जी 20 के शिखर सम्मेलन की मेजबानी भारत उस समय करने जा रहा है, जब विश्व के अनेक देशों ने अपनी क्षमताओं को अंतरराष्ट्रीय विवादों के लिए, अपने वित्तीय संसाधनों को दूसरे देशों को परेशानी में डालने के लिए और अपनी सैनिक शक्ति दूसरों पर धौंस जमाने के लिए प्रयोग करने की प्रवृत्ति दर्शाई है। इसके विपरीत भारत विश्व को डिजिटल समाधानों से लेकर आर्थिक उन्नति की उम्मीद और शांतिपूर्ण सह अस्तित्व का मार्ग दिखाने की स्थिति में है। कैसी होगी भारत के नेतृत्व वाली विश्व व्यवस्था….
भारत ने नवम्बर, 2022 में एक वर्ष के लिए जी-20 की अध्यक्षता ग्रहण की थी। इस पूरे आयोजन को कुछ अलग सा रूप देने की तैयारी पहले ही चल रही थी और उसका खाका भी तैयार हो रहा था। कारण, भारत ने पिछले वर्ष बाली शिखर सम्मेलन में रूस-यूक्रेन मुद्दे पर मतभेदों को दूर करने और बाली घोषणा के जारी होने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, जो रूस और पश्चिम के बीच जारी तकरार के कारण बाधित हो रही थी। इससे पहले सऊदी और इतालवी अध्यक्षता के दौरान भी भारत ने समूह में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, जब विश्व, खासकर विकासशील देश कोरोना वायरस के प्रकोप का सामना कर रहे थे।
भारत की वर्तमान अध्यक्षता के तहत भी रूस-यूक्रेन युद्ध का विश्व पर प्रभाव जारी रहेगा, क्योंकि आज जब विश्व असाधारण चुनौतियों का सामना कर रहा है, तब वित्तीय साधनों, ऊर्जा, भोजन और उर्वरक (4एफ) वैश्विक अधीनता लागू करने के नए उपकरण जैसे बन गए हैं। क्योंकि इनमें से वित्तीय साधनों, ऊर्जा और भोजन का संकट वैश्विक अर्थव्यवस्था और विकासशील देशों तथा अविकसित अर्थव्यवस्थाओं के कल्याण को प्रभावित कर रहा है, समृद्ध देशों की तो बात ही छोड़िए। ऐसा प्रतीत होता है कि एसडीजी (सतत विकास लक्ष्यों) को छोड़ दिया गया है। इस प्रकार भारत के लिए दो ऐसी अप्रत्याशित घटनाओं से कई नई चुनौतियां उत्पन्न हुई हैं, जो पूरी तरह अनपेक्षित थीं और जिनके संभावित परिणाम गंभीर हैं।
आशा की किरण बना भारत
विशेष रूप से चीन में कोविड महामारी के फिर से उभरने से वैश्विक अर्थव्यवस्था पर एक बार फिर विनाशकारी प्रभाव पड़ सकता है, जिससे जी-20 को पहले ही निपटना होगा, क्योंकि प्रमुख पश्चिमी देशों में मंदी का खतरा एक निर्मम वास्तविकता बनकर सामने आ रहा है। इस बीच मजबूत आर्थिक विकास के साथ भारत आशा की किरण बना हुआ है और जल्द ही विश्व में सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश भी बन जाएगा। ऐसे में, चूंकि भारत का लक्ष्य कूटनीति के माध्यम से संघर्षों को कम करने और आम सहमति के माध्यम से पारस्परिक रूप से लाभप्रद पहल और परियोजनाओं के माध्यम से सहयोग बढ़ाने के तरीके ढूंढना और ‘ग्लोबल साउथ’ के हितों की आवाज और संरक्षक बनना है, इसलिए यह भारत के पास वैश्विक व्यवस्था को पुन: परिभाषित करने का एक अनूठा अवसर होगा। यह वैश्विक व्यवस्था इस समय परिवर्तनशील और अनिश्चित संक्रमण के दौर से गुजर रही है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा निर्धारित पहला उद्देश्य यह है कि भारत की इस समूह की अध्यक्षता अवधि को एक समावेशी, महत्वाकांक्षी, निर्णायक और कार्य-उन्मुख दृष्टिकोण के माध्यम से ‘एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य’ को शामिल करते हुए ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ द्वारा संचालित अध्यक्षता के रूप में परिभाषित किया जाए। भारत ने विश्व को हमेशा एक परिवार के रूप में देखा है और