027 तक देश का सेमीकंडक्टर मार्केटवॉल्यूम 10.68 अरब अमेरिकी डॉलर हो जाएगा।
माइक्रोन के अतिरिक्त, एक अन्य कंपनी अप्लाइड मटेरियल्स भी बेंगलुरु में एक सहयोगी इंजीनियरिंग केंद्र स्थापित करने की योजना बना रही है। यह सेमीकंडक्टर उपकरण उप-प्रणालियों और घटकों के विकास को गति देने में सहयोग के लिए अनुप्रयुक्त इंजीनियरों, वैश्विक-घरेलू आपूर्तिकर्ताओं तथा अनुसंधान व शैक्षणिक संस्थानों के लिए केंद्र के तौर पर काम करेगा। साथ ही, यह केंद्र सेमीकंडक्टर उद्योग में भविष्य की प्रतिभाओं को प्रशिक्षित करने और विकसित करने में भी योगदान देगा, जिससे भारत के लिए वैश्विक चिप पारिस्थितिकी तंत्र में एक बड़ी भूमिका निभाने के नए अवसर खुलेंगे।
कैलिफोर्निया के सिलिकॉन वैली स्थित अप्लायड मटेरियल्स चिप और डिस्प्ले उत्पादन के लिए मटेरियल इंजीनियरिंग समाधान में अग्रणी है। यही नहीं, फे्रमोंट स्थित लैम रिसर्च कॉर्पोरेशन ने भी भारत में सेमीकंडक्टर इंजीनियरों की अगली पीढ़ी को प्रशिक्षित करने की अपनी प्रतिबद्धता की घोषणा की है। इसका लक्ष्य 10 वर्ष में 60,000 भारतीय इंजीनियरों को नैनोटेक्नोलॉजी में शिक्षित करना है, जो सेमीकंडक्टर शिक्षा और कार्यबल विकास में भारत के लक्ष्यों का समर्थन करती है। अभी देश में प्रतिभा संपन्न पेशेवरों की फौज हर साल 2000 चिप का निर्माण कर रही है।
सरकार का दूरदर्शी दृष्टिकोण
भारत का सेमीकंडक्टर बाजार सरकार द्वारा व्यापक रूप से 5जी तकनीक अपनाने, क्रिप्टोकरेंसी, डाटा माइनिंग की बढ़ती लोकप्रियता, बड़ी संख्या में प्रसंस्करण इकाइयों की आवश्यकता और डिजिटलीकरण की दिशा में लगातार प्रयासों जैसे कारकों से प्रेरित है। सेमीकंडक्टर की मांग में लगातार हो रही वृद्धि के मद्देनजर देश में सेमीकंडक्टर अनुसंधान और विकास को बढ़ावा देने के लिए इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी ने भारत सेमीकंडक्टर मिशन (आईएसएम) में 10 अरब डॉलर के निवेश की घोषणा की है, जो सेमीकंडक्टर बाजार में पैर जमाने की सरकार की इच्छा को दर्शाता है। सेमीकंडक्टर उद्योग को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने और भी कई कदम उठाए हैं, जिसमें इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र के लिए प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआई) योजना भी शामिल है। इस योजना के तहत देश में सेमीकंडक्टर विनिर्माण कंपनियों को 1.7 अरब डॉलर का प्रोत्साहन पैकेज दिया जा रहा है। इस नई नीति से न केवल सेमीकंडक्टर कंपनियों को फायदा होगा, बल्कि अप्रत्यक्ष और विशेष रोजगार के अवसर भी सृजित होंगे।
