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होम मत अभिमत

मणिपुर नहीं, ईसाई वोटबैंक की चिंता

आखिरकार कांग्रेस मणिपुर के नस्लीय हिंसा के लंबे इतिहास और उस दौरान की केंद्र में कांग्रेस की सरकारों के रवैये को नजरअंदाज कर सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बोलने पर ही क्यों जोर दे रही है।

by WEB DESK
Aug 13, 2023, 04:15 pm IST
in मत अभिमत, मणिपुर
फाइल फोटो

फाइल फोटो

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नीलू रंजन

मणिपुर हिंसा को लेकर संसद में चली तीन दिन की बहस और गृहमंत्री अमित शाह के बिंदुवार जवाब और प्रधानमंत्री के जल्द शांति का सूरज उगने के आश्वासन के बावजूद जिस तरह से विपक्ष और खासतौर पर कांग्रेस का सरकार पर हमला जारी है, उससे इसके पीछे कोई छिपी मंशा होने का अंदेशा उठना स्वाभाविक है। आखिरकार कांग्रेस मणिपुर के नस्लीय हिंसा के लंबे इतिहास और उस दौरान की केंद्र में कांग्रेस की सरकारों के रवैये को नजरअंदाज कर सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बोलने पर ही क्यों जोर दे रही है।

यहां तक गृहमंत्री अमित शाह का चर्चा के लिए खुले आमंत्रण के बावजूद विपक्ष ने संसद को चलने नहीं दिया। संसद में चली चर्चा के दौरान विपक्षी नेताओं के बयान, मणिपुर हिंसा के खिलाफ देश के विभिन्न भागों में चले विरोध प्रदर्शनों और सोशल मीडिया पर उठाए जा रहे मुद्दों को ध्यान से देंखे तो साफ हो जाएगा कि कांग्रेस और विपक्षी दलों को मणिपुर से कहीं ज्यादा, ईसाई वोटबैंक की चिंता है, जो कांग्रेस की झोली से खिसककर भाजपा की तरफ जाना शुरू हो गया है। कांग्रेस के पास एकमात्र यही समर्पित वोटबैंक बचा है, इसका खिसकना कांग्रेस के राजनीतिक ताबूत में आखिरी कील साबित हो सकता है।

दरअसल हिंदुत्व के बढ़ते उभार के बीच कांग्रेस और विपक्ष सीधे-सीधे मणिपुर हिंसा का ईसाई से जोड़कर पेश करने से डर रहा है, इससे भाजपा का हिंदू वोटबैंक और अधिक एकजुट हो सकता है, लेकिन एर्नाकुलम से कांग्रेसी सांसद हिबि इडेन ने लोकसभा में इसे साफ-साफ बोल दिया। कैथोलिक ईसाई हिबि इडेन के पिता स्वर्गीय जार्ज इडेन लंबे समय तक एर्नाकुलम से कांग्रेसी सांसद रहे थे। हिबि इडेन ने लोकसभा में कहा कि भाजपा के नेता एर्नाकुलम में हर ईसाई के घर में जाकर समर्थन मांग रहे हैं, लेकिन भाजपा शासित मणिपुर में कुकियों (ईसाइयों) की हत्या हो रही है और चर्चों को जलाया जा रहा है। विपक्ष के कुछ और सांसदों ने भी मणिपुर की हिंसा को अल्पसंख्यक समुदाय से जोड़ने की कोशिश की। इसके अलावा देशभर में और खासतौर पर केरल में मणिपुर हिंसा के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के सहारे ईसाइयों को एकजुट करने की कोशिश की जा रही है।

