नई दिल्ली/दिनाजपुर। सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफॉर्म के माध्यम से नाच-गाना और बिना जरूरत खींची गई तस्वीरों से की गई कमाई को देशभर के 200 से अधिक मुफ्तियों ने नाजायज और हराम करार दिया है।
जमीअत-उलेमा-हिंद के अंतर्गत कम करने वाले ‘इदारा अल-मुबाहिस अल-फिकहिया’ के पश्चिम बंगाल के दिनाजपुर में आयोजित 18वें फिकही सम्मेलन में इस संबंध में प्रस्ताव पारित किया गया। इस तीन दिवसीय सम्मेलन में दारुल उलूम देवबंद के मोहतमिम मौलाना अबुल कासिम नोमानी, जमीअत उलमा हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी सहित बड़ी संख्या में मुफ्तियों ने भाग लिया।
सम्मेलन में नाच-गाना और अनावश्यक रूप से तस्वीर आदि के जरिए आमदनी करने के चलन पर चिंता व्यक्त की गई। बैठक में इस बात पर दुख व्यक्त किया गया कि आज कल हमारे समाज में विशेष तौर से युवा सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफॉर्मों पर नाच-गाने और इसी से मिलते-जुलते वीडियो, फोटो आदि पोस्ट करके कमाई कर रहे हैं। यह पूरी तरह से नाजायज और हराम है। इस तरह के कामों से बचना चाहिए। इस तरह के कामों में किसी भी तरह की दिलचस्पी नहीं लेनी चाहिए और इस से दूरी बनानी चाहिए। इसे अपनी आमदनी का स्रोत भी नहीं बनाना चाहिए। बैठक में हराम और हलाल कमाई पर विस्तार से चर्चा की गई।
बैठक में बताया गया कि रिश्वत, चोरी, जुआ, सट्टा आदि से हासिल होने वाला पैसा हराम है। इस तरह की कमाई को अपने पास नहीं रखना चाहिए। अगर उसके असल मलिक को वापस करना मुमकिन नहीं है, तो इस माल को गरीबों में बांट दिया जाना चाहिए। इस तरह का माल अगर विरासत में हासिल हुआ है और इसके मालिक का पता हो, तो इसके मालिक को इस माल को पहुंचना जरूरी है। अगर मालिक का मालूम नहीं है और पहचान संभव नहीं है तो ऐसे माल को भी गरीबों में बांट देना चाहिए।
बैठक में बताया गया है कि अगर किसी व्यक्ति के पास हराम-हलाल दोनों आमदनी मौजूद है और वह हराम माल के बजाय हलाल माल खर्च कर रहा है और दावत वगैरह दे रहा है, तो उसकी दावत को कबूल करना चाहिए और उसके तोहफा वगैरह लेना चाहिए, लेकिन अगर यह मालूम हो जाए कि वह हराम माल पेश कर रहा है, तो इसे लेना जायज नहीं होगा।
संयुक्त कुर्बानी पर हुआ फैसला
बैठक में जानवरों की संयुक्त कुर्बानी को लेकर भी कुछ बातें सामने आई, जिसमें कहा गया कि आज के हालात में संयुक्त कुर्बानी की जरूरत है। इसलिए दूसरों की तरफ से कुर्बानी का इंतजाम करने वाले व्यक्तियों और संस्थाओं की जिम्मेदारी बनती है कि वह इस प्रक्रिया को इबादत समझकर पूरी ईमानदारी से अंजाम दें। इसमें कहा गया है कि मुसलमान को चाहिए कि वह अपनी कुर्बानी अपने तौर पर पेश करें, यह ज्यादा सही है लेकिन अगर किसी वजह से संयुक्त कुर्बानी में हिस्सा लेना पड़े, तो वह जायज है।
(सौजन्य सिंडिकेट फीड)
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