जबलपुर। “माँ काली के भक्त, बलिदानी राजा शंकरशाह और कुँवर रघुनाथशाह युगों-युगों से चली आ रही तप, त्याग और बलिदान की सनातन परंपरा का अभिन्न हिस्सा हैं। अंग्रेजी शासन के नाश और स्वाधीनता संग्राम का आवाहन करते हुए उन्होंने कालिका भवानी की स्तुति में काव्य रचना की, इस भक्ति कविता में उन्होंने संपूर्ण भारत का स्मरण किया। इसी काव्य को आधार बनाकर अंग्रेजों ने उन्हें तोप के मुँह पर बाँधकर मृत्युदंड दिया। मृत्यु के मुख पर निर्भय खड़े होकर देश, धर्म और भक्ति का संदेश देने वाले ये पराक्रमी पिता-पुत्र देश का गौरव हैं। वे स्मरण दिलाते हैं कि सारा जनजातीय समाज वेद, वेदांत, उपनिषद की शाश्वत हिंदू धारा का उत्तराधिकारी है।”
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ महाकौशल प्रांत के सह प्रचार प्रमुख प्रशांत बाजपेई ने 18 सितंबर को राजा शंकरशाह और कुँवर रघुनाथशाह के बलिदान स्थल (एल्गिन अस्पताल के निकट स्थित) पर आयोजित स्वयंसेवक एकत्रीकरण को संबोधित करते हुए उक्त विचार प्रकट किए। 18 सितंबर 1858 को इसी स्थान पर राजा और राजकुमार को मृत्युदंड देने के बाद उनके अनेक साथियों को फाँसी पर चढ़ाया गया था, जो समाज के सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व करते थे। अपने पति और पुत्र की मृत्यु के बाद रानी फूलकुंवर ने स्वराज्य संघर्ष को जारी रखते हुए युद्ध में वीरगति प्राप्त की थी।
प्रशांत बाजपेई ने कहा कि “दुनिया में कुछ लोगों ने हमें इंडिया नाम से पुकारा परंतु हम हजारों वर्षों से एक राष्ट्र के रूप में स्वयं को भारत नाम से जानते आए हैं, जिसका अर्थ है ज्ञान की खोज में रत। ऐसे ही रानी दुर्गावती और राजा शंकरशाह के राज्य को विदेशियों ने गोंड नाम दिया परंतु वे स्वयं इस राज्य और वंश को कोइतूर कहा करते थे जिसका अर्थ है पहाड़ी योद्धा। आज जनजातीय समाज को भ्रमित करने के लिए उन्हें अनार्य, असुर वंशज आदि बताया जा रहा है, अलग पहचान, अलग राष्ट्रीयता की बात की जा रही है। ऐसे में राजा शंकरशाह और कुँवर रघुनाथशाह की ये पंक्तियाँ सारा इस दुष्प्रचार को भस्म करने की क्षमता रखती हैं, जिनमे असुरों के विनाश की कामना और भारत के स्वाधीनता समर का आह्वान है –
सत्य के प्रकासन औ असुरन विनासन को, भारत समर मांही चण्डिके संवर ले…”
इसके पूर्व स्वयंसेवकों ने वीर पिता पुत्र और उनके बलिदानी साथियों को हुतात्मा प्रणाम किया। अधिकारियों ने हुतात्माओं को पुष्पांजलि अर्पित की। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि व लेखक तुलसीराम वरकड़े ने कहा कि राजा शंकरशाह और कुँवर रघुनाथशाह के साथ हिंदू समाज के सभी वर्गों और जातियों के वीरों ने बलिदान दिया जिनमें 52 वीं बटालियन के सूबेदार बलदेव तिवारी, ठाकुर कुंदन सिंह नारायणपुर, सूरज तिवारी, रामनिवास ब्राह्मण , मरदान सिंह , मौला मालवी, बेनीप्रसाद शुक्ल,ठाकुर खुमान सिंह मरावी, ठाकुर नरवर सिंह आदि शामिल थे।
इस अवसर पर विभाग संघचालक डॉ कैलाश गुप्त, क्षेत्र प्रचारक प्रमुख श्रीराम जी समदड़िया समेत सैकड़ों स्वयंसेवक सगणवेश उपस्थित थे। इसके पूर्व बलिदान दिवस की पूर्व संध्या पर हुतात्मा व्याख्यानमाला का आयोजन किया गया।
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