अभी तक केवल कट्टर इस्लामिक देशों द्वारा ही यह नियम बनाए जा रहे थे कि महिलाओं को कैसे वस्त्र पहनने चाहिए और कैसे नहीं? मगर अब कम्युनिस्ट चीन में एक प्रस्तावित क़ानून के माध्यम से सभी नागरिकों के लिए ऐसे वस्त्र पहनने की मनाही होने जा रही है, जो राष्ट्रीय भावनाओं को आहत कर सकते हैं। यह बहुत ही हैरान करने वाला तथ्य है कि जहां भारत में वामपंथी सोच वाले लोग राष्ट्रवाद को कट्टरता से जोड़ते हैं तो वहीं हर वामपंथी देश में वह राष्ट्र को ही सर्वोपरि रखते हैं।
हर वामपंथी देश में उनके अपने देश के हित सबसे पहले आते हैं और उसके बाद कथित मानवता। परन्तु भारत में उन्हें राष्ट्र शब्द नहीं चाहिए। चीन से जो इस समय समाचार आ रहे हैं, वह इनके पाखण्ड की पोल सबसे अधिक खोलते हैं। जैसे भारत में मुक्त संबंधों की वकालत करने वाले एवं हर मामले में चीन की ओर मुंह ताककर विचार व्यक्त करने वाले वामपंथियों ने चीन के पूर्व विदेश मंत्री के इस आधार पर हटाए जाने के विरोध में एक भी शब्द नहीं कहा जिसमें “अवैध” सम्बन्ध और उसके फलस्वरूप एक बच्चे का जन्म सम्मिलित था।
किन गैंग को जुलाई में उनके पद से हटा दिया गया था क्योंकि उनके “लाइफस्टाइल” को लेकर चीन की कम्युनिस्ट पार्टी को कुछ समस्याएँ थीं। जब किन अमेरिका में थे, तो कहा जाता है कि उनके वहां पर सम्बन्ध बने और उसके परिणामस्वरूप एक बच्चे का जन्म हुआ, जिसकी शिकायत मिलने पर किन को पद से हटा दिया गया। जबकि भारत में वामपंथी हर प्रकार के यौन सम्बन्धों की वकालत करते नहीं अघाते हैं।
किन से हटकर आम नागरिकों एवं विशेषकर महिलाओं की स्वतंत्रता पर आते हैं। भारत में वामपंथी और फेमिनिस्ट स्वयं को हर उस गरिमापूर्ण वस्त्र से आजाद करना चाहती हैं जो हिन्दू धर्म की संस्कृति के अनुसार हैं और जो मात्र मंदिरों आदि में वहां की परम्परा के अनुसार हैं। ऐसा अतीत में कई अवसरों पर देखा गया है और अभी तक माई बॉडी माई चॉइस का नारा लगाने के लिए ऐसी औरतें सबसे पहले आगे रहती हैं। परन्तु जब चीन की ओर दृष्टि डालेंगे और इसलिए डालनी पड़ रही है क्योंकि यह समाचार पूरी दुनिया की मीडिया प्रमुखता से प्रकाशित कर रही है, भारत की वामपंथी और चीन परस्त मीडिया को छोड़कर कि चीन में नागरिकों के लिए एक ऐसा ड्रेस कोड लागू होने जा रहा है, जिसके उल्लंघन पर जेल जा सकते हैं!
चीन की सरकार ऐसी ड्रेस पालिसी बनाने जा रही है, जिसके चलते यदि राष्ट्रीय भावना का अपमान हुआ तो व्यक्ति को जेल में डाला जा सकता है जैसा वर्ष 2022 में एक महिला को जापानी कुमोनो पहनने पर जेल में डाल दिया गया था। जापान के साथ चीन के सम्बन्ध कितने तल्ख़ हैं, इसे बताने की आवश्यकता नहीं है, परन्तु क्या यह वस्त्रों तक आ सकता है? क्या जिस देश से राजनीतिक शत्रुता हो, उसकी पोशाक तक से इस सीमा तक औपचारिक एवं आधिकारिक घृणा की जा सकती है कि व्यक्ति को जेल में ही डाल दिया जाए? या फिर वह वस्त्र छीन लिया जाए? क्या यही राष्ट्रवाद है? यह वह तानाशाही है, जिसे कम्युनिस्ट पसंद ही नहीं करते हैं बल्कि उसे लागू करना चाहते हैं। हर जगह!
