नेपाली संसद ने पिछले साल एमसीसी प्रस्ताव को न केवल पारित किया, बल्कि एक वर्ष बाद इसके क्रियान्वयन को लेकर समझौता भी कर लिया। दूसरी ओर, भारत भी नेपाल के साथ द्विपक्षीय सहयोग बढ़ा रहा है।
अमेरिकी परियोजना मिलेनियम चैलेंज कॉम्पैक्ट (एमसीसी) के विरुद्ध चीन एक बार फिर नेपाल के वामपंथी दलों को भड़काने की कोशिश कर रहा है। चीन इसे लेकर बेचैन है कि नेपाल ने 2017 में बीआरआई पर हस्ताक्षर किया था, लेकिन यह परवान नहीं चढ़ा। वहीं, नेपाली संसद ने पिछले साल एमसीसी प्रस्ताव को न केवल पारित किया, बल्कि एक वर्ष बाद इसके क्रियान्वयन को लेकर समझौता भी कर लिया। दूसरी ओर, भारत भी नेपाल के साथ द्विपक्षीय सहयोग बढ़ा रहा है।
इसी बौखलाहट में नेपाल में चीन कभी पोखरा अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे को, तो कभी झापा जिले में निमार्णाधीन औद्योगिक उद्यान को बीआरआई का हिस्सा बता रहा है। हालांकि नेपाल सरकार ने चीनी दावे का खंडन कर स्पष्ट कर दिया है कि उसने चीन से ब्याज पर कर्ज लेकर हवाईअड्डे बनाया है, न कि अनुदान लेकर। साथ ही, चीन को इस तरह की बयानबाजी न करने की नसीहत भी दी है। अब चीनी राजदूत चेन सोंग ने एक कार्यक्रम में नेपाल को आर्थिक मामलों में नसीहत देने के साथ भारत-नेपाल संबंधों पर अमर्यादित व गैर-कूटनीतिक बयानबाजी की, जिस पर भारत ने कड़ी प्रतिक्रिया दी। साथ ही, काठमांडू में भारतीय दूतावास ने नेपाल के विदेश मंत्रालय से इस मामले में कार्रवाई करने को कहा है।
चीनी राजदूत ने कहा था, ‘‘दुर्भाग्य से नेपाल के पास भारत जैसा पड़ोसी है। नेपाल जब तक भारत पर निर्भर रहेगा, वह कभी आर्थिक उन्नति नहीं कर सकता है। भारत एक बड़ा बाजार है, जिसका आप फायदा उठा सकते हैं। लेकिन नेपाल सहित अपने अन्य पड़ोसियों के प्रति भारत की अनुकूल नीति नहीं है।’’ चीनी राजदूत ने आगे कहा कि नेपाल-भारत के बीच जो दीर्घकालिक विद्युत व्यापार समझौता हुआ है, वह नेपाल के हित में नहीं है। नेपाल सरकार, नेपाल के राजनीतिक दल, उद्योगपति व आमजन के मन में यह भ्रम है कि भारत को बिजली बेचकर नेपाल आर्थिक विकास कर लेगा। नेपाल चाहे जितनी भी बिजली बेचे, भारत के साथ उसका व्यापार घाटा कम नहीं होगा। कारण, नेपाल यदि भारत को 100 करोड़ रुपये की बिजली बेचेगा, तो उसे भारत से 1000 करोड़ रुपये का आयात भी करना होगा। इसलिए नेपाल को आर्थिक रूप से सबल हो रहे चीन के साथ व्यापारिक संबंध बनाना चाहिए और उसकी आर्थिक प्रगति व उन्नति का लाभ उठाना चाहिए। यही नहीं, चीनी राजदूत ने भारत की आर्थिक प्रगति और विकास पर वैश्विक मीडिया की खबरों को भी झूठा करार देते हुए कहा, ‘‘भारत में किसी भी प्रकार की आर्थिक प्रगति नहीं हो रही है। भारत को लेकर केवल प्रोपेगेंडा फैलाया जा रहा है।’’
