लद गए चीन के दिन
May 8, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • अधिक ⋮
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • अधिक ⋮
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • संस्कृति
  • पत्रिका
होम विश्व

लद गए चीन के दिन

‘चीनी शताब्दी’ की इतिश्री लिखी जा रही है- अदृश्य, अश्रुत, किन्तु असंदिग्ध रूप से

by जगन्निवास अय्यर
Aug 31, 2023, 08:00 am IST
in विश्व
दक्षिण अफ्रीका के जोहानिसबर्ग में आयोजित तीन दिवसीय ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान विभिन्न देशों के राष्ट्राध्यक्षों के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

दक्षिण अफ्रीका के जोहानिसबर्ग में आयोजित तीन दिवसीय ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान विभिन्न देशों के राष्ट्राध्यक्षों के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

चीन को बिना शब्दों का प्रयोग किए यह जता दिया कि जहां तक वैश्विक दक्षिण (ग्लोबल साउथ) की आपूर्ति शृंखला के रूप में स्थापित-प्रतिष्ठित होने व विश्वसनीयता अर्जित करने की बात है, भारत अपने हिमालयी पड़ोसी से इक्कीस होने की स्थिति में आ चुका है।

दक्षिण अफ्रीका के जोहानिसबर्ग में ब्रिक्स सम्मेलन के व्यावसायिक फोरम को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शिष्ट भाषा में चीन की खिल्ली उड़ाते हुए विश्वसनीय, टिकाऊ और सर्वसमावेशी आपूर्ति शृंखलाओं की अपरिहार्यता को रेखांकित किया और चीन पर अति-निर्भरता के प्रति विश्व की बढ़ती चिंताओं को अभिव्यक्ति दी। वे यहीं पर नहीं रुके। चीन को बिना शब्दों का प्रयोग किए यह जता दिया कि जहां तक वैश्विक दक्षिण (ग्लोबल साउथ) की आपूर्ति शृंखला के रूप में स्थापित-प्रतिष्ठित होने व विश्वसनीयता अर्जित करने की बात है, भारत अपने हिमालयी पड़ोसी से इक्कीस होने की स्थिति में आ चुका है।

बदले हालात और चीन

चीन ब्रिक्स को पश्चिम विरोधी वैकल्पिक गुट के रूप में हांकने की आशा में जोहानिसबर्ग बैठक में शिरकत करने गया, लेकिन वास्तविकता यह है कि यूपीआई भुगतान प्रणाली के अनेक देशों तक विस्तार (यूएई, सिंगापुर और फ्रांस इसे स्वीकार कर चुके हैं) के साथ भारत विश्व में सर्वाधिक डिजिटल भुगतानों को संपन्न करने वाला देश बन चुका है। बतौर एक विश्वसनीय आपूर्ति शृंखला के रूप में चीन को आने वाले दिनों में चौधराहट की नहीं, चिरौरी का आदी होना पड़ेगा।

चीन दशकों से भारत को एक भू-राजनीतिक नौसीखिया ही मानता रहा है, जिसे उसके ‘उचित स्थान’ पर बनाए रखने के लिए कभी-कभार सैन्य व कूटनीति से सबक सिखाया जाना चाहिए। चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग 22 अगस्त को ब्रिक्स और दूसरी बार 9 सितंबर को जी-20 बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलेंगे। लेकिन अकल्पनीय रूप से बदली हुई वैश्विक परिस्थितियों के चलते दोनों नेताओं के बीच कोई लंबी और औपचारिक बैठक संभव नहीं है। जो बैठक होगी, वह विशुद्ध कामकाजी और कूटनीतिक बारीकियों से रहित होगी।

