10+2 प्रणाली को 5+3+3+4 प्रणाली से बदल दिया गया है। इसका अर्थ है कि बच्चे तीन साल प्ले स्कूल में बिताएंगे, फिर कक्षा एक से कक्षा बारह तक पढ़ाई करेंगे।
आइए साथ देखें:
भारत में शैक्षिक सुधार का नया सफर राष्ट्रीय नीति का कालक्रमः
1968 में इंदिरा गांधी सरकार ने शिक्षा पर “पहली “ राष्ट्रीय नीति बनाई। राजीव गांधी सरकार ने 1986 में इसमें बदलाव किया था। 7 मई 1992 को पी. वी. नरसिम्हा राव सरकार ने फिर से इसमें बदलाव किया। 29 जुलाई 2020 को, भारत के माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में केंद्रीय भाजपा सरकार ने देश के समक्ष एक नई शिक्षा नीति (एनईपी-2020) प्रस्तुत की थी।
एनईपी-2020 को बनाने के लिए पंचायत स्तर पर चर्चा बहुत पहले से ही शुरू हो गई थी, यह देश में आधिकारिक तौर पर लाने से पहले ही शुरू हो गया था। सुझाव लगभग हर भारतीय जिले से जुड़े थे।
पहुंच, समानता, गुणवत्ता सामर्थ्य और जवाबदेही नई शिक्षा नीति 2020 की आधारशिला है।
एनईपी 2020 ने भारतीय स्कूली शिक्षा को बदला, क्रांतिकारी सुधार का आगाज़ ।
10+2 प्रणाली को 5+3+3+4 प्रणाली से बदल दिया गया है। इसका अर्थ है कि बच्चे तीन साल प्ले स्कूल में बिताएंगे, फिर कक्षा एक से कक्षा बारह तक पढ़ाई करेंगे। एनईपी 2020 के तहत, एक विद्यार्थी के स्कूली 15 (5+3+3+4) वर्षो को इस प्रकार विभाजित हैं:
(1) अपनी शिक्षा के फाउंडेशन चरण के दौरान छात्रों से परीक्षा नहीं लिया जायेगा।
(2) प्रिपरेटरी चरण की कक्षा-3 से छात्र स्कूल में टेस्ट देना शुरू करेंगे।
(3) एनईपी-2020 में कहा गया है कि प्रिपरेटरी चरण में छात्रों को क्षेत्रीय भाषा में पढ़ाना संभव होगा, लेकिन यह अनिवार्य नहीं होगा। उदाहरण के लिए, यदि पश्चिम बंगाल राज्य का कोई स्कूल चाहे तो कक्षा 3 और/या कक्षा 4 और/या कक्षा 5 के छात्रों को क्षेत्रीय भाषा ‘बंगाली’ में शिक्षा देना चुन सकता है, लेकिन ऐसा करना उस स्कूल के लिए अनिवार्य नहीं होगा।
(4) स्कूल की मिडिल चरण में छात्रों को कंप्यूटर प्रोग्रामिंग, गणित, विज्ञान, सामाजिक (कला) अध्ययन, और व्यावसायिक शिक्षा दी जाएगी। छात्रों को व्यावसायिक प्रशिक्षण के लिए किसी संस्थान में इंटर्नशिप करने की अनुमति होगी या किसी विशेषज्ञ की देखरेख में करने की अनुमति होगी। छात्रों को इन पांच विषयों के अलावा अपनी मनपसंद कोई भी एक भारतीय भाषा भी सिखाई जाएगी, जैसे संस्कृत, उर्दू मैथिली, मराठी, गुजराती, आदि ।
(5) सेकेंडरी चरण से छात्र सेमेस्टर के आधार पर परीक्षा देंगे।
(6) एनईपी-2020, सेकेंडरी स्कूल से, विद्यार्थियों को उन विषयों का अध्ययन करने की स्वतंत्रता देता है जो वे चाहते हैं। उदाहरण के लिए विद्यार्थी इस चरण में एक विषय को विज्ञान, दूसरा विषय को “कला” और तीसरा विषय को “हुमानिटीज़ से चुनकर पढ़ सकेंगे। पहले की तरह अब “साइंस स्ट्रीम”, “आर्ट्स स्ट्रीम या “कॉमर्स स्ट्रीम नहीं होगा।
