कुछ ही दिन पहले तक भारतीय कुश्ती जगत खूब चर्चा में रहा। कारण जायज नजर नहीं आ रहे थे इसलिए उस विषय पर अब न तो चर्चा की जरूरत है और न ही समय की मांग। हां, अब एक बार फिर जब भारतीय कुश्ती जगत सुर्खियों में है तो उसकी चर्चा पूरी तरह से जायज और तर्कसंगत है। महिला पहलवानों ने अंडर-20 विश्व कुश्ती चैंपियनशिप में जबरदस्त ढंग से भारतीय परचम लहराते हुए स्पष्ट संकेत दे दिया है कि भविष्य के वे चमकते सितारे हैं। जूनियर विश्व चैंपियनशिप में लगातार दो बार स्वर्ण पदक जीत इतिहास रचने वाली अंतिम पंघाल ने आशा की नई किरण जगाई, जबकि भारत का महिला फ्रीस्टाइल कुश्ती टीम खिताब जीतना स्पष्ट संकेत दे दिया है कि निकट भविष्य में भारत विश्व महिला कुश्ती जगत का एक बड़ी ताकत के रूप में उभरने की दिशा में अग्रसर है। अम्मान (जॉर्डन) में तीन स्वर्ण सहित ऐतिहासिक कुल सात पदक जीतने वाली भारतीय टीम के मुख्य प्रशिक्षक व द्रोणाचार्य अवॉर्डी महासिंह राव ने गर्व के साथ कहा कि अब जो महिला पहलवानों की नई पौध तैयार हो रही है, वास्तव में वही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सपने को सच करने की दिशा में आगे बढ़ रही है। महासिंह राव ने भारतीय महिला पहलवान दल की सफलता के विभिन्न पहलुओं पर प्रवीण सिन्हा से चर्चा की। प्रस्तुत है उनके प्रमुख
अंश
सवाल – भारत ने जूनियर विश्व चैंपियनशिप में सर्वाधिक सात पदक जीत टीम स्पर्धा अपने नाम की। आप इस सफलता के सूत्रधार रहे हैं, आपकी क्या राय है ?
जवाब – सबसे पहले तो सभी खेलप्रेमियों का भारतीय महिला पहलवानों पर विश्वास बनाए रखने और आशीर्वाद के लिए धन्यवाद। ये प्रतियोगिता भारतीय महिला कुश्ती जगत की दशा और दिशा बदलने वाली साबित होगी। हम कुल 10 फ्रीस्टाइल पहलवानों का दल लेकर अम्मान गए थे। विश्वास मानें, भारतीय कुश्ती जगत में जो विपरीत परिस्थितियां बनी हुई थीं उस बीच हमने सारी पहलवानों को सिर्फ अपनी तैयारी पर फोकस करने का निर्देश दिया और हर पहलवान के सामने पदक जीतने का लक्ष्य रखा। प्रशिक्षण शिविर में युवा पहलवानों ने जिस तरह से जीतोड़ मेहनत की, हमें भरोसा हो चला था कि टीम में शामिल सभी 10 पहलवान पदक जीतकर ही लौटेंगी। अंततः सात पहलवानों का पोडियम फिनिश करना साबित करने के लिए काफी है कि भविष्य की स्टार महिला पहलवानों ने दिग्गज देशों को कड़ी चुनौती देने के लिए कमर कस ली है।
सवाल – भारत की शानदार सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली अंतिम पंघाल की क्या विशेषताएं हैं जो वह शिखर चूमने के लिए लालायित दिखती हैं ?
जवाब – अंतिम पंघाल अभी युवा पहलवान हैं, लेकिन वह जितनी मेहनती और प्रतिभाशाली पहलवान है वैसी विरले ही देखने को मिलती हैं। अंतिम अपने हर मुकाबले को जी-जान लगाकर लड़ती हैं। शारीरिक दमखम के साथ उसमें जो जीत की भूख है, वही उसको विश्व की अन्य तमाम पहलवानों से अलग व विशेष बनाती है। कुश्ती एक शारीरिक दमखम वाला खेल है लेकिन पहलवान वही आगे जाता है जो तकनीकी व मानसिक तौर पर अपने प्रतिद्वंद्वियों को मात देने का माद्दा रखता है। अंतिम अपने नाम की सार्थकता सिद्ध करते हुए कई बार कुश्ती रिंग पर अचानक से अपनी चाल बदलते हुए विपक्षी पर दांव लगाती है। भारतीय शैली के दांवों में माहिर होने के अलावा वह विदेशी पहलवानों को उन्हीं के दांव में फंसाकर बाजी मार लेती हैं। यही नहीं, अगले माह होने वाले एशियाई खेलों में शामिल होने या न होने को लेकर वह ऊहापोह में थी, लेकिन उसने अपना फोकस नहीं खोया। वह अपने सामने आने वाली हर चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयारी करती रहती है और पदक जीतने के लिए अथक प्रयास करती है। यही वजह है कि जिस महिला विश्व चैंपियनशिप में भारत को कभी पदकों के लिए तरसना पड़ता था, उसी मंच पर अंतिम पंघाल लगातार दो बार स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय पहलवान बनी।
सवाल – भारतीय महिला पहलवानों की जो एक नई पौध तैयार हो रही है, उनसे आपको कितनी उम्मीद है ?
जवाब – अतिशयोक्ति न मानें तो ये युवा महिला पहलवान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सपने को सच करने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रही हैं। सरकार द्वारा जो सुविधाएं और प्रेरणाएं युवा पहलवानों को मिल रही हैं उसका पूरा लाभ उठाते हुए इन पहलवानों ने खुद को शारीरिक व मानसिक तौर पर मजबूती हासिल करने के अलावा निरंतर तकनीकी दृष्टि से भी खुद को मजबूत बनाने में लगी रहती हैं। अंतिम पंघाल, सविता, प्रिया मलिक, अंतिम हुडा और प्रियांशी प्रजापति जैसी सारी युवा पहलवानों में प्रतिभा के साथ-साथ इनकी जीत की जिजीविषा इन्हें एक संपूर्ण पहलवान बनाती है। इन सारे जूनियर पहलवानों में देश की सीनियर व विश्व स्तरीय पहलवानों को हराने की अद्भुत ललक है। इनकी इच्छाशक्ति ही इनकी सबसे बड़ी ताकत है। मेरा पूरा विश्वास है कि जिस तरह से सारे पहलवान तैयारियों में जुटे हुए हैं और विश्व स्तर पर जिस तरह से सफलताएं अर्जित कर रही हैं, अगले ओलंपिक में 3-4 महिला पहलवानों से आप पदक की उम्मीद कर सकते हैं। ये सिर्फ युवा महिला पहलवानों को प्रोत्साहित करने के लिए नहीं, बल्कि उनकी क्षमता के आधार पर मैं दावा कर रहा हूं। साक्षी मलिक और विनेश फोगाट ने भारतीय महिला पहलवानों की जो स्वस्थ परंपरा की शुरुआत की है, जूनियर पहलवान उस परंपरा को आगे बढ़ाने में पूरी तरह से सक्षम हैं।
सवाल – आपने कहा कि जूनियर विश्व चैंपियनशिप में भारतीय महिला पहलवानों की सफलता भारतीय कुश्ती जगत की दशा और दिशा बदलने वाली साबित हो सकती है। उसके पीछे क्या आधार है ?
जवाब – किसी भी देश में खेल की स्थिति का आकलन ओलंपिक खेलों में मिली सफलताओं से किया जाता है। भारत भी पिछले सात ओलंपिक खेलों में लगातार पदक जीतता चला आ रहा है। उसमें भी सबसे ज्यादा व्यक्तिगत पदक कुश्ती में मिले हैं जिससे भारतीय पहलवानों में एक विश्वास जागा कि ओलंपिक मंच पर पदक हमारी जद से दूर नहीं है। इस विश्वास और खिलाड़ियों के जोश को बनाए रखने के लिए भारत सरकार ने खिलाड़ियों के हित में जितनी योजनाएं बनायीं कि देश में खेल के प्रति लोगों का रुझान बढ़ने लगा। मैंने किसी देश का ऐसा पहला प्रधानमंत्री देखा है जो ओलंपिक खेलों में शामिल होने से पहले हर खिलाड़ी से रू-ब-रू होकर उन्हें आशीर्वाद देते हैं। यही नहीं, विश्व मंच पर खिलाड़ी सफलता हासिल करता है तो सबसे पहला ट्वीट प्रधानमंत्री का आए ऐसा पहले कब देखा था हमने। और प्रतियोगिता समाप्त होने के बाद पदक विजेता हो या फिर पदक से चूक गया हो, हर किसी को प्रधानमंत्री का बधाई देना और हौसला बढ़ाना खिलाड़ियों का मनोबल सातवें आसमान पर पहुंचा देता है। आज हर युवा खिलाड़ी देश के लिए सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने को आतुर दिखता है क्योंकि उन्हें सरकार से प्रोत्साहन व सामाजिक व आर्थिक सुरक्षा मिलने की पूरी गारंटी दिखती है। इसलिए युवा महिला पहलवानों का बढ़ा हुआ मनोबल, अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उनकी सफलता हासिल करने की गति व दर, सीनियर खिलाड़ियों को मात देने की क्षमता और भविष्य के लिए खुद को मजबूती तैयार करने की इच्छाशक्ति देश की महिला कुश्ती को एक नई दिशा व दशा देगी, यह तय है।
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