चंद्रयान-3 की सफलता से गदगद जोहानिसबर्ग-ब्रिक्स शिखर बैठक में बुधवार शाम ढलते-ढलते प्रधान नरेंद्र मोदी और देशवासियों के लिए वह क्षण अविस्मरणीय रहेगा, जब अंतरिक्ष में चंद्रयान-3 ने दक्षिणी ध्रुव से पहली बार चंद्रमा की सतह पर अपने “चरण’’ रखकर अद्भुत सफलता अर्जित की। इसरो निदेशक सोमनाथ ने जैसे वीडियो पर चंद्रयान-3 की गौरवमयी यात्रा देख रहे प्रधानमंत्री को चंद्रयान की सफलता की सूचना दी, वह गदगद हो उठे, हर्षातिरेक में इठलाते, हाथों में लिए तिरंगे को देर तक हवा में लहराते रहे, जैसे सचमुच चाँद मुट्ठी में आ गया हो। यह क्षण ऐसा था, जब प्रधानमंत्री के आभामंडल पर एक ऐसी गरिमामयी कीर्ति की बयार बह रही थी, जैसे उन्होंने एक ऐतिहासिक विजय पा ली हो। बोले, ’’भारत के 140 करोड़ देशवासियों के लिए यह अभूतपूर्व क्षण है। इसके लिए वर्षों से तप कर रहे भारतीय वैज्ञानिक बधाई के पात्र हैं।’’ मेज़बान दक्षिण अफ़्रीकी राष्ट्रपति सिरिल मोफ़ोसा से भी रहा ना गया। मीडिया से बोले, ‘हमारे ब्रिक्स परिवार में भारत का चाँद पर पहुँचना हम सभी के लिए महत्वपूर्ण क्षण है। इससे हम सभी गौरवान्वित हुए हैं।’ यों प्रधानमंत्री की जोहानिसबर्ग-ब्रिक्स की यह तीन दिवसीय यात्रा कई मायनों में यादगार रहेगी।
प्रधानमंत्री मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच आमने-सामने बातचीत में पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर दोनों देशों की सेनाओं के बीच परस्पर भिड़ंत की आशंकाओं पर भी विराम लगने की आशाएँ जग गई हैं। नई दिल्ली जी-20 से पूर्व यह एक बड़ी उपलब्धि है। जैसे कि उम्मीद थी, ब्रिक्स शिखर बैठक से ठीक पहले दोनों देशों के कोर कमांडर स्तर की 19वीं बैठक किसी ठोस निर्णय के अभाव में जल्द समाधान की बात आई, तो यह लगने लगा था, अब निर्णय बड़े दरबार में होगा। ब्रिक्स में वह घड़ी भी गई। बात की शुरुआत कैसे किसने की, पता नहीं चल सका। मोदी ने इतना अवश्य कहा कि सामान्य रिश्तों के लिए ज़रूरी है कि सीमा पर अमन और चैन की बयार की दरकार ज़रूरी है। इस पर चीनी राष्ट्रपति ने सहमति जताई । यह फ़ैसला हुआ कि बड़े आधिकारिक स्तर पर यह संदेश जाए कि पूर्वी लद्दाख सीमा पर दोनों देशों की आमने-सामने तैनात सेनाओं के बीच तनाव में कमी लाई जाए। शिखर बैठक के इतर दोनों नेताओं ने एक स्वर में कहा कि सीमा पर शांति बनाए रखने के लिए प्रयास किए जाते रहेंगे। चंद्रयान की सफलता से उल्लिसित मोदी ने दो टूक शब्दों में पूर्वी लद्दाख में दोनों सेनाओं के आमने-सामने भिड़ंत की मुद्रा में खड़े होने और तनाव की ओर शी जिनपिंग का ध्यान आकृष्ट किया कि भारत-चीन के बीच सामान्य रिश्तों के लिए एलएसी के प्रति आदर और सम्मान ज़रूरी है। प्रधानमंत्री के साथ जोहानिसबर्ग गए विदेश सचिव