हमेशा वैश्विक हित और साझीदारी के रूप में अपना योगदान देकर वैश्विक चुनौतियों का सामना किया है, जो महामारी के खिलाफ लड़ाई के दौरान स्पष्ट रूप से दिखाई दिया। यह अवधारणा उन कई लोगों के लिए कुछ अनोखी रही है जो मानवता की मदद करने के बजाय अपनी बढ़त का उपयोग अपनी भू-राजनीतिक पकड़ को बढ़ाने के लिए करते थे। लेकिन, भारत संघर्षों और युद्धों के नकारात्मक प्रभावों का मुकाबला करने के लिए वैश्विक साझे हितों का अराजनीतिकरण करना चाहता है। प्रधानमंत्री मोदी ने अखबारों में प्रकाशित अपने लेख में रेखांकित किया है कि ‘‘मानव परिवार के भीतर सद्भावना को बढ़ावा देने के लिए…उपचार, सद्भाव और आशा के माध्यम से हम भोजन, उर्वरक और चिकित्सा उत्पादों की वैश्विक आपूर्ति का अराजनीतिकरण करने की कोशिश करेंगे ताकि भू-राजनीतिक तनाव मानवीय संकट का कारण न बनें’’।
पर्यावरण की चिंता
जलवायु परिवर्तन मानवता के अस्तित्व के लिए एक स्पष्ट और मुंहबाए खड़ा खतरा है, क्योंकि युद्धों और भू-राजनीति ने पतन की ओर एक अंधी दौड़ को और तेज कर दिया है। इसके लिए एक ठोस पहल की जरूरत है, जो फिलहाल गायब है। प्रकृति के प्रति ट्रस्टीशिप का दृष्टिकोण बहुत आवश्यक है, जो भारतीय लोकाचार और मानसिकता में सदियों से निहित है। भारत द्वारा फ्रांस के साथ अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन की शुरुआत और हरित वित्त, हरित प्रौद्योगिकियों की खोज तथा ‘हरित रंगभेद’ के खिलाफ युद्ध विश्व को बचाने की कुंजी है। लेकिन प्राकृतिक संसाधनों पर स्वामित्व की भावना भी आज संघर्ष को जन्म दे रही है और पर्यावरण की दुर्दशा का मुख्य कारण बन गई है। धरती के सुरक्षित भविष्य के लिए ट्रस्टीशिप की भावना ही समाधान है। LIFE यानी ‘लाइफस्टाइल फॉर एनवायरनमेंट’ अभियान इसमें बड़ा योगदान दे सकता है। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है कि इसका उद्देश्य टिकाऊ जीवनशैली को एक जन आंदोलन बनाना है। भारत जी-20 के अन्य भागीदारों और शिखर सम्मेलन में आमंत्रित एक दर्जन अन्य महत्वपूर्ण सदस्यों के साथ संयुक्त रूप से काम करने का इरादा रखता है। पूरे भारत में कई बैठकें हुई हैं, जी-20 भारत की समृद्ध संस्कृति और विरासत को विश्व के सामने प्रदर्शित करने और जी-20 उत्सव में भारत में जनता को शामिल करते हुए विदेशी मेहमानों के सामने संस्कृति, व्यंजन और शिल्प का प्रदर्शन करने का आधार बना है।
डिजिटल शक्ति का लोकतांत्रीकरण
डिजिटल डोमेन और ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था में भी भारत ने एक स्वीकृत वैश्विक नेतृत्व प्राप्त किया है। डेटा को नया सोना या तेल कहा जाता है, इसलिए इसके स्वामित्व को लेकर प्रतिस्पर्धा बहुत अधिक है। लेकिन भारत के लिए ‘विकास के लिए डेटा’ का सिद्धांत इसके अध्यक्षता काल के समग्र विषय का एक अभिन्न अंग रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ने इस बात को रेखांकित किया है कि डिजिटल भुगतान प्रणाली और यूपीआई सहित पिछले कुछ वर्षों के भारत के अनुभव से पता चला है कि अगर हम डिजिटल ढांचे को समावेशी बनाते हैं, तो यह सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन ला सकता है।