इसके अतिरिक्त, सरकार ने उद्योग को सहायता प्रदान करने के लिए डिजाइन लिंक्ड इंसेंटिव (डीएलआई) और अन्य योजनाएं, जैसे चिप्स टू स्टार्टअप (सी2एस) और इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट्स एंड सेमीकंडक्टर्स (एसपीईसीएस) को बढ़ावा देने की योजना शुरू की है। साथ ही, निर्माताओं को सेमीकंडक्टर उद्योग इकाई स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित करके चिप की वैश्विक कमी को दूर करने के लिए ‘सेमीकॉन इंडिया प्रोग्राम’ लागू किया वहीं, यूएस सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री एसोसिएशन और भारत इलेक्ट्रॉनिक्स सेमीकंडक्टर एसोसिएशन (आईईएसए) ने संयुक्त रूप से तत्काल उद्योग के अवसरों की पहचान करने और पूरक सेमीकंडक्टर पारिस्थितिकी तंत्र में दीर्घकालिक रणनीतिक विकास की सुविधा के लिए एक अंतरिम तैयारी मूल्यांकन जारी किया है। भारत का प्रतिभा पूल अद्वितीय है। अभी देश एक महत्वपूर्ण पड़ाव पर है और प्रतिभा पूल का उपयोग कर यह सेमीकंडक्टर विनिर्माण में तेजी से और कुशलता से बढ़ सकता है।
भारत के पास अग्रणी वैश्विक अनुसंधान और विकास केंद्र के रूप में उभरने की बौद्धिक क्षमता, दृढ़ संकल्प और क्षमता है। सरकार सेमीकंडक्टर उद्योग को मजबूत करने के अपने उद्देश्य पर केंद्रित है, जो बदले में देश के विस्तारित इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण और नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र के विकास को प्रोत्साहित करेगा। भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों का उत्पादन बढ़ने के साथ सुरक्षा, विद्युतीकरण, संचार और संपर्क के लिए सेमीकंडक्टर का उपयोग बढ़ने की उम्मीद है। भारत दुनिया के सबसे बड़े ईवी बाजारों में से एक है। 2021 में देश में 2,36,802 इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री हुई, जो विश्व में सर्वाधिक है। 2021 की पहली छमाही में ही 1,43,837 इलेक्ट्रिक वाहनों की ब्रिकी दर्ज की गई। इसे देखते हुए पूवार्नुमानित अवधि के दौरान भारत में सेमीकंडक्टर उद्योग को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।
प्रौद्योगिकी: एआई का वैश्विक केंद्र होगा भारत
नागार्जुन
भारत एआई अनुसंधान एवं नवाचार का भी वैश्विक केंद्र बनेगा। हाल के वर्षों में भारत ने एआई अनुसंधान और नवाचार पावरहाउस के रूप में खुद को स्थापित किया है। 2020 में एआई पेटेंट कराने के मामले में यह विश्व में 8वें स्थान पर और स्किल पेनेट्रेशन मामले में विश्व मे शीर्ष पर है। इसका एआई तैयार बाजार 6.4 बिलियन डॉलर का है। वहीं, भारतीय कंपनियां 2020 में एशिया प्रशांत क्षेत्र में एआई तकनीक अपनाने के मामले में दूसरे स्थान पर रहीं। एएमआर रिपोर्ट के अनुसार, एआई संबंधित चिप्स से 2025 तक राजस्व प्राप्ति 71 अरब डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है।
भारत विश्व के सबसे संपन्न स्टार्टअप इकोसिस्टम में से एक है। देश में दर्जनों यूनिकॉर्न अपनी मुख्य सेवाओं में एआई-संचालित टूल का प्रयोग कर रहे हैं। इनमें निरामई, क्रॉपिन, एक्वाकनेक्ट, कॉग्निएबल आदि प्रमुख हैं। इनके कारण भारत और विश्व, खासतौर से ग्लोबल साउथ के लिए उपकरण बनाने में भारत की एआई रणनीति का दायरा बढ़ा है। प्रधानमंत्री मोदी ने 2020 में कहा था, ‘‘हम चाहते हैं कि भारत एआई का वैश्विक केंद्र बने। हमारे प्रतिभाशाली दिमाग पहले से ही इस दिशा में काम कर रहे हैं।’’ प्रधानमंत्री के अनुसार, प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण (एनएलपी) भारत के शैक्षिक क्षेत्र को भी काफी प्रभावित करेगा, क्योंकि हम एआई तकनीक को आगे बढ़ा रहे हैं। एनएलपी में प्रगति का मतलब है कि नई शैक्षिक नीति के आधार पर ई-पाठ्यक्रम को क्षेत्रीय भाषाओं और बोलियों में विकसित किया जा सकता है।
