इजरायल से भारत तक हाइफा के वीरों को किया गया नमन

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WEB DESK

 

23 सितंबर, 1918 को भारतीय रणबांकुरों की 15वीं शाही घुड़सवार सेना ने इजराइल के हाइफा शहर को ओट्टोमन साम्राज्य से मुक्त कराया था। इसलिए आज के दिन को हाइफा दिवस के रूप में मनाया जाता है।

आज हाइफा दिवस के अवसर पर नई दिल्‍ली स्थित तीन मूर्ति चौक पर एक कार्यक्रम आयोजित हुआ। राष्ट्रीय सुरक्षा जागरण मंच के तत्वावधान में आयोजित इस कार्यक्रम में वरिष्ठ प्रचारक श्री इंद्रेश कुमार, केंद्रीय मंत्री जनरल वी.के. सिंह, भारत स्थित इजरायली दूतावास के अधिकारी ओहद नक्श कार आदि उपस्थित थे। इन सभी ने हाइफा के वीरों को पुष्पांजलि अर्पित की।
उल्लेखनीय है कि ये सैनिक ब्रिटिश भारतीय सेना के हिस्सा थे और प्रथम विश्व युद्ध में भाग लेने के लिए इजरायल गए थे। तुर्क सैनिकों की तोपों का बड़ी बहादुरी के साथ सामना करते हुए ये भारतीय घुड़सवार सैनिक आगे बढ़ते गए। 23 सितम्बर, 1918 को तीन भारतीय जांबाजों (मेजर ठाकुर दलपत सिंह, कैप्टन बहादुर अमान सिंह एवं कैप्टन अनूप सिंह) ने अपनी जान देकर तुर्कों से इस्रायल के हैफा शहर को मुक्त कराया था। हैफा शहर पर इनका कब्जा होने के बाद ब्रिटिश सेना आगे बढ़ पाई थी। इजरायल का मानना है कि हैफा शहर पर कब्जा होने से ही गठबंधन सेना विजय की ओर अग्रसर हो पाई। इसलिए इस्रायल हर वर्ष इन सैनिकों को याद करता है।
इन सैनिकों को सम्मान देने के लिए इजरायल ने 2012 में अपने विद्यालयीन पाठ्यक्रम में भारतीय सैनिकों की अद्भुत वीरता को शामिल किया है। यानी इस्रायली बच्चे भारतीय सैनिकों की बहादुरी गाथा पढ़ रहे हैं। धन्य हैं वे भारतीय सैनिक, जिन्हें सेवा के लिए इतना बड़ा सम्मान मिल रहा है, वह भी विदेशी धरती पर। इस्रायल ने अपने स्कूली पाठ्यक्रम में ‘सैन्य प्रशिक्षण’ को भी शामिल किया है। इस तरह वहां का हर नागरिक एक सैनिक भी होता है।

देश के लिए मर-मिटने वालों का सम्मान होना ही चाहिए। हैफा शहर पर कब्जा करने वालों की स्मृति में ही नई दिल्ली में ‘तीन मूर्ति स्मारक’ 1922 में बनाया गया है। यह स्मारक अभी भी शान के साथ चाणक्यपुरी थाने के पास खड़ा है। प्रथम विश्वयुद्ध में शहीद हुए अन्य करीब 80,000 सैनिकों की स्मृति में ‘इण्डिया गेट’ बनाया गया है। इस पर उन सैनिकों के नाम अंकित हैं।
ऐसे ही कुछ वर्ष पहले पाकिस्तान में लाहौर के शादमान चौक का नामकरण शहीद भगत सिंह के नाम पर किया गया है। उल्लेखनीय है कि इसी चौक पर पहले सेंट्रल जेल हुआ करती थी और वहीं भगत सिंह को राजगुरु और सुखदेव के साथ 23 मार्च, 1931 को फांसी पर लटकाया गया। 1961 में उस जेल को तोड़कर शादमान कालोनी बसा दी गई थी। 2012 में ही वहां के प्रशासन ने निर्णय लिया कि उस चौक का नाम शहीद भगत सिंह चौक होगा।

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