डिजिटल उपयोग से बड़े पैमाने पर कार्य हो सकता है और तीव्रता से हो सकता है। इससे शासन-प्रशासन में पारदर्शिता लाई जा सकती है। भारत ने सार्वजनिक डिजिटल सुविधाएं विकसित की हैं, जिनके मूलभूत ढांचे में लोकतांत्रिक सिद्धांत अंतर्निहित हैं, जो एआई संचालित औद्योगिक क्रांति 4.0 के लिए बहुत आवश्यक हैं। ये समाधान खुले स्रोतों, खुले एपीआई, खुले मानकों पर आधारित हैं, जो अंतरसंचालनीय हैं और सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध हैं। एक ज्ञान अर्थव्यवस्था और आईटी महाशक्ति होने के नाते भारत में डिजिटल सार्वजनिक सेवाओं को जी-20 भागीदारों के साथ एक वास्तविकता बनाने की अपेक्षित क्षमता है, भले ही वर्तमान विभाजनकारी अंतरराष्ट्रीय राजनीति की संरक्षणवादी प्रकृति और अतिरिक्त प्रयास करने के प्रति अमीर देशों की अनिच्छा को देखते हुए यह एक कठिन कार्य हो। आर्थिक और लोकतंत्र की दृष्टि से भारत को प्राप्त बढ़त और डिजिटल पहुंच तथा समावेशन का अनुभव स्थिति में सुधार करने और आगे बढ़ने का रास्ता तैयार करने में मदद कर सकता है।
नई दिल्ली शिखर सम्मेलन के बाद पश्चिम बनाम रूस और चीन के रूप में सीधे तौर पर विभाजन के कारण आम सहमति आधारित ‘दिल्ली घोषणा’ अभी भी एक चुनौती बनी हुई है, जिसे भारत सुलझा लेगा।
अपने राष्ट्रीय हितों की पूर्ति करते हुए भी, रूस-यूक्रेन युद्ध पर भारत की रणनीतिक स्वायत्तता, और जब भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में एक अस्थायी सदस्य के रूप में था, तब अफगानिस्तान में पनपते संकट पर भारत की सैद्धांतिक स्थिति और उसके बाद शांति, संवाद, कूटनीति और संयुक्त राष्ट्र चार्टर, संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के लिए भारत का एक सैद्धांतिक, सुसंगत और मूल्य आधारित दृष्टिकोण रहा है। गलवान और तवांग की घटनाओं और आधिपत्यवादी चीन के साथ सीमा तनाव के बावजूद, नई दिल्ली ने बीजिंग के साथ द्विपक्षीय मुद्दों को हल करने के लिए कूटनीति और बातचीत के मार्ग को प्राथमिकता दी है। भारत इंडो-पैसिफिक और अन्य जगहों पर कानून के सम्मान और नेविगेशन की स्वतंत्रता के सम्मान के लिए आग्रह करता है। भारत इस सिद्धांत का पालन करता है कि आप जैसा उपदेश देते हैं वैसा ही स्वयं भी करें। प्रधानमंत्री मोदी ने बाली में और हाल ही में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान जोहान्सबर्ग में अपने चीनी समकक्ष शी जिनपिंग से भी मुलाकात की।
वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 85 प्रतिशत, विश्व की 2/3 आबादी और 75प्रतिशत व्यापार का प्रतिनिधित्व करने वाला जी-20, वैश्विक निर्णय लेने के एक प्रमुख मंच के रूप में उभरा है, जबकि संयुक्त राष्ट्र की भूमिका खेदजनक ढंग से अड़चन भरी और पुरानी होती जा रही है। मूलभूत सुधारों के बिना संयुक्त राष्ट्र और अन्य संबद्ध बहुपक्षीय संस्थाएं नई और पुरानी तरह की वैश्विक चुनौतियों का सामना करने के लिए केवल चर्चा की दुकान बनकर अप्रासंगिक हो सकती हैं। मुद्दों पर केवल विलाप करना कोई उत्तर नहीं होता है। इस कारण भारत, जो कई वर्षों से जी7+ का सदस्य रहा है और क्वाड, ब्रिक्स, एससीओ, आई2यू2 और आरआईसी आदि जैसे महत्वपूर्ण बहुपक्षीय मंचों का भी हिस्सा रहा है, के लिए जी-20 की अध्यक्षता इस वैश्विक विमर्श को बदलने का अवसर है।
भारत के लिए यह अधिकांश देशों के कटु और स्वार्थी दृष्टिकोण को सौम्य और कल्याण उन्मुख समावेशी अंतरराष्ट्रीय प्रयास की ओर ले जाने का भी अवसर है। यह वास्तव में एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि प्रमुख शक्तियां इस मानसिकता से ग्रस्त हैं कि एक का लाभ दूसरे का नुकसान हो। पुनश्च, प्रधानमंत्री मोदी ने अपने लेख में आग्रह किया है कि ‘क्या हम समग्र मानवता के लाभ के लिए एक मौलिक मानसिकता बदलाव को उत्प्रेरित कर सकते हैं’! यह एक कठिन कार्य होगा क्योंकि अपने पड़ोस में भारत की अपनी चुनौतियों के अलावा, यूरेशियन संघर्ष और चीन-अमेरिका तनाव के बावजूद भारत जी-20 को फिर से समग्र रूप से एकजुट करेगा। और भारत ऐसा करने के लिए प्रतिबद्ध है।
