चीन आज दुनिया को अपनी जैसी ‘खुशहाली भरी तस्वीर’ दिखा रहा है, असलियत उसके ठीक उलट है। अर्थव्यवस्था गिरावट की ओर है, बाजार लड़खड़ा रहे हैं तो बेरोजगारी का आंकड़ा उठता जा रहा है। लेकिन ये आंकड़े दुनिया के सामने न आ पाएं, इसके लिए वहां की कम्युनिस्ट सरकार पूरा जोर लगा रही है ताकि उसकी ‘विकसित’ देश की छवि धुंधला न जाए। लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि उस कम्युनिस्ट देश में अर्थजगत अंधेरे में गोते लगा रहा है।
ताजा आंकड़े बता रहे हैं कि चीन में इस वक्त 21 प्रतिशत से ज्यादा युवा बेरोजगार घूम रहे हैं, नौकरियां नहीं मिल रही हैं। वैश्विक कोरोना वायरस महामारी की मार से एक तरफ दुनिया धीरे धीरे उबर रही है, तो वहीं चीन लड़खड़ाता दिख रहा है। उसके लिए राह उतनी आसान नहीं लग रही है। आश्चर्य की बात तो यह है यही चीन है जिसने कथित तौर पर दुनिया में कोरोना का संकट फैलाया था। अब वह खुद उसकी मार से उबर नहीं पा रहा है। देश में आर्थिक स्थिति डावांडोल है।
बेरोजगारी के ये जो आंकड़े सामने आए हैं, वे गत जून महीने के हैं। उस माह में कम्युनिस्ट देश में 16—24 साल के युवाओं में बेरोजगारी की दर 21.3 प्रतिशत दर्ज की गई थी। ये आंकड़े वहां के राष्ट्रीय सांख्यिकी ब्यूरो (एनबीसी) के हैं। बताया गया कि इस बार कॉलेजों तथा विश्वविद्यालयों से करीब 1.2 करोड़ छात्र—छात्राएं स्नातक उपाधि लेकर आने वाले हैं और ये संख्या 2018 के बाद सबसे ज्यादा होगी।
उस वक्त चीन के लिए आर्थिक दिक्कतें और बढ़ जाने वाली हैं। बेरोजगारी तो पहले से ही पिछले रिकॉर्ड तोड़ चुकी है। हालांकि चीन में ऐसी स्थिति होने के कयास कई अर्थ विशेषज्ञ पहले ही जता चुके थे। जून की बेरोजगारी की दर का आंकड़ा दिखाता है कि यह लगातार तीसरी बार है जब संकट जैसे हालात पैदा हुए हैं।
ऐसी स्थिति चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के लिए भी सहज नहीं होगी। नए स्नातक युवाओं को रोजगार देने की मुश्किल उनके सामने मुंहबाए खड़ी है। राष्ट्रीय सांख्यिकी ब्यूरो का आंकड़ा 2018 से बाद से बेरोजगारी दर के सबसे ज्यादा होने की खुलासा कर ही चुका है। ब्यूरो का तो यहां तक मानना है कि इस आंकड़े के और बढ़ने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। कुशल युवाओं तक को रोजगार नसीब नहीं हो रहे हैं, वे नौकरियों की तलाश में भटक रहे हैं।
बेरोजगारी के ये जो आंकड़े सामने आए हैं, वे गत जून महीने के हैं। उस माह में कम्युनिस्ट देश में 16—24 साल के युवाओं में बेरोजगारी की दर 21.3 प्रतिशत दर्ज की गई थी। ये आंकड़े वहां के राष्ट्रीय सांख्यिकी ब्यूरो (एनबीसी) के हैं। बताया गया कि इस बार कॉलेजों तथा विश्वविद्यालयों से करीब 1.2 करोड़ छात्र—छात्राएं स्नातक उपाधि लेकर आने वाले हैं और ये संख्या 2018 के बाद सबसे ज्यादा होगी।
चीन में अर्थ विशेषज्ञों की चेतावनी है कि यदि हालत यही बनी रही तो इसके गंभीर परिणाम देखने को मिल सकते हैं। सरकार की कोशिश तो है कि देश में नए ग्रेजुएट होने वाले युवाओं के लिए रोजगार के अवसर बढ़ाए जाएं, लेकिन कैसे यह किसी को समझ नहीं आ रहा है।
कम्युनिस्ट देश की विकास एवं सुधार समिति का कहना तो है कि रोजगार को लेकर जो नीतियां हैं, वे कॉलेज स्नातकों के हित वाली होनी जरूरी हैं। इससे नए स्नातकों को उनके करियर में ज्यादा स्थिरता मिलेगी। हैरानी की बात है कि बहुत से युवा सिविल सेवा पदों में आने के लिए मोटी तनख्वाह वाली अपनी निजी क्षेत्र की नौकरियां छोड़ रहे हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि रोजगार की अनिश्चितता होने से युवाओं में शादी करने और बच्चे पैदा करने को लेकर अरुचि है, जो एक मुख्य कारण है चीन की घटती जनसंख्या का। इससे चीन में जन्म दर गिरती जा रही है और ये चीज वहां के आर्थिक विकास के लिए कोई अच्छा संकेत नहीं है।
अपने यहां मीडिया और सोशल प्लेटफार्म पर शिकंजा कसे रखने वाले चीन ने युवाओं में बढ़ती बेरोजगारी को लेकर जारी होते आ रहे आंकड़े सबके सामने रखने पर रोक लगा दी है। कुछ विशेषज्ञों के अनुसार, ये उस देश की आर्थिक मंदी का खास संकेत माना जा रहा है।
टिप्पणियाँ