देहरादून: मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि आज़ादी के बंटवारे का दर्द न हम भूले हैं न भूलने देंगे।”पाञ्चजन्य” से बातचीत में धामी ने कहा कि लाखों लोग जिन्होंने इस बंटवारे में बलिदान दिया उन्हें मैं श्रद्धासुमन अर्पित करता हूं।
उन्होंने कहा कि 14 अगस्त के दिन को ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ के रूप में मनाए जाने की घोषणा जब आदरणीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने लाल किले की प्राचीर से की तो, और भी अधिक विस्तृत रूप में हमारा ध्यान आजादी के उन गुमनाम योद्धाओं पर भी गया, जिन्होंने अपना सबकुछ लुटा कर आजादी की कीमत चुकाई। आजादी के बदले किया गया उनका ये त्याग हिमालय सा विराट है और उनके इस बलिदान की भरपाई किसी भी प्रकार के सम्मान से नहीं की जा सकती है। बंटवारे के दंश को झेलने वाले लाखों ऐसे लोग हैं, जिनके दर्द का कभी कहीं उल्लेख नहीं किया गया और बीते 75 वर्षों से ये लोग उस दर्द को अपने सीने में दबाए बैठे हैं।
मुख्यमंत्री धामी ने कहा कि आजाद भारत के इतिहास में पहली बार आदरणीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने इनके दर्द को अपना दर्द माना और 14 अगस्त के दिन को ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ के रूप में मनाए जाने का निर्णय लेकर, राजनीतिक महत्वकांक्षाओं की पूर्ति के लिए विभाजन का विष पीने को मजबूर हुए लाखों लोगों के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट की है।
उन्होंने कहा कि इतिहास में उल्लेख मिलता है कि 1947 में जब विभाजन हुआ तो बारह लाख से ज्यादा हिंदुओं की हत्या या मृत्यु हुई, लाखों हिंदू परिवारों को अपनी बेशकीमती संपत्ति छोड़कर पलायन करना पड़ा, अपनी जान को संकट में डाल हिंदुस्तान आना पड़ा। विपरीत हालातों में भारत पहुंचे इन लोगों ने शून्य से शुरुआत की और विषम परिस्थितियों में अपने परिवार का भरण-पोषण किया।
सीएम धामी ने कहा कि आज ये समाज भारत की गतिशीलता का प्रमुख कारक है और मैं व्यक्तिगत रूप से हिंदू पंजाबी समाज को उनकी राष्ट्रसेवा के लिए आदर पूर्वक नमन करता हूं। साथ ही मैं आदरणीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी का भी हृदय से आभार प्रकट करता हूं, जिन्होंने हमारे हिंदू, पंजाबी समाज के पुरुषार्थ का उचित सम्मान किया है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि हम और हमारी सरकार, आजादी के 75 वर्ष पूर्ण होने के अमृत महोत्सव में ऐसे लोगों का सम्मान कर रहे हैं, जिन्होने अविभाजित भारत में जन्म लिया था और विभाजन के कोप को झेला था।
उन्होंने कहा कि हमने इनसे वो सच्ची और दर्दनाक घटनाएं सुनी हैं, जो बंटवारे के दौरान घटित हुईं और जिन्हें आज भी याद कर के सिरहन पैदा हो जाती है… डर हमारे मस्तिष्क पर हावी हो जाता है। धामी ने कहा हम, उस वेदना के साक्षी रहे अपने सभी बुजुर्गों और उनके संघर्ष के ऋणी हैं। आज हमारे द्वारा दिया जा रहा ये सम्मान आपके बलिदान के सम्मुख कुछ नही है। आप में से ही किसी के पिता, किसी के भाई, किसी की बहन, किसी की मां, किसी के अबोध बच्चों के साथ जो कुछ भी घटित हुआ, उसे ना तो भूला जा सकता है और ना ही उसकी किसी भी रूप में कोई भरपाई की जा सकती है।
मुख्यमंत्री धामी ने कहा कि मैं व्यक्तिगत रूप से उत्तराखंड में बसे उन पंजाबी परिवारों का आभार प्रकट करता हूं, जिन्होंने तराई की धरती को अपनी मेहनत से सींचा और कारोबारियों, उद्योगपतियों पर गर्व महसूस करता हूं जिन्होंने उत्तराखंड के विकास में अपना तन मन धन से सेवा की।
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