(7) सेकेंडरी चरण में, छात्र एक विदेशी भाषा सीख सकते हैं जिसमें उनकी रुचि हो। इस समय, भारत सरकार ने चीनी भाषा को उन विदेशी भाषाओं की सूची में नहीं रखा है, इसलिए छात्र अभी चीनी सीखने का विकल्प नहीं कर सकते हैं।
(1) 3 वर्षीय के पाठ्यक्रम से स्नातक अब 4 वर्षीय पाठ्यक्रम कर दिया गया है। जैसा कि एनईपी- 2020 में, स्ट्रीम सिस्टम” को हटा दिया गया है, इसलिए बी.ए., बी.कॉम, और बी.एससी की डिग्री व्यवस्था भी हटा दिया गया है।
(2) 2020 की नई शिक्षा नीति के तहत, 3 सात की “स्नातक डिग्री वाले छात्र विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाएं दे सकते हैं।
(3) एनईपी 2020 में, स्नातक डिग्री (तीन वर्ष) वाले विद्यार्थियों को दो वर्ष का स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम तेना होगा, लेकिन स्नातक अनुसंधान (चार वर्ष) वाले विद्यार्थियों को सिर्फ एक वर्ष का स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम लेना होगा।
(4) एनईपी 2020 में एमफिल की पढ़ाई नहीं होगी। एनईपी 2020 विश्वव्यापी मानकों को बनाए रखने का प्रयास करेगा। एमफिल की डिग्री विश्वव्यापी रूप से मान्यता नहीं प्राप्त है। एनईपी 2020 को एमफिल कार्यक्रम को खत्म करने से एक और लाभ मिलने की उम्मीद है: अधिकांश छात्रों को पीएचडी में दाखिला लेने के लिए दो साल बचाने और तुरंत शुरू करने की सुविधा मिलेगी।
(5) एनईपी 2020 में पीएचडी करने का समय चार वर्ष कर दिया गया है। पीएचडी प्रोग्राम में प्रवेश करने के लिए छात्रों के पास चार साल का स्नातक अनुसंधान और एक वर्ष का मास्टर डिग्री (कम से कम 55% अंकों के साथ) होना चाहिए। या, छात्रों के पास तीन साल का “स्रातक डिग्री और दो वर्ष का मास्टर डिग्री (कम से कम 55% अंकों के साथ) होना चाहिए।
एनईपी-2020 में स्कूली शिक्षा के फाउंडेशन चरण में प्ले स्कूलों की स्थापना के संबंध में संभावित बाधाएँ और चुनौतियाँ:
सरकारी स्कूलों में प्ले स्कूल की अवधारणा और स्थापना के वास्तविक कार्यान्वयन के बारे में बहुत कुछ किया जाना बाकी है। इसके लिए पर्याप्त धन भी चाहिए। इस कार्य को तेज करने के लिए भारत सरकार ने शिक्षा बजट को सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 6% तक बढ़ाने का प्रस्ताव मंजूर किया है। इसलिए हम जल्द ही एनईपी-2020 के इस घटक का बेहतर कार्यान्वयन उम्मीद कर सकते हैं। इसके अलावा ग्रामीण भारत में अधिकांश सरकारी स्कूलों की वास्तविकता स्पष्ट है, इस पर विस्तार से बताने की जरूरत नहीं है।
एनईपी-2020 के तहत स्कूली शिक्षा के “प्रिपरेटरी चरण में संभावित बाधाएँ और चुनौतियों का खास विश्लेषण:
