देश-विदेश के लगभग 100 प्रवासी कार्यकर्ता कश्मीर घाटी में चल रहे एकल विद्यालयों को देखने श्रीनगर पहुंचे। इनमें अधिकतर वे लोग थे, जो सहयोगी के रूप में एकल अभियान से जुड़े हैं।
अभी कुछ दिन पहले ही देश-विदेश के लगभग 100 प्रवासी कार्यकर्ता कश्मीर घाटी में चल रहे एकल विद्यालयों को देखने श्रीनगर पहुंचे। इनमें अधिकतर वे लोग थे, जो सहयोगी के रूप में एकल अभियान से जुड़े हैं। कुछ ऐसे भी थे, जो एकल अभियान के बारे में बहुत पहले से सुन तो रहे थे, लेकिन उसके कार्यों को प्रत्यक्ष कभी देखा नहीं था। इसलिए वे एकल विद्यालय का साक्षात् अनुभव लेने यहां पहुंचे।
यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि कश्मीर घाटी में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं द्वारा जितने सेवा कार्य चलाए जा रहे हैं, उन सबकी देखरेख सेवा भारती करती है। इसलिए सेवा भारती के एक कार्यकर्ता के नाते मुझे (इस लेखक) भी उन कार्यकर्ताओं के साथ कश्मीर घाटी जाने का अवसर मिला। कश्मीर घाटी में कुछ वर्षों में हुए परिवर्तन को देखकर सभी दंग रह गए। हम लोग बिना किसी भय और अविश्वास के साथ, हर उस जगह पर गए, जहां स्थानीय कार्यकर्ता हमें ले गए।
यह देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि ग्रामीण क्षेत्रों में संघ के कार्यकर्ता सामाजिक कार्य कर रहे हैं। यानी वहां के लोगों ने उन कार्यकर्ताओं को स्वीकार किया है
बता दें कि कश्मीर घाटी में कुल 840 गांवों में एकल विद्यालय चलते हैं। इन विद्यालयों में पढ़ने वाले और पढ़ाने वाले दोनों मुसलमान हैं। इनमें बहुत सारे विद्यालय श्रीनगर से 10 से 40 किलोमीटर की दूरी पर हैं। अधिकतर विद्यालयों तक प्रवासी कार्यकर्ता पहुंच सकें, इसलिए दो-दो कार्यकर्ताओं की एक टोली बनाई गई। यानी कुल 50 टोलियों में बांटा गया।
एक दिन के विश्राम के बाद सभी टोलियों को अलग-अलग गांवों में भेजा गया। कुछ ही घंटों में ये कार्यकर्ता अनेक एकल विद्यालयों में गए। वे वहां के छात्रों, शिक्षकों और गांव वालों से भी मिले। ऐसा लगा कि हमारा और उनका वर्षों पुराना परिचय है। कहीं भी यह अनुभव नहीं हुआ कि हम लोग उस कश्मीर घाटी में आए हैं, जिनके बारे में न जाने कितनी तरह की बातें पूरी दुनिया में फैलाई गई हैं।
हर टोली के साथ एक स्थानीय कार्यकर्ता और वाहन चालक था। टोली जिस भी गांव में गई, वहां के लोगों ने उनका जोरदार स्वागत किया। कई स्थानों पर तो देशभक्ति से परिपूर्ण सांस्कृतिक कार्यक्रम हुए। मैं जयपुर से आए एक दंपत्ती के साथ चरारे-शरीफ नामक स्थान के पास एक गांव में गया। मुख्य सड़क पर गाड़ी छोड़कर पहाड़ी पगडंडियों के सहारे गांव के एकल विद्यालय में पहुंचे।
वहां एकल विद्यालय के 40 से भी अधिक छात्रों, अध्यापिका और अन्य स्थानीय निवासियों ने हम लोगों का जोरदार स्वागत किया। देर शाम जब गांवों से लौटकर कार्यकर्ता होटल पहुंचे तो बहुत ही भावुक हो गए। कुछ ने शब्दों से, कुछ ने नि:शब्द रहकर, तो कुछ ने आंसुओं के साथ अपने उस आधे दिन के अनकहे, अनसुने, वास्तविक भारतीय कश्मीरी जीवन की सुखद, भावपूर्ण व अनमोल व्याख्या करने का सफल-असफल प्रयास किया।
घाटी में कार्य कर रहे कार्यकर्ताओं की सबने खुलकर प्रशंसा की। यह देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि ग्रामीण क्षेत्रों में संघ के कार्यकर्ता सामाजिक कार्य कर रहे हैं। यानी वहां के लोगों ने उन कार्यकर्ताओं को स्वीकार किया है। बड़ी संख्या में कश्मीरी युवक सेवा भारती और एकल अभियान से जुड़े हैं। इन्हीं कार्यकर्ताओं के बल पर एकल विद्यालय और सेवा के अन्य कार्य होते हैं। कुछ वर्ष पहले तक इस तरह कश्मीर घाटी में घूमना आसान नहीं था। यानी कश्मीर घाटी में भारी बदलाव हुआ है।
(लेखक सेवा भारती, दिल्ली के महामंत्री हैं)
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