2018 में जारी रिपोर्ट में नीति आयोग ने एआई पर राष्ट्रीय रणनीति पर प्रकाश डाला है। इसके अनुसार, एआई कृषि, स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में लोगों के समक्ष आने वाली सामाजिक चुनौतियों को हल करने की क्षमता के विकास के अलावा एआई तकनीक का उपयोग शुद्ध आर्थिक लाभ के लिए भी किया जाएगा। 2020 में सरकार ने कृत्रिम बुद्धिमता के लिए राष्ट्रीय रणनीति का एक मसौदा जारी किया था, ताकि देश में भविष्य के नियमों, विकास और एआई को अपनाने के लिए एक मजबूत आधार तैयार किया जा सके। इसके बाद फरवरी 2021 में एआई विकास और तैनाती के लिए सरकारों से आवश्यक व्यावसायिक अनुमोदन और मंजूरी प्राप्त करने के लिए एक राष्ट्रीय एकल खिड़की प्रणाली बनाई गई थी।
भारत की कई स्टार्टअप कंपनियां एआई के लिए नया चिप आर्किटेक्चर तैयार कर रही हैं, जो इंटेल और एनवीडिया जैसी कंपनियों से प्रतिस्पर्धा कर रही हैं। इसे देखते हुए सेमीकंडक्टर बाजार के तेज गति से बढ़ने की उम्मीद है। जी-20 बैठक से ठीक पहले एआई क्षेत्र में भारत की क्षमता पर चर्चा के लिए एनवीडिया के सीईओ जेन्सेन हुआंग ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की थी। इसके बाद भारत के दो सबसे बड़े व्यापारिक घरानों, रिलायंस और टाटा समूह ने एआई के लिए एनवीडिया से सौदा किया है। इस समझौते के तहत एनवीडिया क्लाउड एआई बुनियादी ढांचा प्लेटफॉर्म के निर्माण के लिए रिलायंस को आवश्यक कंप्यूटिंग शक्ति प्रदान करेगी, जबकि रिलायंस जियो बुनियादी ढांचे का प्रबंधन, रखरखाव और ग्राहक जुड़ाव की देख-रेख करेगी। रिलायंस का कहना है कि नया एआई बुनियादी ढांचा भारत की प्रमुख एआई परियोजनाओं को गति देगा, जिसमें चैटबॉट, दवा आविष्कार और जलवायु अनुसंधान शामिल हैं।
वहीं, टाटा-एनवीडिया साझेदारी का उपयोग भारत की शीर्ष सॉफ्टवेयर सेवा निर्यातक टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज द्वारा जेनरेटिव एआई एप्स और सुपर कंप्यूटर निर्माण व संसाधित करने के लिए किया जाएगा। इस समझौते का लाभ उठाकर टीसीएस अपने 6 लाख सशक्त पेशेवर कार्यबल को भी कुशल बनाएगी। इस सौदे से अमेरिकी चिप फर्म को दक्षिण एशियाई देश के उभरते एआई पारिस्थितिकी तंत्र में पैठ बढ़ाने में मदद मिलेगी। अभी इसे अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण चीन और कुछ अन्य देशों में कुछ चिप निर्यात में बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है।
भारत-अमेरिका साझेदारी