जब स्कूल क्षेत्रीय भाषा में छात्रों को पढ़ाना शुरू करेगा, तो यह एक या अधिक तरीकों से भविष्य में छात्रों को रोजगार मिलने में बाधा डाल सकता है। किसी छात्र की शिक्षा और करियर के हर हिस्से में अंग्रेजी सबसे महत्वपूर्ण भाषा है, और हमें इसे स्वीकार करना होगा। एनईपी-2020 द्वारा दिए गए इस विकल्प के कारण, भारत के किसी राज्य में स्कूलों द्वारा प्रिपरेटरी चरण में सभी पाठ्यक्रमों को क्षेत्रीय भाषा में पढ़ाया जाएगा। अंग्रेजी पाठ्यक्रम में एक विषय मात्र हो कर रह जाएगा। सरल भाषा में, इसका मतलब है कि अंग्रेजी पर कम जोर दिया जाएगा क्योंकि छात्र अपने अधिकांश विषयों को अपनी स्थानीय भाषा में सीखेंगे। इसका सीधा मतलब यह है कि ऐसे सभी विद्यार्थी अंग्रेजी भाषा में अधिकांश विषय पढ़ना सीखना-लिखना तब शुरू करेगा जब वे कम से कम 12 वर्ष के होंगे, और स्कूल के मिडिल चरण में कक्षा छह में प्रवेश करेंगे। सभी स्कूलों को मिडिल चरण से अधिकांश विषय अंग्रेजी में पढ़ाना है, इसकी वजह से कई छात्रों को स्कूल में काम करने में परेशानी हो सकती है। ऐसा भी संभव है की गरीब स्कूली छात्रों का स्कूल छोड़ने की दर में वृद्धि हो जाय। इस तरह की परिस्थितियों में भारत में कोचिंग क्षेत्र में और अधिक विकास हो सकता है।
एनईपी-2020 के तहत विश्वविद्यालयीय शिक्षा के चार वर्षीय खातक अनुसंधान में संभावित अवरोधों का विश्लेषण:
(1) एनईपी 2020 के पार जिस कहा जाता है, में विद्यार्थियों को रिसर्व प्रोजेक्ट पर काम करने के लिए कितना समय दिया जाएगा, और यह भी स्पष्ट नहीं है कि अगर कोई विद्यार्थी दरी समय पर पूरा नहीं कर पाता तो होगा?
(Z) एनईपी-2020 में मास्टर करने वाले छात्रों को रिसर्च पेपर लिखने और प्रकाशित करने की जरूरत नहीं है। इसका अर्थ है कि, तीन साल की “यातक डिग्री लेने वाले विद्यार्थी पीएचडी कार्यक्रम में पंजीकरण करने पर ही अपना पहला रिसर्च पेपर लिखने की कोशिश करेंगे। नतीजतन, यह इन विद्यार्थियों के लिए चुनौतीपूर्ण होगा और शैक्षणिक गुणवत्ता को प्रभावित कर सकता है।
(3) यह भी संभव है की, चार वर्षीय खातक अनुसंधान करने वाले अधिकांश छात्र जीआरई ग्रेजुएट रिकॉर्ड एग्जामिनेशन) देगे, और विदेश में अध्ययन करने का प्रयास करेंगे। संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा और अन्य देशों के कुछ चुनिंदा पाठ्यक्रम में प्रवेश प्रक्रिया के हिस्से के रूप में जीआरई स्कोर की आवश्यकता होती है। संक्षेप में, एनईपी-2020 में “अनुसंधान एक प्रमुख एजेंटा है। लेकिन “जीआरई” पास कर छात्रों के विदेश पलायन की स्थिति में यह प्रमुख एजेंडा पूरा होता नहीं लग रहा है।
एनईपी-2020 के तहत विश्वविद्यालयीय शिक्षा के चार वर्षीय पीएचडी कार्यक्रम* में संभावित बाधाओं का विश्लेषणः
(1) प्रारंभ में, पीएवढी बुद्धिजीवियों से जुड़ी थी। जैसे-जैसे हमारे देश में बेरोजगारी दर बढ़ती है, अधिकांश छात्र मासिक वजीफे (स्टिपेन्ड) के लिए पीएचडी कार्यक्रम में दाखिला लेने पर विचार करते हैं।
हर साल लगभग 24,000 पीएचडी धारकों के साथ, भारत दुनिया में चौथे स्थान पर है। •2019 ऑल इंडिया सर्वे ऑफ हायर एजुकेशन (ए.आई.एस.एच.ए.) की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले पांच वर्षों में पीएचडी डिग्री धारको की संख्या में 60% की वृद्धि हुई है। 2015-16 में 1,26,451 से 2019-20 में 2,02,550 तक, पीएचडी प्रवेश में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। 2019 में 38,986 छात्रों ने पीएचडी प्राप्त की और 2.02 लाख छात्रों ने पीएचडी मे तथा 2.881 छात्रों ने इंटीग्रेटेड पीएचडी कार्यक्रमों में दाखिला लिया है।