विनय क्वात्रा ने बाद में मीडिया को बताया,’’ प्रधानमंत्री और चीन के राष्ट्रपति के बीच इस बात पर सहमति हुई है कि दोनों सेनाओं के बीच तनाव कम किए जाने के प्रयासों में तेज़ी लाई जाएगी। लेकिन बात की शुरुआत किसने की, वह जवाब देने के लिए टाल गए। एक अन्य सवाल में क्या शी जिनपिंग अगले महीने नई दिल्ली में जी-20 देशों की शिखर बैठक में हिस्सा लेने भारत आयेंगे, इस पर कोई सीधा जवाब नहीं आया। चीन के ग्लोबल टाइम्स की मानें तो चीनी अंतरिक्ष वैज्ञानिक चंद्रयान- तीन की सफलता से उत्साहित हैं। उनकी कोशिश है कि इस दिशा में दोनों देश मिल कर आगे बढ़ें।
क्या भारत को ब्रिक्स बाहर से निकल आना चाहिए? यूक्रेन युद्ध के कारण रूस की आर्थिक स्थिति दयनीय होती जा रही है। अमेरिकी और यूरोपीय यूनियन प्रतिबंधों से रूस वैश्विक समुदाय में अलग थलग होता जा रहा है। एक वक़्त सुपर पावर की गणना में रहने के बाद रूस की सैन्य शक्ति क्षीण होती जा रही है। ऐसे में रूस की पकड़ ढीली हो रही है। उसके सम्मुख पड़ोसी चीन के आगे गिड़गिड़ाने के कोई चारा नहीं है। चीन के विस्तारवादी रवैए को देखते हुए क्या भारत के लिए रूस से रणनीतिक साझेदारी निभा पाना समझदारी होगा?
चीन का मक़सद कम्युनिस्ट विचारधारा के अनुरूप लोकतंत्र के ख़िलाफ़ मोर्चेबंदी करना ‘वैश्विक आर्डर’ के साथ साथ विश्व में ‘साम दंड भेद’ नीति के अनुरूप विश्व में नंबर वन बनना है। चीन इस बार लैटिन अमेरिका में कम्युनिस्ट क्यूबा को ब्रिक्स में भारत की अड़चनों के कारण अपने दायरे में नहीं ले पाया तो क्या हुआ, वह अगले वर्ष ले लगा? इस बार चीन ने अमेरिका विरोधी एक अन्य लैटिन अमेरिकी देश अर्जेंटीना को ले लिया है। यों सऊदी अरब भले ही भारत का भी मित्र देश है, लेकिन वह अमेरिका से अपेक्षित सुरक्षा के बावजूद बाइडन प्रशासन के हाथों से छिटक रहा है। एक अन्य एशियाई देश ईरान के साथ भारत के प्राचीन सांस्कृतिक संबंध हैं, भारत उसका एक बड़ा तेल आयातक देश भी रहा है, चाहबहार बंदरगाह की विकास यात्रा में साझीदार होने के बावजूद उसके चीन के साथ एक मुख्य तेल आयातक देश और पाकिस्तान में ग्वाडार के रास्ते समुद्री ट्रेड और आणविक संबंधों में ज़्यादा सहायक है।
अमेरिका से बढ़ती नज़दीकियों के बावजूद इस बार मोदी बाज़ी जीत गए। रूस और चीन की भरपूर कोशिशों के बावजूद चीन अपने चहेते कम्युनिस्ट देशों में क्यूबा को शामिल करने में विफल रहा। मोदी ने खुले तौर पर ब्रिक्स विस्तार से गुरेज़ कभी नहीं किया । मोदी यही तो चाहते थे कि ब्रिक्स विस्तार में सर्वानुमति हो, इसकी मूल भावना के अनुरूप कार्य हो। एक चयन प्रक्रिया के बाद ही नए सदस्य देशों को ब्रिक्स में स्थान मिले।’’ मोदी के कथन का ब्राज़ील के राष्ट्रपति ने समर्थन किया। इस संदर्भ में एक रणनीति के अनुरूप सऊदी अरब, युनाइटेड अरब अमीरात, ईरान और मिस्र, ईथियोपिया और अर्जेंटीना को नव वर्ष पर ब्रिक्स में शामिल होने का निमंत्रण दे दिया गया। यह सर्वविदित है, भारत और चीन, दोनों देश ऊर्जा के लिए खाड़ी के इन तीनों देशों–सऊदी अरब, ईरान और युनाइटेड अरब अमीरात पर अवलंबित रहे हैं। भारत ने पिछले एक दशक में मधुर रिश्ते बनाए हैं। मोदी को सम्मान दिया गया है। खाड़ी में वर्चस्व की लड़ाई में सऊदी अरब और ईरान तलवारें लिए खड़े रहते थे। लेकिन अब वक़्त बदलने के साथ दोनों देशों के बीच नज़दीकियाँ बढ़ती जा रही है, और इससे जोई बाइडन प्रशासन दुविधा में है। अगले राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रम्प सऊदी अरब के मित्र रहे हैं।
अमेरिका और पश्चिमी देशों के विरुद्ध मंच
भारत के सात दशक से रणनीतिक मित्र रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन ने चंद्रयान-3 सफलता पर प्रधानमंत्री को बधाई देने से पहले क्रेमलिन से वीडियो संदेश में अमेरिका सहित पश्चमी देशों को ख़ूब कोसा। उन्होंने यूक्रेन युद्ध की आग में दुनिया भर को धकेलने के लिए अमेरिका और पश्चिमी देशों को ज़िम्मेदार ठहराया। वह यह भी कहने से नहीं चूके कि विश्व बैंक जैसी अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं से विकासशील देशों का कोई भला नहीं हो रहा है। उन्होंने एक तरह से ब्रिक्स के विस्तार के लिए अपने चहेते देशों की अपने पीछे एक कतार बनाए जाने और पश्चिमी देशों के जी-7 देशों के जवाब में ब्रिक्स को सुदृढ़ बनाए जाने का एक ‘ट्रेंड’ को आगे बढ़ाए जाने का संकेत दे दिया। लेकिन अगले ही वाक्य में वे अफ़्रीकी देशों को परोक्ष रूप से चेतावनी दे रहे थे कि पश्चिमी देशों ने रूस के विरुद्ध प्रतिबंधों को नहीं हटाया तो वह ब्लैक सी ( काला सागर) से खाद्यान की आपूर्ति होने नहीं देंगे। अब ये अफ़्रीकी देश कहाँ जाएँ, जो यूक्रेन के खाद्यान भंडारों पर अपनी भूख मिटाने के लिए विवश है। पुतिन ने अंतरराष्ट्रीय किर्मिनल कोर्ट के रेड अलर्ट और गिरफ़्तारी के भय से बचने के लिए जोहानिसबर्ग पहुँचना उचित नहीं समझा। उन्होंने पूर्व पहले से रिकार्ड किए अपने उद्बोधन में इतना कहा कि यूक्रेन का युद्ध पश्चिमी देशों की बदौलत हुआ है। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग जोहानिसबर्ग में मौजूद रहते हुए अपने होटल के कमरे से बाहर नहीं निकले और अफ़्रीकी देशों के नेताओं से आर्थिक विकास और सुरक्षा को लेकर अमेरिका के विरुद्ध विषवमन करते रहे। शी जीनपिंग के लिखित भाषण को उनके एक कनिष्ठ सहयोगी वाणिज्य मंत्री ने पढ़कर सुनाया। इसके मूल में स्पष्ट झलक रहा था कि चीन ने रूस की ढहती इकोनामी को सहारा देने और यूक्रेन युद्ध में रूस का खुल कर साथ निभाने के लिए बीड़ा उठा लिया है।
