देहरादून: यदि वन विभाग समय-समय पर नदी किनारे लोगों के अवैध कब्जों को होने नहीं देता तो आपदा से इतना अधिक नुकसान नहीं होता।
उल्लेखनीय है मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कुछ माह पहले वन नदी क्षेत्र में हुए अतिक्रमण को हटाए जाने के लिए वन विभाग के उच्च अधिकारियो को निर्देशित किया था, लेकिन ये अभियान गति नहीं पकड़ सका। नतीजा ये हुआ कि नदियों, बरसाती नालों में इस बार बाढ़ आने से जानमाल का नुकसान हो गया।
देहरादून मालदेवता नदी किनारे अवैध रूप कब्जा कर बनाई गई दून डिफेंस कॉलेज की इमारत,आपदा की भेंट चढ़ गई, नैनीताल जिले में गौला नदी तक जाने वाले बरसाती नालों में अवैध रूप से कब्जे कर बनाए गए चार घर,आफत की बारिश के बहाव में बह गए।
ऐसे कई उदाहरण सामने आए जिसमें वन विभाग नदी श्रेणी की जमीनों पर अवैध रूप से बसे लोगों के मकान, आपदा के कारण बनते गए। नदी के बारे में जानकर हमेशा कहते आए हैं, कि नदी हर तीस बरस के आसपास अपने पुराने रास्तों पर जरूर लौट आती है और ऐसा उत्तराखंड में 2013 के बाद से देखा जा रहा है कि नदियां पुराने रास्तों में लौट रही हैं, इस बार की बारिश में सालों से सूखे हुए गधेरों, नालों में भी पानी के बहाव ने रौद्र रूप दिखाते हुए नुकसान पहुंचाया है।
उत्तराखंड में वन महकमा राज्य का सबसे बड़ा मंत्रालय या विभाग है। राज्य में 71 प्रतिशत भू-भाग में जंगल हैं। नदियां भी जंगल का हिस्सा हैं। इन नदियों में रेता बजरी निकासी की अनुमति वन विभाग देता है और इनका वास्तविक स्वरूप बनाए रखने की जिम्मेदारी भी वन विभाग की है, लेकिन लालच और प्रलोभन के कारण वन विभाग के अधिकारियों के द्वारा नदी श्रेणी की भूमि पर अवैध रूप से लोगों को बसने दिया गया और आज हालात आपदा में बेकाबू हो गए हैं। नदी, नालों के रास्ते अवरुद्ध हो गए हैं, जिसकी वजह से इनका पानी मकानों में आबादी क्षेत्र में घुसने लगा है।
धामी सरकार ने 23 खनन वाली नदियों से अतिक्रमण हटाने के लिए निर्देश जारी किए थे। जिसके बाद कुछ फॉरेस्ट डिविजन में अतिक्रमण हटाया भी गया, लेकिन कुछ जगह लाल फीताशाही की भेंट चढ़ गया। कुछ डीएफओ राजनीतिक कारणों से अभियान नहीं शुरू कर सके, तो कुछ ने निर्देशों को ही ठंडे बस्ते में फेंक दिया।
उत्तराखंड में दस हजार हेक्टेयर में अतिक्रमण चिन्हित है, जबकि इसमें से केवल बारह सौ हैक्टेयर ही खाली करवाया जा सका है। शेष पर काम शुरू होना है। ऐसा बताया गया है कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, वन विभाग की कारगुजारियों से बेहद खफा हैं और वे इस बारे में जल्द ही समीक्षा बैठक बुलाने जा रहे हैं।
वन विभागअतिक्रमण हटाओ अभियान के नोडल अधिकारी डॉ. पराग धकाते से जब पूछा गया कि नदी श्रेणी से अतिक्रमण हटाने के मामले ठंडे कैसे पड़ गए तो उनका कहना था कि ऐसा नहीं है, वर्षा काल में पौधा रोपण, पेड़ लगाने का अभियान, राष्ट्रीय अभियान रहता है। इसलिए बारिश खत्म होते ही ये अभियान पुनः शुरू होगा। उन्होंने ये भी बताया कि नदी श्रेणी की जंगल जमीन में इस बार भारी बारिश ने आपदा के हालात पैदा किए हैं। जिसकी वजह से नुकसान बहुत हुआ है। डॉ. धकाते स्पष्ट कहते हैं कि एक भी इंच वन भूमि पर अतिक्रमण रहने नहीं दिया जाएगा।
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