यह कैसे और क्यों हुआ है? कुछ वर्ष पहले तक चीन को दुनिया की अगली और ‘अनिवार्य’ महाशक्ति के रूप में देखा जा रहा था। अधिकांश बहस इसी के इर्द-गिर्द केंद्रित थी कि अमेरिका-रहित और चीन-शासित विश्व कैसा रहेगा। पिछले 20 वर्ष की सभी भविष्यवाणियों, अनुमानों और उद्घोषणाओं के बाद, जिसमें कहा गया था कि चीन जल्द ही संसार की प्रमुख महाशक्ति के रूप में अमेरिका से आगे निकल जाएगा, अब दोहरी प्रतिकूल और अंतरहित परिस्थितियों का सामना कर रहा है और उनमें से किसी का भी मुकाबला करने के लिए उसके पास कोई यथार्थवादी विकल्प नहीं है।

चीन के ‘भुतहा शहरों’ की चर्चा जोर पकड़ रही है। यदि चीन में भुतहा शहर हैं, तो उस विशाल देश की कल्पना करें, जिसकी आबादी आज बमुश्किल एक-तिहाई है। उस देश में संपत्ति के मूल्यों का क्या होगा, जहां 50 से 70 % लोग गायब हो गए हैं?

पहली अवस्था या दशा को सटीक रूप से सभी बड़ी या महाशक्तियों के भाग्य को संचालित करने वाली सर्वाधिक सक्षम दीर्घकालिक शक्ति के रूप में वर्णित किया जा सकता है। वह है जनसांख्यिकी। चीनी सरकारी जनगणना के अनुसार, पिछले कई दशकों से चीन का सर्वोच्च लाभदायक घटक ‘कामकाजी उम्र के मजदूरों की उसकी कभी न खत्म होने वाली आपूर्ति’ 2010 में लगभग एक अरब तक पहुंच गई थी। 2020 की जनगणना से पता चला कि 1970 के दशक में आर्थिक उदारीकरण के बाद पहली बार चीन के कामकाजी आयु वर्ग में 3 करोड़ से अधिक की कमी आई है। संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि यह समूह-विशेष सिकुड़ता रहेगा और 2050 तक घटकर 77.3 करोड़ रह जाएगा। दूसरे शब्दों में, अब और तब के बीच चीन में ब्राजील की आबादी की तुलना में बड़ी संख्या में श्रमिकों के खोने की संभावना है। 14 साल से कम उम्र की चीनी आबादी भी उसी अवधि में घट जाएगी, 2020 में 25 करोड़ से कुछ अधिक से लेकर 2050 में 15 करोड़ तक। न केवल श्रमिक गायब हो जाएंगे, बल्कि कोई उनकी जगह ले पाएगा, यह उम्मीद भी नहीं है।

15वें ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान जोहानिसबर्ग में प्रवासी भारतीयों का अभिवादन स्वीकार करते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

बिगड़ता लैंगिक संतुलन

आयु से जुड़ी जितनी सामाजिक-आर्थिक प्रवृत्तियां हैं, वे सभी चीन में प्रतिकूल दिशा में जा रही हैं। देश की औसत आयु, जो कभी पश्चिमी दुनिया से काफी कम थी, अब अमेरिका से अधिक हो गई है और हर गुजरते साल के साथ वृद्धि की ओर बढ़ती जा रही है। 1961 के बाद पहली बार पिछले वर्ष जन्मों की तुलना में मृत्यु का आंकड़ा अधिक था। प्रजनन दर, जो सामान्य रूप से स्थिर जनसंख्या बनाए रखने के लिए प्रति वयस्क महिला 2.1 बच्चे होनी चाहिए, 1.1 से नीचे खिसक गई है। यह आंकड़ा इस तथ्य से और भी बिगड़ गया है कि ग्रह पर लगभग हर दूसरे देश के विपरीत, चीन की वयस्क आबादी में अपेक्षाकृत लैंगिक संतुलन समान नहीं है, जो उस देश की केंद्रीय हुकूमत की कुख्यात एक-बाल नीति के साथ संयुक्त रूप से पुरुष-पक्षपात का दीर्घकालिक परिणाम है।