भारत में मुक्त यौन सम्बन्धों एवं लिंग मुक्त यौन संबंधों की वकालत करने वाले वामपंथी इस घटना पर मौन हैं कि कैसे चीन में रेनबो (इन्द्रधनुष के झंडे वाले) वस्त्रों को पहनने पर लोगों को एक कंसर्ट में प्रवेश करने की अनुमत नहीं दी गयी थी। रेनबो के झंडे का अर्थ एलजीबीटीक्यू का समर्थन करना होता है। भारत में नैतिकता का विरोध करने वाले वामपंथियों के प्रिय चीन में, वर्ष 2019 में नैतिकता दिशानिर्देश जारी किए गए थे, जिसमें लोगों से कम कार्बन फुट प्रिंट के साथ यात्रा करने का और कम्युनिस्ट पार्टी में विश्वास रखने का निर्देश दिया गया था।
जापान विरोधी भावनाओं के चीन में हावी होने के कारण यह प्रस्तावित क़ानून लोगों को भयावह लग रहा है क्योंकि लोगों को लगता है कि कीमोनो पहनने वाला वर्ग इसका शिकार होगा। हालांकि इस क़ानून का चीन की सोशल मीडिया साइट पर विरोध करने वाले भी गायब हो रहे हैं। टाइम के अनुसार डु झियांग्योग जो वीइबो पर खुद को वकील बता रहे थे, उन्होंने लिखा था कि क्या चीनी राष्ट्र की भावना मजबूत नहीं होनी चाहिए और कैसे वह मात्र वस्त्रों से क्षतिग्रस्त हो सकती है? और उन्होंने इस प्रस्तावित क़ानून को अनिश्चितता और अत्याचार बढ़ाने वाला कानून बताया था। बाद में वह पोस्ट तो गायब हुई ही, साथ ही टाइम के अनुसार डु से मीडिया का भी सम्पर्क नहीं हो पाया था।
जब राष्ट्रीय भावना के आधार पर वस्त्र का प्रस्ताव है तो लोग प्रश्न कर रहे हैं कि पश्चिमी परिधानों का क्या होगा? क्या पश्चिमी परिधान पश्चिमी देशों द्वारा किए गए अत्याचारों आदि को नहीं प्रतिबिंबित करेंगे तो क्या पश्चिमी वस्त्रों से राष्ट्र की भावनाएं आहत नहीं होंगी? राष्ट्र की भावनाओं के आधार पर वस्त्र, यह एक ऐसा कानून है जो वस्त्र पहनने की मूलभूत आजादी पर प्रहार करता है। परन्तु यह बहुत ही हैरानी की बात है कि चीन को अपना सरपरस्त एवं हर चीज में आदर्श मानने वाले वामपंथी एवं फेमिनिस्ट तथा प्रगतिशील लेखक मूलभूत आजादी पर इस कुठाराघात पर बोल नहीं रहे हैं। चीन को विकास के मापदंड पर आदर्श बताने वाले एवं चीन को सांस्कृतिक रूप से मसीहा मानने वाले लोग चीन की सरकार द्वारा सांस्कृतिक पहचान तक नष्ट करने वाले इस क़ानून पर ऐसे चुप्पी साधे हैं, जैसे कुछ हुआ ही नहीं!
हालांकि यह अभी प्रस्तावित क़ानून है, और लोग वहां पर विरोध कर रहे हैं, देखना होगा कि क्या ईरान जैसे इस्लामिक देशों की तरह चीन जैसे कथित प्रगतिशील देश में जनता की मूलभूत स्वतंत्रता को नष्ट करने के लिए कानून बनेगा? और उसी प्रकार जेल में डाला जाएगा जैसा इस्लामिक देश ईरान में किया जा रहा है? और क्या भारत में चुप्पी यूंही बरकरार रहेगी? ऐसे तमाम प्रश्न हैं, जिनके उत्तर भारत की जनता अवश्य ही उन लोगों से मांगेगी जो चीन को भारत से हर मानक में श्रेष्ठ मानते हैं और चीन की तरफ ही मुंह करके लगभग शयन करते हैं!
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