कोलकाता। कलकत्ता उच्च न्यायालय ने सोमवार को भारतीय जनता पार्टी के नेता शुभेंदु अधिकारी द्वारा दायर एक जनहित याचिका (पीआईएल) पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिसमें आरोप लगाया गया था कि जादवपुर विश्वविद्यालय में एक प्रतिबंधित छात्र संगठन काम कर रहा है। इसी याचिका में उन्होंने जादवपुर कांड की सीबीआई और एनआईए जांच की भी मांग की थी।
जब मामला सुनवाई के लिए आया, तो मुख्य न्यायाधीश टी.एस. शिवगणनम और न्यायमूर्ति हिरण्मय भट्टाचार्य की खंडपीठ ने सुझाव दिया कि अधिकारी, जिनके पास वर्तमान में अदालत के समक्ष कई अन्य याचिकाएं लंबित हैं, खुद को ऐसी याचिकाएं लगाकर परेशान ना करें। मुख्य न्यायाधीश ने अधिकारी के वकील से कहा कि कृपया खुद को थकाएं नहीं। याचिका खुद ही वापस लेलीजिए या हमलोग खारिज कर देंगे। इसके बाद कोर्ट ने कहा कि वह याचिका को इस आधार पर खारिज करने जा रहा है कि यह अखबार की रिपोर्टों पर भरोसा करके दायर की गई है। हालांकि, अधिकारी के वकील के अनुरोध पर पीठ ने याचिका वापस लेने की अनुमति दे दी।
अधिकारी ने अपनी जनहित याचिका में कहा कि “रिवोल्यूशनरी स्टूडेंट्स यूनियन फेडरेशन” नामक एक प्रतिबंधित संगठन कोलकाता शहर के मध्य में जादवपुर विश्वविद्यालय के परिसर से काम कर रहा है। यह भारत के हितों के खिलाफ काम कर रहा है। जादवपुर विश्वविद्यालय हाल ही में तब खबरों में रहा जब प्रथम वर्ष के एक छात्र की कथित तौर पर वरिष्ठ छात्रों द्वारा रैगिंग के कारण मौत हो गई। अधिकारी के वकील ने आज कहा कि हम यहां भारत की रक्षा के लिए आए हैं। यह प्रतिबंधित संगठन भारत की संप्रभुता, अखंडता और एकता को खतरा पहुंचा रहा है। सार्वजनिक पदाधिकारियों पर हमले किए जा रहे हैं।
पीठ ने कहा कि उसने अखबारों में पढ़ा है कि इस मुद्दे पर पहले ही कार्रवाई की जा चुकी है। पीठ ने शुरू में आदेश दिया कि हमने पढ़ा है कि पुलिस अधिकारियों द्वारा उचित कार्रवाई शुरू कर दी गई है। चूंकि यह याचिका पूरी तरह से समाचार पत्रों की रिपोर्टों पर आधारित है, इसलिए हम इसे खारिज करते हैं। बाद में इसने वकील को याचिका वापस लेने की अनुमति दे दी।
जादवपुर विश्वविद्यालय से संबंधित एक अन्य व्यक्ति द्वारा दायर जनहित याचिका पर विचार करते हुए, न्यायालय ने प्रत्येक मुद्दे पर मामले दायर करने की प्रवृत्ति की निंदा की। उन्होंने कहा कि सुबह हम अखबारों में एक मुद्दे के बारे में पढ़ते हैं, अगले दिन एक जनहित याचिका दायर की जाती है और दोपहर दो बजे तत्काल सुनवाई की मांग की जाती है। यह किस तरह की प्रथा है? कृपया मुकदमेबाजी को बढ़ाना बंद करें।
(सौजन्य सिंडिकेट फीड)
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