बुनियादी गणित से चलें, तो यह इस बात की ओर इंगित करता है कि इनमें से लाखों ‘अतिरिक्त’ पुरुष कभी भी अपना परिवार शुरू नहीं करेंगे। समस्या को और भी अधिक जटिल बनाने के लिए, चीन में महिलाओं ने बच्चे पैदा करने में पहले की तुलना में कम रुचि दिखाई है। दो-तिहाई से अधिक महिलाओं ने ‘बच्चा पैदा करने की न्यून इच्छा’ व्यक्त की है। पेकिंग विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जेम्स लियांग के अनुसार, बीजिंग और शंघाई में प्रजनन दर आश्चर्यजनक रूप से 0.7 तक गिर गया है, जो ‘दुनिया में सबसे कम’ है।

जापान में आर्थिक जड़ता ने एक ऐसे दौर को जन्म दिया, जिसे ‘लॉस्ट जेनरेशन’ यानी खोया हुआ दशक कहा गया। वह ठहराव अंतत: इतने लंबे समय तक बना रहा कि कुछ लोग इसे ‘खोई हुई पीढ़ी’ के रूप में संदर्भित करने लगे। चीन में उससे भी अधिक अशुभ चर्चा-वाक्यांश आनलाइन लोकप्रिय हो गया है: ‘द लास्ट जेनरेशन’ यानी ‘अंतिम पीढ़ी।’ तेजी से बढ़ती सेवानिवृत्ति आयु की ओर जाती हुई आबादी के मुकाबले तेजी से घटते कार्यबल को प्रबंधित करने के प्रयास में चीन को जिन कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा, उनके बारे में बहुत कुछ कहा जा चुका है। इस आयु-वर्ग के 2050 तक दोगुना होने का अनुमान है। लेकिन यह मुद्दा वास्तव में उसके बाद होने वाली संभावना से बेहतर हो सकता है, यदि जल्द ही चीन की कुछ वृद्ध आबादी अपेक्षा के अनुरूप लंबे समय तक जीवित नहीं रहती है।
बड़ी आबादी शहरों से गायब!

सदी के अंत तक चीन के लिए निम्नस्तरीय अपेक्षाओं पर ध्यान दें, तो उसकी जनसंख्या 60 करोड़, 50 करोड़ और शायद 45 करोड़ जितनी कम हो सकती है। यहां तक कि औसत अनुमान भी इस संख्या को लगभग 75 करोड़ बताता है। अब इसे केवल संयुक्त राष्ट्र की एक एजेंसी का गलत अनुमान कह कर हवा में उड़ाया नहीं जा सकता है। शंघाई एकेडमी आॅफ सोशल साइंसेज ने 58.7 करोड़ की एक अत्यंत विशिष्ट भविष्यवाणी जारी की है।

चीन के ‘भुतहा शहरों’ की चर्चा भी जोर पकड़ रही है। यदि आप सोचते हैं कि चीन में अब भुतहा शहर हैं, तो उस विशाल देश की कल्पना करें, जिसकी आबादी आज बमुश्किल एक-तिहाई है। उस देश में संपत्ति के मूल्यों का क्या होगा, जहां 50 से 70 प्रतिशत लोग गायब हो गए हैं? जी हां, बिल्कुल गायब। पर्यटन का क्या होगा? खुदरा व्यापार का क्या होने जा रहा है? जब एक आधुनिक समाज बहुत बूढ़ा हो जाता है, तो क्या होता है? इसके बारे में बहुत सारे लेख लिखे गए हैं और लिखे जा सकते हैं, जैसा कि जापान और जर्मनी सहित अन्य देशों में हुआ है। लेकिन इस बारे में कितना लिखा गया है कि जब आधुनिक समाज की बहुसंख्यक आबादी पूरी तरह से गायब हो जाती है तो क्या होता है?

