राजजिस उम्र में किशोर वय के बच्चे अपने कैरियर को लेकर माथापच्ची कर रहे होते हैं, उसी उम्र में जाट सीनियर सेकेंडरी स्कूल हिसार की 12वीं कक्षा की छात्रा “अंतिम” अपने बलबूते पर जूनियर वर्ल्ड रेसलिंग में देश के लिए गोल्ड लेकर आई हैं।
अंतिम की बड़ी बहन सरिता जो कि कबड्डी की नेशनल खिलाड़ी हैं, वो बताती हैं कि उनको कबड्डी खेलते हुए देखकर अंतिम ने कबड्डी खेलने की इच्छा प्रकट की तो मैंने उसे समझाया कि टीम गेम में भेदभाव होता है, इसलिए तुम कबड्डी की बजाय कुश्ती सीखना शुरू करो। कुश्ती एकल खेल है और इस खेल में स्वयं की मेहनत ही रंग लाती है। बड़ी बहन की बात मानकर बालिका अंतिम ने अखाड़े में कुश्ती के दांवपेंच सीखना शुरू कर दिए।
इसी रास्ते पर आगे बढ़ते हुए अपनी लगन और निरंतर मेहनत के चलते 18 अगस्त 2023 को जॉर्डन के अम्मान में आयोजित विश्व चैंपियनशिप के 53 किलो वर्ग में उन्होंने यूक्रेन की मारिया येफ्रेमोवा को 4-0 से शिकस्त देकर देश के लिए स्वर्ण हासिल कर दिखाया।
इस पूरी चैंपियनशिप के दौरान अंतिम का प्रदर्शन देखते ही बनता था। मात्र दो अंक गँवाकर और लगातार तीन बाउट जीतकर गुरुवार को यह भारतीय खिलाड़ी फाइनल में पहुंची थी। खिताबी मुकाबले के इस आखिरी और निर्णायक दौर तक पहुंचने के लिए अंतिम ने पहले तो यूरोपियन चैंपियन जर्मनी की ओलिविया एड्रिच को टेक्निकल सुपीरियॉरिटी के चलते परास्त किया। उसके बाद जापान की अयाका किमुरा से दांवपेंच का वक्त आया, लेकिन वो अंतिम के सामने एक मिनट से ज्यादा टिक नहीं पाई। पूरे मुकाबले के दौरान केवल यूक्रेन की नताली क्लिवचुत्स्का ही एक ऐसी खिलाड़ी निकली, जो इस भारतीय खिलाड़ी के सामने पूरे छह मिनट तक टिकी रहीं लेकिन अंतिम के जोशो जूनून के आगे वो भी 11-2 से परास्त हो गई।
अंतिम बताती हैं कि पूरी चैंपियनशिप के दौरान उन्हें फाइनल बाउट के अलावा और कोई बाउट मुश्किल नहीं लगी। फाइनल बाउट में उन्हें कुछ दबाव महसूस हुआ। लेकिन इसके बावजूद कजाकिस्तान की पहलवान अंतिम के आगे टिक न सकीं। इस खिताबी मुकाबले में अंतिम ने शुरुआत से ही अपने दिमाग और कौशल का बेहतरीन इस्तेमाल करते हुए विरोधी पर लगातार फुर्तीले हमले किए और उसे मैच में वापसी करने का कोई मौका नहीं दिया। खेल की शुरुआत से लेकर इस 19 वर्षीय खिलाड़ी ने अंत तक अपना दबदबा कायम रखा और अंतिम दौर में प्रतिद्वंदी के दाहिने पैर पर हमला बोलकर उन्होंने विरोधी खिलाड़ी को चित कर मुकाबला जीत लिया।
44 वर्ष के इतिहास में पहली बार
अंतिम की इस स्वर्णिम विजय के साथ वर्ल्ड अंडर-20 कुश्ती प्रतियोगिता के 44 वर्षीय लंबे इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ कि किसी भारतीय महिला पहलवान ने गोल्डन पोडियम फिनिश किया और पोडियम पर खड़े होकर अपना राष्ट्रगीत सुना। अंतिम वही पहलवान हैं जिन्होंने विनेश फोगाट को एशियाड में सीधे प्रवेश दिए जाने का विरोध करते हुए धरना दिया था और विनेश को एशियाड टीम में सीधे चुने जाने पर अंतिम अदालत भी गई थीं। आखिरकार अंतिम ने साबित कर दिया कि विनेश फोगाट को चुनौती देना अति आत्मविश्वास नहीं था बल्कि यह उनके अंदर से उपजा भरोसा था।
माता-पिता ने हमेशा साथ दिया
