महिला आरक्षण विधेयक संसद के दोनों सदनों से पारित हो गया। इस विधेयक को लेकर जैसी राजनीतिक खींचतान आज तक चलती आ रही थी, हालांकि उसकी तुलना में इस बार राजनीति ज्यादा नहीं हो सकी। तो क्या इसे संसद के नए भवन से मिला एक शुभ संकेत माना जाए? संभवत: नहीं।
महिला आरक्षण विधेयक पारित होने पर कांग्रेस ने जिस तरह श्रेय पर दावा किया है, उससे यही संदेह और पुष्ट होता है। जिस पार्टी के सदस्य सिर्फ अपने आलाकमान की नजरों में आने के लिए, इस बात पर एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा करते रहे हों कि इस मुद्दे पर पहले किसे बोलना चाहिए, जिस पार्टी के संसदीय दल के नेता को भी साथ बैठाकर आलाकमान भरे सदन में कैमरों के सामने निर्देश देता जा रहा हो, जो पार्टी विधेयक को लगभग एक दर्जन बार संसद से वापस भेज चुकी हो, उसे किस अधिकार से इस विधेयक के पारित होने का श्रेय लेना चाहिए?
एक और विडंबना देखिए। मुस्लिम लीग द्वारा विधेयक का विरोध किया जाना समझा जा सकता है, क्योंकि मुस्लिम लीग तो संसद में भी हिजाब और बुरके की वकालत करती है, महिलाओं का नेतृत्वकारी भूमिका अपनाना तो उनकी किसी अवधारणा में ही नहीं है। नारी शक्ति की पुरजोर वकालत तो सनातन धर्म में की गई है, प्रधानमंत्री ने बार-बार की है, सनातन धर्म के सभी महापुरुषों एवं धर्मगुरुओं द्वारा की गई है। विडंबना यह कि जो पार्टी सनातन धर्म के विनाश की बात का मौन समर्थन कर रही है, वह महिला आरक्षण के श्रेय पर दावा कर रही है। जब आपके साथी दल विधेयक का हर संभव विरोध कर रहे हैं, तब आप श्रेय मांग रहे हैं, यह कैसा विरोधाभास है।
एक और विडंबना।
लगभग एक दशक से चंद सदस्यों वाले इसी दल ने हंगामा कर सकने की अपनी क्षमता के बूते सदन को बंधक बना रखा था। फिर अचानक यह विधेयक इतनी सरलता से कैसे पारित हो गया? इसका उत्तर कांग्रेस ने अपनी भंगिमाओं से स्वयं दे दिया है। कांग्रेस खुलकर विधेयक का विरोध नहीं कर सकी, तो उसका कारण मात्र यह था कि उसकी नीयत विधेयक पारित होने का श्रेय लेने की थी। यह धारणा सिरे से गलत है कि कांग्रेस की सरकारें गठबंधन की मजबूरी के कारण यह विधेयक पारित नहीं करा सकती थी। सच्चाई यह है कि गठबंधन में उस समय कांग्रेस के साथ रहे दल, जिनमें से अधिकांश आज भी कांग्रेस के साथ हैं, मुख्यत: इस कारण कांग्रेस के साथ बने हुए थे, क्योंकि उनके नेताओं के खिलाफ सीबीआई में और अन्यत्र मामले दर्ज थे।
क्या कांग्रेस श्रेय के लिए इस कारण बहुत बेचैन है, क्योंकि इसमें उसको पुन: एक परिवार को आगे रखने का अवसर नजर आया है? यह बहुत कुछ वैसा ही है जैसे निहायत अयोग्य बेटों को उपमुख्यमंत्री और मंत्री बनाने के बाद यह दावा किया जाए कि वह पिछड़े वर्ग के हैं अथवा हजारों करोड़ रुपये की संपत्ति के मालिक का यह स्वांग करना कि उसके पास रहने के लिए जगह नहीं है। दोनों का लक्ष्य यही होता है कि नीतियां सरकार की हों, व्यवस्था सरकार की हो और लाभ सिर्फ उनके परिवार को मिले। और वह भी समाज के एक पूरे वर्ग के नाम पर मिले।
लोकसभा में एक बहस के दौरान मुलायम सिंह यादव ने खुलकर कहा था कि वह विधेयक के विरोध में हैं, लेकिन मतदान नहीं कर सकते क्योंकि उनके खिलाफ मामले चल रहे हैं। फिर यह विधेयक पारित न कराने का दोष उन्हें कैसे दिया जाए? श्रेय लेने की जिस बेचैनी के लिए कांग्रेस ने संसद में हंगामा करने तक की अपनी आदत पर नियंत्रण रखने का इस बार स्वांग किया, वही उसका सारा कच्चा चिट्ठा खोल देती है। क्या कांग्रेस महिला आरक्षण को वोट बैंक साधने का औजार समझ रही है? पुरानी राजनीति की यह सोच ही गलत है।
वोट बैंकों की राजनीति ने सिर्फ कुछ परिवारों का भला किया है, लेकिन यहां बात देश के हर परिवार का भला करने की व्यापक नीतियों को उनकी पूर्णता तक ले जाने की है। महिला आरक्षण के वर्तमान विधेयक की पृष्ठभूमि में सरकार द्वारा महिला सशक्तिकरण के लिए चलाई गई दर्जनों योजनाएं मौजूद हैं। क्या कांग्रेस श्रेय के लिए इस कारण बहुत बेचैन है, क्योंकि इसमें उसको पुन: एक परिवार को आगे रखने का अवसर नजर आया है? यह बहुत कुछ वैसा ही है जैसे निहायत अयोग्य बेटों को उपमुख्यमंत्री और मंत्री बनाने के बाद यह दावा किया जाए कि वह पिछड़े वर्ग के हैं अथवा हजारों करोड़ रुपये की संपत्ति के मालिक का यह स्वांग करना कि उसके पास रहने के लिए जगह नहीं है। दोनों का लक्ष्य यही होता है कि नीतियां सरकार की हों, व्यवस्था सरकार की हो और लाभ सिर्फ उनके परिवार को मिले। और वह भी समाज के एक पूरे वर्ग के नाम पर मिले।
इस प्रकार की राजनीति वास्तव में लोकतंत्र का सामंतीकरण करती है। कांग्रेस और उसके पुराने तरीकों की राजनीति इस सामंतीकरण के सबसे बड़े प्रतीक हैं। वास्तविक लोकतंत्र तब माना जा सकता है जब देश के हित के साथ देश के हर नागरिक का हित सीधे जुड़ता हो। अब युग वास्तविक लोकतंत्र का है, और पुराने तरीकों की राजनीति को इसमें अवरोध बनने का प्रयास नहीं करना चाहिए। सदनों में आने वाली नारी शक्ति इन पुराने तरीकों को हमेशा के लिए समाप्त करा देगी। बेहतर होगा कि समय रहते इसका अहसास हो जाए।
@hiteshshankar
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