इस अस्थिर वैश्विक व्यवस्था में विकासशील विश्व की चिंताओं को समझने, उनको सुनिश्चित रूप से देखने और प्रस्तुत करने के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने वैश्विक एजेंडे को सामूहिक रूप से आकार देने के लिए कई केंद्रित विषयों के साथ ‘‘वॉयस आफ ग्लोबल साउथ समिट’’ का आयोजन किया। उन्होंने 4आर के साथ चार आयामी दृष्टिकोण रखते हुए एक ‘वैश्विक एजेंडे’ की घोषणा की: ‘जवाब दें, पहचानें, सम्मान करें और सुधार करें’।
भारत का लक्ष्य कूटनीति के माध्यम से संघर्षों को कम करने, आम सहमति के माध्यम से पारस्परिक रूप से लाभप्रद पहलों व ‘ग्लोबल साउथ’ के हितों की आवाज और संरक्षक बनना है।
ग्लोबल साउथ की प्राथमिकताएं
प्रधानमंत्री मोदी ने इस बात पर बल दिया है कि ‘‘विश्व को फिर से सक्रिय करने के लिए हमें ‘जवाब दें, पहचानें, सम्मान करें और सुधार करें’ के वैश्विक एजेंडे का मिलकर आह्वान करना चाहिए: एक समावेशी और संतुलित अंतरराष्ट्रीय एजेंडा तैयार करके ग्लोबल साउथ की प्राथमिकताओं का जवाब दें। यह पहचानें कि ‘सामान्य लेकिन विभेदित जिम्मेदारियों’ का सिद्धांत सभी वैश्विक चुनौतियों पर लागू होता है। सभी देशों की संप्रभुता, कानून के शासन और मतभेदों और विवादों के शांतिपूर्ण समाधान का सम्मान करें; और संयुक्त राष्ट्र सहित अंतरराष्ट्रीय संस्थानों में सुधार करके उन्हें और प्रासंगिक बनाएं।’’
भारत के लिए प्रमुख उपलब्धियों में से एक जी-20 के दायरे में और अधिक अफ्रीकी देशों को शामिल करना हो सकता है। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि क्या वह इस 21वीं सदी में जी-20 को जी-21 में परिवर्तित करके स्थायी सदस्य के रूप में अफ्रीकी संघ (एयू) को शामिल करने के लिए दूसरों को मनाने में सक्षम हो सकता है? प्रधानमंत्री मोदी एयू को नए स्थायी सदस्य के रूप में पूर्ण रूप से शामिल करने के समर्थन के लिए सभी जी-20 हितधारकों के साथ प्रयास कर रहे हैं और इसका यह एक बड़ा परिणाम होने की संभावना है। भविष्य की वैश्विक व्यवस्था में, जिसमें शीत युद्ध 2.0 का परिदृश्य बनने का खतरा है, यदि भारत ‘विकसित और अविकसित’ के बीच की खाई को पाटने में सक्षम होता है और राष्ट्रों के प्रतिस्पर्धी समुदाय के बीच रणनीतिक स्वायत्तता, बहुपक्षवाद, समावेशिता और परस्पर निर्भरता की संस्कृति को सक्षम बनाता है, तो यह एक बहुत बड़ी उपलब्धि होगी।
9-10 सितम्बर को होने जा रहे नई दिल्ली शिखर सम्मेलन के बाद पश्चिम बनाम रूस और चीन के रूप में सीधे तौर पर विभाजन के कारण आम सहमति आधारित ‘दिल्ली घोषणा’ का प्रश्न अभी भी एक खुला प्रश्न बना हुआ है, यह एक चुनौती है। हालांकि जैसा कि विदेश मंत्री डॉ.एस. जयशंकर द्वारा उल्लेख किया गया है, महत्वपूर्ण मुद्दों पर 95 प्रतिशत से अधिक सहमति है। उम्मीद है कि भारतीय कूटनीतिक कौशल ‘दिल्ली घोषणा’ तैयार करने में सक्षम होगा। परिणाम चाहे जो भी हो, भारत का अध्यक्षता काल एक अद्वितीय, व्यापक, मानव केंद्रित, नये चलन की स्थापना करने और वैश्विक हित के लिए याद रखा जाएगा।
(लेखक जॉर्डन, लीबिया व माल्टा में भारत के राजदूत रहे हैं। वर्तमान में वे थिंक टैंक विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन के प्रतिष्ठित फेलो हैं)
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