लोहाघाट से मायावती आश्रम लगभग दस किलोमीटर की दूरी पर है। यह रास्ता देवदार के जंगलों के बीच से होकर गुजरता है। यहां का प्राकृतिक सौन्दर्य देखते ही बनता है। रास्ते में चीड़, बांज और बुरांश के पेड़ों से खूबसूरती में चार चांद लग जाते हैं।
उत्तराखण्ड के चम्पावत जिले में स्थित मायावती के अद्वैत आश्रम में स्वामी विवेकानन्द 15 दिन तक ठहरे थे। यहां पहुंचने के लिए रेलमार्ग से जाना हो तो टनकपुर या काठगोदाम तक जाया जा सकता है। टनकपुर से मायावती 88 किलोमीटर तथा काठगोदाम से 167 किलोमीटर दूर है। मायावती में अगर आश्रम के अतिथि भवन में जगह मिल गई तो ठीक, वरना पास में ही लोहाघाट में रुकने की व्यवस्था करनी पड़ती है। यहां सस्ते और महंगे, दोनों तरह के होटल मिल जाते हैं। रोडवेज से भी लोहाघाट पहुंचा जा सकता है। अगर कोई अपनी कार या टैक्सी से जाना चाहे तो भी आसानी हो सकती है।
हम लोगों ने अपनी यात्रा कार से करने की ठानी थी। हम दिल्ली से चलकर नैनीताल के पास सातताल नामक जगह पर रुके और वहां के अतिथि भवन में रात बिताने के बाद अगले दिन लोहाघाट के लिए निकले। सातताल से लोहाघाट जाने के लिए धारी, धानाचुली, देवीधुरा होकर रास्ता जाता है। यह पूरा रास्ता ऊंचे-ऊंचे हरे-भरे पर्वतों और सुन्दर घाटियों से सराबोर है। लोहाघाट पहुंचने के बाद हमने एक होटल में रात बितायी और अगले दिन सुबह मायावती आश्रम की ओर चल पड़े।
लोहाघाट से मायावती आश्रम लगभग दस किलोमीटर की दूरी पर है। यह रास्ता देवदार के जंगलों के बीच से होकर गुजरता है। यहां का प्राकृतिक सौन्दर्य देखते ही बनता है। रास्ते में चीड़, बांज और बुरांश के पेड़ों से खूबसूरती में चार चांद लग जाते हैं। वहां जाने वाली सड़क एक तरह से खाली ही थी, इसलिए कार की गति बढ़ाते हुए हम साढ़े दस बजे तक वहां पहुंच गये। हमने ज्यों ही आश्रम के परिसर में प्रवेश किया, वहां के वातावरण के प्रभाव में हम आध्यात्मिक रंगत में रंग गए। चारों तरफ गहरी शान्ति थी, लोग आपस में इशारों में बातें कर रहे थे।
रामकृष्ण मठ की एक शाखा के रूप में 1899 में इस अद्वैत आश्रम की स्थापना की गयी थी। स्वामी विवेकानन्द के शिष्य दंपति ने इसकी शुरुआत की थी और इसके पहले प्रमुख भी स्वामी स्वरूपानन्द थे जो विवेकानन्द के शिष्य थे। स्वामीजी के अंग्रेज शिष्य जे.एच. सेवियर भी संस्थापक सदस्य थे। सेवियर की मृत्यु का समाचार सुनकर विवेकानन्द मायावती आये थे। वे यहां 3 से 18 जनवरी, 1901 तक रहे। अंग्रेजी में प्रकाशित होने वाली मासिक पत्रिका ‘प्रबुद्ध भारत’ का सम्पादकीय कार्यालय इसी आश्रम में है। आश्रम द्वारा एक लोक सेवार्थ अस्पताल भी चलाया जाता है।
यह आश्रम ऐसे शान्त वातावरण और प्रकृति की गोद में बना है कि यहां पहुंचते ही आदमी का मन बदलने लगता है और एक आध्यात्मिक प्रभाव अपनी छाप छोड़ने लगता है। यहां पहुंचते ही हम उस कमरे में जाकर ध्यान लगाकर बैठ गये जिसमें स्वामी विवेकानन्द रुके थे। इसके बाद हम आश्रम और उसके चारों ओर फैली हरियाली को देखते रहे। लोहाघाट से दूर एकदम शान्त और प्रकृति के गोद में बसा यह आश्रम केवल आध्यात्मिक ही नहीं बल्कि प्राकृतिक रूप से भी मन पर छाप छोड़ता है।
पीछे घने जंगल वाले पहाड़ के पास बने आश्रम के परिसर में चारों तरफ तरह-तरह के फूल खिले थे और जिधर देखो, केवल हरियाली नजर आ रही थी। हमें बताया गया कि स्वामीजी ने यहां अपनी मूर्ति लगाने के प्रति अनिच्छा प्रकट की थी, इसलिए कोई मूर्ति नहीं लगायी गयी। हर एकादशी को सायंकाल यहां भजन-कीर्तन किया जाता है।
विश्व भर में फैले रामकृष्ण मठ की एक शाखा के रूप में 1899 में इस अद्वैत आश्रम की स्थापना की गयी थी। स्वामी विवेकानन्द के शिष्य दंपति ने इसकी शुरुआत की थी और इसके पहले प्रमुख भी स्वामी स्वरूपानन्द थे जो विवेकानन्द के शिष्य थे। स्वामीजी के अंग्रेज शिष्य जे.एच. सेवियर भी संस्थापक सदस्य थे। सेवियर की मृत्यु का समाचार सुनकर विवेकानन्द मायावती आये थे। वे यहां 3 से 18 जनवरी, 1901 तक रहे। अंग्रेजी में प्रकाशित होने वाली मासिक पत्रिका ‘प्रबुद्ध भारत’ का सम्पादकीय कार्यालय इसी आश्रम में है। आश्रम द्वारा एक लोक सेवार्थ अस्पताल भी चलाया जाता है।
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