पूरी दुनिया में ईसाई संगठन से जुड़े तमाम संगठनों के वेबसाइटों और न्यूज पोर्टल पर मणिपुर हिंसा को मोदी सरकार में ईसाइयों के उत्पीड़न के रूप में पेश किया जा रहा है। यूरोपीय संघ की संसद में मणिपुर हिंसा के लेकर पारित प्रस्ताव और उसे भारत में किस तरह से प्रचारित किया गया, उसे देंखे तो मणिपुर हिंसा को खास रंग देने की कोशिश साफ नजर आती है। जबकि पूरी दुनिया जानती है कि मणिपुर हिंसा का धर्म से कोई लेना देना नहीं है और सिर्फ एक नस्लीय हिंसा है। इसके पहले 1993 में कुकी और नागा के बीच हुई जातीय हिंसा में 750 अधिक लोग मारे गए थे। दोनों समूह ईसाई पंथ से जुड़े हैं।

दरअसल ईसाई वोटबैंक की चिंता की सिर्फ हिबि इडेन की नहीं है, बल्कि यह पूरी कांग्रेस की चिंता है और इसके ठोस कारण भी हैं। इसी साल मार्च में नागालैंड और मेघालय जैसे ईसाई बहुल राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा को मिली जीत कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी थी। इससे साफ हो गया कि ईसाई मतदाताओं के लिए भाजपा अब अछूत नहीं है। इसके पहले गोवा में भी ईसाई मतदाताओं के समर्थन के बल पर भाजपा अकेले पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने में सफल रही थी। नागालैंड और मेघालय के नतीजे के बाद भाजपा मुख्यालय में कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जीत के दूरगामी असर के संकेत दिये थे। उन्होंने स्पष्ट कहा था कि वह दिन दूर नहीं, जब केरल में भी भाजपा गठबंधन की सरकार बनेगी। भाजपा ने इसके लिए गंभीर प्रयास भी शुरू कर दिया। पूर्व केंद्रीय रक्षा मंत्री व कांग्रेस के बड़े नेता एके एंटनी के बेटे अनिल एंटनी भाजपा में आ चुके हैं और उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय सचिव जैसा अहम पद भी दे दिया गया है। हिबि इडेन ईसाई मतदाताओं के बीच पैठ बनाने की भाजपा की कोशिश को खुद स्वीकार कर चुके हैं।

केरल में ईसाई मूलतः कांग्रेस के वोटबैंक रहा है। केरल में ईसाई आबादी 18 फीसद से अधिक है। पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को सबसे अधिक 15 सीटें अकेले केरल से मिली थी। इसके बाद आठ-आठ सीटें तमिलनाडु और पंजाब से मिली थी। जाहिर है ईसाई वोटबैंक का खिसकना विपक्षी एकता के सहारे भाजपा को चुनौती देने के कांग्रेस के सपने पर पानी फेर सकता है। पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा को भले एक भी सीट नहीं मिली हो, लेकिन वह 13 फीसद वोट हासिल करने में सफल रही थी। 18 फीसद ईसाई वोटबैंक के एक हिस्सा भाजपा की तरफ आने की स्थिति में वह सीपीएम नेतृत्व वाले एलडीएफ (लेफ्ट ड्रेमोक्रेटिक फ्रंट) और कांग्रेस नेतृत्व वाले यूडीएफ (यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फंट) का बाद तीसरी राजनीतिक शक्ति बन सकती है।

खासतौर पर विपक्षी गठबंधन आईएनडीआईए (इंडियन नेशनल डपलपमेंटल इन्क्लुसिव अलायंस) में यूडीएफ और एलडीएफ के सभी दलों के शामिल होने के बाद से केरल में विपक्ष का स्थान खाली है, जिसे भाजपा आसानी से भर सकती है। वैसे भी ईसाई वोटबैंक का खिसकना सिर्फ केरल तक सीमित नहीं रहेगा, तमिलनाडु, कर्नाटक, तेलंगाना, झारखंड, छत्तीसगढ़ समेत पूर्वोत्तर भारत के सभी राज्यों में यह कांग्रेस के अस्तित्व के लिए चुनौती साबित हो सकता है।
(बातचीत पर आधारित)

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं

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