1985: सरस्वती की खोज : खोज निकाली लुप्त हो चुकी नदी

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 2014 में जब केंद्र और हरियाणा में भाजपा की स्पष्ट बहुमत की सरकार बनी तो फिर से सरस्वती नदी को पुनर्जीवित करने का प्रयास शुरू हुआ। इस दिशा में इसरो, ओएनजीसी, सीडब्ल्यूसी, जियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया, एएसआई और सीएसआईआर ने अपना-अपना सहयोग किया।

देश-विदेश के इतिहासकार, पुरातत्ववेत्ता, भूगर्भशास्त्री, और साहित्यकार 200 वर्ष तक सरस्वती नदी के लुप्त होने के कारणों तथा इसके प्रवाह मार्ग को ढूंढने के लिए प्रयास करते रहे। इसी क्रम में नवंबर 1985 में बाबा साहब आप्टे स्मारक समिति की ओर से भारतीय इतिहास संकलन योजना के अंतर्गत सरकारी अनुदान के बिना ही एक स्वतंत्र ‘वैदिक सरस्वती नदी शोध अभियान’ दल गठित हुआ।

इस दल के अभिनायक स्व. विष्णु श्रीधर वाकणकर थे। अभियान दल ने हरियाणा के यमुनानगर स्थित आदिबद्री से लेकर पश्चिम समुद्र के तटवर्ती प्रभास क्षेत्र में सोमनाथ मंदिर तक लगभग 4,000 किलोमीटर की यात्रा की। साथ ही, दल ने 100 से अधिक स्थानों का सर्वेक्षण किया और हजारों स्थानीय लोगों से नदी के संबंध में जानकारियां जुटाई और उत्खनन में मिली पुरातात्विक सामग्री भी एकत्रित की।

इसके बाद पद्मभूषण दर्शन लाल जैन ने 1999 में सरस्वती शोध संस्थान बनाया और सरस्वती की धारा को धरती पर लाने के प्रयास में जुट गए। अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में पूर्व केंद्रीय संस्कृति और पर्यटन मंत्री जगमोहन ने सरस्वती नदी के प्रवाह मार्ग की खुदाई और सिंधु-सरस्वती सभ्यता के अनुसंधान की एक महत्वपूर्ण परियोजना शुरू की थी। लेकिन संप्रग के सत्ता में आने के बाद इसे ‘भाजपा का गुप्त एजेंडा’ बता कर रोक दिया गया।

ओएनजीसी और इसरो ने नदी के अस्तित्व के लिए पुख्ता तथ्य जुटाए। रिमोट सेंसिंग और सैटेलाइट चित्र से पेलियो चैनल (जमीन के भीतर जल भंडार) पर स्थिति स्पष्ट हुई। ओएनजीसी ने आदिबद्री से लेकर जयपुर तक 500 मीटर गहरे 12 बोरवेल बनाए। यहां से मिले पानी का परीक्षण किया गया। इससे स्पष्ट हो गया कि यह सरस्वती का ही जल है।

इसके बाद 2014 में जब केंद्र और हरियाणा में भाजपा की स्पष्ट बहुमत की सरकार बनी तो फिर से सरस्वती नदी को पुनर्जीवित करने का प्रयास शुरू हुआ। इस दिशा में इसरो, ओएनजीसी, सीडब्ल्यूसी, जियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया, एएसआई और सीएसआईआर ने अपना-अपना सहयोग किया। हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने 2015 में सरस्वती नदी के पुनरुद्वार के लिए हरियाणा सरस्वती हेरिटेज विकास बोर्ड का गठन किया।

जिस सरस्वती को लोग पौराणिक कल्पना कहते थे, दक्षिण भारत के विद्वान डॉ. रत्नाकर और बाद में दर्शनलाल जैन के प्रयास व वैज्ञानिक शोध से यह सिद्ध हो गया कि सरस्वती नदी भूतल के नीचे बह रही है। ओएनजीसी और इसरो ने नदी के अस्तित्व के लिए पुख्ता तथ्य जुटाए। रिमोट सेंसिंग और सैटेलाइट चित्र से पेलियो चैनल (जमीन के भीतर जल भंडार) पर स्थिति स्पष्ट हुई। ओएनजीसी ने आदिबद्री से लेकर जयपुर तक 500 मीटर गहरे 12 बोरवेल बनाए। यहां से मिले पानी का परीक्षण किया गया। इससे स्पष्ट हो गया कि यह सरस्वती का ही जल है।

आज सरस्वती नदी पर डैम, जलाशय और बड़े बोरवेल सहित कई परियोजनाएं प्रस्तावित हैं। इसके लिए हरियाणा और हिमाचल प्रदेश ने एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं। डैम में 224 हेक्टेयर मीटर जल भंडारण किया जा सकेगा, जिसमें से 61.88 मीटर पानी का उपयोग हिमाचल प्रदेश करेगा तथा शेष पानी से सरस्वती नदी को पुनर्जीवित किया जाएगा। डैम को लेकर दो समितियां बनाई गई हैं, जो निर्माण कार्य व रखरखाव का काम देखेंगी। आदिबद्री में एक बड़ा बैराज, आदिबद्री के निकट रामपुर हेरियां, रामपुर कोम्बियन और छिल्लोर के बीच 350 एकड़ में विशाल सरस्वती सरोवर भी बनाया जाएगा।

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