भारतीय अवधारणा
इस सबके बावजूद अभी वक़्त नहीं आया है कि भारत को इस बढ़ते हुए मंच को छोड़ने की ज़रूरत हो। भारत ने ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ अवधारणा के अनुरूप क़दम बढ़ाया है। इसके सार्थक परिणाम निकल रहे हैं। सम्पूर्ण विश्व को एक वैश्विक परिवार मान कर साझे भविष्य के साथ क़दमताल करते हुए भारत ने विगत एक दशक में एशिया के दक्षिण और पश्चमी क्षोर के देशों, दक्षिण अफ़्रीका, लेटिन अमेरिका और औसियाना आदि महाद्वीप के विकासशील देशों में पारस्परिक सहयोग के लिए हाथ बढ़ाए हैं। भारत का सर्वत्र ‘थोड़े में बहुत’ का संदेश गया है। कोविड त्रासदी और तत्पश्चात रूस और यूक्रेन युद्ध में त्रस्त पिछले वर्ष सप्लाई लाइन भंग होने पर खाद्यान संकट से जूझ रहे अफ़्रीकी देशों के करोड़ों लोगों को भारत ने संकट की घड़ी में निशुल्क मास्क और खाद्यान की आपूर्ति में मदद की है। इस मदद का अफ़्रीकी देशों में ही नहीं, लेटिन अमेरिकी महाद्वीप के करोड़ों लोगों के मन में भारत के प्रति एक आस जगी है। भारत ने पारस्परिक सहयोग के मद्देनज़र अफ़्रीका में पिछले सात दशकों में स्थापित 25 दूतावासों की संख्या बढ़ा कर 42 की है, वहीं उनकी मूलभूत ज़रूरतों को आधार बना कर 12 अरब डालर के निवेश से ढेरों परियोजनाएँ चलाई है। इसका सकारात्मक असर हुआ है। अफ़्रीकी देश मिस्र ने हाल में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को देश के सब से बड़े अवार्ड से सम्मानित किया है। यही नहीं, भारत ने लेटिन अमेरिका और ओसियाना देशों में भी कोविड के दौरान मास्क और निशुल्क दवाएँ पहुँचाई है। इसका असर नई दिल्ली जी बीस देशों की शिखर बैठक में दिखाई पड़ने लगे तो कोई ग़लत नहीं होगा।
ब्रिक्स देशों का मंच देखने में छोटा, पर आकार और मार बहुत बड़ी है। इसमें विश्व की बहुसंख्या वाले दो देश भारत और चीन इस मंच के सदस्य हैं। इसका दायरा ग्लोबल जनसंख्या का 42%, विश्व जीडीपी का 25.7%, ग्लोबल और कारोबार 17% हिस्सा है। ब्रिक्स देशों का ग्लोबल निवेश में 18% अंश है, तो 40 % विदेशी मुद्रा भंडार है। चीन इस कोशिश में है कि ब्रिक्स देशों में 85 प्रतिशत कारोबार में उसके प्रभुत्व की छाप हो। भारत और ब्राज़ील ने डब्ल्यूटीओ से चीन के सस्ते माल और अंडरवेल्यू करेंसी की लिखित में शिकायत की है, सीमा विवाद, आतंकवाद और यूएन सुरक्षा परिषद में चीन के दुर्भावनापूर्ण रवैए से भारत नाराज़गी जता चुका है। फिर चीन की हरसंभव कोशिश रहती है कि इस मंच के नेतृत्व करने के साथ साथ सदस्य देश उसका लोहा मानें, विकासशील देशों में उसका प्रभुत्व हो। एक इसी बात को लेकर एक पक्ष भारत के इस मंच में बने रहने की मंशा पर संशय उठा रहा है।
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