चीनी राजदूत के इस राजनीतिक बयान का नेपाल में चौतरफा विरोध हो रहा है। नेपाल के सभी राजनीतिक दलों, आमजन और सामाजिक संस्थाओं ने भी इसका विरोध किया है। संसद में कुछ सांसदों ने चीनी राजदूत को वापस भेजने तक की मांग की, जबकि कुछ सांसदों ने प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल को चीन की यात्रा रद्द करने का सुझाव दिया। इसके अलावा, देश के सभी अखबारों ने अपने संपादकीय में चीनी राजदूत को मर्यादा में रह कर बोलने की नसीहत दी है।
नेपाल को अपने पड़ोसी देश भारत के साथ कैसा संबंध रखना है, क्या व्यापार करना है और क्या नहीं करना है, यह नेपाल खुद तय करेगा। इसमें किसी तीसरे देश को बोलने की अनुमति नहीं है। उधर, प्रधानमंत्री कार्यालय ने भी चीनी राजदूत को तलब कर कहा कि प्रधानमंत्री दहल के चीन दौरे की तैयारी के बीच इस तरह का अनर्गल बयान दौरे पर नकारात्मक असर डाल सकता है।
संसद की अंतरराष्ट्रीय संबंध समिति ने विदेश मंत्री को बुलाकर चीनी राजदूत से स्पष्टीकरण लेने का निर्देश दिया। इसके बाद विदेश मंत्रालय ने चीनी राजदूत को बुलाकर फटकार लगाई। विदेश मंत्री नारायण प्रसाद साउद ने राजदूत से दो टूक शब्दों में कहा कि भारत के साथ नेपाल का जो संबंध है, उसकी तुलना किसी भी देश से नहीं की जा सकती है। नेपाल को अपने पड़ोसी देश भारत के साथ कैसा संबंध रखना है, क्या व्यापार करना है और क्या नहीं करना है, यह नेपाल खुद तय करेगा। इसमें किसी तीसरे देश को बोलने की अनुमति नहीं है। उधर, प्रधानमंत्री कार्यालय ने भी चीनी राजदूत को तलब कर कहा कि प्रधानमंत्री दहल के चीन दौरे की तैयारी के बीच इस तरह का अनर्गल बयान दौरे पर नकारात्मक असर डाल सकता है।
दरअसल, नेपाल सरकार पर चीन यह दबाव बना रहा है कि वह एमसीसी के क्रियान्वयन समझौते की तरह बीआरआई के क्रियान्वयन के लिए भी लिखित समझौता करे। वह इस प्रयास में है कि नेपाल कम से कम पोखरा हवाईअड्डे को ही बीआरआई के अंतर्गत रखने के लिए हस्ताक्षर कर दे। नेपाल को राजी करने के लिए चीन कोरोना महामारी के बाद से हर महीने अपने शीर्ष नेताओं को भेज रहा है। इस क्रम में वह विदेश मंत्री, रक्षा मंत्री, चीनी जनकांग्रेस के अध्यक्ष, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की स्थायी समिति के सदस्य, सीपीसी के विदेश विभाग प्रमुख को नेपाल भेज चुका है।
ऐसा नहीं है कि चीन की ओर से ही उच्च स्तरीय दौरे किए जा रहे हैं। चीन सरकार के निमंत्रण पर नेपाल से भी हर महीने कोई न कोई बड़ा प्रतिनिधिमंडल भेजा जा रहा है। इस क्रम में नेपाल के उपराष्ट्रपति, लगभग आधा दर्जन मंत्री, विभिन्न दलों के शीर्ष नेता, संसद के दोनों सदनों के अध्यक्ष, सांसदों का प्रतिनिधिमंडल चीन जा चुका है। इस लेख के लिखे जाने तक प्रमुख विपक्षी दल नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी एकीकृत मार्क्सवादी लेनिनवादी (एमाले) के महासचिव शंकर पोखरेल के नेतृत्व में पार्टी के शीर्ष नेताओं सहित सभी भातृ संगठनों के प्रमुख 15 दिनों के चीन दौरे पर थे। इससे पहले, सत्तारूढ़ माओवादी पार्टी के महासचिव देव गुरूंग अपने कुछ पार्टी नेताओं और पिछले महीने संसद के निचले सदन प्रतिनिधि सभा के सभामुख देवराज घिमिरे 10 सांसदों के सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल के साथ 15 दिनों के लिए चीन गए थे।