यह पहला अवसर है, जब सरकार के प्रयासों के परिणामस्वरूप कोई कंपनी भारत में सेमीकंडक्टर विनिर्माण इकाई लगाने के लिए तैयार हुई है। इससे पूर्व कांग्रेस की सरकार ने 1980, 1990 और 2010 में भारत में सेमीकंडक्टर उद्योग लाने के प्रयास किए, लेकिन उसे 40 वर्ष तक इसमें सफलता नहीं मिल सकी थी। लेकिन भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार उभरती हुई प्रौद्योगिकी में निवेश आकर्षित करने में सफल रही है। इस साल जून में अपनी अमेरिका यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने सेमीकंडक्टर, अंतरिक्ष, क्वांटम कंप्यूटिंग और एआई सहित 35 उभरती प्रौद्योगिकियों पर भारत-अमेरिका साझेदारी पत्र पर हस्ताक्षर किए थे। साथ ही, माइक्रोन के सीईओ संजय मेहरोत्रा से भारत में सेमीकंडक्टर विनिर्माण को बढ़ावा देने का आग्रह किया था। प्रधानमंत्री से मुलाकात के तुरंत बाद संजय मेहरोत्रा ने भारत में 82.5 करोड़ डॉलर के निवेश के साथ गुजरात में नई असेंबली और परीक्षण सुविधा विकसित करने की घोषणा की थी। माइक्रोन टेक्नोलॉजी के निवेश प्रस्ताव से इस क्षेत्र को नई गति मिलेगी। माइक्रोन की इकाई स्थापित होने के बाद भारत घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में सेमीकंडक्टर की मांग को पूरा करेगा।
माइक्रोन का कहना है कि उसने इसलिए गुजरात को चुना है, क्योंकि यहां विनिर्माण बुनियादी ढांचा, अनुकूल कारोबारी माहौल और साणंद औद्योगिक पार्क (गुजरात औद्योगिक विकास निगम-जीआईडीसी) उपलब्ध है। पहले चरण में वह 5 लाख वर्ग फीट में इकाई लगाएगी। वह 2024 के अंत तक काम शुरू कर देगी। इसके बाद, वैश्विक मांग के अनुरूप धीरे-धीरे अपनी क्षमता बढ़ाएगी। इसके बाद माइक्रोन परियोजना का दूसरा चरण शुरू करेगी। माइक्रोन के सीईओ मेहरोत्रा के अनुसार, कुल परियोजना लागत की 50 प्रतिशत वित्तीय सहायता उन्हें केंद्र सरकार से, जबकि 20 प्रतिशत वित्तीय प्रोत्साहन राज्य सरकार से मिलेगा। इस तरह माइक्रोन और केंद्र व राज्य सरकार द्वारा दो चरणों में संयुक्त रूप से 2.75 अरब डॉलर का निवेश किया जाएगा।
बहरहाल, भारत में माइक्रोन की इकाई रिकॉर्ड 18 महीने में तैयार हो जाएगी और 2024 के अंत तक उत्पादन भी शुरू कर देगी। यह सहयोगात्मक नवाचार के एक नए युग की शुरुआत है। वहीं, भारत और अमेरिका के बीच साझेदारी का उद्देश्य सेमीकंडक्टर आपूर्ति शृंखलाओं को मजबूत करना और सेमीकंडक्टर आपूर्ति शृंखला के लचीलेपन व विविधीकरण को बढ़ाने के लिए दोनों सरकारों के बीच एक सहयोगी तंत्र स्थापित करना है। प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान सेमीकंडक्टर प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में तीन बड़े कदम उठाए गए हैं। मोदी सरकार का प्रयास इस बात पर केंद्रित है कि प्रौद्योगिकी, प्रौद्योगिकी के संयुक्त विकास और वैश्विक आपूर्ति शृंखला व्यवस्था में भारत को कैसे शामिल किया जाए। सरकार की नीतियां और सेमीकंडक्टर प्रौद्योगिकी में किए जा रहे प्रयासों से इस तथ्य पर विश्वास किया जा सकता है कि भारत इस क्षेत्र में अगली बड़ी शक्ति बनेगा।
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