देहरादून। उत्तराखंड में बाघ की सुरक्षा संरक्षण पर एक बार फिर से सवाल खड़े हो गए हैं। टाइगर रिजर्व क्षेत्र से बाहर बढ़ रही बाघों की संख्या पर वन विभाग खुश तो है, लेकिन उनकी सुरक्षा पर ध्यान नहीं दे रहा है। उल्लेखनीय है कि उत्तराखंड में बाघों की संख्या 560 से अधिक है। देश में एक मात्र ऐसा राज्य है, जिसके सभी 13 जिलों में टाइगर की मौजूदगी कैमरा ट्रैपिंग में आई है। कॉर्बेट टाइगर रिजर्व और राजा जी टाइगर रिजर्व के बाहर वेस्टर्न सर्कल में 216 बाघों के गणना की गई है। 2018 में यहां 176 बाघ थे यानि यहां 76 की वृद्धि हो गई है।
वेस्टर्न सर्कल कॉर्बेट टाइगर रिजर्व का बाहरी जंगल इलाका है। जिसमें रामनगर फॉरेस्ट डिवीजन, तराई पश्चिम, तराई केंद्रीय, तराई पूर्वी और हल्द्वानी फॉरेस्ट डिवीजन आते हैं। बाघ के बारे में कहा गया है कि अपनी टेरेटरी बनाता है। कॉर्बेट टाइगर रिजर्व से अब बाघ बाहरी जंगलों में वास बनाने लगे हैं। जिनकी सुरक्षा पर वन विभाग को काम करना है, लेकिन इस ओर विभागीय लापरवाही सामने आ रही है।
जानकारी के मुताबिक वेस्टर्न सर्कल में फॉरेस्ट डिवीजन में फॉरेस्ट गार्डों की भारी कमी है। यहां नॉर्म्स के अनुसार 770 फॉरेस्ट गार्ड होने चाहिए, जबकि वर्तमान में 386 फॉरेस्ट गार्ड की तैनाती है। राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) टाइगर रिजर्व के बाघों की सुरक्षा के लिए तो गंभीर रहता है और राज्य सरकार की मदद तो करता है, लेकिन वेस्टर्न सर्कल के लिए वो मदद देने के लिए अपने नॉर्म्स आगे रखता है। इसलिए यहां बाघों की सुरक्षा संरक्षण पर सवाल भी खड़े होते रहे हैं और यहां बाघों के शिकारी भी सक्रिय रहते आए हैं।
क्या कहते हैं वन संरक्षक कुमाऊं
मुख्य वन संरक्षक कुमाऊं पीके पात्रों कहते हैं कि बाघों की संख्या यहां बढ़ी है इसमें कोई संदेह नहीं है। हम उनकी सुरक्षा सीमित संसाधनों से कर रहे हैं। इनके लिए और सुरक्षा गार्ड्स की जरूरत है, इस बारे में अतिरिक्त बजट दिए जाने प्रस्ताव शासन को भेजा गया है।
सीएम का आदेश, फिर भी टाइगर प्रोटेक्शन फोर्स नहीं बनी
उत्तराखंड में बाघों की सुरक्षा के लिए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने वन्यजीव बोर्ड की पिछली बैठक में निर्देश दिए थे कि उत्तराखंड में टाइगर प्रोटेक्शन फोर्स का गठन किया जाए, बावजूद इसके इसकी प्रक्रिया को अभी तक ठंडे बस्ते में डाला हुआ है, जबकि अन्य राज्यों में टाइगर प्रोटेक्शन फोर्स बना दी गई है। टाइगर प्रोटेक्शन फोर्स के लिए खर्च एनटीसीए द्वारा दिया जाना है और एनटीसीए ने उत्तराखंड सरकार को बार-बार इस बारे में लिखा है।
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