मामले को और पेचीदा और विचारणीय बनाने के लिए तो ये सभी संख्याएं आधिकारिक चीनी आंकड़ों पर निर्भर हैं और चीन की सरकार सम्भवत: उन्हें बढ़ा-चढ़ाकर प्रदर्शित कर रही है। इसलिए चीन की जनसांख्यिकीय प्रतिकूलता किसी तूफान की ताकत लिए हुए हो सकती है। निष्पक्षता बनाए रखने के लिए हमें यह स्वीकारना होगा अधिकांश प्रमुख विकसित पश्चिमी देशों को भी घटते जन्म दर और वयोवृद्ध नागरिकों का सामना करना पड़ रहा है। अनुमानित जनसांख्यिकी में भारी अंतर कम से कम उनमें से कई मामलों में आप्रवासन के कारण आता है। संयुक्त राष्ट्र के औसत अनुमान के अनुसार, केवल 1.6 की वर्तमान प्रजनन दर के साथ भी अमेरिकी जनसंख्या का सदी के अंत तक लगभग 40 करोड़ तक पहुंचने का अनुमान है। पूर्वी एशियाई देशों में बहुत अधिक प्रतिबंधात्मक आव्रजन नीतियां हैं, लेकिन कहीं भी यह पीपुल्स रिपब्लिक जितना सच नहीं है। 1950 के बाद से, जहां तक आंकड़ों की बात है, चीन ने एक भी वर्ष में शुद्ध सकारात्मक प्रवासन का अनुभव नहीं किया है। कभी भी नहीं।

सदी के अंत तक चीन के लिए निम्नस्तरीय अपेक्षाओं पर ध्यान दें, तो उसकी जनसंख्या 60 करोड़, 50 करोड़ और शायद 45 करोड़ जितनी कम हो सकती है। यहां तक कि औसत अनुमान भी इस संख्या को लगभग 75 करोड़ बताता है।

दोहरा बोझ

कहानी केवल चीन की प्रतिकूल हो रही जनसंख्या तक सीमित नहीं है। जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, बीजिंग को आगे चलकर एक नहीं, बल्कि दो भारी बोझों का सामना करना पड़ेगा। दूसरे मामले में ज्यादा आश्चर्य नहीं होना चाहिए, क्योंकि यह चीन के सभी बेहतर या सुनहरे वर्षों के दौरान उसकी जनसंख्या विस्फोट से जुड़ा हुआ था। वह है उसकी अर्थव्यवस्था।

‘महाबली’ चीन की ‘महाबली’ अर्थव्यवस्था, जिसने अब तक न जाने कितने उछाल, फिर बड़े उछाल, फिर ‘सबसे तेज उछाल’ और न जाने क्या-क्या कारनामे किए हैं। वही अर्थव्यवस्था बहुत बड़ी समस्या बनने जा रही है। बेशक, इस समस्या का अधिकांश हिस्सा जनसांख्यिकीय कमी की विशालता के कारण होगा। लेकिन ऐसे विशिष्ट विवरण हैं, जो उस संकट के प्रभाव को बढ़ा देंगे। चीनी घरेलू संपत्ति का 70 प्रतिशत हिस्सा रियल एस्टेट में रखा गया है।

अमेरिका में तुलनीय संख्या आधे से भी कम है। निवेश संपत्तियों की मांग इतनी अधिक रही है कि चीन के बिल्डिंग निर्माण विस्फोट की तुलना किसी भी अन्य प्रमुख अर्थव्यवस्था में हुए इस तरह की वृद्धियों से नहीं की जा सकती है, जहां लोगों ने विशाल आवासीय निर्माण के बुलबुलों का अनुभव किया है। रिजर्व बैंक आफ आस्ट्रेलिया के एक अध्ययन के अनुसार, सकल घरेलू उत्पाद के अनुपात के रूप में ‘आवासीय सकल निश्चित पूंजी’ चीन में लगभग 20 प्रतिशत है, आस्ट्रेलिया, जापान, दक्षिण कोरिया और अमेरिका में तुलनीय अनुपात लगभग 5 प्रतिशत या उससे कम है।

बिजिनेस इनसाइडर ने घोषणा-

‘‘चीन की अर्थव्यवस्था कभी भी अमेरिका से आगे नहीं निकल सकती।’’