इस प्रतियोगिता में पहली भारतीय महिला पहलवान का स्वर्णिम गौरव हासिल करने वाली अंतिम की यह यात्रा उनके और उनके माता-पिता के लिए बिल्कुल भी आसान नहीं थी। पिता रामनिवास और माता कृष्णा कुमारी पंघाल की चौथी बेटी के रूप में इस महिला पहलवान का जन्म हरियाणा के हिसार जिले के भगाना गांव में 31 अगस्त 2004 को हुआ था। गांव की प्रथा है कि जिस घर में बहुत सारी लड़कियों का जन्म होता है, वहां और लड़कियां पैदा न हो इसलिए बेटीयों को अनचाही, भरपाई, काफी, अंतिम आदि जैसे नामों से संबोधित किया जाता है। सरिता, मीनू और निशा के बाद चौथी संतान भी लड़की पैदा हुई, तो गांव में चल रहे अंधविश्वास के मुताबिक उसका नाम अंतिम रख दिया गया। लेकिन उनके माता पिता ने हमेशा अपनी बेटी का साथ दिया।
पिता ने जमीन तक बेची
अंतिम ने जब पहलवान (रेसलर) बनने का सपना देखा तो पिता ने उसके सपने को पूरा करने के लिए हरसंभव प्रयास किया। और देश को यह गौरवपूर्ण क्षण दिखाने के लिए अंतिम के माता-पिता ने अपनी ढाई किल्ले (2.5 एकड़) ज़मीन और ट्रैक्टर तक बेच दिया, ताकि बेटी की ट्रेनिंग में कोई कमी ना आए। एक पहलवान के रूप में अंतिम बाहर से चाहे जितनी मजबूत दिखती हों लेकिन उनके सीने में भी एक कोमल और भावनाओं से भरा दिल धड़कता है, अपने माता-पिता के इस सहयोग और त्याग के बारे में बात करते हुए अंतिम काफी भावुक हो गईं और उनकी आंखे छलक पड़ीं। उन्होंने बताया कि पिता रामनिवास पंघाल और मां कृष्णा कुमारी, उनके रेसलिंग करने के फैसले में हमेशा साथ खड़े रहे। और आर्थिक स्थिति कमजोर होने के बाद भी परिवार ने हिम्मत नहीं हारी।
2004 में जन्मीं अंतिम पंघाल ने 12 साल की उम्र में कुश्ती शुरू कर दी थी । मां कृष्णा के अनुसार, अंतिम ने गांव के ही अखाड़े में गुरु पवन कुमार से कुश्ती के दांव-पेंच सीखना शुरू किया था, लेकिन कुछ समय बाद, पवन कुमार का निधन हो गया। एक खिलाड़ी कोच के मार्गदर्शन में ही प्रैक्टिस कर बेहतर प्रदर्शन कर सकता है तो बेटी के सपने को पंख लगाने के लिए पिता ने पांच साल पहले गांव छोड़ दिया और परिवार को साथ लाकर हिसार बस गए। तीन साल तक किराये के मकान में गुजारा किया और बेटी को प्रशिक्षण दिलाया। फिर पिता ने जमीन, गाड़ी, ट्रैक्टर से लेकर मशीन तक बेची और अपना मकान बनावाया।
काउंटर अटैक का कोई जवाब नहीं
अंतिम कहती हैं कि जूनियर वर्ल्ड रेसलिंग चैंपियनशिप तो केवल सफर है, उनकी मंज़िल ओलंपिक मेडल है। आज अंतिम के स्वर्ण पदक जीतने पर परिवार सहित पूरे गांव में खुशी का माहौल है। “अंतिम”, रोहतक की रहनेवाली पहलवान निर्मला बूरा को अपना रोल मॉडल मानती हैं। अंतिम अब ओलंपिक में मेडल जीतने का पक्का इरादा कर चुकी हैं और अपने खेल को मजबूत बनाए रखने के लिए वो सुबह-शाम, चार-चार घंटे प्रैक्टिस करती हैं।
कोच बताते हैं कि अंतिम के दांव-पेंच बहुत शानदार होते हैं, खासतौर पर डबल लैग अटैक में तो उनकी विशेषज्ञता है। हिसार की बाबा लाल दास कुश्ती अकादमी में उनके कोच रहे लिली पहलवान बताते हैं कि अंतिम जिस समय उनके पास आई थीं, उसी समय उन्हें लग गया था कि आने वाले समय में यह लड़की कोई कमाल ज़रूर करेगी। वह प्रतिद्वंद्वी पर हावी होकर खेलती हैं। अंतिम की तारीफ करते हुए वो बताते हैं कि अंतिम के काउंटर अटैक का कोई जवाब नहीं।
सोशल मीडिया पर क्या कहते हैं प्रशंसक
अंतिम की इस उपलब्धि से उत्साहित होकर सोशल मीडिया पर उनके प्रशंसक लिखते हैं कि ना नेताओं का साथ, ना जंतर-मंतर गैंग का साथ, ना तथाकथित किसान नेताओं/ ठगैतों का साथ, ना खाप पंचायतियों का साथ, देश की बेटी ने जोर्डन में अपने बलबूते जीता कुश्ती का खिताब। स्वतंत्रता दिवस की इस बेला पर देश की बेटी व देशवासियों को अंतिम की इस स्वर्णिम उपलब्धि पर ढेरों बधाइयां।
(स्वतंत्र लेखक)
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