भारत की उन्नति भौतिक, आर्थिक, सामरिक तो होनी चाहिए, परंतु आध्यात्मिक और दार्शनिक उन्नति भी अत्यावश्यक है।
गत दिनों काशी में अग्निहोत्री विद्वान सम्मान समारोह आयोजित हुआ। इसे संबोधित करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत ने कहा कि भारतवासियों की श्रद्धा पूर्वकाल में वेदों में थी, वर्तमान में है और भविष्य में भी रहेगी। वर्तमान विज्ञान में अन्त:स्फूर्ति शब्द का प्रयोग हो रहा है, लेकिन यह तथ्य हमारे पूर्वजों को पहले से ही पता था और इसी तथ्य के आधार पर वे सत्य का अन्वेषण करते थे।
भारत की उन्नति भौतिक, आर्थिक, सामरिक तो होनी चाहिए, परंतु आध्यात्मिक और दार्शनिक उन्नति भी अत्यावश्यक है। उन्होंने कहा कि आज की कठिन परिस्थिति में निष्ठापूर्वक व्रतधारण करके कुछ लोग कार्य कर रहे हैं, उनके कारण वेदों की ज्ञान-धारा का संरक्षण हो रहा है।
जगतगुरु शंकराचार्य जी ने कहा कि मंदिरों को अग्निहोत्री विद्वानों से जोड़ना चाहिए। अग्निहोत्र का कार्य शास्त्रीय पर्यावरण और चिंतन पर्यावरण के रक्षण हेतु किया जाता है। कार्यक्रम के प्रारंभ में जगद्गुरु शंकराचार्य जी तथा श्री मोहनराव भागवत ने लगभग 45 मिनट तक विभिन्न अनुष्ठानों में भाग लिया तथा अग्निहोत्री विद्वानों से आशीर्वाद तथा प्रसाद ग्रहण किया।
ज्ञान, कर्म, भक्ति का मूर्त उदाहरण हमारे अग्निहोत्री वैदिक विद्वान हैं। श्रौत कर्म (अग्निहोत्र), सदाचार और धर्म की वृद्धि के लिए है। वेदों की जतन और अग्निहोत्र धारण कर देवताओं के आह्वान की क्षमता अहिताग्नि विद्वान रखते हैं। ब्रह्मतेज और क्षात्रतेज से पल्लवित भारत विश्व का गुरु बने, यही शुभकामना है।
जगतगुरु शंकराचार्य जी ने कहा कि मंदिरों को अग्निहोत्री विद्वानों से जोड़ना चाहिए। अग्निहोत्र का कार्य शास्त्रीय पर्यावरण और चिंतन पर्यावरण के रक्षण हेतु किया जाता है। कार्यक्रम के प्रारंभ में जगद्गुरु शंकराचार्य जी तथा श्री मोहनराव भागवत ने लगभग 45 मिनट तक विभिन्न अनुष्ठानों में भाग लिया तथा अग्निहोत्री विद्वानों से आशीर्वाद तथा प्रसाद ग्रहण किया।
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