न्यूजवीक का कहना है-
‘‘चीन ने चुपचाप अमेरिकी अर्थव्यवस्था से आगे निकालने का लक्ष्य त्याग दिया।’’

निक्केई ने कहा-
‘‘अगले कुछ दशकों में चीन की जीडीपी के अमेरिका से आगे निकलने की संभावना नहीं है।’’

पिछले दशकों में जनसंख्या वृद्धि, शहरीकरण और उनके साथ आने वाले उन्मादी रियल एस्टेट निवेश के लगातार कम खरीदारों के साथ नए दशकों के अवरोध से टकराने से होने वाली संभावित आर्थिक क्षति पर अधिक जोर देना असंभव है। ऐसा नहीं है कि बुलबुला फूटने के सामान्य अर्थ में इसका मतलब ‘कम खरीदार’ है। इसका आशय है, समय के साथ करोड़ों खरीदारों की अक्षरश: अनुपस्थिति। क्या होगा जब रोक्त भूतिया शहर बढ़ने लगेंगे? शायद उससे भी अधिक महत्वपूर्ण प्रश्न है कि चीन एक उपभोक्ता आधारित अर्थव्यवस्था में अपना महत्वपूर्ण रूपांतरण कैसे कर सकता है, जब उपभोक्ताओं ने समग्र रूप से अपने धन का इतना हिस्सा संपत्तियों में निवेश कर दिया है जो अमूमन बेकार हो जाएंगे? यह कैसे काम कर सकता है? क्या इसका टिक पाना भी संभव है?

उपभोक्ता आधारित अर्थव्यवस्था ही क्यों? वह उपभोक्तागामी परिवर्तन हर दिन अधिक आवश्यक हो जाता है, क्योंकि चीन के पास उत्पादक विकास को आगे बढ़ाने के लिए कोई अन्य यथार्थवादी विकल्प नहीं है। वर्षों से बीजिंग ने आर्थिक गतिविधियों को जुनूनी ढंग से निवेश की ओर धकेला है, जो पहली बार में केवल उसके शाब्दिक अन्वयार्थ के कारण आकर्षक लगता है। लेकिन जब निवेश में लगातार वृद्धि की बात आती है, तो चीन ने बहुत पहले ही घटती प्रतिप्राप्तियों के नियम के खिलाफ चलना शुरू कर दिया था। कानेर्गी में चीनी विशेषज्ञ माइकल पेटिस ने इस साल की शुरुआत में बताया था, ‘‘चीन की सकल घरेलू उत्पाद में निवेश हिस्सेदारी दुनिया में सबसे अधिक है। यह इतिहास में सबसे तेजी से बढ़ते कर्ज के बोझ में से एक है। ये असंबंधित नहीं हैं। उन परियोजनाओं में निवेश की बढ़ती मात्रा के साथ जिनकी आर्थिक लाभ उनकी आर्थिक लागत से कम है, चीन के ऋण बोझ में वृद्धि इस बहुत अधिक निवेश हिस्सेदारी का प्रत्यक्ष परिणाम है।’’

चीनी दृष्टिकोण

चीनी दृष्टिकोण के अनुसार, सकल घरेलू आय यानी जीडीपी एक निविष्ट या इनपुट है, जबकि वस्तुत: हर दूसरा देश इसे आउटपुट अर्थात् उत्पाद ही समझता है, जो कि वह वास्तव में है। दूसरे शब्दों में, अधिकांश राष्ट्र अपनी आर्थिक गतिविधियों को सारणीबद्ध करते हैं और अंतत: एक संख्या उगलते हैं, जिसे सकल घरेलू उत्पाद के रूप में दर्ज किया जाता है। उस गणना के बारे में वास्तव में कैसे जाना जाए और इसका क्या अर्थ है, इस पर कई तर्क-वितर्क किए जाते हैं, लेकिन मूल आधार लगभग वही है। चीन में उसकी केंद्रीय हुकूमत यह निर्धारित करती है कि तिमाही के लिए जीडीपी क्या होगी और फिर यह प्रांतीय और स्थानीय अधिकारियों पर निर्भर है कि वे परियोजनाओं की वास्तविक आवश्यकता या उपयोगिता की परवाह किए बिना, उनकी संख्या को बढ़ाने के लिए जो भी आवश्यक हो वह करें।

