महान स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह को 1931 में सजा दी गई थी जिसके बाद उन्हें अंग्रेज सरकार ने फांसी दे दी थी। इस पूरे मामले पर फिर से गौर करने संबंधी याचिका पिछले 10 साल से सुनवाई का इंतजार कर रही है। लेकिन इसे किसी न किसी बात पर टाला जाता रहा है। अब एक बार फिर लाहौर उच्च न्यायालय ने इस महान हुतात्मा से जुड़े केस को लटका दिया है।
पाकिस्तान में भगत सिंह के चाहने वालों की कमी नहीं है। वहां एक संगठन पिछले अनेक वर्ष से उनकी जयंती और पुण्य तिथि मनाता आ रहा है। इसी संगठन, भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के अध्यक्ष एडवोकेट इम्तियाज राशिद कुरैशी ने यह याचिका दायर की हुई है। वे भगत सिंह को न्याय दिलाने की लड़ाई लड़ रहे हैं।
इस केस पर आम पाकिस्तानियों में भी उत्सुकता दिखाई देती है। लेकिन सुनवाई किसी न किसी बहाने टलती आ रही है। अभी शनिवार को लाहौर उच्च न्यायालय ने इस मामले को 92 साल बाद फिर से खोलने को लेकर अपनी आपत्ति जता दी।
याचिका में महान स्वातंत्र्य योद्धा भगत सिंह को 1931 में दी गई सजा का मामला पुन: खंगालने और उन्हें मरणोपरांत उचित सम्मान दिए जाने की मांग करती है। सब जानते हैं भगत सिंह को तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने भयातुर हो कर वक्त से पहले, 23 मार्च 1931 को उनके दो सहयोगी योद्धाओं राजगुरु और सुखदेव के साथ सूली पर चढ़ा दिया था।
स्वातंत्र्य योद्धा भगत सिंह को अंग्रेज अधिकारी सांडर्स की हत्या का षड्यंत्र रचने का दोषी ठहराया गया था। लेकिन इस याचिका के माध्यम से कुरैशी उन्हें निर्दोष साबित कराने को लेकर प्रण किए हुए हैं। यही वजह है कि उन्होंने आज से दस साल पहले इस मामले को फिर से खोलने की याचिका प्रस्तुत की थी, जिस पर सुनवाई तक नहीं हुई है।
कुरैशी व अन्यों द्वारा दायर याचिका में उल्लेख है कि भगत सिंह उपमहाद्वीप की स्वतंत्रता के लिए संघर्षरत रहे थे। उपमहाद्वीप में भगत सिंह को न सिर्फ सिख और हिंदू सिर—माथे बैठाते हैं, बल्कि मुसलमानों में भी उनके लिए बहुत सम्मान है।
दो दिन पहले लाहौर उच्च न्यायालय के सामने जब यह मामला आया तो न्यायालय ने इस पर आपत्ति व्यक्त की और कहा कि ‘केस सुनवाई के लायक नहीं लगता’। जबकि याचिकाकर्ता का कहना है कि वे चाहते हैं कि सांडर्स की हत्या के भगत सिंह पर लगे आरोप में उन्हें निर्दोष साबित किया जाए। उल्लेखनीय है कि अंग्रेजों की सत्ता ने 23 मार्च, 1931 को भगत सिंह को लाहौर केन्द्रीय कारागार में फांसी दी थी। हालांकि इस केस में भगत सिंह को पहले उम्रकैद की सजा दी गई थी, लेकिन अंग्रेज अधिकारियों ने एक फर्जी केस रचकर उसमें उन्हें फांसी की सजा दिलवा दी थी।
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के अध्यक्ष इम्तियाज राशिद कुरैशी का कहना है कि कुछ वरिष्ठ वकीलों ने मिलकर लाहौर उच्च न्यायालय में याचिका लगाई हुई है, लेकिन अदालत इसे आगे ही नहीं बढ़ा रही। दस साल से इसे लटकाया जा रहा है। कुरैशी ने बताया कि 2013 में न्यायमूर्ति शुजात अली खान ने मामला मुख्य न्यायाधीश के पास भेजते हुए उस पर वरिष्ठ वकीलों की एक बड़ी पीठ गठित करने की मांग की थी। उन्होंने इस केस को ‘राष्ट्रीय महत्व’ का बताया था।
लेकिन इतने पर भी लाहौर उच्च न्यायालय ने इस पर जल्दी सुनवाई तथा एक बड़ी पीठ बनाने को लेकर अब अपनी आपत्ति जता दी है। उच्च न्यायालय का कहना है कि मामला किसी बड़ी पीठ का गठन करने सुनवाई करने लायक नहीं लगता।
कुरैशी व अन्यों द्वारा दायर याचिका में उल्लेख है कि भगत सिंह उपमहाद्वीप की स्वतंत्रता के लिए संघर्षरत रहे थे। उपमहाद्वीप में भगत सिंह को न सिर्फ सिख और हिंदू सिर—माथे बैठाते हैं, बल्कि मुसलमानों में भी उनके लिए बहुत सम्मान है।
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