1955-56 : हिंदू कोड बिल : हिंदू परंपराओं को सेक्युलर बनाने की कोशिश
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1955-56 : हिंदू कोड बिल : हिंदू परंपराओं को सेक्युलर बनाने की कोशिश

सारे कानून और सेक्युलर विचार सिर्फ हिन्दुओं पर थोपने का चलन शुरू किया जवाहर लाल नेहरू ने

by WEB DESK
Aug 14, 2023, 06:15 am IST
in भारत, संस्कृति
प्रथम राष्ट्रपति डॉ.राजेन्द्र प्रसाद मंत्रियों को शपथ दिलाते हुए

प्रथम राष्ट्रपति डॉ.राजेन्द्र प्रसाद मंत्रियों को शपथ दिलाते हुए

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हिंदू धर्म के कानूनों, परंपराओं का संहिताकरण भारत की स्वतंत्रता से पूर्व ही होना प्रारंभ हो गया था। ब्रिटिश सरकार ने 1937 में संपत्ति में महिलाओं को अधिकार देते हुए हिंदू वूमेन राइट टू प्रॉपर्टी एक्ट 1937 पारित किया। इस कानून के परिणामस्वरूप बी.एन. राऊ के नेतृत्व में हिंदू लॉ कमेटी बनी। इस कमेटी का पूरा ध्यान सिर्फ हिंदू कानूनों में सुधार करना था।

स्वतंत्र भारत में हिंदू संस्कृति में स्थापित कई मान्यताओं, परंपराओं और कानूनों को बदलने की पहली बड़ी कोशिश हिंदू कोड बिल के जरिए की गई। संविधान सभा में डॉ. भीमराव आंबेडकर ने अक्तूबर,1947 में इस विधेयक का मसौदा प्रस्तुत किया।

हिंदू धर्म के कानूनों, परंपराओं का संहिताकरण भारत की स्वतंत्रता से पूर्व ही होना प्रारंभ हो गया था। ब्रिटिश सरकार ने 1937 में संपत्ति में महिलाओं को अधिकार देते हुए हिंदू वूमेन राइट टू प्रॉपर्टी एक्ट 1937 पारित किया। इस कानून के परिणामस्वरूप बी.एन. राऊ के नेतृत्व में हिंदू लॉ कमेटी बनी। इस कमेटी का पूरा ध्यान सिर्फ हिंदू कानूनों में सुधार करना था। हिंदू लॉ कमेटी की रिपोर्ट पर भारतीय संसद में 1948 से 1951 तक और फिर 1951 से 1954 तक विस्तृत चर्चा की गयी। इसी आधार पर हिंदू कोड बिल लाया गया। प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का मानना था कि हिंदू समाज ‘सड़ी-गली मान्यताओं’ पर आधारित है और इसे ‘प्रगतिशील’ बनाना होगा।

हिंदुओं को ही लक्ष्य क्यों किया जा रहा है? सभी पंथ-मजहबों को इसमें शामिल किया जाए। सभी के लिए विवाह, विरासत के एक जैसे नियम बनाये जाएं। डॉ. राजेंद्र प्रसाद इस बात से क्षुब्ध थे कि इस विधेयक की नयी अवधारणाएं और नये विचार हिंदू कानूनों के लिए न सिर्फ बाह्य हैं बल्कि इससे हर परिवार में दिक्कतें पैदा हो सकती हैं।

डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने राष्ट्रपति बनने के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को एक पत्र लिखा कि मौजूदा प्रतिनिधि सभा देश का सही ढंग से प्रतिनिधित्व नहीं करती। 1952 में प्रथम आम चुनाव से लोकसभा का गठन होगा। हिंदू कोड बिल के मसौदे पर उस लोकसभा को बात करनी चाहिए। उन्होंने यह भी लिखा कि अगर सरकार को बिल पारित कराना ही है तो सिर्फ हिंदुओं को ही लक्ष्य क्यों किया जा रहा है? सभी पंथ-मजहबों को इसमें शामिल किया जाए। सभी के लिए विवाह, विरासत के एक जैसे नियम बनाये जाएं। डॉ. राजेंद्र प्रसाद इस बात से क्षुब्ध थे कि इस विधेयक की नयी अवधारणाएं और नये विचार हिंदू कानूनों के लिए न सिर्फ बाह्य हैं बल्कि इससे हर परिवार में दिक्कतें पैदा हो सकती हैं।

हिंदू महासभा के नेता एन.सी. चटर्जी और एस.पी. मुखर्जी ने संसद में इसका पुरजोर विरोध किया। वे इस कानून को हिंदू समाज में विवाह और परिवार के परंपरागत स्वरूप की स्थिरता और एकता के लिए खतरा मानते थे। हिंदू धर्मगुरु स्वामी करपात्री जी महाराज ने दिल्ली में सात दिवसीय सम्मेलन में 15,000 लोगों को एकत्र कर इस विधेयक का विरोध किया। उन्होंने हजारों साधु-संतों एवं श्रद्धालुओं को साथ लेकर संसद तक मार्च भी निकाला जिस पर तत्कालीन सरकार ने लाठीचार्ज कराया।

इसमें करपात्री जी महाराज का दंड टूट गया। पहली लोकसभा ने कई संशोधनों को समाहित करते हुए 1955-56 में हिंदू कोड विधेयक पास किया। इसमें हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम- 1956, विवाह अधिनियम, हिंदू अप्राप्तवयता एवं संरक्षकता अधिनियम, हिंदू दत्तक एवं भरण-पोषण अधिनियम शामिल थे।

हिंदू राष्ट्रवादियों का पक्ष था कि संविधान ने देश के लिए समान नागरिक संहिता लागू करने की सरकार को जिम्मेदारी दी है परंतु यह कानून केवल हिंदुओं के बारे में है। इसी वजह से डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कहा था कि ‘सरकार ने मुस्लिम समुदाय को छूने का साहस नहीं किया।’

Topics: Hindu Mahasabhaस्वतंत्र भारत में हिंदू संस्कृतिDr. Syama Prasad Mukherjeeडॉ. राजेंद्र प्रसादDr. Rajendra Prasadसरकार ने मुस्लिम समुदायहिंदू धर्म के कानूनहिंदू समाजGovernment Muslim Communityहिंदू संस्कृतिLaws of Hinduismhindu societyराष्ट्रपति डॉ.राजेन्द्र प्रसादडॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जीएन.सी. चटर्जी और एस.पी. मुखर्जीहिंदू महासभाभारत की स्वतंत्रता
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