इसके अलावा, यदि वे अधिकारी लगातार कहीं न दिखाई देने वाले काल्पनिक ढांचे खड़ी कर भी अपने लक्ष्य तक नहीं पहुंच सकते हैं, तो वे बस झूठ बोल सकते हैं और वैसे भी सफलता का दावा कर सकते हैं। इन सभी कारकों और संभवत: कई अन्य कारकों ने हाल ही में घोषणाओं का एक अंबार लगा दिया है, जो अब ज्यादा आश्चर्य की बात नहीं है। बिजिनेस इनसाइडर ने घोषणा की है, ‘‘चीन की अर्थव्यवस्था कभी भी अमेरिका से आगे नहीं निकल सकती।’’ न्यूजवीक का कहना है, ‘‘चीन ने चुपचाप अमेरिकी अर्थव्यवस्था से आगे निकालने का लक्ष्य त्याग दिया।’’ निक्केई ने कहा, ‘‘अगले कुछ दशकों में चीन की जीडीपी के अमेरिका से आगे निकलने की संभावना नहीं है।’’

‘अगले कुछ दशकों’ की समय-सारणी भी काफी उदार समीकरण है। चीन की अर्थव्यवस्था अमेरिका को पछाड़ नहीं सकती है, न दशकों में, न कभी आगे, क्योंकि ऐसा कुछ करने की क्षमता उसमें है ही नहीं। जिन शक्तियों ने उसे पिछली आधी सदी में अत्यंत तीव्र गति से बढ़ने दी, वही शक्तियां उसे आगे बढ़ने से रोकेंगी। अमेरिका तो छोड़िए, चीन अब भारत से भी वैसे आंख तरेर कर व्यवहार करने का साहस नहीं कर सकता, जैसा वह नेहरू और कांग्रेस के जमाने में उद्दंडता से करता रहा। डोकलाम में उसकी सेना भारत का सामना करने में विफल रही और लद्दाख में तो चीन को भारतीय सेना के हाथों पिटना पड़ा।

‘‘चीन की सकल घरेलू उत्पाद में निवेश हिस्सेदारी दुनिया में सबसे अधिक है। यह इतिहास में सबसे तेजी से बढ़ते कर्ज के बोझ में से एक है। ये असंबंधित नहीं हैं। उन परियोजनाओं में निवेश की बढ़ती मात्रा के साथ जिनकी आर्थिक लाभ उनकी आर्थिक लागत से कम है, चीन के ऋण बोझ में वृद्धि इस बहुत अधिक निवेश हिस्सेदारी का प्रत्यक्ष परिणाम है।’’ -विशेषज्ञ माइकल पेटिस

जोहानिसबर्ग में शी जिनपिंग का बुझा हुआ रूप इस बात की ओर साफ संकेत है कि भारत में मौजूद उसके प्रशंसक चाहे जो राग अलापें पहले कभी ‘विश्व में सबसे ज्यादा श्रमिक’ की अपनी विशिष्टता को भरपूर भुनाने वाला चीन अब श्रमिकों की बढ़ी-चढ़ी लागत से जूझ रहा है। उसके अभिलाषित आर्थिक वर्चस्व के लिए उसे 17वीं, 18वीं और 19वीं शताब्दियों जैसा औपनिवेशिक संसार और बंधक बाजार चाहिए जो तब की यूरोपीय महाशक्तियों के पास था, किन्तु आज के विश्व में उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। परिणामत: चीन की कम्युनिस्ट पार्टी वही कर सकती है, जो कोई भी क्रूर, गोपनीयता आधारित व असहिष्णु राजनीतिक व्यवस्था करने को बाध्य है—अपने ही लोगों का शोषण, बलपूर्वक दमन व पड़ोसियों सहित पूरे विश्व के लिए एक संकट बनना।

