अगस्त के दूसरे हफ्ते के दौरान बलूच लड़ाकों ने सैन्य ठिकानों कई हमले किए। उन्होंने ग्वादर में सीपीईसी परियोजना से जुड़े चार चीनी इंजीनियरों को निशाना बनाया
बलूचिस्तान में पाकिस्तानी सेना ही नहीं, चीनी नागरिक भी बलूच लड़ाकों के निशाने पर हैं। 13 अगस्त की सुबह बलूच लिबरेशन आर्मी (बीएलए) ने ग्वादर पोर्ट सिटी में चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) से जुड़े चीनी इंजीनियरों के काफिले पर दो फिदायीन हमले किए। इसमें 4 चीनी इंजीनियर और उनकी सुरक्षा में तैनात पाकिस्तानी सेना के 9 जवान मारे गए।
काफिले में 20 से अधिक चीनी नागरिक थे, जो हवाईअड्डे से ग्वादर पोर्ट सिटी जा रहे थे। उनकी सुरक्षा में बख्तरबंद सहित 8 वाहनों में सेना और पुलिस के जवान तैनात थे। दो घंटे तक चली गोलीबारी में कई अन्य भी घायल हुए, लेकिन चीन और पाकिस्तान ने हताहतों का आंकड़ा दबा दिया। बीएलए ने चेतावनी दी है कि 90 दिन में चीन ने क्षेत्र में अपनी परियोजनाएं बंद नहीं कीं, तो वह हमले तेज कर देगा।
बलूचिस्तान में अगस्त के दूसरे सप्ताह में जो हुआ, वह अप्रत्याशित नहीं था। पाकिस्तान की सरकार और सेना जानती थी कि 11 से 14 अगस्त के बीच बलूच लड़ाके सैन्य व प्रशासनिक ठिकानों को निशाना बना सकते हैं। इसके बावजूद कई ठिकानों पर हुए हमले से साफ है कि बलूच लड़ाके सेना का मनोबल तोड़ने में काफी हद तक सफल रहे हैं। बलूच लड़ाकों ने उस समय हमले किए, जब सेना पाकिस्तान के बनने के जश्न की तैयारी कर रहे थे। बलूचों ने मश्के, गिच, जाहू, पीरंदर, मलार, शेपुक और कोलवाह में सैन्य छावनियों व चौकियों को निशाना बनाया।
‘‘हम यह कैसे बर्दाश्त कर सकते हैं कि वे हमारी जमीन पर अपनी पैदाइश का जश्न मनाएं? पाकिस्तान ने आजाद बलूचिस्तान पर कब्जा करके तमाम करारों की बेअदबी की। न तो हम इसे भूल सकते हैं और न उन्हें भूलने देंगे।’’
– कमाल बलोच, सचिव, बीएनएम
हमलों का सिलसिला 12 अगस्त की रात 8 बजे पंजगुर जिले के गिच स्थित कहन सैन्य छावनी पर हमले से शुरू हुआ। हमले में रॉकेट का भी इस्तेमाल किया गया, जिसमें एक सैन्य अधिकारी मारा गया और एक अन्य घायल हुआ। रात 10:30 बजे केच जिले के शेपुक में बराग की पहाड़ियों पर बनी सैन्य छावनी पर हमला हुआ। यहां भी लड़ाकों ने रॉकेट और स्वचालित हथियारों से हमला बोला, जिसमें एक जवान मारा गया और एक घायल हुआ।
13 अगस्त को अवारान जिले में चार सैन्य ठिकानों पर हमले हुए। शाम 7:00 बजे जिले के नोनदारा जाहू इलाके में सेना की चौकी पर फिर रॉकेट से हमला हुआ, जिसमें दो जवान मारा गया और एक अधिकारी गंभीर रूप से घायल हो गया। दूसरा हमला रात 8:00 बजे मश्के के मलिशबंद इलाके की सैनिक छावनी पर हुआ। यहां काफी देर तक बलूच लड़ाकों और सेना के बीच गोलीबारी हुई, जिसमें दो जवानों की मौत हो गई और तीन घायल हो गए। रात 9:00 बजे केच के पीरंदर में सैन्य छावनी पर हुए हमले में सेना का एक जवान मारा गया और एक घायल हुआ। रात 10:00 बजे अवारान की मलार सैनिक छावनी पर हमला हुआ, जिसमें दो जवान मारे गए और एक गंभीर रूप से घायल हुआ।
गहरी टीस अगस्त की
दरअसल अपनी आजादी की लड़ाई लड़ रहे बलूचों के पास इसकी बड़ी ‘वाजिब वजह’ है। पाकिस्तान का जन्म 14 अगस्त, 1947 को हुआ, लेकिन उसके पहले ही यानी 11 अगस्त, 1947 को अंग्रेज एक अलग देश के तौर पर बलूचिस्तान के अस्तित्व को स्वीकार चुके थे। इसके लिए कलात को लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी थी। कलात के खान ने इसकी पैरवी के लिए जिन्ना को अपना वकील नियुक्त किया था और मुकदमा जीतने पर उनकी झोली हीरे-जवाहरात से भर दी थी।
इसलिए अगस्त का दूसरा सप्ताह बलूचों के लिए दोहरे दर्द की तरह है- एक तो बड़ी मेहनत के बाद 11 अगस्त को पाई आजादी बेकार हो गई और दूसरा, चंद दिनों बाद ही उस देश का अपने जन्म का जश्न मनाना, जिसने जबरदस्ती उस पर कब्जा किया। यह बलूचों के लिए जले पर नमक छिड़कने जैसा है। बलूचिस्तान नेशनल मूवमेंट के वरिष्ठ संयुक्त सचिव कमाल बलोच कहते हैं, ‘‘हम यह कैसे बर्दाश्त कर सकते हैं कि वे हमारी जमीन पर अपनी पैदाइश का जश्न मनाएं? पाकिस्तान ने आजाद बलूचिस्तान पर कब्जा करके तमाम करारों की बेअदबी की। न तो हम इसे भूल सकते हैं और न उन्हें भूलने देंगे।’’
नहले पर दहला
पाकिस्तानी सेना ने बलूचों के हमलों से बचने की पूरी कोशिश की। इसके लिए उसने बलूचिस्तान में जगह-जगह खेलकूद और सांस्कृतिक कार्यक्रम के आयोजन की योजना बनाई तथा तरह-तरह से इसमें आम लोगों को शामिल करने की कोशिश की। सेना का मानना था कि अगर इन कार्यक्रमों में आम लोग शामिल होंगे तो फौज बलूच लड़ाकों के हमलों से बच जाएगी, क्योंकि बलूच अपने लोगों को नहीं मारेंगे। लेकिन यह रणनीति काम नहीं आई। बलूच लड़ाकों ने पहले ही आम लोगों को आगाह कर दिया था कि वह सेना के झांसे में न आएं। वे इन समारोहों को निशाना बनाने जा रहे हैं।
वैसे भी, 14 अगस्त को किसी भी सरकारी समारोह के प्रति आम बलूचों में एक तरह से बेरुखी ही रहती है। इसी को देखते हुए सेना ने कुछ जगहों पर जबरदस्ती लोगों को समारोह स्थल पर ले जाने का फैसला किया। इसका अंदाजा बलूचों को भी था, इसीलिए उन्होंने खास तौर पर 14 अगस्त की फौजी तैयारियों के समय सेना की छावनियों और चौकियों पर ताबड़तोड़ हमले किए। बलूचिस्तान लिबरेशन फ्रंट के प्रवक्ता मेजर ग्वाहरम बलोच कहते हैं, ‘‘पाकिस्तानी फौज बेकसूर बलूचों को ‘ह्यूमन शील्ड’ की तरह इस्तेमाल करना चाह रही थी ताकि हमारे हमलों से बच सके। लेकिन उनकी सारी होशियारी धरी रह गई। हमने सैनिकों पर हमले भी किए और बेकसूर बलूचों को नुकसान भी नहीं होने दिया।’’
‘‘हर चीज की एक कीमत होती है। अगर आप आग से खेलेंगे तो आपको इसके लिए भी तैयार रहना होगा कि आपके हाथ भी जल सकते हैं। चीनियों के साथ वही हो रहा है। मुझे नहीं लगता कि इसे वह या पाकिस्तान टाल सकता है। समय-समय पर उसे इस तरह का नुकसान तो उठाना होगा।’’ – पुतन ग्वादरी
आजादी की प्रतिबद्धता
सेना पर हमला करने वाले बलूच लिबरेशन फ्रंट ने बलूच लड़ाकों के अलग-अलग रैंक बना रखे हैं। इन हमलों में लेफ्टिनेंट कामरान और सेकंड ले. जाफर की जान जाने की बात संगठन ने स्वीकार की है। कामरान ऐसे परिवार से आते हैं जो बलूच आंदोलन से जुड़ा रहा। उनके पिता गुलाम मुस्तफा बलोच को पाकिस्तानी फौज ने 25 मई, 2013, जबकि उनके बड़े भाई इरफान को 28 सितंबर, 2020 को मार डाला था।
सना के नाम से लोकप्रिय जाफर ग्वादर में बीएलएफ के नेटवर्क की अहम कड़ी थे। 2014 में संगठन में शामिल होने वाले जाफर का नाम सेना पर हुए कई हमलों से जुड़ा। उनका परिवार भी बलूच आंदोलन से जुड़ा रहा है और परिवार के कई सदस्यों ने सेना से लड़ते हुए अपनी जान दी है। इनमें प्रमुख रहे एसा शीरा, समीर, सना सौगत आदि। उन्हें ग्वादर के ‘शम्बी इस्माइल मेताग’ में सुपुर्द-ए-खाक किया गया। इस मौके पर बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए और पाकिस्तान के खिलाफ नारे लगाए व उनकी कब्र पर आजाद बलूचिस्तान का झंडा लगाकर अपने ‘शहीद’ को श्रद्धांजलि दी।
‘‘पाकिस्तानी फौज बेकसूर बलूचों को ‘ह्यूमन शील्ड’ की तरह इस्तेमाल करना चाह रही थी ताकि हमारे हमलों से बच सके। लेकिन उनकी सारी होशियारी धरी रह गई। हमने सैनिकों पर हमले भी किए और बेकसूर बलूचों को नुकसान भी नहीं होने दिया।’’
बलूच खास तौर पर सीपीईसी के खिलाफ रहे हैं और उन्होंने समय-समय पर चीनी नागरिकों को निशाना बनाकर अपना गुस्सा जताया भी है। 13 अगस्त को ग्वादर में चीनी नागरिकों के काफिले पर हमले में आईईडी का इस्तेमाल किया गया। अपने नागरिकों पर हमलों को लेकर चीन ने इस बार भी पाकिस्तान से नाराजगी जताई। राजनीतिक कार्यकर्ता पुतन ग्वादरी कहते हैं, ‘‘हर चीज की एक कीमत होती है। अगर आप आग से खेलेंगे तो आपको इसके लिए भी तैयार रहना होगा कि आपके हाथ भी जल सकते हैं। चीनियों के साथ वही हो रहा है। मुझे नहीं लगता कि इसे वह या पाकिस्तान टाल सकता है। समय-समय पर उसे इस तरह का नुकसान तो उठाना होगा।’’
इसमें दो राय नहीं कि अगस्त में इस तरह के हमले प्रत्याशित थे। पाकिस्तानी हुकूमत और बलूच लड़ाकों के बीच 1948 से जो जोर-आजमाइश का दौर शुरू हुआ, उसमें इस बार बाजी बलूचों के हाथ रही, क्योंकि वह उम्मीद के मुताबिक एक के बाद एक कई हमले करने में कामयाब रहे और पाकिस्तानी सेना इसे रोक पाने में विफल रही।
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