हालांकि, भारत में, पुस्तकालयों, प्रयोगशालाओं, और उपकरणों जैसे बुनियादी ढांचे की कमी अक्सर पीएचडी छात्रों को परेशान करती है और उन्हें उच्च गुणवत्ता वाले शोध करने से रोकती है।
इसके अलावा, खराब गुणवत्ता नियंत्रण और प्लगियरीसम ( अनुसंधान की चोरी) भारतीय अनुसंधान में महत्वपूर्ण मुद्दे है। अकादमिक परफॉरमेंस इंडेक्स (एपीआई) के लागु होने के कारण भारत मे अपने करियर को बढ़ाने के लिए प्लगियरीसम का चलन काफी बढ़ा है। परिणामस्वरूप भारत में कई पीएचडी शोध का प्रामाणिक गुण काफी कम हुआ है।
उन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय, जो पीएचडी छात्रों को बेहतर शोध उत्पन्न करने में मदद कर सकते हैं, एनईपी 2020 ने एक प्रणाली तैयार की है, जिसमें एक छात्र पीएचडी में प्रवेश करने पर ही पहली बार थीसिस लिखने का प्रयास करेगे।
(2) विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) शिक्षाविदों की गुणवत्ता परखने के लिए एपीआई का उपयोग करता है, जो की एक स्कोर है। इस स्कोर से विश्वविद्यालय के शिक्षक के बारे में जानकारी प्राप्त होता है, जैसा की शिक्षक के पास कितने वर्षों का शिक्षण अनुभव है”, शिक्षक ने कितनी किताबें लिखी और प्रकाशित की हैं, “शिक्षक ने कितने रिसर्च पेपर्स प्रकाशित किए हैं, “शिक्षक ने कितने सम्मेलनों में भाग लिया है, इत्यादि सामान्य तौर पर, यूनिवर्सिटीज इस एपीआई स्कोर का उपयोग शिक्षक का मूल्यांकन करने के लिए करते हैं। ताकि यह निर्धारित किया जा सके कि उन्हें जिम्मेदारी के उच्च पद पर पदोन्नत किया जाए या नहीं। परिणामस्वरूप, ऐसा होने पर यह बड़ी संख्या में शिक्षाविदों को अति साधारण शोध करने और निम्र-गुणवत्ता वाली पत्रिकाओं में प्रकाशित करने के लिए मजबूर करता है।
एनईपी-2020 के कुछ और अत्यंत महत्वपूर्ण लक्ष्य, जिनमें शामिल हैं:
(1) उच्च शिक्षा का ग्रॉस एनरोलमेंट रेश्यो (जीईआर):
एनईपी 2020 में वर्ष 2035 तक उच्च शिक्षा में उच्च शिक्षा का ग्रॉस एनरोलमेंट रेश्यो (जीईआर) को 26% से बढ़ाकर 50% करने की योजना है। उच्च शिक्षा में 18-23 वर्ष के बच्चों के लिए जीईआर 2011-12 में 21% से बढ़कर 2018-19 में 26% हो गया है। इसलिए यदि हम गणित करें, तो हम कह सकते हैं कि पिछले आठ वर्षों में इसमें 5.5 प्रतिशत अंक की वृद्धि हुई है। विकास की इस दर पर यह अगले 15 वर्षों में लक्ष्य के केवल तीन-चौपाई तक ही पहुंच पाएगा। इस लक्ष्य तक पहुंचने के लिए सरकार को संभव डिग्रियों के लिए ऑनलाइन शिक्षा का समर्थन करना चाहिए यूजीसी ने छात्रों को ऑनलाइन डिग्री देने के लिए अलग- अलग नियमों के साथ इसकी शुरुआत पहले ही कर दी है.