जिनपिंग यदि सितंबर में भारत की अध्यक्षता में होने वाले जी-20 सम्मेलन में आएंगे भी, तो शायद देर से आकर जल्दी चलते बनेंगे। ‘चीनी शताब्दी’ का बचा-खुचा हिस्सा जिस ओर करवट लेने जा रहा है, शी इसी बात को लेकर संतुष्ट होंगे कि उसे देखने तक वे शायद उपस्थित न रहें।

Topics: बीजिंग और शंघाईप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीJohannesburgPrime Minister Narendra Modiaccording to James Liangदक्षिण अफ्रीकाBeijing and ShanghaiSouth Africaबदले हालात और चीनbrics summitब्रिक्स सम्मेलनजोहानिसबर्ग‘भुतहा शहरों’वैश्विक दक्षिण (ग्लोबल साउथ)जेम्स लियांग के अनुसार
ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

वन नेशन वन इलेक्शन पर सीएम धामी का बड़ा बयान, कहा- ‘यह सिर्फ सुधार नहीं, देशहित में क्रांति है’

WAVES 2025 : पीएम मोदी बोले – भारत बनेगा ग्लोबल क्रिएटिव पावरहाउस

इस्राएली खुफिया एजेंसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि हिंडनबर्ग रिसर्च के षड्यंत्र में कांग्रेस नेता राहुल गांधी और सैम पित्रोदा भी शामिल थे

अडाणी बहाना, मोदी निशाना!

Manoj Muntshir Pahalgam terror Attack

पहलगाम आतंकी हमले पर मनोज मुंतशिर ने हिन्दुओं को झकझोरा, कहा-‘इतिहास सड़ी-गली लाशों को नहीं, विजय ध्वज गिनता है’

एनआईए के कब्जे में आतंकवादी तहव्वुर राणा

खुलेंगी साजिश की परतें !

Anurag Thakur DMK Pm Modi Sanatan Dharma

‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ बिल परिवर्तनकारी, ऐतिहासिक और देश हित में: अनुराग ठाकुर

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

पाकिस्तान को भारत का मुंहतोड़ जवाब : हवा में ही मार गिराए लड़ाकू विमान, AWACS को भी किया ढेर

बौखलाए पाकिस्तान ने दागी रियाशी इलाकों में मिसाइलें, भारत ने की नाकाम : जम्मू-पंजाब-गुजरात और राजस्थान में ब्लैकआउट

‘ऑपरेशन सिंदूर’ से तिलमिलाए पाकिस्तानी कलाकार : शब्दों से बहा रहे आतंकियों के लिए आंसू, हानिया-माहिरा-फवाद हुए बेनकाब

राफेल पर मजाक उड़ाना पड़ा भारी : सेना का मजाक उड़ाने पर कांग्रेस नेता अजय राय FIR

घुसपैठ और कन्वर्जन के विरोध में लोगों के साथ सड़क पर उतरे चंपई सोरेन

घर वापसी का जोर, चर्च कमजोर

‘आतंकी जनाजों में लहराते झंडे सब कुछ कह जाते हैं’ : पाकिस्तान फिर बेनकाब, भारत ने सबूत सहित बताया आतंकी गठजोड़ का सच

पाकिस्तान पर भारत की डिजिटल स्ट्राइक : ओटीटी पर पाकिस्तानी फिल्में और वेब सीरीज बैन, नहीं दिखेगा आतंकी देश का कंटेंट

Brahmos Airospace Indian navy

अब लखनऊ ने निकलेगी ‘ब्रह्मोस’ मिसाइल : 300 करोड़ की लागत से बनी यूनिट तैयार, सैन्य ताकत के लिए 11 मई अहम दिन

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ

पाकिस्तान की आतंकी साजिशें : कश्मीर से काबुल, मॉस्को से लंदन और उससे भी आगे तक

Live Press Briefing on Operation Sindoor by Ministry of External Affairs: ऑपरेशन सिंदूर पर भारत की प्रेस कॉन्फ्रेंस

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies