विकासनगर (देहरादून)। जौनसार बावर के बाद अब दून घाटी कालसी वन प्रभाग क्षेत्र में हजारों की संख्या में साल के बेशकीमती पेड़ काटे जाने का मामला सुर्खियो में है। इस मामले में हाल ही में रिटायर हुए डीएफओ की भूमिका संदिग्ध बताई गई है। बताया गया है कि इस मामले में देहरादून के तत्कालीन डीएम, तहसीलदार विकास नगर और पुलिस थाना प्रभारी का भी जवाब तलब किया गया।
जानकारी के अनुसार इस सारे प्रकरण का भेद तब खुला जब राकेश तोमर की जनहित याचिका पर हाईकोर्ट के निर्देश पर वन विभाग के उच्च अधिकारियों ने जांच पड़ताल की। जंगल काटने का ये मामला कालसी वन प्रभाग के राजा वाला बाड़वाला वन क्षेत्र 64/3 से जुड़ा हुआ है। यहां की 1954 में 34.5 एकड़ रिजर्व फॉरेस्ट घोषित भूमि पर साल के करीब सात हजार साल के पेड़ काट डाले गए।
एनफील्ड टी कंपनी की खसरा संख्या 64 में बेशकीमती साल का जंगल था, जिसे बिना किसी अनुमति के साफ कर दिया गया है। इस जंगल में करीब 10 हजार साल के दशकों पुराने पेड़ थे। जिनका अब कोई अता पता नहीं है। इस बारे में जब जनहित याचिका हाई कोर्ट में दायर की गई तो उसके बाद तत्कालीन पीसीसीएफ विनोद सिंघल ने जांच बैठाई। जांच में स्पष्ट हुआ कि इस जंगल को कटवाने में एनफील्ड टी फॉरेस्ट से जुड़े संदीप कौशिक और अर्चना भार्गव की भूमिका है। संदीप कौशिक राजनीतिक प्रभाव वाला व्यक्ति है और उसके खिलाफ 2006 से वन अपराध रजिस्टर में दर्जनों मामले भी दर्ज चले आ रहे हैं, जबकि अर्चना भार्गव इस वक्त अमेरिका में है। ये साल का जंगल 1 के श्रेणी में दर्ज है और यहां 2020 से लेकर 2022 तक अवैध रूप से साल के पेड़ों का कटान होता रहा।
खास बात ये कि इतना सबकुछ होने के बाद भी वन विभाग ने संदीप कौशिक और अन्य लोगों के खिलाफ पुलिस में एफआईआर तक दर्ज नहीं कारवाई। इस अवैध कटान के मामले में वन विभाग के डीएफओ अमरेश कुमार, रेंजर एडी सिद्दीकी, वन कर्मी महावीर चौहान, रीता रमोला की भूमिका को संदिग्ध मानते हुए उन्हें निलंबित किया गया और हाल ही एडी सिद्धिकी को फिर से क्लीनचिट देते हुए बहाल कर दिया गया। इस प्रकरण में दो दर्जन से ज्यादा वन कर्मियों के ट्रांसफर करके वन विभाग ने अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली।
इस प्रकरण में हुई जांच में कुल 39 सरकारी अधिकारियों पर आरोप लगे थे, जिनमें एक आईएएस यानि तत्कालीन डीएम आशीष श्रीवास्तव और विकास नगर तहसीलदार भी शामिल थे। इन पर आरोप है कि इनके द्वारा साल के रिजर्व फॉरेस्ट का लैंड यूज चेंज किया गया, जिसके बाद भूमि समतलीकरण के नाम पर पेड़ काटने का रास्ता साफ किया गया। इस मामले में हाई कोर्ट ने जिलाधिकारी तहसीलदार की भूमिका को भी कोड किया गया है।
खबर है कि डीएफओ और अन्य वन कर्मी, पेड़ काटने की मामूली संख्या को मामलों को अपराध पुस्तिका में दर्ज करते हुए केस कंपाउंड कर नाम मात्र का जुर्माना डाल कर केस को बंद करते रहे। जानकारी के मुताबिक वन विभाग के अपराध रजिस्टर में यहां के पेड़ काटने वालों में जमशेद, सारिक, फुरकत, सलीम, तालीम, अब्दुल, इस्साक आदि को भी आरोपी बनाया गया था इनपर पर पुलिस में मामला दर्ज नहीं किया गया।
प्रारंभिक जांच में वन विभाग ने 552 साल के पेड़ों के कटने की बात कही थी, किंतु याचिकाकर्ता के द्वारा नैनीताल हाई कोर्ट में और तथ्य रखने के बाद, मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की संयुक्त बैंच ने याचिकाकर्ता के साथ वन विभाग के अधिकारियों की एक संयुक्त टीम बनाकर जांच करवाई, जिसमें करीब सात हजार साल के हरे पेड़ काटने की बात सामने आ गई। इस रिपोर्ट के बाद हाईकोर्ट ने इस स्थान पर पुनः पौधरोपण किए जाने और जुर्माना वसूले जाने के निर्देश वन विभाग को दिए, जिसपर अभी तक कोई अनुपालन नहीं हुआ। अभी इस जनहित याचिका की सुनवाई लंबित है। जानकारी के अनुसार इस मामले में हाई कोर्ट के कड़े रुख के बाद एक बार फिर से वन विभाग के अधिकारी वहां जांच पड़ताल के लिए पहुंचे हुए हैं।
क्या कहते हैं कि याचिकाकर्ता राकेश तोमर उत्तराखंडी
इस मामले को नैनीताल हाई कोर्ट में ले जाने वाले राकेश तोमर का कहना है कि उन्हें न्यायालय के निर्देशों से संतुष्ट है। उन्होंने कहा कि उम्मीद है कि इस मामले को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल भी संज्ञान लेगी क्योंकि वहां भी उनके द्वारा ये शिकायत दर्ज की गई है। उन्होंने कहा कि एक पेड़ पर ढाई लाख जुर्माने का प्रावधान है।
सीएम कार्यालय ने लिया संज्ञान
इस मामले को मुख्यमंत्री कार्यालय ने भी संज्ञान में लिया है। जानकारी के मुताबिक इस प्रकरण में अभी तक क्या-क्या कार्रवाई हुई, इस बात की जानकारी हाई कोर्ट तो भेजी जाएगी। साथ ही साथ सीएम कार्यालय को भीं अवगत कराया जाएगा।
टिप्पणियाँ