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घर में ही चिरशत्रु

भारत सरकार यदि चीन से संचार प्रणाली, कंप्यूटर और अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के आयात पर अंकुश लगाने के लिए बाध्य हुई है, तो जाहिर तौर पर इसका अर्थ यह है कि भारत सरकार को चीन द्वारा की जा रही जासूसी को लेकर बहुत स्पष्ट आशंकाएं थीं।

by हितेश शंकर
Aug 22, 2023, 04:42 pm IST
in सम्पादकीय
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भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल और उस समय चीन के शीर्ष राजनीतिक कहे जाने वाले वांग यी, जो अब चीन के विदेश मंत्री हैं, के बीच बातचीत की खबर सार्वजनिक हुई थी।

भारत-चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा पर शांति की बातचीत के विषय पर भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल और उस समय चीन के शीर्ष राजनीतिक कहे जाने वाले वांग यी, जो अब चीन के विदेश मंत्री हैं, के बीच बातचीत की खबर सार्वजनिक हुई थी। इस बातचीत में भारत की ओर से यह स्पष्ट कहा गया था कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर जारी गतिरोध ने भारत-चीन संबंधों के ‘सार्वजनिक और राजनीतिक आधार’ को ‘क्षीण’ कर दिया है। अर्थात भारत चीन के बयानों पर विश्वास करने के लिए तैयार नहीं रह गया है। स्पष्ट है कि बार-बार के विश्वासघात ने यह स्थिति पैदा की है और यह समझ न केवल अनुभवों पर बल्कि साक्ष्यों पर भी आधारित है। हाल ही में जी20 के प्रतीक चिन्ह पर ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ शब्द लिखे होने पर चीन ने आपत्ति की। मात्र इस आधार पर की कि यह शब्द संस्कृत के हैं और संस्कृत संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा नहीं है। सीधी सी बात है कि खुद जी20 का भी संयुक्त राष्ट्र से किसी तरह का संबंध नहीं है। लिहाजा इस बिंदु पर चीन की आपत्ति ठीक उसी तरह की है, जैसे विश्व हिंदू परिषद को गैर सरकारी संगठन का दर्जा देने पर पाकिस्तान द्वारा संयुक्त राष्ट्र में आपत्ति करना था। आपके पास बात करने का कोई आधार नहीं, लेकिन आप सिर्फ अपनी कुढ़न और अपने निहित मंतव्य के कारण भारत का प्रतिरोध करते हैं। यह एक चिरशत्रुता का संकेत है।

हम जिस विश्व में रह रहे हैं, उसमें सदाशयता के आधार पर परस्पर संबंधों को परिभाषित करना व्यावहारिक नहीं रह गया है। व्यावहारिक वही है जिसका साक्ष्य सामने हो और चीन के इरादों का एक बड़ा साक्ष्य न्यूयार्क टाइम्स की खोजी रिपोर्ट में सामने आया है। रोचक बात यह है कि भारत में प्रत्यक्ष तौर पर दिए गए बयान तक का फैक्ट चेक कर लेने वालों ने न्यूजक्लिक पर न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट पर किसी तरह का फैक्ट चेक करने की हिमाकत नहीं दिखाई। बात सिर्फ इतनी नहीं है कि न्यूजक्लिक कोई ऐसा पोर्टल है जिसे चीन से भारत विरोधी प्रचार करने के लिए पैसे मिल रहे थे।

संस्कृत भारत की न केवल प्राचीनतम भाषाओं में से एक है बल्कि वह भारत की संस्कृति की सबसे प्रकट उद्घोषणा भी है। ऐसी संस्कृत से आपत्ति भला किसे हो सकती है? उस चीन को जिसका संस्कृत से कोई संबंध ही नहीं? और चीन के इशारे पर चलते उन दलों को जिनका भारत की संस्कृति से कोई सरोकार ही नहीं है? ऐसे षड्यंत्र और षड्यंत्रकारियों का भंडाफोड़ होना आवश्यक ही था। संयोग से यह भंडाफोड़ अब पश्चिम की तरफ से हुआ है। सरकार जो कर रही है वह अपने स्थान पर है, नागरिक के तौर पर हम चीन सहित देश के शत्रुओं का बहिष्कार करके अपनी सुरक्षा को सुदृढ़ बना सकते हैं।

सिर्फ न्यूजक्लिक की बात करें तो बात और गहरी जाती है। न्यूजक्लिक के संबंध सीपीएम से हैं, भीमा कोरेगांव की साजिश रचने वालों से हैं, गौतम नौलखा से हैं और कई अन्य संदिग्ध लोगों से हैं। इसके बाद भारत में मीडिया के नाम पर दुकानें चलाने वालों ने अपनी अपेक्षित किस्म के रुदाली शुरू की, इसमें भी आश्चर्य की बात कुछ नहीं थी। लेकिन चीन की जिस फंडिंग के कई आयाम सामने आ चुके हैं, वह सिर्फ मीडिया तक सीमित नहीं है। उसने भारतीय राजनीतिज्ञों के एक वर्ग को भी खरीद रखा है और भारत की प्रतिरक्षा को कमजोर करने का भी प्रयास किया है। भारत सरकार यदि चीन से संचार प्रणाली, कंप्यूटर और अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के आयात पर अंकुश लगाने के लिए बाध्य हुई है, तो जाहिर तौर पर इसका अर्थ यह है कि भारत सरकार को चीन द्वारा की जा रही जासूसी को लेकर बहुत स्पष्ट आशंकाएं थीं। यह बात दोहराने में कोई संकोच नहीं है कि यह सारे लक्षण सिर्फ किसी चिरशत्रु के होते हैं।

चिरशत्रु का उपचार क्या है? यह बेहद संतोष की बात है कि अब इस ओर ध्यान दिया जा रहा है। उनसे तो अपेक्षा ही नहीं की जा सकती जो चीन और रूस से प्राप्त संकेतों को अपना अधिकार समझते हैं, जो डोकलाम पर भारत के दुश्मनों के पाले में खड़े होते हैं, जो चीनी हमले का स्वागत करते हैं और जो चीन से चंदा प्राप्त करते हैं। भले ही यह भारत के विपक्षी दल हैं, लेकिन जब तक इनकी हरकतें, इरादे और फंडिंग चीन से जुड़ी रहेंगी, तब तक निश्चित रूप से यह लोकतंत्र के भी किसी काम के नहीं हैं।

वापस संस्कृत वाली बात पर लौटें। संस्कृत भारत की न केवल प्राचीनतम भाषाओं में से एक है बल्कि वह भारत की संस्कृति की सबसे प्रकट उद्घोषणा भी है। ऐसी संस्कृत से आपत्ति भला किसे हो सकती है? उस चीन को जिसका संस्कृत से कोई संबंध ही नहीं? और चीन के इशारे पर चलते उन दलों को जिनका भारत की संस्कृति से कोई सरोकार ही नहीं है? ऐसे षड्यंत्र और षड्यंत्रकारियों का भंडाफोड़ होना आवश्यक ही था। संयोग से यह भंडाफोड़ अब पश्चिम की तरफ से हुआ है। सरकार जो कर रही है वह अपने स्थान पर है, नागरिक के तौर पर हम चीन सहित देश के शत्रुओं का बहिष्कार करके अपनी सुरक्षा को सुदृढ़ बना सकते हैं।
@hiteshshankar

Topics: विश्व हिंदू परिषदवसुधैव कुटुंबकम्भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारन्यूजक्लिकन्यूयार्क टाइम्स
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