नेपाल के उत्तरी सीमा के कई इलाकों, कुछ सीमावर्ती गांवों पर चीन पहले ही कब्जा कर चुका है। विश्व की सबसे ऊंची चोटी सागरमाथा (माउंट एवरेस्ट) नेपाल में है, लेकिन चीन इसे भी अपना बताता है। चीनी राजदूत ने नेपाल-भारत संबंधों को लेकर ऐसे समय पर प्रलाप किया है, जब चीन के नए नक्शे का नेपाल में चौतरफा विरोध हो रहा है। हाल ही में प्रकाशित अपने राजनीतिक नक्शे में चीन ने नेपाल के उस भू-भाग को अपना बताया है, जिसे नेपाली संसद ने संविधान संशोधन कर अपना बताया था।
चीन बीआरआई के साथ अन्य दो बड़ी परियोजनाओं ग्लोबल सिक्योरिटी इनिशिएटिव (जीएसआई) और ग्लोबल डेवलपमेंट इनिशिएटिव (जीडीआई) में भी नेपाल को सहभागी बनने के लिए दबाव डाल रहा है। जीडीआई पर हस्ताक्षर कर चुके नेपाल ने जीएसआई में शामिल होने से इनकार कर दिया है। यही नहीं, चीन ने पोखरा हवाईअड्डे के निर्माण के लिए जो कर्ज दिया है, उसे अनुदान में बदलने, ब्याज 5 से घटाकर 2.5 प्रतिशत करने और कर्ज की अवधि 13 वर्ष से बढ़ाकर 25 वर्ष करने का प्रस्ताव दिया था। बीआरआई के अंतर्गत किन परियोजनाओं को आगे बढ़ाना है, इसे लेकर भी चीन ने सूची मांगी थी। लेकिन नेपाल ने अभी तक सूची नहीं दी है।
अभी तक चीन ने कुछ भौतिक पूर्वाधार, जिसमें चीन की सीमा से सटी सड़क परियोजना और अंतरदेशीय विद्युत पारेषण लाइन के निर्माण को बीआरआई में शामिल करने का प्रस्ताव दिया है, जिसे नेपाल के विदेश मंत्री ने ठुकरा दिया है। पहले नेपाल ने चीन के लुभावन प्रस्तावों पर थोड़ा सकारात्मक रुख दिखाया था, लेकिन जैसे-जैसे प्रधानमंत्री प्रचंड के चीन दौरे की तारीख निकट आ रही है, इस पर संशय बढ़ रहा है। सरकार पर गठबंधन में शामिल दलों का भी दबाव है कि वह चीन के कर्ज जाल में न फंसे। नेपाल के प्रधानमंत्री प्रचंड 18-22 सितंबर तक न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा में भाग लेंगे और वहीं से एशियाई खेलों के उद्घाटन समारोह में शामिल होने के लिए चीन जाएंगे। चीन से पहले प्रचंड का अमेरिका दौरा और वहां से होकर चीन जाने के कई कूटनीतिक मायने हैं। चीन को प्रचंड का अमेरिका दौरा भी नहीं सुहा रहा है।
नेपाल के उत्तरी सीमा के कई इलाकों, कुछ सीमावर्ती गांवों पर चीन पहले ही कब्जा कर चुका है। विश्व की सबसे ऊंची चोटी सागरमाथा (माउंट एवरेस्ट) नेपाल में है, लेकिन चीन इसे भी अपना बताता है। चीनी राजदूत ने नेपाल-भारत संबंधों को लेकर ऐसे समय पर प्रलाप किया है, जब चीन के नए नक्शे का नेपाल में चौतरफा विरोध हो रहा है। हाल ही में प्रकाशित अपने राजनीतिक नक्शे में चीन ने नेपाल के उस भू-भाग को अपना बताया है, जिसे नेपाली संसद ने संविधान संशोधन कर अपना बताया था।
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