संभावित अवरोधः
समस्या यह है कि जमीन पर क्या हो रहा है, इसकी अधिक जाँच नहीं हो रही है। कई निजी विश्वविद्यालयों ने ऑनलाइन डिग्री पाठ्यक्रम पढ़ाना शुरू कर दिया, लेकिन पढ़ाने से से कर डिग्री प्रदान करने तक की की पूरी प्रक्रिया किसी औसत एडटेक कंपनी को आउटसोर्स कर रखा है। सभी नहीं, लेकिन कई मामलों में, ऑनलाइन शिक्षा कई निजी विश्वविद्यालयों के लिए (पैसा कमाने का एक जरिया मात्र है, और कुछ नहीं।
यूजीसी को बहुत सावधानी से जांचना चाहिए बेशक, यूजीसी बहुत अच्छा काम कर रहा है।
(2) अब भारत के सभी स्कूलों में माता-पिता से उनके बच्चों की शिक्षा के लिए ली जाने वाली अधिकतम राशि निर्धारित की जाएगी। कोई भी स्कूल अभिभावकों से फीस के लिए इससे अधिकतम रकम नहीं वसूल सकेगा।
(3) वर्तमान शिक्षा प्रणाली में, छात्रों के अंक स्कूल परीक्षाओं में उनके प्रदर्शन से निर्धारित होते है। हालांकि, एनईपी 2020 में स्कूली छात्रों के परिणाम निम्नलिखित कारकों द्वारा निर्धारित किए जाएंगे:
(a) उनके स्कूल परीक्षा में प्राप्त अंक;
(b) वे अंक जो वे स्वयं को निर्दिष्ट करेंगे:
(c) वे अंक जो उन्हें अपने सहपाठियों से प्राप्त होंगे; और
(d) वे अंक जो उन्हें अपने शिक्षकों से मिलेंगे जो उन्हें पढ़ा रहे हैं।
(4) 2020 की नई शिक्षा नीति में विदेशी विश्वविद्यालय भारत में शाखाएं खोल सकेंगे यदि वे भारत में शिक्षा मंत्रालय द्वारा निर्धारित कुछ मानकों पर खरी होती है।
(5) एनईपी- 2020 के तहत प्रत्येक विश्वविद्यालय में निम्नलिखित चार विभाग होने चाहिए पाठ्यक्रम निर्माण हेतु एक विभाग शिक्षक विनियमन, बुनियादी ढांचे, आदि के लिए एक विभागः शिक्षकों और कर्मचारियों को वेतन छात्रों को छात्रवृत्ति आदि देने के लिए एक विभाग और परीक्षा परिणाम प्रकाशित करने के लिए एक विभाग।
एनईपी-2020 द्वारा समर्थित अन्य पहलों के लिए उनकी प्रगति तालिका आपके सामने:
Leave a Comment